Tuesday, June 24, 2025
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बोधगया महाविहार मुक्ति का आंदोलन और हिन्दू संगठनों की साजिश

विगत तीन महीने से देश-विदेश में बुद्ध धर्म के अनुयायी महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए आंदोलन कर रहे हैं। इसके बावजूद बौद्धों की भावनाओं को आहत करने का यह दुःसाहस भाजपा के राज्यपाल आरिफ मुहमद खान और उसके महंत की मिली भगत से हो रही है। इसके विरुद्ध बौद्धों का आक्रोश उमड़ पड़ा और वे देशभर में प्रदर्शन और मांग पत्र दे रहे हैं।

बोधगया महाविहार को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट ने बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को रद्द करने से संबंधित याचिका की अंतिम सुनवाई 29 जुलाई 2025 को निर्धारित कर दी है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले ने 12 साल की देरी के लिए सरकारी वकीलों को जमकर फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि अब कोई और स्थगन नहीं दिया जाएगा। निश्चित तौर पर यह उस बौद्ध समाज के लिए बड़ी खबर है, जो सालों से इसके लिए संघर्ष कर रहा है।

हाल ही में 12 मई 2025 को बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर महाबोधि महाविहार में जो हुआ, उसके बाद तो यह और ज्यादा जरूरी हो गया है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन महाबोधि महाविहार के गर्भ गृह में भगवान बुद्ध की प्राचीन प्रतिमा के ठीक सामने पंडों द्वारा मंत्रोचार के साथ बुद्ध की प्रतिमा को शिवलिंग बना कर राज्यपाल आरिफ मुहमद खान से वैदिक कर्मकांड कराया। गया के जिलाधिकारी, जो बोधगया महाविहार बी०टी०एम०सी का अध्यक्ष भी होता है, उसने अपने खेमे के दो भिक्खुओं (वो नकली भी हो सकते हैं, या फिर ब्राह्मण समाज के चिवरधारी भिक्खु) को लेकर राज्यपाल के साथ वैदिक कर्मकांड किया और कराया। बुद्ध की मुख्य प्रतिमा के सामने देश-विदेश के लोग आकर वंदना करते हैं। उसकी तरफ पीठ करके राज्यपाल ने न केवल भगवान बुद्ध बल्कि संविधान का भारी अपमान किया। क्या राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान विष्णुपद मंदिर में शिवरात्रि या अन्य किसी दिन जाकर ऐसी पूजा कर सकते हैं और पंडे उनको पूजा करा सकते हैं।

 विगत तीन महीने से देश-विदेश में बुद्ध धर्म के अनुयायी महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए आंदोलन कर रहे हैं। इसके बावजूद बौद्धों की भावनाओं को आहत करने का यह दुःसाहस भाजपा के राज्यपाल आरिफ मुहमद खान और उसके महंत की मिली भगत से हो रही है। इसके विरुद्ध बौद्धों का आक्रोश उमड़ पड़ा और वे देशभर में प्रदर्शन और मांग पत्र दे रहे हैं।

इस बीच यह बड़ा सवाल है कि क्या कारण है कि बोधगया, जहां से बुद्ध को ज्ञान मिला उस नगरी पर हिंदुत्ववादियों और आरएसएस ने कब्जा कर लिया है। कुछ तो बकायदा चीवर धारण कर उनके नाम पर हिंदुत्ववाद को फैलाने में लगे हैं। बुद्ध भारत में पैदा हुए थे लेकिन कालांतर में भारत में ही उनकी जड़ें काट दी गई। वे भारत के बाहर विकसित हुए। बोधगया एक धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी है। इसी नगरी से गौतम बुद्ध को सम्यक ज्ञान और दृष्टि मिली थी। यह वही स्थान है जहाँ से बुद्ध के ज्ञान का प्रकाश सारे विश्व में फैला था। यही वह समय था जब भारत को विश्व गुरू कहा गया। बुद्ध के कारण ही भारत को विश्वगुरू कहा गया। यह शहर भारत को विश्व में विशिष्ठता प्रदान करती है।

 जिस प्रकार गोरखपुर के नाथ संप्रदाय ने जाति वर्ण को ठुकराकर उसके विरुद्ध संघर्ष किया, लोगों की चेतना को जगाया और उन्हें एकजुट किया। नाथ संप्रदाय ने ब्राह्मणवाद तथा हिंदुत्व के विरुद्ध एक अलख जगाई थी। उसकी ताकत को देखकर अगड़ी जाति के एक व्यक्ति ने नाथ संप्रदाय का रूप धारण कर उसपर कब्जा कर लिया। और वहां से हिंदुत्व की लौ जलाने लगा। वैसी ही स्थिति हिन्दुत्वादियों द्वारा बोधगया की भी बनाई जा रही है और बुद्ध के वास्तविक अनुयायी असहाय बने हुए हैं।

विश्व भर से बड़ी संख्या में लोग खासकर बौद्ध मत के अनुयायी बोधगया आते हैं। बोधगया ने मानव मुक्ति का संदेश दिया। पीड़ितों को संघर्ष करने का संदेश दिया। प्रबुद्ध लोगों को मानवता की बेहतरी के लिए कार्य करने का आह्वान किया। बुद्ध ने पीड़ित मानवता के उद्धार की आवाज उठाई। उन्होंने जाति और वर्ण को अस्वीकार किया। इसके विरुद्ध लड़ाई लड़ी। इसी बुद्ध को हिंदुत्वादी संगठन विष्णु और कृष्ण का अवतार बना कर बोधगया में प्रचारित प्रसारित करते हैं। सार्वजनिक स्थलों पर होर्डिंग लगाते हैं। इसपर बौद्ध संगठनों की चुप्पी आश्चर्य में डालती है। बाबासाहेब आंबेडकर ने बौद्ध धम्म स्वीकार करते समय बौद्धों को 22 प्रतिज्ञाएं दिलवाई थी।

 “बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ “भीम-प्रतिज्ञा” के नाम से जानी जाती हैं। वास्तव में 22 प्रतिज्ञाएँ बाबासाहेब के सम्पूर्ण बौद्ध दर्शन का आइना है। एक भारतीय बौद्ध की पहचान बनाए रखने के लिए 22 प्रतिज्ञाएँ अति अनिवार्य है। इन 22 प्रतिज्ञाओं में से क्रमांक एक से आठ तक की प्रतिज्ञाएँ व्यक्ति को अंधविश्वास अवैज्ञानिकता की कालिमा से निकाल कर तार्किकता वैज्ञानिकता स्वाभिमान और स्वावलम्बन के प्रकाश की ओर ले जाने के लिए हैं। शेष 9 से 22 तक की 14 प्रतिज्ञाएँ मानव जीवन को परस्पर प्रेम बंधुत्व और समानता का भाव पैदा करने के लिए तथा गृहस्थ जीवन सुखमय बनाने के लिए है।

 डॉ. आंबेडकर ने ‘बुद्ध और उनका धम्म’ नामक पुस्तक लिखी। बोधगया में जहाँ इतने प्रबुद्ध बौद्ध रहते हैं, वहाँ बाबासाहेब की 22 प्रतिज्ञाएं कहीं नजर नहीं आती है। जबकि वहाँ बुद्ध को विकृत करते हुए हिंदुत्ववादियों के पोस्टर जगह-जगह दिखाई पड़ते हैं। यह छोटी बात नहीं है। यह गौतम बुद्ध का भारी अपमान है। यह सब देख सुन कर भी वहाँ चुप्पी वाली शांति छाई हुई है और इसपर बौद्धजन मूकदर्शक बने हुए हैं। बिहार बी० टी० 1949 एक्ट के तहत बोधगया महाबोधि बुद्धविहार पर हिन्दुत्ववादियों का वर्चस्व बनाए रखने के लिए विभिन्न तरह के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। कभी बुद्ध को विष्णु का अवतार कभी कृष्ण कभी शिव और कभी कुछ देवी देवताओं का नाम देकर वहां उनकी मूर्तियां स्थापित की जा रही हैं। बुद्ध को विकृत करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है।

बाहर से आने वाले बौद्ध अनुयाइयों को भी बुद्ध विहार में विभिन्न तरह से परेशान किया जाता है। इसके खिलाफ बौद्धजन असंवैधानिक बिहार बी०टी० एक्ट 1949 को समाप्त करने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। महाबोधि बुद्धविहार को ब्राह्मणों और हिन्दुत्ववादियों के नियंत्रण से मुक्त करने, इसका नियंत्रण बौद्धों को देने की मांग के लिए बौद्ध अनुयायियों द्वारा फरवरी 2025 से ही व्यापक स्तर पर संघर्ष किया जा रहा है। इस बारे में सरकार को मांग पत्र देने के साथ धरना और प्रदर्शन करने के बावजूद सरकार की चुप्पी बनी हुई है। हालांकि 1950 में लागू भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 के अनुसार इस तरह के कानून स्वतः निरस्त हो जाते हैं लेकिन सरकार और ब्रह्मणवादियों की मिलीभगत और बौद्धों की निष्क्रियता के कारण इस पर अमल नहीं किया गया। अब बौद्धों में चेतना जगी है और वे इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं और न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा रहे हैं।

इस आंदोलन को देखकर जगह-जगह कुछ ब्राह्मणवादी लोग स्वयं चीवर पहनकर बौद्ध बनकर घूमते हैं। वे बौद्ध विरासत को विकृत करने और हिन्दुत्ववादियों के निहित स्वार्थ के कार्य करने में लगे हुए हैं। वे बौद्धों के आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। आज बौद्धों में अभूतपूर्व उत्साह है। वे बोधगया महाबोधि बुद्ध विहार पर अपने अधिकार के लिए हर कुर्बानी देने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हैं। क्या भारत के किसी हिंदू मंदिर में बुद्धिस्टों का आधा दखल है? क्या किसी हिंदू मंदिर के प्रबंधन में आधे संख्या में बौद्ध हैं? यदि नहीं तो फिर बुद्धविहार में हिंदुत्ववादियों का कब्जा क्यों  रहेगा, यह बात देश विदेश में चर्चित हुआ। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संगठन भी इस मांग के समर्थन में आ चुका है। यह उनके आंदोलन में मील का पत्थर है।

लोकतंत्र की प्रणाली भी बौद्ध संघ की है। इसमें समता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व ही आदर्श समाज है। प्रत्येक व्यक्ति में अंतर्निहित शक्तियों का सम्पूर्ण विकास हो जिसमें शोषण न हो उसके विकास के मार्ग में कोई अवरोध न हो। समाज की समृद्धि इससे ही होगी। यही हमारे संविधान का आदर्श वाक्य भी है। भगवान बुद्ध जन्मना जातीय और वर्ण भावना से टकराए। बुद्ध ने बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का नारा दिया। उन्होंने चिन्तन वाणी आचरण की पवित्रता और एकरूपता को किसी के बड़प्पन का आधार माना। चिन्तन वाणी और आचरण यानी कार्य की पवित्रता और एकरूपता को आंबेडकर और गांधी ने भी दुहराया।

 भारत की जाति व्यवस्था आज एक भयंकर कोढ़ की तरह है, जो खत्म होने की बजाय तेजी से फैल रही है। हिंदू धर्म के नाम पर ही लोग दलित और अछूत बनाए गए हैं। जिस समाज का भगवान सुअर का अवतार ले सकता है, वही समाज आदमी से इतनी घृणा करे कि उसे अछूत बना दे। यह कैसा समाज है? यह कैसा धर्म है, यह कैसा हिंदुत्व है, यह कैसी विडंबना है? जाति व्यवस्था ने अकेले जितना भारत का नुकसान किया है वह अन्य सभी नुकसानों को मिलाकर भी बड़ा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और जमीन की समस्या दलितों की सबसे बड़ी समस्या है। समस्याओं के निदान के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन स्थिति नौ दिन चले अढाई कोस वाली बनी रहती है।

 बुद्ध ने ब्राह्मणवाद यानी हिंदू धर्म के जातीय भेदभाव को चुनौती दी थी। उनके पाखंडों को समाप्त किया था, समाज को बदल दिया था। बुद्ध के कई सौ वर्षों के बाद ब्राह्मणवादियों ने बौद्धों का भारत से उन्मूलन कर दिया। बाबासाहेब आंबेडकर ने बौद्ध धर्म का भारत में उद्धार का प्रयास किया, उनको पाखंडों से मुक्त करने के लिए 22 प्रतिज्ञाएं निर्धारित की। ब्राह्मणवादियों के चंगुल से बौद्धों को छुड़ाने की कोशिश की। अब फिर ब्राह्मणवादी विभिन्न प्रकार के तिकड़मों से बुद्ध को उदरस्त करने में लगे हैं। आज बौद्धों के समक्ष एक चुनौती है कि किस प्रकार तथागत बुद्ध के सपनों का एक समतावादी और लोकतांत्रिक समाज बनाया जा सके। राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिए आधुनिक समाज का निर्माण करने के लिए बुद्ध के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है। इसके लिए वर्ण व्यवस्था और जातिवाद दोनों को मिटाना होगा। इससे जाति आधारित भेदभाव और अस्पृश्यता का भी अंत हो जाएगा। यही बुद्ध ने चाहा था। यही बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था। क्या देश के प्रबुद्ध लोग बोधगया को हिंदुत्ववादियों से मुक्त कराएंगे और बुद्ध के उपदेशों को अमल में लाने का प्रयास करेंगे? यह उनके लिए आज एक बड़ी चुनौती है।

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