दुनिया भर में नाम कमाने वाले दलित प्रोफेसर को दिल्ली विवि ने नहीं बनाया प्रोफेसर

“एक वैज्ञानिक… जिसने दुनिया की सबसे बड़ी फिजिक्स लैब में अपनी प्रतिभा और अपने देश का परचम लहराया… अपनी ही यूनिवर्सिटी ने उसे ‘योग्य’ नहीं माना है। दिल्ली विश्वविद्यालय में फिजिक्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार का मामला आपको झकझोर कर रख देगा।

यूरोप की मशहूर फिजिक्स लैब CERN में कई बेहद महत्वपूर्ण प्रयोगों में हिस्सा ले चुके डॉ. अशोक कुमार को उनकी अपनी दिल्ली यूनिवर्सिटी ने प्रोफेसर पद पर प्रमोशन के लायक नहीं माना है। दिल्ली यूनिवर्सिटी ने प्रो. अशोक कुमार को नॉट फाउंड सुटेबल घोषित कर दिया है। हैरत की बात यह है कि सारे नियमों को ताक पर रखते हुए डीयू की चयनडॉ. अशोक कुमार, दिल्ली विश्वविद्यालय, फिजिक्स विभाग समिति ने उनसे जूनियर दो सहयोगियों को पदोन्नति दे दी है। ये दोनों ऐसे हैं जो डॉ. कुमार की उपलब्धियों के सामने कहीं नहीं ठहरते हैं। जिससे बहुजन समाज भड़क गया है और यूनिवर्सिटी के इस फैसले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

दरअसल जिस डॉ. अशोक कुमार को नॉट फाउंट सुटेबल घोषित किया गया है, उनकी प्रतिभा और उपलब्धियों के सामने दिल्ली यूनिवर्सिटी के कई तथाकथित मेरिटधारी और सुटेबल प्रोफेसर पानी भरते दिखते हैं। आप खुद देखिए-

  • डॉ. कुमार ने यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन यानी European Organization for Nuclear Research के महत्वपूर्ण प्रयोगों में योगदान दिया है।
  • वर्ष 2025 में उन्हें 3 मिलियन डॉलर का Breakthrough Prize in Fundamental Physics से सम्मानित किया गया है, जो भौतिकी के क्षेत्र में उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा का प्रतीक है और इसे भौतिकी का नोबेल पुरस्कार कहा जाता है।
  • डॉ. कुमार CERN की Compact Muon Solenoid (CMS) प्रयोगशाला से 2001 से जुड़े हुए ।
  • उन्होंने कुल मिलाकर 35 करोड़ रुपये से अधिक के कई सीरियस रिसर्च ग्रांट्स हासिल किया है, जो उनके शोध प्रोजेक्ट्स की क्वालिटी और उनकी नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।
  • वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के ‘Top‑10’ सबसे ज़्यादा उद्धृत वैज्ञानिकों में पाँचवे नंबर पर हैं।
  • अब बात उनके योग्य होने की। शोध इंडेक्स को h- इंडेक्स से मापा जाता है। डॉ. अशोक कुमार का h‑इंडेक्स 120 है, जबकि भारत में प्रोफेसरों का औसत h-इंडेक्स 20 से कम होता है।
  • उनके शोध पत्रों को अकादमिक समुदाय में अत्यधिक उद्धृत किया गया है।
  • वर्तमान में वे Technical Coordinator के रूप में CMS के GEM प्रोजेक्ट का नेतृत्व कर रहे हैं—जिसमें म्योन डिटेक्शन के लिए नए डिटेक्टर विकसित करने का काम शामिल है।

इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद डॉ. अशोक कुमार को प्रोफेसर पद के लिए उपर्युक्त यानी सुटेबल नहीं माना गया है।

हालांकि मामले की लीपापोती करते हुए अब चयन समिति का कहना है कि यह सामूहिक निर्णय था। लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के टॉप 10 साइंटिस्टों में 5 वे नंबर शामिल डॉ. अशोक कुमार, जो कि साल 2021 से ही प्रोफेसर बनने के योग्य हैं, उनको प्रोफेसर नहीं बनाना अब दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए गले की हड्डी बन गया है। इस फैसले को लेकर जहां डीयू की कड़ी आलोचना हो रही है, तो वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी के इस फैसले ने भारतीय विश्वविद्यालय में फैले भयंकर जातिवाद की कलई एक बार फिर खोलकर रख दी है, जिसकी चर्चा अब दुनिया भर में हो रही है। डीयू पर आरोप है कि डॉ. अशोक कुमार का प्रमोशन इसलिए नहीं किया गया, क्योंकि वह दलित समाज से आते हैं। देखना होगा कि इस फजीहत से बचने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी का प्रशासन क्या डॉ. अशोक कुमार को उनका हक देगा, जिसके वह हकदार हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की बड़ी पहल, आदिवासी छात्रों के लिए स्पेशल हॉस्टल

रांची के करमटोली स्थित ट्राइबल हॉस्टल परिसर में राज्य के अब तक के सबसे बड़े आदिवासी बालक छात्रावास का शिलान्यास करते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेनझारखंड में शिक्षा को मजबूती देने और आदिवासी बच्चों के लिए उच्च स्तरीय आवासीय सुविधाएं सुनिश्चित करने की दिशा में राज्य सरकार ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने हाल ही में राजधानी रांची के करमटोली स्थित ट्राइबल हॉस्टल परिसर में राज्य के अब तक के सबसे बड़े आदिवासी बालक छात्रावास का शिलान्यास किया। इस बहुमंजिला हॉस्टल के बन जाने से राज्य के दूरदराज़ के इलाकों से आने वाले आदिवासी छात्रों को शिक्षा के अवसरों तक पहुँचने में बड़ी राहत मिलेगी। 22 मई 2025 को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उपस्थिति में इसका शिलान्यास हो चुका है।

 राज्य सरकार की योजना के अनुसार, यह छात्रावास जी+6 मंजिला होगा और इसमें 520 आदिवासी छात्रों के रहने की सुविधा होगी। हॉस्टल में आधुनिक सुविधाओं से युक्त कमरे, अध्ययन कक्ष, लाइब्रेरी, खेलकूद की व्यवस्था, अग्निशमन प्रणाली और लिफ्ट की सुविधा भी होगी। हॉस्टल का परिसर साफ-सुथरा, हरित और सुरक्षित वातावरण प्रदान करेगा, ताकि छात्रों को पढ़ाई में कोई बाधा न हो और वे बिना किसी चिंता के अपनी शिक्षा पर पूरा ध्यान केंद्रित कर सकें।

 मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस अवसर पर कहा कि, “शिक्षा के बिना कोई भी समाज तरक्की नहीं कर सकता। हमारी सरकार ने आदिवासी और पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए आवासीय सुविधाओं को प्राथमिकता दी है। हमारी कोशिश है कि कोई बच्चा सिर्फ इस वजह से पढ़ाई से न छूटे कि उसके पास रहने की उचित व्यवस्था नहीं है।” मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि सरकार बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी तैयार कर रही है, ताकि वे न केवल झारखंड में बल्कि देश के किसी भी कोने में जाकर अपनी योग्यता साबित कर सकें।

इस परियोजना की कुल लागत लगभग 26 करोड़ रुपये है और इसे 2027 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। भवन निर्माण विभाग इसके निर्माण का कार्य देखेगा। अधिकारियों के अनुसार निर्माण कार्य की गुणवत्ता और समयसीमा को लेकर विशेष सतर्कता बरती जाएगी ताकि बच्चों को समय पर बेहतर सुविधा मिल सके।

फिलहाल करमटोली परिसर में कुल 10 छात्रावास संचालित हैं, जिनमें करीब 2,500 आदिवासी छात्र रहते हैं। इनमें कई छात्र सुदूर ग्रामीण इलाकों से आते हैं, जहां स्कूल-कॉलेज तक पहुँच पाना आसान नहीं होता। ऐसे में यह हॉस्टल उनके लिए एक बड़ा सहारा होगा। नई इमारत के बन जाने से और अधिक बच्चों को प्रवेश दिया जा सकेगा और वर्तमान में छात्रावासों की संख्या और सुविधाओं में सुधार होगा।

राज्य सरकार की योजना यहीं तक सीमित नहीं है। मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि आने वाले दिनों में लड़कियों के लिए भी इसी परिसर में 528-बेड वाला आदिवासी बालिका छात्रावास बनाया जाएगा। इसके अलावा इस परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम पर एक आधुनिक पुस्तकालय भी स्थापित किया जाएगा, जो बच्चों को अध्ययन और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अतिरिक्त संसाधन मुहैया कराएगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि, “डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो। आज उसी विचार को आगे बढ़ाते हुए हम राज्य के बच्चों को हर वह सुविधा देना चाहते हैं जिससे वे पढ़ाई में पीछे न रहें। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अफसर बनें, डॉक्टर बनें, इंजीनियर बनें और देश-दुनिया में झारखंड का नाम रौशन करें।”

राज्य सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र में की जा रही कोशिशों की सराहना समाज के विभिन्न वर्गों से मिल रही है। आदिवासी समुदाय के बुजुर्गों और अभिभावकों ने इस फैसले का स्वागत किया है और कहा कि अब उनके बच्चे बेफिक्र होकर पढ़ाई कर सकेंगे। इससे पहले गाँव के बच्चों को शहर में कमरा लेकर रहना मुश्किल होता था। कई बार महँगा किराया या असुरक्षित माहौल उनकी पढ़ाई में बाधा डालता था। ऐसे में सरकार की यह योजना गरीब और वंचित तबके के लिए बड़ी राहत साबित होगी।

अधिकारी बताते हैं कि छात्रावास में रहने वाले सभी बच्चों को मुफ्त भोजन, अध्ययन सामग्री और मेडिकल सुविधा भी दी जाएगी। साथ ही परिसर में साफ-सफाई और सुरक्षा के लिए चौबीसों घंटे निगरानी का इंतजाम किया जाएगा।

राज्य सरकार ने करमटोली परिसर को आदिवासी छात्रों के लिए एक आदर्श शिक्षण परिसर के रूप में विकसित करने का खाका तैयार किया है। इसके तहत न केवल हॉस्टल बल्कि खेलकूद मैदान, सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थल और ई-लाइब्रेरी की भी व्यवस्था की जाएगी। इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र, अभिभावक और सरकारी अधिकारी मौजूद थे। मुख्यमंत्री ने बच्चों से बातचीत की और उन्हें मन लगाकर पढ़ाई करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सरकार बच्चों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग, पुस्तकें और इंटरनेट जैसी सुविधाएँ भी देगी, ताकि बच्चे किसी भी स्तर पर कमजोर न पड़ें।

 झारखंड सरकार का यह कदम न केवल शिक्षा को सुलभ बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा बल्कि आदिवासी और वंचित समाज के बच्चों को स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का नया अवसर देगा। आने वाले समय में जब ये बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, अफसर और प्रोफेशनल बनकर लौटेंगे तो यह छात्रावास उनके सपनों का साक्षी रहेगा।

इटावा में यादव कथावाचक के सिर पर हिन्दू जातिवाद की कुल्हाड़ी

जाति के नाम पर इंसान को जानवर से भी बदतर हालत में धकेल देना, यही है सनातनी हिन्दू धर्म की वह असली जड़, जिसे आप चाहे कितना भी चंदन से रगड़ लें, यह सड़ांध फैलाती रहेगी। इटावा के नागला नंदी गांव में जो हुआ, वह सिर्फ एक कथावाचक मणि सिंह यादव के सिर के बालों तक सीमित नहीं है। यह हिन्दू समाज की हड्डियों में गहरे तक घुसे उस सड़ांध का सार्वजनिक प्रदर्शन है, जो इसे हजारों साल से सड़ा रहा है।

ब्राह्मण समाज ने कथा सुनाने के अधिकार पर भी जन्म से पट्टा लिखवा रखा है। भगवान की कहानी सुनाने वाला कोई ‘गैर-ब्राह्मण’ हो तो यह इनकी घुट्टी में जहर जैसा है। इसलिए मणि सिंह यादव से जात पूछी गई। जवाब सुनते ही उन्होंने उसका सिर मुंडवा दिया, अपमानित किया और उसे पैरों में गिरने को मजबूर कर दिया।

याद कीजिए, यही हिन्दू समाज था जिसने 2017 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद लखनऊ स्थित मुख्यमंत्री आवास को गंगाजल से धोया था। गंगा मैया भी तब जाति के झंडे में बांध दी गई। संदेश साफ था कि एक यादव ने सत्ता को अपवित्र कर दिया, अब ब्राह्मणवादी व्यवस्था को उसे शुद्ध करना होगा।

कथा का मंच हो या मुख्यमंत्री आवास, जातिवादी हिन्दू व्यवस्था हर जगह ओबीसी को नीचा दिखाकर ही खुद को ऊँचा महसूस करती है। ब्राह्मणवाद का यह अहंकार कभी नहीं गया। बड़े-बड़े संत-महंत ‘सनातन’ को शुद्ध और उदार बताते थकते नहीं, लेकिन असलियत यह है कि इस व्यवस्था में सिर झुकाने का हक भी जाति से तय होता है। इसे समझने के लिए इटावा के इस यादव कथावाचक के साथ हुई बर्बरता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपमानित करने के लिए मुख्यमंत्री आवास पर हुई घटना, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

अब बात करते हैं उस यादव समाज कि जो खुद को हिंदू धर्म का सबसे बड़ा ‘गौरक्षक’ समझता है। पूरे यूपी-बिहार में यादव लोग खुद को हिन्दू धर्म का तुर्रम खां मानकर कभी शंख बजाते हैं तो कभी धर्म रक्षक की कमर में तलवार खोंस लेते हैं। इसके अगुवा नेता भी सनातनी संतों के चरणों में बैठने को अपना सौभाग्य समझते हैं। लेकिन ज़रा देखिए, उसी हिन्दू धर्म के नाम पर ब्राह्मण तुम्हारे समाज के पढ़े-लिखे कथावाचक को भरी सभा में नाक रगड़वा देता है। तुम्हारे मुख्यमंत्री के घर को गंगाजल से पवित्र करवाता है। और तुम चुपचाप अपने खापों में दूध-घी खा कर जाति पर गर्व करते हो!

सवाल उठता है कि ओबीसी समाज खुद को कब तक हिन्दू धर्म की तलहटी में छुपाकर ब्राह्मण के ताज को चमकाता रहेगा? चाहे यादव हो, कुर्मी, कुशवाहा या पटेल, सबकी हालत एक जैसी है। कोई मंदिर में पुजारी नहीं बन सकता। कोई शंकराचार्य नहीं बन सकता। कोई कथा नहीं सुना सकता। और तुम फिर भी इनके चरणों में लोट-पोट हो?

अगर इस घटना के बाद भी ओबीसी समाज न जागा, तो ये वही इतिहास दोहराएगा जो दलित समाज ने सदियों पहले भुगता। सिर्फ दलितों को नहीं, हर ओबीसी को समझना होगा कि जाति व्यवस्था ब्राह्मणों के लिए मंदिर है और तुम्हारे लिए एक ऐसा दरवाजा, जिसे तुम बाहर से तो देख सकते हो, लेकिन उसके भीतर जाने का अधिकार तुमको नहीं है।

मणि सिंह यादव के सिर के कटे बाल और अखिलेश यादव का धुला आवास, ये तुम्हारे सिर पर लगे मुकुट नहीं, बल्कि तुम्हारे गले की बेड़ियाँ हैं। ओबीसी समाज अगर अब भी नहीं जागा तो अगला सिर, अगला घर तुम्हारा होगा, और तब तुम्हारी अगली पीढ़ी भी इस अपमान को ढोएगी।

नीट में झारखंड की बहुजन बेटियों का जलवा

आज भी डॉक्टर बनना, देश के तमाम परिवारों के बच्चों का सपना होता है। हाल ही में जब इसके लिए होने वाली नीट की परीक्षा के नतीजे आए तो झारखंड से चौंकाने वाली खबर आई। झारखंड के एक सरकारी स्कूल से वंचित समाज की 11 छात्राओं ने नीट परीक्षा पास कर झंडा गाड़ दिया है। सफल होने वाली सभी छात्राएं दलित, आदिवासी और पिछड़े समुदाय से आती हैं। स्कूल की 12वीं कक्षा की कुल 28 छात्राओं ने यह परीक्षा दी थी, जिनमें से 11 को सफलता मिली है। ये सभी लड़कियां खूंटी ज़िले के कर्रा प्रखंड में स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय की हैं। एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली वंचित समाज की छात्राओं का नीट पास करना चर्चा का विषय बना हुआ है। लेकिन परीक्षा पास करने पर खुशी के साथ ही ये परेशान भी हो गई हैं। बहुत ही सामान्य परिवारों से आने वाली इन छात्राओं के सामने अब मेडिकल कोर्स की फ़ीस भरने को लेकर संकट खड़ा हो गया है। उन्होंने सरकार से आर्थिक मदद की मांग की है।

दरअसल ज़िला प्रशासन ने नीट की तैयारी के लिए ‘सपनों की उड़ान’ नाम से एक योजना शुरू की थी, जिसे बाद में ‘संपूर्ण शिक्षा कवच’ कहा जाने लगा। इसी के तहत स्कूल को फ़िजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के शिक्षक उपलब्ध कराए गए और छात्राओं को फ्री वाई-फ़ाई के ज़रिए ऑनलाइन गाइडेंस भी दी गई। जो उनकी सफलता में बेहद अहम रहा। बता दें कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत सरकार ने अगस्त 2004 में कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग की लड़कियों के लिए आवासीय शिक्षा उपलब्ध कराना है। नतीजों से साफ है कि केंद्र की यह योजना कारगर रही है, अब देखना यह है कि जिन लड़कियों को केंद्र और राज्य सरकार उड़ने का हौसला और सपना देने में कामयाब रही है, उनको मंजिल तक पहुंचाने के लिए क्या वह नीट की फीस के रूप में इन लड़कियों की आर्थिक मदद करेगी? क्योंकि अगर झारखंड के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार ऐसा कर पाई, तभी वंचित समाज की बेटियों को आगे बढ़ाने की उसकी कोशिश सफल मानी जाएगी।

अहमदाबाद प्लेन क्रैश के बीच पत्रकार ने खोला राज

(प्रदीप सुरीन) क्या आप जानते हैं कि एविएशन कवर करने वाले ज़्यादातर पत्रकार एयर इंडिया से यात्रा करने को सबसे लास्ट ऑप्शन रखते हैं। पिछले पंद्रह सालों में (जब से मैंने एविएशन कवर करना शुरु किया) मेरी भी सबसे लास्ट चॉइस एयर इंडिया ही रही।

अहमदाबाद में बोइंग 787 ड्रीमलाइनर क्रैश हुआ इससे कोई भी पुराना एविएशन रिपोर्टर हैरान नहीं है। एयर इंडिया में बोइंग 787 ड्रीमलाइनर आने के दो साल बाद ही इसके महँगे मेंटेनेंस को लेकर सवाल उठने लगे थे। पायलटों की हड़ताल और एयर इंडिया के ख़स्ताहाल के बीच जो सबसे हैरानी वाली बात निकलकर आई थी, जिसे कोई पत्रकार हिम्मत करके भी नहीं छाप पाया था वो ये है कि एयर इंडिया की इंजीनियरिंग टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें साफ़ लिखा गया था कि कंपनी के पास अपने एयर क्राफ़्ट्स के नए स्पेयर पार्ट्स ख़रीदने तक के पैसे नहीं है। और कई सालों तक तो पुराने घिसे पिटे पार्ट्स को ठीक करके ही प्लेन उड़ाए गए। शायद आज भी वैसा ही हो रहा है।

पिछले दो दशकों में ऐसी कई घटनाएँ हुई जिसमें आम यात्रियों को ये बोला जाता रहा कि कुछ टेक्निकल कारणों से एयर इंडिया की फ़्लाइट रद्द हो गई है। लेकिन एयर इंडिया के पायलट और इंजीनियर दोस्त बताते रहे कि फटे-पुराने टायरों या फिर घटिया स्पेयर पार्ट्स की वजह से प्लेन नहीं उड़ पाए। मुझे ये बताने में बिलकुल भी हिचक नहीं है कि जब भी मुझे मजबूरन एयर इंडिया की फ़्लाइट लेनी पड़ी मैंने हर फ़्लाइट से पहले प्लेन के टायरों की तरफ़ देखा कि कहीं ये घिसे हुए तो नहीं हैं? 2013 में मैंने अपनी आख़िरी बार बोइंग 787 ड्रीमलाइनर में दिल्ली से लंदन तक की यात्रा की। लेकिन उस वक़्त भी प्लेन की हालत बेहद ख़राब थी। इंजन काफ़ी वाइब्रेट कर रहे थे और लैंडिंग इतनी हार्ड थी कि लगा नेपाल के किसी थर्ड हैंड फ़्लाइट में सफ़र कर रहे हों। अब सवाल ये है कि अहमदाबाद की घटना क्यों हुई और ज़िम्मेदार कौन? तो इसे सीधे शब्दों में समझिए। सरकार एयर इंडिया बेचना चाहती थी और ये टाटा समूह को ही बेचना चाहती थी। रतन टाटा की दिली ख्वाहिश भी थी कि एयर इंडिया एक बार फिर टाटा समूह के पास आ जाए। लेकिन अगर एयर एशिया और सिंगापोर एयरलाइंस के पेंच को हटा भी दें तो भी टाटा की मैनेजमेंट एयर इंडिया की ख़स्ताहाल की वजह से इसे ख़रीदने से कतराती रही। मौजूदा सरकार ने एक तरह से जबरन करोड़ों रुपए के रीबेट के साथ एयर इंडिया को टाटा समूह की झोली में डाल दिया।

टाटा समूह को एयर इंडिया के कबाड़ में तब्दील हो रहे फ्लीट की चिंता सता रही थी। लेकिन नए प्लेन ख़रीदना मारूति या हंडे की कार ख़रीदने जितना आसान भी नहीं है। टाटा ने एयर इंडिया के लिए जिन नए प्लेन्स का ऑर्डर‍ दिया उन्हें आने में अभी भी लगभग 2-3 साल लगेंगे। ऐसे में कंपनी बेचारी क्या करती? सबसे आसान तरीक़ा यही था कि यात्रियों को लुभाने के लिए लोगो बदल दीजिए, एयर होस्टेस की ड्रेस अप़डेट कर दीजिए और प्लेन के सीट कवर बदल दीजिए। कंपनी ने वही किया। लेकिन इंजन उसी तरह ठीक कराते रहे जैसे कोई अपनी कार को शोरूम में ठीक करवाने की जगह नज़दीकी कार मार्केट में ठीक करा लेता है।

आज मैं सिविल एविएशन के अपने कुछ पुराने दोस्तों से बात कर रहा था। हमने निष्कर्ष निकाला कि अहमदाबाद में प्लेन क्रैश की घटना को अंततः पायलट की गलती या कुछ बेहद बेतुके कारणों को वजह बताते हुए दरकिनार कर दिया जाएगा। क्योंकि अगर इस घटना में कहीं भी बोइंग 787 ड्रीमलाइनर में दोष पाया गया तो एयर इंडिया को अपने सभी मौजूदा बोइंग 787 ड्रीमलाइनर्स को ग्राउंडेड करना होगा। और अगर ऐसा कुछ हुआ तो घाटे में चल रही एयर इंडिया को पूरी तरह से बंद होने से कोई नहीं रोक सकता।

आप देखिएगा ख़ुद सरकार भी पूरी कोशिश करेगी की ICAO, FAA और बोइंग से आने वाली टीम को खिला-पिला कर ऐसे ही रवाना कर दे। वैसे भी ये एजेंसी अपनी कोई भी रिपोर्ट आम लोगों के साथ साझा नहीं करती इसी लिए इनसे ज़्यादा ख़तरा नहीं है। लेकिन टाटा समूह को जो माल चिपकाया है उसके लिए इस घटना पर पर्दा डालना कौन सी बड़ी बात है।

बाकी रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में कमीशन बनेगी ही। दो तीन साल में लोग इसे भी भूल ही जाएँगे। PS: 1- चिड़िया के टकराने से बोइंग 787 ड्रीमलाइनर क्रैश नहीं होता. 2. टेकऑफ के समय दोनों इंजन चालू रहते हैं।

लेखक पत्रकार रहे हैं और संबंधित मंत्रालय की रिपोर्टिंग का अनुभव रखते हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

बिरसा मुंडा की शहादत के 125 वर्ष और अबुआ आंदोलन

birsa mundaमहानायक बिरसा का जन्म छोटानागपुर के उलीहातु या चालकाद के बंबा गांव में 15 नवम्बर 1875 ई को हुआ था। 12 वर्ष की उम्र में सिंहभूम के चाईबासा के लूथरन मिशन चर्च में 1886ई में ईसाई धर्म में उन्हें दीक्षा दी गई थी। उनके माता-पिता के नाम करमी और सुगना मुंडा था। उनके दो भाई कोन्ता मुंडा एवं कन्हू मुंडा और दो बहनें दस्कीर एवं चंपा थे। चाईबासा केज बुरजू छात्रावास में रहकर उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा हासिल की। 1886 ई से 1890 ई तक उन्होंने पादरियों के उपदेशों को सुनकर और समझ कर अपने चरित्र एवं व्यक्तित्व का विकास किया। 1890 के बाद उन्होंने पढ़ना लिखना छोड़ दिया और वे पूरे परिवार के साथ बंदगांव चले गए, जो खूंटी और चक्रधरपुर के बीच में है। जुलाई,1894 ई में अंग्रेजों ने एक नया कानून बनाया जिससे जंगल के अधिकार जमींदारों के हाथ दे दिया गया। मुंडाओं में क्रोध और आक्रोश की एक लहर दौड़ गई। पूरे क्षेत्र में सभी मुंडा संस्थाओं ने जगह- जगह बैठकें कर जंगल पर अपने पूर्वजों के अधिकारों को पुनः बहाल करने के लिए आवेदन दिए। इसी फैलती अशांति के बीच बिरसा अपने गांव चालकाद चले गए। वहां उन्हें अपने पूर्वजों के आदिधर्म के बारे में सोचने और चिंतन करने के अवसर प्राप्त हुआ। उसके बाद उन्होंने “उलगुलान” का ऐलान किया था।

1.मुंडाओं के सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा की शक्ति पर विश्वास करने, 2.रोगियों की सेवा करने, 3.जंगल पर अपने अधिकार रखने, 4.चुटियानागपुर को अपने पूर्वजों के धरोहर मानने और 5.किसी भी सरकार की कोई आज्ञा न मानने एवं मालगुजारी नहीं देने , 6.बेगार सेवाएं नहीं देने आदि के आह्वान के साथ उन्होंने उलगुलान की घोषणा की।वे गांव-गांव जाकर मुंडाओं को संगठित करने लगे और रोगियों की सेवा करने लगे। बिरसा के उपदेश सुनने के लिए अपार जनसमूह उमड़ने लगी। लोग उन्हें अब धरती आबा या धरती के पिता के नाम से पुकारने लगे। थाना में शिकायत दर्ज कराई गई कि बिरसा ने घोषणा की है कि सरकार का राज्य खत्म हो गया है। उनकी गिरफ्तारी के लिए 24अगस्त,1895 ई को पुलिस दल चालकाद भेजा गया और 26 अगस्त को उन्हें गिरफ्तार कर रांची लाया गया। हजारों लोग उनके साथ साथ चल रहे थे। 18 नवंबर 1895 को उन्हें पचास रूपए जुर्माना और दो वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई। 1897 ई में जब महानायक जेल से रिहा हुए तो पूरा क्षेत्र भीषण अकाल के चपेट में था। वे अकाल पीड़ितों की सेवा में लग गए। उनकी सेवाओं के कारण लोग अब लड़ने मरने के लिए उनके साथ खड़े हो गए। उन्होंने अत्याचार,अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और आदिधर्म के प्रति आस्था के पर्यायवाची शब्द उलगुलान को पुनः धार देना शुरू कर दिया। 24 दिसम्बर,1899ई को जगह -जगह शाम के समय विद्रोह हो गया। तीन फरवरी,1900 ई को कुछ पैसे की लालच में एक मूलनिवासी क़ौम के गद्दार ने पुलिस को सूचना देकर उन्हें गिरफ्तार कराने का कार्य किया। 400 से अधिक मुंडा क्रांतिकारी जगह-जगह मार दिए गए और 300 से अधिक लोगों को कारावासों में डाल दिए गए। 09 जून,1900 के सुबह में उन्हें ख़ून की उल्टी हुई और 09 बजे जेल में ही अंग्रेजों की साजिश के शिकार हो कर उन्होंने अपनी शहादत दे दी। कहा जाता है कि उन्हें खाने में जहर दिया गया था। इस प्रकार हम देखते हैं कि उन्होंने भारत के मूलनिवासियों को जल जमीन और जंगल के अधिकार, सम्मान तथा संस्कृति की रक्षा के लिए महान शहीद तिलका मांझी, प्रथम स्वतंत्रता सेनानी और महान शहीद सिद्धु, कान्हो, चांद, भैरव सहित तमाम शहीदों के संघर्षों को आगे बढ़ाए थे और क्रांतिकारी मुहीम को अग्रगति दी थीं।उन्होंने अपनी शहादत से यहां के मूलनिवासियों को अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया और आत्मसम्मान के लिए उन्हें जीन सिखाया। आज भी पूरे देश के स्तर पर लूटेरी सरकारों द्वारा मूलनिवासी अनुसूचित जनजाति के जल, जमीन , जंगल और सम्मान छीनने की मुहिम जारी है। बस्तर सहित देश के सभी पर्वतीय भागों में उनके संवैधानिक अधिकारों पर लुटेरों के हमले जारी हैं। बिरसा मुंडा सहित सभी शहीदों के वारिस आज भी अपने पर हो रहे शोषण, अत्याचार और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। तो आइए, हम उनके संघर्ष की विरासत को आगे बढ़ाएं और अपने महानायक एवं महान शहीद को पुनः शत् शत् नमन और श्रद्धाजलि अर्पित करें।जय बिरसा! जय भीम !! जय भारत!!!

लंदन के ग्रेज़ इन में गूंजा डॉ. अंबेडकर का नाम, सीजेआई जस्टिस गवई ने दी ऐतिहासिक श्रद्धांजलि

लंदन/नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने हाल ही में लंदन के ग्रेज़ इन में भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर को ऐतिहासिक श्रद्धांजलि अर्पित की। यही वह प्रतिष्ठित संस्थान है जहां डॉ. आंबेडकर ने 1920 के दशक में अपनी वकालत की शिक्षा ग्रहण की थी, और जहां से उन्होंने भारतीय न्याय प्रणाली को बदलने की नींव रखी।

इस दौरान सीजेआई गवई ने कहा, “यह वही स्थान है जहां डॉ. आंबेडकर ने अपने कानूनी चिंतन को आकार दिया, और जो आगे चलकर भारतीय संविधान के निर्माण का आधार बना। आज यहां खड़े होकर उनके योगदान को स्मरण करना मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से गौरव का विषय है।” उन्होंने यह भी कहा कि एक दलित पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति के रूप में उनका सर्वोच्च न्यायालय के शीर्ष पद तक पहुंचना, डॉ. आंबेडकर की उस दूरदर्शिता का परिणाम है जिसमें उन्होंने समानता और न्याय के सिद्धांतों को भारत के संविधान में सुनिश्चित किया।

इस मौके पर ग्रेज़ इन द्वारा डॉ. आंबेडकर की दुर्लभ तस्वीरें, उनके प्रवेश प्रपत्र, और अन्य ऐतिहासिक दस्तावेज भी प्रदर्शित किए गए। ये वही दस्तावेज हैं जिन्होंने एक अछूत कहे जाने वाले युवक को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विधि संस्थानों में प्रवेश दिलाया था। इस कार्यक्रम में यूके सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज लेडी जस्टिस आर्डेन, भारत सरकार के कानून राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश विक्रम नाथ, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोराईस्वामी भी मौजूद थे।

गौरतलब है कि डॉ. आंबेडकर ने 1922 में ग्रेज़ इन में लॉ की पढ़ाई पूरी की थी। उन्होंने न केवल बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की, बल्कि आगे चलकर भारतीय संविधान की रचना में केंद्रीय भूमिका निभाई। इस ऐतिहासिक अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के दलित मुख्य न्यायाधीश द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि देना, सामाजिक न्याय की दिशा में एक गहरी प्रतीकात्मक जीत मानी जा रही है।

टोरंटो से गूंजी जातिविहीन दुनिया की आवाज, जारी हुआ ऐतिहासिक घोषणा पत्र

टोरंटो के कनाडा कन्वेंशन सेंटर में सहभागी एकत्र हैं, जो उद्घाटन से पूर्व चर्चा कर रहे हैं।टोरंटो, 27 मई 2025। जातीय भेदभाव और वंश आधारित अत्याचार के खिलाफ वैश्विक स्तर पर एक बड़ी पहल करते हुए “ग्लोबल कॉन्फ्रेंस फॉर अ कास्ट-फ्री वर्ल्ड 2025” का आयोजन कनाडा के टोरंटो शहर में 25 से 27 मई तक हुआ। सम्मेलन का समापन एक ऐतिहासिक “टोरंटो घोषणा पत्र” के साथ हुआ, जिसमें जाति आधारित भेदभाव को खत्म करने के लिए वैश्विक रणनीति और 17 सूत्रीय एजेंडा पेश किया गया।

इस सम्मेलन में दुनिया भर से दलित, रोमा, बुराकुमिन, हारातिन, किलॉम्बोलास जैसे जाति उत्पीड़ित समुदायों के प्रतिनिधि, नीति निर्माता, शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन शामिल हुए। प्रतिभागियों ने यह स्वीकार किया कि जाति व्यवस्था केवल भारत या दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अमेरिका, यूरोप, जापान, अफ्रीका और अन्य क्षेत्रों में भी अलग-अलग रूपों में मौजूद है।

घोषणा पत्र में संयुक्त राष्ट्र और सभी देशों से जातिवाद को नस्लवाद और रंगभेद के समान मानवाधिकार उल्लंघन मानने की मांग की गई। इसके अलावा शिक्षा, कानून, राजनीति, और सामाजिक-आर्थिक सुधारों के माध्यम से जाति उन्मूलन के ठोस उपाय सुझाए गए। विशेष रूप से, कनाडा सहित सभी देशों में ‘जाति’ को एक संरक्षित श्रेणी के रूप में शामिल करने पर ज़ोर दिया गया।

सम्मेलन ने डॉ. आंबेडकर की विरासत को सम्मानपूर्वक याद करते हुए जातिविहीन समाज की दिशा में युवाओं, महिलाओं और हाशिए पर मौजूद समुदायों की नेतृत्वकारी भूमिका को रेखांकित किया।

“टोरंटो घोषणा पत्र” 21वीं सदी में जाति के अंत की एक नैतिक पुकार है, जो पूरी दुनिया से समानता, न्याय और गरिमा की दिशा में ठोस कदम उठाने की मांग करता है।

टोरंटो सम्मेलन के प्रमुख फैसले और मांगें:

  1. जातिवाद को वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में मान्यता दी जाए, ठीक वैसे ही जैसे नस्लवाद और रंगभेद को माना गया है।

  2. संयुक्त राष्ट्र एक विशेष अंतरराष्ट्रीय संधि बनाए जो जाति और वंश आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए बाध्यकारी हो।

  3. कनाडा जैसे देशों के मानवाधिकार कानूनों में ‘जाति’ को संरक्षित श्रेणी में जोड़ा जाए।

  4. शिक्षा प्रणाली में ‘क्रिटिकल कास्ट थ्योरी’ को लागू किया जाए, और जाति आधारित भेदभाव के विरुद्ध संवैधानिक मूल्यों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

  5. विश्वस्तरीय ‘कास्ट डिस्क्रिमिनेशन इंडेक्स’ बनाया जाए, जो जाति आधारित असमानता को मापने का औज़ार बने।

  6. जाति पीड़ित समुदायों के नेतृत्व को बढ़ावा देने के लिए फंडिंग और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाए।

  7. ऐतिहासिक अन्याय की भरपाई हेतु सार्वजनिक माफ़ी, ज़मीन सुधार, और राजनीतिक भागीदारी दी जाए।

  8. युवा नेतृत्व को जाति और नस्ल विरोधी आंदोलनों में आगे लाने की नीति बनाई जाए।

  9. प्रवासी कार्यक्रमों में मानवाधिकार और एंटी-कास्ट ट्रेनिंग को अनिवार्य किया जाए।

  10. ट्रुथ एंड रिकंसीलिएशन कमीशन की स्थापना कर जातीय हिंसा और उत्पीड़न के मामलों की समीक्षा हो।

मुजफ्फरपुर की दलित बेटी के परिवार से मिले तेजस्वी यादव, परिवार ने बताई पूरी कहानी

(तेजस्वी यादव, नेता प्रतिपक्ष, बिहार विधानसभा)

मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी में बलात्कार के बाद गरीब दलित परिवार की 9 वर्षीय बच्ची की अस्पताल में बेड न मिलने से मौत होने के बाद आज बलात्कार पीड़िता के घर पहुंच पीड़ित परिवार से मुलाकात कर उनके दुःख-दर्द व पीड़ा को महसूस किया एवं दुखद घटना के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर पार्टी की ओर से आर्थिक सहायता राशि प्रदान की।

पीड़ित परिवार ने बताया कि पटना के पीएमसीएच में उनके साथ क्या हुआ था और कैसे स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण बच्ची की मौत हो गई। मुजफ्फरपुर से जब पीड़ित बच्ची को रेफर किया गया, तब उसकी रिकवरी हो रही थी। मगर 5000 करोड़ की लागत से बन रहे एशिया के तथाकथित सबसे बड़े अस्पताल में समय पर भर्ती नहीं किया गया, जिससे उसकी जान चली गई। अस्पताल में अलग-अलग वार्डों में उन्हें घुमाया गया। तब तक बच्ची एंबुलेंस में ही रही। एंबुलेंस में ऑक्सीजन खत्म होने लगी। जब अस्पताल वालों से परिजनों ने कहा, तो अस्पताल कर्मचारियों ने 2500 रुपये मांगे। फिर हंगामा हुआ तो बच्ची को एडमिट किया गया।

भर्ती करने के बाद भी उसका इलाज शुरू नहीं किया गया। बहुत देर बाद इलाज शुरू हुआ, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। आखिर में बच्ची ने दम तोड़ दिया। यह एक मरीज की कहानी नहीं है बल्कि प्रतिदिन PMCH में यही होता है। DK टैक्स गैंग ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मिलकर एक रिटायर्ड मेडिकल सुपरिटेंडेंट को अवधि विस्तार दे-देकर शताब्दी पूर्व स्थापित प्रतिष्ठित अस्पताल को बर्बाद कर दिया है। मंगल पांडे ने DK Tax के माध्यम से बिहार के स्वास्थ्य विभाग को भ्रष्टाचार की अग्नि में झोंक दिया है।

बदहाल बिहार में फेल होती डबल इंजन की सरकार

बिहार के डबल इंजन सरकार के अगुवा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम(- सुशांत नेगी) बिहार बदहाल है। पिछले कई महीनों से बिहार से जिस तरह अपराध, हत्याएं, गुंडागर्दी और प्रशासनिक बदइंतजामी की खबरें आ रही है, उसने बीते सालों में बिहार की बदली हुई छवि को फिर से शर्मसार करना शुरू कर दिया है। बिहार के मुजफ्फरपुर में हाल ही में दलित बच्ची के साथ हुई अमानवीयता और उसके बाद घंटों तक चिकित्सा सुविधा नहीं मिलने के कारण उसकी मौत ने तो सुशासन के नकाब को नोच कर उतार फेंका है।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कुढनी गांव में 10 वर्षीय दलित बच्ची से रेप और मौत के मामले ने बिहार में स्वास्थ्य-विभाग एंव सरकार की बदहाल स्थिति को उजागर किया है। अस्पताल प्रशासन के खिलाफ पीड़िता के परिवार ने आरोप लगाया की अस्पताल की लापरवाही की वजह से पीड़िता की जान गई है। इस घटना ने बिहार की व्यवस्था पर सवाल खडे किए हैं।

यह मामला 26 मई का है। पीड़ित परिवार ने बताया कि पटना के पीएमसीएच में उनके साथ क्या हुआ था और कैसे स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के कारण बच्ची की मौत हो गई। मुजफ्फरपुर से जब पीड़ित बच्ची को रेफर किया गया, तब उसकी रिकवरी हो रही थी। मगर 5000 करोड़ की लागत से बन रहे एशिया के तथाकथित सबसे बड़े अस्पताल में समय पर भर्ती नहीं किया गया, जिससे उसकी जान चली गई। अस्पताल में अलग-अलग वार्डों में उन्हें घुमाया गया। तब तक बच्ची एंबुलेंस में ही रही। एंबुलेंस में ऑक्सीजन खत्म होने लगी। जब अस्पताल वालों से परिजनों ने कहा, तो अस्पताल कर्मचारियों ने 2500 रुपये मांगे। फिर हंगामा हुआ तो बच्ची को एडमिट किया गया। भर्ती करने के बाद भी उसका इलाज शुरू नहीं किया गया। बहुत देर बाद इलाज शुरू हुआ, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। आखिर में बच्ची ने दम तोड़ दिया।

इस घटना में सामने आई खबर के मुताबिक जब आरोपी बच्ची को फुसलाकर अपने साथ ले गया। गाँव के लोगो से मिली जानकारी पर जब परिवार-जन बच्ची को ढूंढने निकले तो बच्ची गाँव में तालाब के पास आपत्तिजनक स्थिति में उन्हें मिली, जहां बच्ची के चेहरे और शरीर पर कई घाव थे। मौके पर पहुँची पुलिस ने जाँच शुरू की और आरोपी को हिरासत में ले लिया गया, पुलिस के मुताबिक आरोपी कि पहचान 30 साल के रोहित के तौर पर हुई है और उसने अपना जुर्म कबूला है। पुलिस ने कहा की आरोपी पहले भी ऐसे कई अपराधों को अंजाम दे चुका है।

इस घटना पर बिहार में नेता प्रति-पक्ष तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया आई है। तेजस्वी यादव ने कहा- “यहाँ डबल इंजन की सरकार पूरी तरह फेल हो गई है। किसी घ़टना पर मुख्यमंत्री जी ने कभी अफसोस नहीं जताया। सरकार में एक मुख्यमंत्री और दो उप-मुख्यमंत्री होने पर भी पीड़ित परिवार से मिलने का समय नहीं है।’’

मामले का संज्ञान राष्ट्रीय महिला आयोग ने लिया है। आयोग की अध्यक्षा विजया किशोर रहाटकर ने बिहार के मुख्य सचिव और डीजीपी को मामले की गहन और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने इस मामले में अस्पताल अधिकारियों और पुलिस की भूमिका की भी जांच करने को कहा है।

 इस घटना से बिहार में आक्रोश कि स्थिति है और सरकार द्वारा किसी प्रकार की प्रतिक्रिया ना आने पर बिहार की जनता सरकार से नाखुश है। विपक्षी दलों का आरोप है कि यह बिहार सरकार की सबसे बडी नाकामयाबी है की सरकार बिहार की जनता की सुरक्षा मुहैया कराने में पुरी तरह से विफल रही है। बिहार में बढ़ती आरोपी घटनाओं के चलते सरकार आने वाले चुनावो में कैसे जनता का भरोसा जितती है यह देखना होगा।

Vivek Kumar of JNU received Dr. B. R. Ambedkar International Award in USA

The Ambedkar Association of North America (AANA) proudly announced the recipients of the 2025 AANA Awards during its Annual Retreat held from May 23–26, 2025, at Laurelville Retreat Center in Mt. Pleasant, Pennsylvania.

AANA Annual Retreat brought together over 200 participants from North America and India for four days of Dhamma-centered learning, meditation, panel discussions, cultural events, outdoor activities, and the symbolic “Run for Equality.”

Award Recipients – 2025 Savitrimai Phule International Award Recipient: Shahira Shital Sathe

A celebrated folk artist, poet, and Bahujan rights activist from Pune, Maharashtra, Shahira Shital Sathe was honored for her pioneering efforts in blending traditional musical forms with bold, socially conscious messages. As the co-founder and lead performer of NavayanMahajalsa, she has used her artistic platform to amplify voices from marginalized communities and raise awareness on caste discrimination and gender justice. Although unable to attend in person, Shital Sathe ji shared a heartfelt video message, in which she expressed her deep gratitude to AANA and dedicated the award to Savitrimai Phule, saying, “I feel proud and happy to accept this award in the name of Savitrimai Phule. I thank AANA for recognizing and supporting my work in promoting the teachings of Phule and Dr. Babasaheb Ambedkar.” Mrs. Sujata Wahane accepted the award on her behalf.

“Mooknayak” Excellence in Journalism Award Recipient: Awaaz India TV

This year’s Mooknayak Excellence in Journalism Award was conferred to Awaaz India TV, a leading Hindi-language digital and cable news platform with over 2.5 million subscribers. Since its inception, Awaaz India TV has played a vital role in advocating for social justice, amplifying marginalized voices, and promoting Buddhist values through powerful storytelling and in-depth reporting. Vijay Bagade and Vishwanath Meshram accepted the award on behalf of the Awaaz India team. In a brief acceptance message, the team shared, “After 12 years of relentless work, we are honored to receive this recognition. Awaaz India remains committed to 0upholding the values of equality, humanity, and nationality while deepening our relationship with our viewers by sharing stories rooted in history, Buddhist philosophy, and regional realities.”

Dr. B. R. Ambedkar International Award Recipient: Dr. Vivek Kumar Renowned sociologist and author, Dr. Vivek Kumar was recognized for his pathbreaking contributions to caste studies, Indian diaspora scholarship, and Ambedkarite social thought. A professor at Jawaharlal Nehru University (JNU), New Delhi, Dr. Kumar is the author of Caste and Democracy in India (2014) and has served in esteemed academic positions, including as Visiting Professor at Columbia University and Humboldt University. Dr. Kumar has also delivered the prestigious Ambedkar Memorial Lectures at several institutions across Canada, continuing to promote social reform, equality, and intellectual inquiry inspired by Dr. Ambedkar.

Dr Kumar was able to attend the event, and he dedicated this award to his mother. During the ceremony, Dr. Kumar addressed the audience and guided them with his valuable insights on contemporary caste dynamics, social movements, and the enduring relevance of Dr. B.R. Ambedkar’s philosophy in modern society. His thought-provoking reflections deeply resonated with attendees and provided a powerful intellectual anchor for the retreat.

यादव मुख्यमंत्री के प्रदेश में दलितों पर यादवों की गुंडागिरी!

– निशांंत गौतम भारतीय समाज के भीतर जाति की संचरना इस कदर बुनी गई है कि सफल और संपन्न दलित हर किसी की आंखों में चुभता है। मध्य प्रदेश के दतिया से ऐसी ही एक घटना सामने आई है।

घटना के मुताबिक, बीते कल 27 मई 2025 को ग्राम नादिया थाना पण्डोखर तहसील भांडेर जिला दतिया मध्यप्रदेश में 18- 20 जातिवादी गुंडों (यादव जाति) ने दलित समाज के परिवार के सदस्यों पर लाठी, डंडों, कुल्हाड़ी व अन्य धारदार हथियारों से हमला कर दिया। जिसमें एक व्यक्ति के आंख और माथे पर कुल्हाड़ी से वार किया गया, उसकी हालत गंभीर है, उसे पहले भांडेर अस्पताल ले जाया गया, उसके बाद उसे जिला अस्पताल दतिया ले जाया गया और वहां से देर रात ग्वालियर रेफर किया गया है, उपचार जारी है किंतु हालत गंभीर बनी हुई है। इसी परिवार के अन्य सदस्यों को भी गंभीर चोटें आई है, जिनका दतिया के जिला अस्पताल में इलाज चल रहा है।

विवाद का जो मुद्दा है वो यह है कि देश के अधिकांश गांवों की तरह ग्राम नदिया में भी अनुसूचित जाति के सभी घर गांव के दूसरे छोर पर हैं। गांव के बीचों-बीच यादव जाति के 6-7 परिवार रहते हैं। गांव में कोई सवर्ण परिवार नहीं है। केवल OBC और SC जाति के ही लोग रहते हैं। जिसमें पाल समाज की आबादी सबसे अधिक है। गांव की कुल आबादी 500 के करीब है।

गांव की शुरुआत में दलित समाज की जमीन है, जिसपर इस परिवार के एक सदस्य ने पिछले साल मकान बना लिया है और वहां रहने लगे। इसी दलित परिवार के अन्य सदस्य भी उक्त जमीन को खलियान के तौर पर फसल रखने, सुखाने आदि कार्य हेतु लंबे समय से उपयोग करते आए हैं। और हमारे परिवार के कुछ लोग उक्त जमीन पर घर बनाने का सोच रहे हैं।

यादव जाति के मनुवादी मानसिकता से पीड़ित लोगों को यह बात बर्दाश्त नहीं हो पा रही हैं कि अनुसूचित तबके के लोग, गांव के शुरुआत में मकान बना कर कैसे रह सकते हैं। इसीलिए उन्होंने 2-3 दिन पहले उस जमीन पर अतिक्रमण करने की मंशा से कब्जा करने के लिए तार फिनिशिंग करने की योजना बना रहे थे। जब दलित समाज के लोगों को इस बात की जानकारी लगी तो वो अपने परिवार सहित (महिलाएं भी) दिनांक 27/05/2025 को उक्त स्थल पर पहुंचकर विरोध दर्ज कराया तो जातिवादी गुंडे भाग गए। करीब एक घंटे बाद जब दलित समाज के कुछ सदस्य भांडेर तहसील में आवेदन देने के लिए निकल गए तब जातिवादी गुंडे घरों में मौजूद दलित जाति के सदस्यों पर (जिसमें महिलाएं भी शामिल थी) टूट पड़े। इस दौरान 18-20 जातिवादी गुंडों द्वारा जातिसूचक गालियां देते हुए लाठी, डंडे व कुल्हाड़ियों से हमला कर दिया।उनके द्वारा किया गया ये हमला सुनियोजित था। उनके द्वारा हमले के दौरान न तो जमीन पर अतिक्रमण की कोई बात, न अपने अधिकार जमाने की बात, यह सीधा हमला था तो जातीय वर्चस्व को स्थापित करने और अनुसूचित जाति वर्ग में भय पैदा करने के उद्देश्य से किया गया हमला भी मालूम पड़ता है।

दलित परिवार के लोग निहत्थे थे सो अपनी रक्षा भी ठीक ढंग से न कर सके। इस घटना में कई लोगों को चोट आई। जब जातिवादी हमला कर रहे थे तब एक हमलावर ने एक बुजुर्ग महिला के सर पर डंडा मारने की कोशिश की जिसे रविंद्र नाम के युवक ने पकड़ लिया तभी एक अन्य हमलावर ने उस के सर और आंख पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया। हमले में घालय होकर वह घंटों तक तड़पता रहा। करीब दो घंटे तक न पुलिस पहुंची न ही एम्बुलेंस। जबकि पुलिस और एम्बुलेंस को तुरंत फोन कर दिया गया था। हमले के दौरान रविंद्र का मोबाइल भी छीन लिया गया, जिसमें घटना के दौरान के कुछ फोटोज व वीडियोस थे।

घटना को अंजाम देने का दूसरा कारण ये भी है कि दलित समाज के पास 40 बीघा के करीब जमीन है, और परिवार के अन्य सदस्यों को मिलकर करीब 150 बीघा जमीन है, जिसमें कुछ जमीन ऐसी भी जिस पर पहुंचने के लिए यादव जाति के लोगों के 1-2 खेतों से निकलना पड़ता है। जिस पर यादवों के द्वारा दलितों के निकलने पर विवाद किया जाता है। जबकि उनके लोगों के कुछ खेत हमारे खेतों के बाद पड़ते हैं किंतु हमने कभी उनके ट्रैक्टर आदि निकलने का कभी विरोध नहीं किया, क्योंकि शासन के सुखाधिकार के नियम के तहत आप किसी को खेती करने के लिए रास्ता देने से मना नहीं कर सकते। इस आशय का एक प्रकरण भी तहसीलदार महोदय, भांडेर के यहां भी लंबित है।

साल 2017 में जब लोकसेवा आयोग के द्वारा चयनित होकर दलितों के बीच से एक युवक संघप्रिय गौतम असिस्टेंट प्रोफेसर बना और साल 2018 में उसी की बहन नायब तहसीलदार बनी तो यह बात जातिवादियों को चुभने लगी। हालांकि भाई-बहन की सफलता से यह बदला कि दलित समाज के अन्य लोगों में भी आत्मविश्वास जगा और उन्होंने भी अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा के माध्यम से उन्नति करने का रास्ता चुना, जो इन जातिवादी गुंडों को रास नहीं आ रहा है। उन्हें दलितों की तरक्की बर्दाश्त नहीं रही। दलितों की शिकायत है कि पिछले साल भी इसी जाति के एक व्यक्ति ने दलित युवक के साथ मारपीट की थी, जिस पर पुलिस प्रशासन के ढुलमुल रवैए के चलते मामला दर्ज नहीं हो पाया था। जिससे ऐसे जातिवादी तत्वों का मनोबल बढ़ा हुआ है, और उनमें कानून का कोई खौफ नजर नहीं आता।

वर्तमान की घटना के बाद थाना प्रभारी पण्डोखर तहसील भांडेर जिला दतिया द्वारा वरिष्ठ अधिकारों के हस्तक्षेप के बाद 9 लोगों के विरुद्ध SCST एक्ट व अन्य धाराओं में मामला पंजीबद्ध हुआ है। किंतु धारदार हथियार से हमला करने संबंधित गंभीर धाराएं अभी भी नहीं जोड़ी गईं है। SDOP, भांडेर ने Final Medical Report (MLC) आने के बाद धारा बड़ाये जाने का आश्वासन दिया है। अभी तक किसी की  गिरफ्तारी नहीं हुई है।

इतने बड़े पैमाने पर जातीय वैमनस्यता फैलाने एवं आतंकित करने वाली घटना हुई किन्तु क्षेत्रीय विधायक माननीय फूलसिंह बरैया जो खुद अनुसूचित जाति से हैं, और वंचित वर्गों के हिमायती होने का दावा करते हैं अभी तक न ही पीड़ितों से मिलने आए न ही कोई आधिकारिक बयान जारी किया। गांव में तनावपूर्ण स्थिति है, फिर भी कोई पुलिस बल तैनात नहीं किया गया है, प्रकरण दर्ज होने के बाद भी आरोपियों के हौसले बुलंद है। दोबारा किसी घटना के घटित होने का खतरा अभी भी बना हुआ है।

इस मामले में दर्ज एफआईआर की कॉपी आप नीचे देख सकते हैं-    

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में बाबासाहेब की प्रतिमा लगने के विवाद में कूदी बहनजी, जातिवादी वकीलों को लगाई फटकार

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के ग्वालियर खंडपीठ में बाबासाहेब की प्रतिमा लगाने के मुद्दे पर बहनजी सामने आई हैं। इस मुद्दे को उठाते हुए बसपा सुप्रीमों और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल, माननीय उच्च न्यायालय तथा मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप कर बाबासाहेब की प्रतिमा को स्थापित करवाने की मांग की है। अपने बयान में बहनजी ने प्रतिमा लगाने का विरोध करने वाले वकीलों को जमकर फटकार लगाई है। बहनजी के इस मुद्दे पर आवाज उठाने से मामला गरमा गया है।

सोशल मीडिया एक्स पर इस मुद्दे को उठाते हुए बहनजी ने लिखा- मध्य प्रदेश हाईकोर्ट खण्डपीठ ग्वालियर में अधिवक्ताओं की माँग व उन्हीं के आर्थिक सहयोग से परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर की मूर्ति लगाने की अनुमति माननीय कोर्ट द्वारा दी गई तथा कोर्ट के निर्देशन में ही स्थान का चयन एवं चबूतरा बनाया गया व मूर्ति भी बनकर तैयार हुई।

बहनजी ने प्रतिमा लगाने का विरोध करने वाले जातिवादी वकीलों को लताड़ लगाते हुए कहा कि- कुछ जातिवादी सोच से ग्रसित अधिवक्ताओं द्वारा मूर्ति स्थापना का विरोध किया जा रहा है। बाबा साहेब के विरोधियों को यह समझना होगा कि सदियों से उपेक्षित बहुजन समाज अब अपना सम्मान पाना चाहता है।

मध्य प्रदेश सरकार को घेरते हुए बहनजी ने कहा कि- सोशल मीडिया पर भड़काऊ वक्तव्यों के बावजूद इन पर कार्रवाई नहीं की गई। यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री ने मध्य प्रदेश के राज्यपाल, उच्च न्यायालय तथा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से मांग किया कि मूर्ति लगाने में आ रही बाधाओं को दूर करके, तत्काल उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर में संविधान निर्माता, भारत रत्न बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर की मूर्ति को सम्मानपूर्वक स्थापित कराएं।

साफ है कि देश की दिग्गज नेता के इस विवाद में सामने आने के बाद प्रतिमा लगाने के समर्थक वकीलों में उत्साह है तो मध्य प्रदेश सरकार दबाव में आ चुकी है।

बोधगया महाविहार मुक्ति का आंदोलन और हिन्दू संगठनों की साजिश

बोधगया महाविहार को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को रद्द करने से संबंधित याचिका की अंतिम सुनवाई 29 जुलाई 2025 को निर्धारित कर दी है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले ने 12 साल की देरी के लिए सरकारी वकीलों को जमकर फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि अब कोई और स्थगन नहीं दिया जाएगा। निश्चित तौर पर यह उस बौद्ध समाज के लिए बड़ी खबर है, जो सालों से इसके लिए संघर्ष कर रहा है।

हाल ही में 12 मई 2025 को बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर महाबोधि महाविहार में जो हुआ, उसके बाद तो यह और ज्यादा जरूरी हो गया है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन महाबोधि महाविहार के गर्भ गृह में भगवान बुद्ध की प्राचीन प्रतिमा के ठीक सामने पंडों द्वारा मंत्रोचार के साथ बुद्ध की प्रतिमा को शिवलिंग बना कर राज्यपाल आरिफ मुहमद खान से वैदिक कर्मकांड कराया। गया के जिलाधिकारी, जो बोधगया महाविहार बी०टी०एम०सी का अध्यक्ष भी होता है, उसने अपने खेमे के दो भिक्खुओं (वो नकली भी हो सकते हैं, या फिर ब्राह्मण समाज के चिवरधारी भिक्खु) को लेकर राज्यपाल के साथ वैदिक कर्मकांड किया और कराया। बुद्ध की मुख्य प्रतिमा के सामने देश-विदेश के लोग आकर वंदना करते हैं। उसकी तरफ पीठ करके राज्यपाल ने न केवल भगवान बुद्ध बल्कि संविधान का भारी अपमान किया। क्या राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान विष्णुपद मंदिर में शिवरात्रि या अन्य किसी दिन जाकर ऐसी पूजा कर सकते हैं और पंडे उनको पूजा करा सकते हैं।

 विगत तीन महीने से देश-विदेश में बुद्ध धर्म के अनुयायी महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए आंदोलन कर रहे हैं। इसके बावजूद बौद्धों की भावनाओं को आहत करने का यह दुःसाहस भाजपा के राज्यपाल आरिफ मुहमद खान और उसके महंत की मिली भगत से हो रही है। इसके विरुद्ध बौद्धों का आक्रोश उमड़ पड़ा और वे देशभर में प्रदर्शन और मांग पत्र दे रहे हैं।

इस बीच यह बड़ा सवाल है कि क्या कारण है कि बोधगया, जहां से बुद्ध को ज्ञान मिला उस नगरी पर हिंदुत्ववादियों और आरएसएस ने कब्जा कर लिया है। कुछ तो बकायदा चीवर धारण कर उनके नाम पर हिंदुत्ववाद को फैलाने में लगे हैं। बुद्ध भारत में पैदा हुए थे लेकिन कालांतर में भारत में ही उनकी जड़ें काट दी गई। वे भारत के बाहर विकसित हुए। बोधगया एक धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी है। इसी नगरी से गौतम बुद्ध को सम्यक ज्ञान और दृष्टि मिली थी। यह वही स्थान है जहाँ से बुद्ध के ज्ञान का प्रकाश सारे विश्व में फैला था। यही वह समय था जब भारत को विश्व गुरू कहा गया। बुद्ध के कारण ही भारत को विश्वगुरू कहा गया। यह शहर भारत को विश्व में विशिष्ठता प्रदान करती है।

 जिस प्रकार गोरखपुर के नाथ संप्रदाय ने जाति वर्ण को ठुकराकर उसके विरुद्ध संघर्ष किया, लोगों की चेतना को जगाया और उन्हें एकजुट किया। नाथ संप्रदाय ने ब्राह्मणवाद तथा हिंदुत्व के विरुद्ध एक अलख जगाई थी। उसकी ताकत को देखकर अगड़ी जाति के एक व्यक्ति ने नाथ संप्रदाय का रूप धारण कर उसपर कब्जा कर लिया। और वहां से हिंदुत्व की लौ जलाने लगा। वैसी ही स्थिति हिन्दुत्वादियों द्वारा बोधगया की भी बनाई जा रही है और बुद्ध के वास्तविक अनुयायी असहाय बने हुए हैं।

विश्व भर से बड़ी संख्या में लोग खासकर बौद्ध मत के अनुयायी बोधगया आते हैं। बोधगया ने मानव मुक्ति का संदेश दिया। पीड़ितों को संघर्ष करने का संदेश दिया। प्रबुद्ध लोगों को मानवता की बेहतरी के लिए कार्य करने का आह्वान किया। बुद्ध ने पीड़ित मानवता के उद्धार की आवाज उठाई। उन्होंने जाति और वर्ण को अस्वीकार किया। इसके विरुद्ध लड़ाई लड़ी। इसी बुद्ध को हिंदुत्वादी संगठन विष्णु और कृष्ण का अवतार बना कर बोधगया में प्रचारित प्रसारित करते हैं। सार्वजनिक स्थलों पर होर्डिंग लगाते हैं। इसपर बौद्ध संगठनों की चुप्पी आश्चर्य में डालती है। बाबासाहेब आंबेडकर ने बौद्ध धम्म स्वीकार करते समय बौद्धों को 22 प्रतिज्ञाएं दिलवाई थी।

 “बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ “भीम-प्रतिज्ञा” के नाम से जानी जाती हैं। वास्तव में 22 प्रतिज्ञाएँ बाबासाहेब के सम्पूर्ण बौद्ध दर्शन का आइना है। एक भारतीय बौद्ध की पहचान बनाए रखने के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ अति अनिवार्य है। इन 22 प्रतिज्ञाओं में से क्रमांक एक से आठ तक की प्रतिज्ञाएँ व्यक्ति को अंधविश्वास अवैज्ञानिकता की कालिमा से निकाल कर तार्किकता वैज्ञानिकता स्वाभिमान और स्वावलम्बन के प्रकाश की ओर ले जाने के लिए हैं। शेष 9 से 22 तक की 14 प्रतिज्ञाएँ मानव जीवन को परस्पर प्रेम बंधुत्व और समानता का भाव पैदा करने के लिए तथा गृहस्थ जीवन सुखमय बनाने के लिए है।

 डॉ. आंबेडकर ने ‘बुद्ध और उनका धम्म’ नामक पुस्तक लिखी। बोधगया में जहाँ इतने प्रबुद्ध बौद्ध रहते हैं, वहाँ बाबासाहेब की 22 प्रतिज्ञाएं कहीं नजर नहीं आती है। जबकि वहाँ बुद्ध को विकृत करते हुए हिंदुत्ववादियों के पोस्टर जगह-जगह दिखाई पड़ते हैं। यह छोटी बात नहीं है। यह गौतम बुद्ध का भारी अपमान है। यह सब देख सुन कर भी वहाँ चुप्पी वाली शांति छाई हुई है और इसपर बौद्धजन मूकदर्शक बने हुए हैं। बिहार बी० टी० 1949 एक्ट के तहत बोधगया महाबोधि बुद्धविहार पर हिन्दुत्ववादियों का वर्चस्व बनाए रखने के लिए विभिन्न तरह के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। कभी बुद्ध को विष्णु का अवतार कभी कृष्ण कभी शिव और कभी कुछ देवी देवताओं का नाम देकर वहां उनकी मूर्तियां स्थापित की जा रही हैं। बुद्ध को विकृत करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है।

बाहर से आने वाले बौद्ध अनुयाइयों को भी बुद्ध विहार में विभिन्न तरह से परेशान किया जाता है। इसके खिलाफ बौद्धजन असंवैधानिक बिहार बी०टी० एक्ट 1949 को समाप्त करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। महाबोधि बुद्धविहार को ब्राह्मणों और हिन्दुत्ववादियों के नियंत्रण से मुक्त करने, इसका नियंत्रण बौद्धों को देने की मांग के लिए बौद्ध अनुयायियों द्वारा फरवरी 2025 से ही व्यापक स्तर पर संघर्ष किया जा रहा है। इस बारे में सरकार को मांग पत्र देने के साथ धरना और प्रदर्शन करने के बावजूद सरकार की चुप्पी बनी हुई है। हालांकि 1950 में लागू भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 के अनुसार इस तरह के कानून स्वतः निरस्त हो जाते हैं लेकिन सरकार और ब्रह्मणवादियों की मिलीभगत और बौद्धों की निष्क्रियता के कारण इस पर अमल नहीं किया गया। अब बौद्धों में चेतना जगी है और वे इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं और न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा रहे हैं।

इस आंदोलन को देखकर जगह-जगह कुछ ब्राह्मणवादी लोग स्वयं चीवर पहनकर बौद्ध बनकर घूमते हैं। वे बौद्ध विरासत को विकृत करने और हिन्दुत्ववादियों के निहित स्वार्थ के कार्य करने में लगे हुए हैं। वे बौद्धों के आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। आज बौद्धों में अभूतपूर्व उत्साह है। वे बोधगया महाबोधि बुद्ध विहार पर अपने अधिकार के लिए हर कुर्बानी देने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं। क्या भारत के किसी हिंदू मंदिर में बुद्धिस्टों का आधा दखल है? क्या किसी हिंदू मंदिर के प्रबंधन में आधे संख्या में बौद्ध हैं? यदि नहीं तो फिर बुद्धविहार में हिंदुत्ववादियों का कब्जा क्यों  रहेगा, यह बात देश विदेश में चर्चित हुआ। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संगठन भी इस मांग के समर्थन में आ चुका है। यह उनके आंदोलन में मील का पत्थर है।

लोकतंत्र की प्रणाली भी बौद्ध संघ की है। इसमें समता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व ही आदर्श समाज है। प्रत्येक व्यक्ति में अंतर्निहित शक्तियों का सम्पूर्ण विकास हो जिसमें शोषण न हो उसके विकास के मार्ग में कोई अवरोध न हो। समाज की समृद्धि इससे ही होगी। यही हमारे संविधान का आदर्श वाक्य भी है। भगवान बुद्ध जन्मना जातीय और वर्ण भावना से टकराए। बुद्ध ने बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का नारा दिया। उन्होंने चिन्तन वाणी आचरण की पवित्रता और एकरूपता को किसी के बड़प्पन का आधार माना। चिन्तन वाणी और आचरण यानी कार्य की पवित्रता और एकरूपता को आंबेडकर और गांधी ने भी दुहराया।

 भारत की जाति व्यवस्था आज एक भयंकर कोढ़ की तरह है, जो खत्म होने की बजाय तेजी से फैल रही है। हिंदू धर्म के नाम पर ही लोग दलित और अछूत बनाए गए हैं। जिस समाज का भगवान सुअर का अवतार ले सकता है, वही समाज आदमी से इतनी घृणा करे कि उसे अछूत बना दे। यह कैसा समाज है? यह कैसा धर्म है, यह कैसा हिंदुत्व है, यह कैसी विडंबना है? जाति व्यवस्था ने अकेले जितना भारत का नुकसान किया है वह अन्य सभी नुकसानों को मिलाकर भी बड़ा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और जमीन की समस्या दलितों की सबसे बड़ी समस्या है। समस्याओं के निदान के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन स्थिति नौ दिन चले अढाई कोस वाली बनी रहती है।

 बुद्ध ने ब्राह्मणवाद यानी हिंदू धर्म के जातीय भेदभाव को चुनौती दी थी। उनके पाखंडों को समाप्त किया था, समाज को बदल दिया था। बुद्ध के कई सौ वर्षों के बाद ब्राह्मणवादियों ने बौद्धों का भारत से उन्मूलन कर दिया। बाबासाहेब आंबेडकर ने बौद्ध धर्म का भारत में उद्धार का प्रयास किया, उनको पाखंडों से मुक्त करने के लिए 22 प्रतिज्ञाएं निर्धारित की। ब्राह्मणवादियों के चंगुल से बौद्धों को छुड़ाने की कोशिश की। अब फिर ब्राह्मणवादी विभिन्न प्रकार के तिकड़मों से बुद्ध को उदरस्त करने में लगे हैं। आज बौद्धों के समक्ष एक चुनौती है कि किस प्रकार तथागत बुद्ध के सपनों का एक समतावादी और लोकतांत्रिक समाज बनाया जा सके। राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिए आधुनिक समाज का निर्माण करने के लिए बुद्ध के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है। इसके लिए वर्ण व्यवस्था और जातिवाद दोनों को मिटाना होगा। इससे जाति आधारित भेदभाव और अस्पृश्यता का भी अंत हो जाएगा। यही बुद्ध ने चाहा था। यही बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था। क्या देश के प्रबुद्ध लोग बोधगया को हिंदुत्ववादियों से मुक्त कराएंगे और बुद्ध के उपदेशों को अमल में लाने का प्रयास करेंगे? यह उनके लिए आज एक बड़ी चुनौती है।

एक फ्रेम में जस्टिस बी.आर. गवई और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, लोकतंत्र में क्या है इस तस्वीर के मायने

18 साल पहले 14 जनवरी 2007 की तारीख भारतीय इतिहास में दर्ज हो गई थी, जब जस्टिस के.जी. बालकृष्णन ने भारत के 37वें मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली। जस्टिस के. जी. बालकृष्णन की यह नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका में एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि यह पहली बार था जब दलित समुदाय से आने वाले किसी व्यक्ति ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सर्वोच्च पद को संभाला।

इस ऐतिहासिक क्षण के 18 साल बाद एक बार फिर ऐसा ही वक्त आया, जब भारतीय लोकतंत्र और मजबूत होता दिखा। तारीख भी 14 ही है, हालांकि महीना मई का है। 14 मई 2025 को जस्टिस बी.आर. गवई यानी जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 52वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। यह शपथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में दिलाई।

यह मौका देश के अन्य मुख्य न्यायाधीशों की तरह एक और मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति जैसा सामान्य मौका नहीं था, बल्कि यह उससे अलग और अनोखा था। जस्टिस गवई को मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई। राष्ट्रपति मुर्मू और नए चीफ जस्टिस बी.आर. गवई दोनों भारत के उस समुदाय से आते हैं जो सदियों से वंचित, शोषित और पीड़ित रहा है। इन दोनों का एक फ्रेम में आना भारतीय इतिहास की बड़ी घटना है। इस शपथ ग्रहण समारोह में दोनों मुख्य भूमिका में थे और बाकी सभी दर्शक।

यह घटना बेहद खास है। क्योंकि यह उस देश की घटना है, जहां हर दिन जातीय उत्पीड़न होता है। यह उस देश की घटना है, जहां यूपी के बाराबंकी जिले से हाल ही में यह खबर आई थी कि निजामपुर गांव की दलित बस्ती में आजादी के 78 सालों बाद एक किशोर ने पहली बार 10वीं की परीक्षा पास की। यह उस देश की घटना है, जहां हाल ही में घोड़ी पर बैठकर बारात निकाल रहे दलित समाज के एक युवक पर कथित ऊंची जाति की एक महिला ने पत्थर बरसा डाले। उसे गालियां दी कि वह उनके घर के सामने से घोड़ी पर बैठकर कैसे जा सकता है। यह उस देश की घटना है, जहां देश के पहले कानून मंत्री, भारत रत्न और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के सम्मान में ‘जय भीम’ कहने पर बोधगया में हाल ही में एक स्थानीय दुकानदार ने अंबेडकरवादी बौद्ध समाज के लोगों को अपमानित करने की कोशिश की। तो जय भीम का गाना बजाने, टैटू बनवाने और गाड़ी पर ‘जय भीम’ लिखने पर दलित समाज के युवाओं के साथ मारपीट की जाती है।

उसी समाज के व्यक्ति ने आज देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद की शपथ ली है। जस्टिस गवई की यह नियुक्ति भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। शपथ ग्रहण के तुरंत बाद, जस्टिस गवई ने सार्वजनिक रूप से अपनी मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिया, इसने दिलों को जीत लिया।

यह एक ऐसी घटना है, जो लोगों के दिलों में सालों तक बसी रहेगी और जिसकी चर्चा भविष्य में लंबे समय तक होती रहेगी। यही भारतीय लोकतंत्र की ताकत है। यही भारतीय संविधान की ताकत है। यही बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के संघर्षों का परिणाम है।