बीते 28 अप्रैल को आकाश आनंद उत्तर प्रदेश के सीतापुर में भाषण दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने मतदाताओं को ललकारते हुए भाजपा पर जमकर निशाना साधा और भाजपा द्वारा वोट मांगने पर उन्हें वोट के बदले चप्पल-जूते चलाने की बात कह डाली। आकाश के बयान के बाद खूब हो-हल्ला मचा और भाजपा ने बसपा के नेशनल को-आर्डिनेटर आकाश आनंद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा डाली। इसके बाद खबर है कि आकाश आनंद के आगामी चुनावी कार्यक्रमों को फिलहाल रद्द कर दिया गया है। 28 अप्रैल के बाद आकाश आनंद ने एक भी सभा को संबोधित नहीं किया है।
राजनीति और सार्वजनिक जीवन में नेताओं पर मुकदमा दर्ज होना आम है। राहुल गांधी से लेकर तेजस्वी यादव और तमाम युवा नेता ऐसे हैं, जिन पर मुकदमें दर्ज हैं। चंद्रशेखर आजाद जो फिलहाल आकाश आनंद के सामने बड़ी चुनौती हैं, वह भी कहते घूमते हैं कि समाज के लिए वो 27 मुकदमें झेल रहे हैं। ऐसे में एक मुकदमें की वजह से तेजी से आगे बढ़ते और लोगों के दिलों में जगह बनाते आकाश आनंद को रोकना आखिर कितना सही है?
किसी भी देश में और किसी भी राजनीतिक आंदोलन में जनता अपने राजनीतिक नायक को उनके लिए जूझते हुए और आवाज उठाते हुए देखना चाहती है। इसी वजह से तमाम नेता जेल में रहते हुए भारी अंतर से चुनाव जीतते रहे हैं। आकाश आनंद भी राजनीतिक मंचों से जूझते हुए और आवाज उठाते हुए दिख रहे थे। हालांकि आकाश आनंद पिछले समय में अलग-अलग राज्यों में चुनाव प्रचार में सक्रिय रहे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में जब मंच पर आकाश आनंद उतरे, वह पहले से अलग थे। तेवर भी बदले हुए थे और निशाना भी। और कहा जा सकता है कि दोनों बिल्कुल सही थे। आकाश आनंद बसपा के नेशनल को-आर्डिनेटर के रूप में जिस तरह अपने तेवर से मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे थे, वह बसपा के लिए अच्छा संकेत था। उनकी रैलियों में भीड़ उमड़ने लगी थी। कार्यकर्ता बसपा सुप्रीमों मायावती की रैलियों के साथ ही आकाश की रैलियों का भी इंतजार करने लगे थे। निश्चित रूप से इन सबके लिए बसपा प्रमुख मायावती के भी उत्तराधिकारी के तौर पर आकाश आनंद को चुनने पर जनता की मुहर लगने लगी थी।
आज पार्टी के दिल्ली के केंद्रीय कार्यालय पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों से मुलाक़ात हुई, देश के राजनैतिक माहौल पर उनसे खुल कर चर्चा करने का मौका मिला। उनकी बातें और चिंताएं सुन कर मन थोड़ा विचलित भी हुआ है..उन्होने बताया कि किस तरह से एक डर का माहौल बना कर पूरे समाज को… pic.twitter.com/gD1VjL8uqM
— Akash Anand (@AnandAkash_BSP) May 4, 2024
आकाश मीडिया से बातें कर रहे थे। बिना फंसे ताबड़तोड़ इंटरव्यू दे रहे थे और मजबूती से अपनी बात कह रहे थे। यह सब देखना बसपा के समर्थकों के लिए उत्साह बढाने वाला था। और राजनीतिक विश्लेषकों के लिए हैरान करने वाला। यानी आकाश तेजी से केंद्रीय राजनीति में अपनी जगह बना रहे थे। समर्थकों को भरोसा दे रहे थे और बहनजी के उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार हो रहे थे।
इन सबके बीच आकाश आनंद को ब्रेक देना थोड़ा सा अटपटा है। अमूमन ऐसे मौकों पर नेता और ज्यादा हमलावर होते हैं, इसे मुद्दा बनाकर सहानुभूति लेते हैं। लेकिन बसपा सुप्रीमों ने आकाश आनंद को रोक दिया है। यह सही हुआ या नहीं, इस पर कोई निर्णय लेने से पहले हमें बहनजी की राजनीति को समझना होगा। संभव है कि कैरियर की शुरुआत में ही राजनीतिक मुकदमों से बचाने के लिए उन्होंने आकाश आनंद के हित में यह फैसला लिया हो। या संभव है कि उन्हें रोक कर यह मैसेज दे रही हों कि अभी संयमित रहने का वक्त है। खैर, इस पूरे प्रकरण में एक बात तो साफ है कि आकाश आनंद ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह बना ली है। और यह बसपा समर्थकों और बहुजन राजनीति के लिए बेहतर संकेत है। हालांकि इस बीच आकाश आनंद लगातार सोशल मीडिया पर अपनी बैठकों की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं और बता रहे हैं कि वह रुके नहीं हैं।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।