Tuesday, January 21, 2025
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दो राज्यों के चुनाव में बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है ये विदेशी बवंडर

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी पर चुनावी मौसम में आफत आ सकती है. दो राज्यों में चुनावी माहौल के समय भाजपा को इससे नुकसान भी हो सकता है. बता दें कि फिलहाल गुजरात औ हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी है. गुजरात में जहां दिसंबर में चुनाव है वहीं हिमाचल नवंबर में मतदान करेगा. इन सबके बीच कुछ विदेश बवंडर भाजपा की मुसीबत बढ़ा सकते हैं.

दरअसल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ रहा है. बढ़ती कीमतें भाजपा, पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के माथे पर बल ला सकती है. गौरतलब है कि गुजरत में जहां भाजपा को अपनी सत्ता बरकरार रखना चाहती है तो वहीं हिमाचल में वो कांग्रेस से छीनने की पुरजोर कोशिश में लगी है. ग्राहकों के लिए नुकसानदायक गुरूवार को कच्चे तेल का दाम जहां 56.92 डॉलर प्रति बैरल था, वहीं 56.79 डॉलर प्रति डॉलर बुधवार को था. हालांकि शुक्रवार को किस दाम पर तेल खरीदा गया इसके बारे में सोमवार को ही पता चल सकेगा.तेल कीमतों में यह वृद्धि ग्राहकों के लिए नुकसानदायक है क्योंकि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में को भी इजाफा तुरंत असर डालता है.

भारत के लिए बढ़ रही है मुश्किल! बता दें कि भारत अपनी कुल तेल जरूरत का 82 फीसदी हिस्सा आयात करता है. कुल आयात का 28 फीसदी हिस्से की खरीद ब्रेंट से करता है. वहीं 72 फीसदी खरीद दुबई और ओमान से होती है. भारत के लिए कच्चे तेल की मुश्किल बढ़ती जा रही है. पहले 15 दिन में असर पड़ता था,अब तुरंत पहले अतंरराष्ट्रीय कीमतों में बदलाव का असर 15 दिन में कीमतों में बदलाव होता था लेकिन अगस्त के बाद से ही भारत में ग्राहकों पर ईंधन खरीदने का बोझ बढ़ रहा है.

हालांकि बीच में जनता बढ़ रहे रोष और विपक्ष के आरोपों के चलते सरकार ने 3 अक्टूबर को पेट्रोल पर 2 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 5.7रुपए प्रति लीटर की एक्साइज ड्यूटी घटाई थी. सरकार नहीं फेर सकती मुंह वहीं नवंबर 2014 से जनवरी 2016 तक सरकरा ने पेट्रोल पर 11.77 रुपए प्रति लीटर और 13.47 रुपए प्रति लीटर का इजाफा डीजल की एक्साइज ड्यूटी में कर दिया था. हालांकि उस वक्त सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम कीमतों के चलते ड्यूटी लगाकर अपना खजाना भर रही थी.अगर ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दाम बढ़ते रहे तो ग्राहक टैक्स में कटौती की मांग करेंगे. ऐसे में सरकार कम से कम चुनावों के चलते इन मांगो से मुंह नहीं फेर सकती

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