राहुल गांधी, आपकी लडाई मोदी से नहीं, खुद से है

आपने इस्तीफा दे दिया. अच्छा किया. पीएम बनने के लिए प्रेसीडॆंट के पोस्ट पर रहना कहां जरूरी होता है. अब, आप क्या करेंगे? आपने कहा, 10 गुना ताकत से अब मोदी से लड सकेंगे. यही गलती आप बार-बार कर रहे है. आपका मुकाबला मोदी से नहीं है. आपका मुकाबला शाह से भी नहीं है. आपका मुकाबला भाजपा से भी नहीं है. भाजपा तो कांग्रेस हो चुकी है. अब कांग्रेस क्या कांग्रेस से लडेगी?

आपका मुकाबला है खुद से. आपका मुकाबला है पर्सेप्शन से. आपका मुकाबला है आरएसएस के संगठन से. तो आपको क्या करना चाहिए? क्योंकि, आप अपने सेवा दल या एनएसयूआई के मौजूदा ताकत के जरिए कभी इनसे लड नहीं पाएंगे. फिर रास्ता क्या बचता है?

एक ही रास्ता है.

सबसे पहले तो ये शपथ लीजिए कि अगले 5 साल तक, बिना चुनाव का इंतजार किए, मैं पूरा भारत घूमूंगा. अब ये भी सवल उठेगा कि कहां जाए, कहां से शुरु करे? तो आप शुरु से शुरु करें. जहां मन हो, वहां से शुरु करे. अमेठी से करे या वायनाड से करे, लेकिन करें. बिना वोट पाने और संगठन मजबूत बनाने के लालच के यह यात्रा शुरु करें.

वैसे मेरी सलाह है कि आप अभी अपनी अखिल भारतीय यात्रा का शुभारंभ मुजफ्फरपुर से कर सकते है. 250 बच्चे की मौत हो चुकी है और आपनी हार के गम से अब तक नहीं उबर सके है. जाइए, जा कर उन बच्चों के माता-पिता से मिलिए. उन्हें सांत्वना दीजिए. इसके बाद, आप किसी भी राज्य के हेड पोस्ट ऑफिस में पहुंच जाइए, जहां पोस्टल बैंकिंग की सुविधा है. महीने की पहली तारीख को जाना बेहतर रहेगा. वहां आपको गांव की कई गरीब और शिक्षित-अशिक्षित-अर्द्धशिक्षित महिलाएं/पुरुष मिल जाएंगे जो इस आशा में अपने पोस्टल बैंकिंग खाते के साथ आते है, कि उनके खाते में दिल्ली से पैसा आने वाला है. उनसे मिलिए. उन्हें सच बताइए.

आप पंजाब जाते है तो कैप्टन साहब की आवास के बजाए उस जिले में जाइए, जहां कैंसर ट्रेन चलती है. उस जिले में जाइए, जहां रिवर्स बोरिंग ने पूरे शहर को कैंसर के दोजख में तब्दील कर दिया है. यूपी के सोनभद्र/मिर्जापुर जाइए. वहां देखिए कि देश कापावर बैंक माने जाने वाला इलाका कैसे पीनेके साफ पानी को तरस रहा है और फ्लोराइड वाला पानी पी कर असमय बूढा/बीमार हो रहा है.

आपको छत्तीसगढ जाना चाहिए. सरगुजा जिला. जैसा मैंने कहा कि कांग्रेस भाजपा और भाजप अकांग्रेस हो चुकी है. इसका शानदार मुजायरा देखने को वहां मिलेगा. सरगुजा में जा कर अपने सीएम को बुलाइए और पूछिए कि जब आदिवासी और स्थानीय लोग नहीं चाहते है तब भी क्यों अडानी को आपकी सरकार वहीं सारी सुविधाएं दे रही है जो रमन सिंह की सरकार ने दी थी? पता कीजिए वहां कि क्यों लाखों पेड कटने वाले है, जिससे एक भरापूरा एलीफैंट रिजर्व उज़ड जाएगा.

आप महाराष्ट्र जाइए. एक बार कलावती से आप मिले थे. आज सुना है सैकडों “कलावती” womb-less women बन चुकी है. पता है, क्यों? क्योंकि गन्ना कटाई कराने वाले ठेकेदार ऐसी महिला मजदूर नहीं चाहते जिनका मासिक धर्म होता हो. जा कर पता कीजिए ऐसी हजारों कलावती का जीवन आज किस स्थिति में है. आप फिर से एमपी जाइए, मिलिए उन युवाओं से जिनसे आपने वादा किया था कि मोबाइल बनाने की फैक्ट्री एमपी में लगाएंगे. क्या वादे पूरे हुए, उन पर कितना काम हुआ? आपके सीएम कमलनाथ कर क्या रहे है?

कुल मिला कर ये कि किसी विद्वान ने कहा था, भारत की हर गली में 10 खबर है, और अगर कोई खबर नहीं है तो यह अपने आप में बडी खबर है. जाइए. जा कर गुजारिए भारत की गांवों में अपनी रातें. दीजिए चुनौती उस पर्सेप्शन को जिसमें कहा जाता है कि आप गांवों में पॉलिटिकल टूरिज्म करते है. तोडिए इस पर्सेप्शन को.

एक अंतिम बात. आपके एक सलाहकार ने मेरे एक मित्र से कहा था कि भला किताब से भी कहीं चुनाव जीता जाता है. अब चुनाव कैसे जीता जा सकता है, इसकेलिए कोई लिखित नियम होता तो आप कब के चुनाव जीत कर पीएम बन गए होते. इसलिए, एक मुफ्त की सलाह है.

ये मत कहिएगा कि पानी पर भी कहीं चुनाव जीता जाता है. तो ऐसा है कि मल के बाद जल, मोदी जी ने इस बात को समझ लिया है. शौचालय बना-बना कर वे घर-घर तक पहुंच गए थे और इस बर जल के नाम पर फिर एक बार घर-घर पहुंचने की तैयारी में है. संकेत समझिए. पानी के असल मुद्दों को उठाइए. कम से कम यहे एबोल कर पर्सेप्शन को चुनौती दे दीजिए कि आज से मैं बोतलबन्द पान्दे पीना बन्द कर रहा हूं. देखिए, क्या बदलाव आता है?

कम ही लिखा है, ज्यादा समझिएगा. बाकी, आपके पास दर्जनों हवार्ड्धारी तो हइये है.
शशि शेखर

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