
नई दिल्ली। फादर पीटर पॉल एक्का का इस तरह अचानक चले जाना आदिवासी साहित्य के लिए एक बड़ी क्षति है. 12 मार्च को सुबह करीब 10 बजे के आसपास गौहाटी से रांची आते हुए रास्ते में निधन हो गया. आप इंसानियत, साफगोई और सरलता की मिसाल थे. उन्होंने ‘जंगल के गीत’, ‘पलाश के फूल’, ‘सोन पहाड़ी’, और ‘मौन घाटी’ जैसे उपन्यास तथा ‘खुला आसमान बंद दिशाएं’, ‘राजकुमारों के देश में’, ‘परती जमीन’ और ‘क्षितिज की तलाश में’ जैसे कहानी संकलन लिखा. ये सारी रचनाएं हिन्दी आदिवासी साहित्य की समृद्ध धरोहर हैं.
फादर एक्का लंबे समय तक संत जेवियर कॉलेज, रांची के वाईस प्रिंसिपल रहे तथा वर्तमान में संत जेवियर कॉलेज, गुवाहाटी के वाइस प्रिंसिपल थे. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के एम.ए.-हिंदी (पत्राचार) की पाठ्यक्रम समिति में सदस्य होने के चलते मैंने फादर के उपन्यास ‘जंगल के गीत’ को कोर्स में शामिल करने का प्रस्ताव दिया, जिसे पाठ्यक्रम संयोजक डॉ पुरंदर दास जी ने तुरंत स्वीकार कर लिया. पाठ्यक्रम के सिलसिले में पुरंदर जी की जब भी पीटर साहब से बात हुई, उन्होंने काफी उत्साह और विनम्रता के साथ सहयोग किया. ऐसे शानदार लेखक और उम्दा इंसान के इस तरह चले जाने का सचमुच बहुत दुःख है. आपको भावभीनी जोहार…! जय भीम… !
- सुनील कुमार ‘सुमन’ के फेसबुक वॉल से

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