सहारनपुर। पंद्रह अगस्त के बाद से सहारनपुर के उसंद गांव के दलित लोग पास के जंगल में रात गुजार रहे हैं. गांव की दलित महिलाएं रात भर देखा करती हैं कि कहीं पुलिस की जीप तो नहीं आ रही है. पिछले एक हफ्ते में तीन दलितों की पुलिस की ज्यादती की वजह से मौत हो गई. हालांकि पुलिस इस बात से इनकार करती है. गांव वालों का आरोप है कि पुलिस और पीएसी के लोगों ने उनपर लाठियां बरसाईं.
तनाव की स्थिति तब शुरू हुई जब किसी और जाति के एक शख्स ने दलित से कर्ज के बदले इसकी बेटी को अपने घर रखने के लिए कहा. इस बात पर दो समूह जब आमने-सामने आए तो पुलिस को बुलाया गया. पुलिस के अनुसार दंगे जैसी स्थिति को काबू करने के लिए बल प्रयोग किया गया. लेकिन लोगों का कहना है कि पुलिस ने केवल दलितों को ही टारगेट किया.
एक ग्रामीण रवि कुमार ने बताया कि पुलिस ने उन्हें जानवरों की तरह पीटा. उन्होंने कहा, हमें बुरी तरह से पीटा गया. गांव के किसी भी दलित का ऐसा घर नहीं बचा जहां पुलिस ने घुसकर तोड़ फोड़ न की हो. कम से कम सौ पुलिस और पीएसी के लोगों ने उपद्रव किया और यह घटना स्वतंत्रता दिवस पर हुई. सरिता देवी, राकेश कुमार और चमन सिंह को बहुत बुरी तरह पीटा गया और उसी रात उन तीनों ने दम तोड़ दिया. वे सभी दलित थे. इन हालात में हम लोगों ने अब जंगल में रात बितानी शुरू कर दी है जबकि घर की महिलाएं रात भर पुलिस को आहट देखती रहती हैं. यहां तक की एंबुलेंस की आवाज सुन कर भी हम डर जाते हैं.
सहारनपुर के एसएसपी मनोज तिवारी ने कहा,”मुझे पता चला है कि दो समूह के लोगों में अनबन हो गई थी. कुछ लोगों ने पुलिस पर भी हमला किया इसलिए हमें बल प्रयोग करना पड़ा. हमने 20 अज्ञात लोगों के खिलाफ पुलिस पर हमला करने के लिए केस दर्ज किया है. हो सकता है कि गिरफ्तारी से बचने के लिए ये लोग जंगल में सो रहे हैं. जहां तक लोगों के डर का मामला है तो हम गांव जाकर उन्हें आश्वासन देंगे कि डरने की कोई जरूरत नहीं है.”
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