दमदार मूवी है ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’, पढ़ें रिव्यू

नई दिल्ली। ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ फिल्म में निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव ने फिल्म में महिलाओं की मन में रह जाने वाले भावनाओं को परदे पर उभारा है.

अलंकृता ने सफलता पूर्वक 18 से 55 साल तक की चार महिलाओं की समानांतर कहानी दिखाई है. उम्र के अपने-अपने पड़ाव पर जिन्दगी जी रही ये चारों महिलाएं प्यार और स्वछन्दता की भूखी हैं. निर्देशक ने शायद यह बताने की कोशिश की है कि ये सिर्फ इन चार महिलाओं की ही नहीं बल्कि हर महिला की कहानी है.

इस फिल्‍म में रिहाना ( पलाबिता बोरठाकुर) बुर्के में कैद, अपने सपनों और चाहतों को परिवार की परंपराओं के बंधनों से आजाद करना चाहती हैं, वहीं दूसरी तरफ लीला (आहाना कुमरा) एक ब्यूटी पार्लर चलती है, पर उसके सपने भोपाल की तंग गलियों से निकलना चाहते हैं. तीसरी महिला हैं बुआ जी (रत्ना पाठक शाह ) जो की विधवा हैं और उन्हें अकेलेपन से छुटकारा पाने की चाहत है. चौथी महिला है शीरीन ( कोंकणा सेन) जो की कमाल की सेल्स गर्ल हैं. शीरीन तीन बच्चों की मां हैं और उन्हें सिर्फ एक महिला की तरह इस्तेमाल होना नामंजूर है.

यह फिल्‍म की चार मुख्‍य किरदार और इन्‍हीं के आसपास फिल्‍म की कहानी घूमती है. इसके अलावा फिल्‍म में एक्‍टर विक्रांत मैसी और सुशांत सिंह भी नजर आएंगे. अलंकृता श्रीवास्तव की इस फिल्‍म में जेबुनिस्सा बंगेश और मंगेश धाकड़े ने अपना संगीत दिया है और इसके सिनेमेटोग्राफर हैं अक्षय सिंह. फिल्‍म की खामियों की बात करें तो, इसे फिल्‍मकार की नहीं, बल्कि समय की कमी माना जाए क्‍योंकि इस तरह के विषय पर पहले भी फिल्‍में बन चुकी हैं और जो हाल ही की फिल्‍म याद आती है, वह है ‘पार्च्ट’. तुलना की जाए तो उस फिल्‍म में भी कहानी की आत्मा ‘ल‍िपस्टिक अंडर माई बुर्का’ जैसी ही थी, लेकिन हर फिल्‍मकार को अपनी तरह से अपनी कहानी कहने का हक है पर बतौर आलोचक मेरी मुश्किल ये हो जाती है की विषय में फिर उतना नयापन नहीं लगता.

इसके अलावा फिल्‍म की दूसरी कमी है फिल्‍म में इंटरवेल के बाद का थोड़ा सा हिस्सा, जहां फिल्‍म की कहानी की गति कम हो जाती है. इसके अलावा अगर देखें तो यह फिल्‍म समाज के सिर्फ एक वर्ग यानी मध्‍यम वर्ग या निचले माध्यम वर्ग की कहानी कहती है. अगर उच्च वर्ग की भी बात होती तो शायद रेंज और बढ़ जाती.

फिल्‍म की खूबियों की बात करें तो इसकी सबसे बड़ी खूबी है इसका स्क्रीन्प्ले, जिसे काफी खूबसूरती से लिखा गया है. दूसरी मजबूत कड़ी है इस फिल्‍म के किरदार जिन्हें शानदार तरीके से गढ़ा गया है. फिल्‍म का विषय ‘पार्च्‍ड’ जैसा है पर भोपाल में घटती ये फिल्म और इसके किरदार आपको शायद ही अहसास होने देंगे की इस तरह की कहानी आप पहले भी देख चुके हैं.

कुछ लोगों को फिल्म परिवार के साथ देखने में दिक्कत हो सकती है, फिर भी इसकी बोल्ड कहानी और ट्रीटमेंट को देखने के बाद इसे साढ़े तीन स्टार मिलते हैं.

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