जोतिबा फुले की बायोपिक बनाएंगे अनंत महादेवन, फर्स्ट लुक जारी

दलित-बहुजनों के विमर्श अब भारतीय सिनेमा के केंद्र में शामिल होने लगे हैं। जल्द ही जाेतिबा फुले की जीवनी पर एक फिल्म देखने को मिलेगी। इसके निर्माण की घोषणा फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन ने बीते 11 अप्रैल को जोतिबा फुले की 195वीं जयंती के मौके पर की। इस अवसर पर फिल्म का पोस्टर भी जारी किया गया, जिसमें प्रतीक गांधी और पत्रलेखा हू-ब-हू जोतिबा फुले और सावित्री फुले की तरह ही दिख रहे हैं। 

बताते चलें कि फुले दंपत्ति ने 19वीं सदी के मध्य में साझा तौर पर छुआछूत और जातीय भेदभाव के खिलाफ लम्बे समय तक आंदोलन चलाया। उन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना करते हुए शूद्र व अतिशूद्र लोगों के लिए समान अधिकारों के लिए संघर्ष किया था। दोनों का महिलाओं को स्कूली शिक्षा दिलाने के क्षेत्र में भी बहुत योगदान है। दोनों ने मिलकर 1848 में महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला था।

जोतिबा फुले के किरदार को निभाने को लेकर बेहद उत्साहित प्रतीक गांधी कहते हैं, “महात्मा फुले का किरदार निभाना और दुनिया के सामने उनके व्यक्तित्व को पेश करना मेरे लिए गौरव की बात है। यह पहला मौका है जब में किसी बायोग्राफ़ी में एक अहम किरदार निभा रहा हूं। इस किरदार को निभाना मेरे लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है, मगर एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व होने के नाते महात्मा फुले के रोल को निभाने को लेकर मैं बहुत उत्साहित हू।” 

प्रतीक कहते हैं, “मुझे याद है कि फिल्म की कहानी सुनने के बाद मैंने तुरंत इस फिल्म में काम करने के लिए हामी भर दी थी। कुछ किरदारों पर किसी का नाम लिखा होता है और मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि अनंत सर ने मुझे इसमें काम करने का ऑफर दिया। मुझे बेहद खुशी है कि इसके निर्माताओं ने महात्मा और सावित्री फुले द्वारा सामाजिक बदलाव के लिए समर्पित किये गये जीवन के बारे में आज की पीढ़ी को अवगत कराने का बीड़ा उठया है।”

वहीं सावित्रीबाई फुले का किरदार निभानेवाली अभिनेत्री पत्रलेखा ने कहा, “मेरी परवरिश मेघालय में हुई है। यह एक ऐसा राज्य है जहां पर महिलाओं के हको और फैसलों को पुरुषों से अधिक अहमियत दी जाती है। ऐसे में नारी-पुरुष समानता का विषय मेरे दिल में एक बेहद अहम स्थान रखता है। सावित्री फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर 1848 में पूरी तरह से घरेलू सहयोग से लड़कियों के लिए एक स्कूल का निर्माण किया था। महात्मा फुले ने विधवाओं के पुनर्विवाह कराने और गर्भपात को नियंत्रित करने के लिए एक अनाथ आश्रम की भी स्थापना की थी। ये फिल्म मेरे लिए एक बहुत खास फिल्म है।”

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