नई दिल्ली। आमतौर पर भारतीय समाज क्रिकेट और राजनीति तक की सीमित रहता है. आर्थिक मुद्दों पर उसकी रुचि कम ही रहती है. हालांकि देश की अर्थव्यवस्था एक ऐसा पहलू है, जिसका प्रभाव हर एक व्यक्ति पर पड़ता है. इसी से जुड़ी एक बड़ी खबर सोमवार 10 दिसंबर को सामने आई, जब भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. पटेल रिजर्व बैंक के 24वें गवर्नर थे. उनका कार्यकाल अगले साल 4 सितंबर को खत्म होना था. कार्यकाल खत्म होने के 9 महीने पहले इस्तीफा देने के उर्जित पटेल के फैसले से सरकार को बड़ा झटका लगा है. पटेल ने 4 सितंबर 2016 से प्रभार संभाला जो जनवरी 2013 से डिप्टी गवर्नर पद पर थे.
हालांकि उन्होंने इस्तीफे का कारण व्यक्तिगत बताया है लेकिन पिछले काफी समय से सरकार के साथ उनका मतभेद चल रहा था. सरकार के साथ कथित मतभेद के कारण कार्यकाल के बीच में ही पद छोडऩे वाले वह देश के दूसरे गवर्नर हैं. इससे पहले बेनेगल रामा राव ने तत्कालीन वित्त मंत्री के साथ विवाद की वजह से 1957 में इस्तीफा दे दिया था.
मोदी सरकार के साथ कई मसलों पर लंबी तनातनी के बाद उनके इस्तीफ़े की अटकलें लगाई जा रही थी, हालांकि ऐसे इस्तीफे को व्यक्तिगत कारणों से दिया गया ही बताया जाता है लेकिन माना जा रहा है कि रिज़र्व बैंक की स्वायत्ता, कैश फ्लो और ब्याज दरों में कमी नहीं करने को लेकर उनका सरकार के साथ टकराव था.
पटेल के इस्तीफ़े की टाइमिंग भी अहम है. पटेल का इस्तीफ़ा ऐसे समय पर आया है, जब पूरा देश पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम का इंतजार कर रहा था. तो वहीं एक दिन बाद ही संसद का शीतकालीन सत्र भी शुरू होना था. इसके अलावा चार दिन बाद यानी 14 दिसंबर को रिज़र्व बैंक की बोर्ड बैठक निर्धारित है.
रिज़र्व बैंक और मोदी सरकार के बीच तनातनी पहली बार तब उभर कर सामने आई थी जब डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने 26 अक्टूबर को एक कार्यक्रम में रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता की वक़ालत की थी. विरल आचार्य ने मुंबई में देश के बड़े उद्योगपतियों के एक इवेंट में कहा था, ‘केंद्रीय बैंक की आज़ादी को कमज़ोर करना त्रासदी जैसा हो सकता है. जो सरकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता की अनदेखी करती हैं, उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है.’
इस्तीफे के पीछे का एक कारण रिजर्व बैंक के खजाने पर सरकार की नजर होना भी है. सरकार आरबीआई के खज़ाने में पड़ी जमा राशि में बड़ा हिस्सा चाहती थी. इसको लेकर सरकार के साथ रिजर्व बैंक के गवर्नर का विवाद चल रहा था. हालाँकि सरकार की तरफ से स्पष्ट किया गया था कि उसे अभी किसी तरह की रकम की ज़रूरत नहीं है.
केन्द्र सरकार और आरबीआई के बीच विवाद का एक और विषय आरबीआई एक्ट का सेक्शन 7 था. इस सेक्शन के तहत केन्द्र सरकार जनहित में अहम मुद्दों पर आरबीआई को निर्देश दे सकती है. हालांकि केन्द्र सरकार ने कहा था कि उसने इस सेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया है.
अब सवाल है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर पद से इस्तीफे का कितना प्रभाव पड़ेगा.
विश्लेषकों की राय
ऑर्गनाइजेशन फोर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट यानी OECD ने 2019 के लिए भारत का जीडीपी ग्रोथ अनुमान 7.3 फ़ीसदी रखा है. ऐसे में आर्थिक मामलों के जानकार सुदीप बंद्योपाध्याय का कहना है कि ग्रोथ रेट घटाने की ख़बरों के बीच गवर्नर का पूरा कार्यकाल किए बगैर बीच में पद छोड़ देना रेटिंग एजेंसियों को और चौकन्ना कर देगा.
बंद्योपाध्याय कहते हैं, “सबसे बड़ी मुश्किल ये होगी कि भारत की ग्रोथ स्टोरी से विदेशी निवेशकों का डिग सकता है. वैसे भी रेटिंग एजेंसियां भारत को लेकर बहुत सकारात्मक नहीं हैं और इस घटनाक्रम के बाद हालत और बदतर होंगे.”
विश्लेषकों का कहना है कि इस ख़बर का बेहद नकारात्मक असर आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है. इलारा कैपिटल की वाइस प्रेसिडेंट गरिमा कपूर का कहन है, “भारत के लिए ये बेहद नकारात्मक ख़बर है. भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख़राब होगी. विदेशी संस्थागत निवेशक भी इसे सकारात्मक रूप से नहीं लेंगे. आखिरकार केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता का सवाल है. अर्थव्यवस्था की स्थिरता के लिहाज से ये नकारात्मक होगा.”
दूसरी ओर सरकार के सामने दूसरी सबसे बड़ी समस्या ये आने वाली है कि वो इस पद पर किसे बिठाते हैं. पहले रघुराम राजन और फिर उर्जित पटेल, दोनों ही गवर्नरों के कार्यकाल में बहुत कुछ ऐसा हुआ, जिससे ये लगा है कि सरकार रिज़र्व बैंक पर दबाव बनाना चाहती है. निश्चित तौर पर भारत में निवेश कर मुनाफ़ा कमाने की इच्छा रखने वाले विदेशी निवेशकों का सेंटिमेंट बिगड़ेगा.”
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भी कहा है कि उर्जित का इस्तीफ़ा अर्थव्यवस्था पर गहरा आघात है. जो भी हो रिजर्व बैंक के प्रमुख पद से गवर्नर का इस्तीफा देश की सत्ता पर सवाल खड़े करने वाला है.
गौरतलब है कि पटेल ने ब्रिक्स देशों के बीच अंतर-सरकार संधि और इन देशों के केंद्रीय बैंकों के बीच अंतर बैंक समझौते (आईसीबीए) की प्रक्रिया में बड़ी भूमिका निभाई थी. इससे इन देशों के केंद्रीय बैंकों के बीच आरक्षित विदेशी मुद्रा व्यवस्था (सीआरए) तथा विदेशी मुद्रा की अदला-बदली की सुविधा के नियम निर्धारित किए जा सके.’ पटेल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में भी काम कर चुके हैं. वो 1996-1997 के दौरान आईएमएफ से प्रतिनियुक्ति पर भारत आए थे.
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अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
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Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.
