नई दिल्ली. गुजरात चुनाव का नतीजा आए भले ही दो दिन हो गए हो, एक के बाद एक चुनावी आंकड़ों और रणनीतिक जोड़-तोड़ का हिसाब सामने आना जारी है. कांग्रेस जहां भाजपा को 99 पर रोक देने का जश्न मना रही है तो भाजपा जीत के बाद भी सहमी हुई सी है. यह एक ऐसे कांग्रेसी नेता की वजह से हो पाया, जिसकी चर्चा अभी हुई नहीं है.
वह नेता हैं राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और गुजरात चुनाव के प्रभारी अशोक गहलोत. गहलोत ने गुजरात में अपनी चुनावी रणनीति से ऐसा कमाल कर दिखाया, जिसने कांग्रेस को भाजपा के एकदम सामने लाकर खड़ा कर दिया. इससे पहले गुजरात में कांग्रेस का संगठन इतना कमजोर था कि बीजेपी को यकीन था कि कांग्रेस उसके लिए कोई चुनौती ही नहीं है.
अशोक गहलोत ने यहीं से काम करना शुरू किया. उन्होंने गुजरात के अलावा अपने निजी समर्थकों तक को गुजरात चुनाव में झोंक दिया. गहलोत ने राजस्थान समेत चार राज्यों से 200 से ज्यादा पर्यवेक्षक और दो हजार कार्यकर्ताओं की फौज गुजरात चुनाव में लगा दिया. इसमें सबसे ज्यादा कार्यकर्ता राजस्थान से आए थे. ये वो लोग थे जो निजी तौर पर भी गहलोत से जुड़े थे. गहलोत का राजस्थान फैक्टर तब भी दिखा जब गुजरात में राजस्थान से जुड़े 5 सीमावर्ती जिलों में 25 में से कांग्रेस ने 13 सीटें जीत ली, इससे पहले इसमें 21 सीटें बीजेपी के पास थी.
सीमावर्ती जिले की सीटों पर कांग्रेस की कामयाबी ने भाजपा को राजस्थान में भी बैचेन किया है, क्योंकि इसका असर अगले साथ राजस्थान विधनसभा चुनाव मेंआदिवासी जिलों और मेवाड़ में हो सकता है. गुजरात चुनाव में कांग्रेस के इस पर्दे के पीछे रहने वाले नायक को भी श्रेय मिलना चाहिए.