चुनाव के नतीजे आए एक हफ्ते से ज्यादा बीत चुके हैं. इस बीच चुनाव से जुड़े तमाम आंकड़े सामने आने लगे हैं. बहुजन समाज पार्टी की बात करें तो लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी की क्या स्थिति रही, उसने किस-किस राज्य में चुनाव लड़ा और उन राज्यों में बसपा का प्रदर्शन कैसा रहा, हम इस खबर में वो तमाम जानकारियां लेकर आए हैं. इसमें हम आपको बताएंगे कि बहुजन समाज पार्टी देश के जिन 26 राज्यों में चुनाव मैदान में थी, वहां उसकी स्थिति क्या रही. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में बसपा से जुड़ी हुई तमाम बातें हम इस खबर में आपको बताएंगे. तो बसपा के प्रदर्शन की बात करें तो ….
- बहुजन समाज पार्टी ने देश के 26 राज्यों में 338 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारा, लेकिन उसे सिर्फ उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर जीत मिली.
- 26 में से 14 राज्यों में बसपा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. इन 14 राज्यों में बसपा को मिले वोटों का प्रतिशत नोटा से भी कम रहा
- तो 21 राज्यों में बसपा का वोट प्रतिशत दो प्रतिशत तक भी नहीं पहुंच सका
- बसपा सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही पांच प्रतिशत से अधिक 19.26 फीसदी वोट हासिल कर सकी तो उत्तराखंड में पांच प्रतिशत के करीब 4.48 प्रतिशत तक पहुंच सकी
जिन राज्यों में बसपा को नोटा से भी कम वोट मिले उनकी सूची देखिए
आंध्र प्रदेश
बसपा को- 0.26 प्रतिशत जबकि 1.49 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया
बिहार
बसपा को- 1.67 प्रतिशत, जबकि 2 प्रतिशत लोगों ने नोटा का बटन दबाया
गुजरात
बसपा को- 0.86 प्रतिशत, नोटा के तहत 1.38 प्रतिशत लोगों ने बटन दबाया
हिमाचल प्रदेश
बसपा को- 0.85 प्रतिशत, जबकि 0.86 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया
झारखंड
बसपा को मिले वोटों का प्रतिशत 1.11 रहा, तो नोटा का बटन 1.27 प्रतिशत मतदाताओं ने दबाया
केरल
बसपा को- 0.25 प्रतिशत, नोटा के हिस्से में 0.51 प्रतिशत वोटिंग हुई
महाराष्ट्र
बसपा को- 0.86 प्रतिशत मत मिला, जबकि नोटा का बटन 0.90 फीसदी ने दबाया
ओडिसा
बसपा का वोट प्रतिशत 0.76 रहा, नोटा के हिस्से में 1.31 प्रतिशत आया
पांडिचेरी
बसपा को- 0.34 प्रतिशत वोट मिले, जबकि 1.54 प्रतिशत ने वोटिंग को नकारते हुए नोटा का बटन दबाया
तामिलनाडु
बसपा को- 0.38 प्रतिशत, नोटा के तहत 1.28 प्रतिशत लोगों ने बटन दबाया
तेलंगाना
बसपा को- 0.24 प्रतिशत वोट, नोटा का बटन दबाने वालों का प्रतिशत 1.02 रहा
पश्चिम बंगाल
बसपा को- 0.39, जबकि नोटा के लिए 0.96 प्रतिशत ने मतदान किया
इसके अलावा दादर एवं नगर हवेली में
बसपा को- 0.48 प्रतिशत, नोटा को 1.48 प्रतिशत वोट मिले
तो दमन एवं दीव में भी बसपा के हिस्से में 0.91 प्रतिशत आएं जबकि नोटा के हिस्से में 1.70 प्रतिशत वोट डाले गए.
तो ये थे वो राज्य जहां बसपा ने नोटा से भी कम वोट हासिल किया. इन राज्यों के अलावा अन्य राज्यों में बसपा के प्रदर्शन की बात करें तो
राज्य प्रतीशत
अंडमान एंड निकोबार आइसलैंड- 1.20 प्रतिशत
चंडीगढ़- 1.62 प्रतिशत
छत्तीसगढ़- 2.30 प्रतिशत
हरियाणा- 3.64 प्रतिशत
जम्मू एवं कश्मीर- 0.87 प्रतिशत
कर्नाटक- 1.17 प्रतिशत
मध्यप्रदेश- 2.38 प्रतिशत
दिल्ली- 1.08 प्रतिशत
पंजाब- 3.49 प्रतिशत
राजस्थान- 1.07 प्रतिशत
उत्तर प्रदेश- 19.26 प्रतिशत
उत्तराखंड- 4.48 प्रतिशत
वोट हासिल कर सकी.
अब आते हैं उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के प्रदर्शन पर, जहां के बारे में माना जा रहा था कि यहां समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन के बाद 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन शानदार रहेगा. सीट शेयरिंग के तहत बहुजन समाज पार्टी ने प्रदेश में 38 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन इसके सिर्फ 10 सांसद ही जीत सकें. 2014 में पार्टी कोई भी सीट नहीं जीत पाई थी. अगर उस लिहाज से देखें तो 2019 लोकसभा चुनाव में 10 सीटें मिल जाना बसपा के लिए अच्छी खबर है, लेकिन उत्तर प्रदेश में गठबंधन होने के बाद जिस तरह यह उम्मीद की जा रही थी कि गठबंधन काफी सफल होगा और बिना गठबंधन के समर्थन के दिल्ली में कोई सरकार नहीं बनेगी, वहां गठबंधन को बड़ा झटका लगा है.
इसका एक पहलू यह भी है कि जिस तरह से भाजपा को देश भर में प्रचंड बहुमत मिला है, उस स्थिति में अगर गठबंधन नहीं हुआ होता तो बसपा और सपा को जो 10 और 5 लोकसभा सीटों पर जीत मिली है, वह जीत भी मुश्किल होती.
अब हम आपको बताते हैं कि बसपा के जो सांसद जीत कर आए हैं उनके नाम क्या हैं और वो किस सीट से जीते हैं.
(1) बिजनौर से बसपा के मूलक नागर 75000 वोटों से जीते हैं
(2) नगिना सुरक्षित सीट से गिरिश चंद्रा 1 लाख 6 हजार वोटों से जीते हैं
(3) अमरोहा सीट से दानिश अली ने 63000 वोटों से जीत दर्ज की हैं तो
(4) सहारनपुर से हाजी फजलुर्रहमान 23000 वोटों से जीते हैं
(5) अम्बेडकर नगर से रीतेश पांडे 95880 वोटों से जीते हैं
(6) गाजीपुर में अफजल अंसारी 119392 वोटों से जीतने में सफल हुए हैं
(7) घोसी से अतुल कुमार सिंह को 122556 वोटों से जीत मिली है
(8) तो सुरक्षित सीट लालगंज से संगीता आजाद ने 161597 वोटों से जीत दर्ज की
(9) श्रावस्ती से राम शिरोमणि करीबी मुकाबले में 5320 वोटों से जीतने में सफल रहें
(10) तो जौनपुर से श्याम सिंह यादव ने 80936 वोटों से जीत दर्ज की
जातीय समीकरण की बात करें तो बसपा के 10 सांसदों में 3 मुस्लिम, 2 दलित, 3 पिछड़े वर्ग के जबकि 2 सामान्य वर्ग से हैं.
दो लोकसभा सीटें ऐसी भी रही, जहां बसपा बहुत ही कम अंतरों से हार गई. इसमें मछली शहर सीट है, जहां बसपा सिर्फ 181 वोटों के अंतर से हार गई. तो मेरठ में बसपा प्रत्याशी हाजी याकूब कुरैशी 4000 वोटों से हार गए. इन दोनों सीटों सहित कुल 9 लोकसभा सीटें ऐसी रही, जहां बहुजन समाज पार्टी नजदीकी मुकाबले में हार गई. इन सीटों पर बसपा की हार की एक और वजह कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार भी रहे, जिन्होंने भाजपा विरोधी वोटों को बाट लिया.
इन सीटों में मेरठ और मछली शहर के अलावा संतकबीर नगर, बस्ती, बदायूं, सुल्तानपुर, बलिया, चंदौली, फिरोजाबाद सीट शामिल है. तो इसके अलावा कांग्रेस के कई अन्य उम्मीदवारों ने भी गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल का खेल बिगाड़ा. इन सीटों में धौरहरा, सीतापुर और कैराना की सीटे शामिल हैं.
अब हम इस पर आते हैं कि आखिर गठबंधन के बहुत सफल नहीं हो पाने की क्या वजह रही.
कारण नंबर- 1
भाजपा की ओर से उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करने वालों में नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ जैसे बड़े चेहरे थे, जबकि बसपा की ओर से सिर्फ मायावती तो समाजवादी पार्टी की ओर से अखिलेश यादव ही चुनाव प्रचार में थे. भाजपा के तमाम नेता मिलकर ज्यादा मतदाताओं तक पहुंचने में सफल रहे. सिर्फ योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश 137 रैलियां की.
कारण नंबर- 2
भाजपा को 2014 लोकसभा चुनाव में 42.6 प्रतिशत वोट मिले थे, 2019 में भाजपा ने इसमें 7 फीसदी वोट बढ़ाया और 49.7 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रही.
वहीं दूसरी ओर जहां सपा का वोट प्रतिशत 2014 के 22.20 फीसदी वोट शेयर से घटकर 2019 में 18 फीसदी तक पहुंच गया, तो बसपा भी अपना प्रदर्शन बेहतर नहीं कर पाई. बसपा को 2014 में 19.60 वोट मिले थे जो कि 2019 में 19.50 पर पहुंच गए. पूरे गठबंधन की बात करें तो इसके कुल मतों में कम से कम तीन प्रतिशत की गिरावट हुई.
कारण नंबर- 3
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर 2019 के चुनाव में 70.48 लाख नए मतदाता थे. इसमें पहली बार वोट डालने वाले मतदाताओं की संख्या तकरीबन 17 लाख थी. ऐसे वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा ने कई अभियान चलाए. इसमें ‘पहला वोट भाजपा को’ जैसा नारा काफी असरदार साबित हुआ. इन तमाम योजनाओं की बदौलत भाजपा को इस बार 2014 के मुकाबले 85 लाख ज्यादा वोट मिले.
बसपा-सपा और रालोद गठबंधन के पास इन नए वोटरों को जोड़ने के लिए कोई योजना नहीं थी. न तो उन्होंने इस तरह की कोई योजना ही बनाई. यह गठबंधन सिर्फ बसपा प्रमुख मायावती, अखिलेश यादव और चौधरी अजीत सिंह पर टिकी रही.
कारण नंबर- 4
गठबंधन मुख्य रूप से जाटव, यादव और मुस्लिम वोटों पर टिका रहा, जिनकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत के आस-पास है. जबकि भाजपा इसकी काट के लिए बाकी की 60 फीसदी जातियों में अपनी पैठ बनाती रही.
कारण नंबर- 5
सपा के हिस्से में आई कुल 37 सीटों में से 19 सीटें ऐसी थीं, जिनपर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सपा और बसपा को मिले कुल वोटों से ज्यादा वोट मिले थे तो बसपा के खाते में इस तरह की 14 सीटें थीं. इन सीटों पर जीत के लिए सपा-बसपा गठबंधन को विशेष रणनीति बनाने की जरूरत थी. लेकिन नतीजे देखते हुए नहीं लगता कि गठबंधन इन सीटों के लिए कोई विशेष रणनीति बना पाई.
इन तमाम तथ्यों के अलावा एक तथ्य और है, जिस पर ध्यान देना जरूरी है. क्योंकि यह तथ्य भाजपा की बड़ी जीत की कहानी कहती है. भाजपा देश भर में जो 303 सीटें जीतने में कामयाब रही, उसमें से भाजपा द्वारा जीते गए 16 सीटों पर जीत का अंतर सिर्फ 5000 वोटों का रहा तो भाजपा ने 42 सीटें ऐसी जीती जहां पर जीत का अंतर 5000 से 25 हजार के बीच रहा. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जमीनी स्तर पर मेहनत कर भाजपा ने तकरीबन 50 सीटें अपने नाम कर ली, जहां अन्य दलों ने गंभीरता से प्रयास ही नहीं किया.
इसे भी पढ़ें-3 जून को दिल्ली में बसपा की समीक्षा बैठक

अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
——————————————————————————————————————————
Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.

Good work
बहुत उम्दा विश्लेषण पर सोशल मीडिया पर ईवीएम में भारी गड़बड़ी किते जाने के जौ तथ्य सामने आए उनपर टिप्पणी अधूरी है।सपा बसपा के निराशाजनक विश्लेषण में मुलायम सिंह की गृह कलर्स एक कारक था तो बसपा में कर्मठ नेतृत्व का अभाव और कार्यकर्ताओं का लचर कम्पेन रहा है। भाजपा की जीत का करण ईवीएम मे गडंबड़ी सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काना,और अकूत धन खर्च करना, मिडिया भाजपा की प्रचार भूमिका के रूप काम करना रहा है।
–आर.जी.कुरील