नंदा देवी रेस्क्यू: डेप्युटी टीम लीडर मार्क नाराज, प्रशासन हमारी सुनता जो बच जाती कुछ जानें

नई दिल्ली। नंदा देवी चोटी पर लापता 8 पर्वतारोहियों के सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन पर अब गंभीर सवाल उठ रहे हैं. यह सवाल उठाया है उस पर्वतारोही दल के डेप्युटी टीम लीडर मार्क थॉमस ने. मार्क ने एनबीटी को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कहा कि अगर प्रशासन ने हमारी सुनी होती और हमें सर्च और रेस्क्यू में शामिल किया होता तो बहुत कुछ हो सकता था और मुमकिन है कि कुछ जानें बचाई जा सकतीं. ब्रिटेन लौटने से पहले मार्क ने इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन को भी लिखित में सारी चीजों की जानकारी दी है.

उत्तराखंड की नंदा देवी चोटी पर 8 लापता पर्वातारोहियों में 4 ब्रिटेन, 2 अमेरिका, एक ऑस्ट्रेलिया और एक भारत के नागरिक हैं. टीम को जाने माने ब्रिटिश माउंटेनियर मार्टिन मोरन लीड कर रहे थे. मार्क उस टीम के डेप्युटी लीडर थे. मार्क ने एनबीटी से बात करते हुए कहा कि जब वह 8 लोग लापता हुए तो हमने पहले खुद ही उन्हें ढूंढने की कोशिश की फिर इमरजेंसी सर्विस के हेलिकॉप्टर भेजने को कहा.

अगले दिन हेलिकॉप्टर आया तब हम उस साइट पर गए जहां एक्सीडेंट हो सकता था. हमने एवलांच देखा. फिर हेलिकॉप्टर से बेस कैंप में आ गए. मैं और मेरे साथ जो तीन लोग थे सब बिल्कुल ठीक थे और हम फिर से अगले दिन सर्च करने जाना चाहते थे. लेकिन हमसे तुरंत एयरस्ट्रीप लौटने को कहा और कहा कि यह डीएम (जिलाधिकारी) पिथौरागढ़ का आदेश है. हमें जबरन हेलिकॉप्टर में बैठाकर ‘रेस्क्यू’ किया गया. फिर एंबुलेस में हमें हॉस्पिटल की इंटेंसिव केयर यूनिट ले गए, जिसका हमने विरोध किया और कहा कि हम बिल्कुल ठीक हैं. हम एवलांच विक्टिम नहीं हैं. हमें दो घंटे हॉस्पिटल में रुकने का ऑर्डर दिया और फिर आईटीबीपी के कपाउंड में ले गए. वहां हमें किसी से मिलने नहीं दिया गया. मैं सर्च और रेस्क्यू मिशन में जाना चाहता था लेकिन मुझे इजाजत नहीं दी गई, क्योंकि मुझे ‘रेस्क्यू’ किया गया था और प्रेस की नजरों में यह अच्छा नहीं लगता कि जिसे ‘रेस्क्यू’ किया गया है वह कैसे रेस्क्यू मिशन में जा रहा है.

मार्क ने एनबीटी से कहा कि पिथौरागढ़ में जिस तरह से डीएम विजय कुमार जोगदंडे ने हमें ट्रीट किया हम उससे काफी निराश हैं. उन्होंने किसी को भी मुझसे मिलने आईटीबीपी हाउस नहीं आने दिया और न ही हम कहीं जा सकते थे. डीएम और पुलिस ने मुझसे कई सवाल पूछे जो माउंटेन सर्च और रेस्क्यू से तो बिल्कुल जुड़े नहीं थे और मैं बार बार मेरी हेल्प लेने को कह रहा था क्योंकि मैं अनुभवी माउंटेन प्रफेशनल हूं लेकिन उन्होंने इजाजत नहीं दी. वहां इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन की टीम भी थी जो पूरी तरह एक्लेमटाइज भी थे वह भी डीएम के निर्देश का इंतजार कर रहे थे लेकिन डीएम ने उन्हें भी शामिल नहीं किया. उन्होंने सिर्फ आईटीबीपी, एसडीआरएफ, एनडीआरएफ के लोगों को शामिल किया जो रेस्क्यू मिशन के लिए एक्लेमटाइज ही नहीं थे.

मार्क ने कहा कि जब पहले मैं हेलिकॉप्टर में गया था और पहली बार 5 बॉडी दिखी थी और कई अनआइडेंटिफाई ऑब्जेक्ट भी इधर उधर बिखरे थे, मैंने नीचे जाने और बॉडी को रिकवर करने या पहचान करने की इजाजत मांगी ताकि कोई अभी भी जिंदा हो तो उसे बचाया जा सके. पर हमारी नहीं सुनी गई. मैं बिल्कुल असहाय महसूस कर रहा था. अगर डीएम ने हमारी सुन ली होती और हमें शामिल किया होता तो 3 जून को ही बहुत कुछ हो सकता था और कुछ जिंदगी बचाई जा सकती थीं.

मार्क ने कहा कि जब 5 जून को पता चला कि जो आईटीबीपी जवान बेस कैंप जा रहे हैं उनके पास रेस्क्यू के लिए हाई एल्टीट्यूट इक्विपमेंट नहीं है और डिजास्टर टीम तो बोगदियार से ही वापस आ गई और बेस कैंप गई ही नहीं.

मार्क ने नाराजगी जताते हुए कहा कि कुछ ऐसे न्यूज आर्टिकल देखकर मैं अचंभित हुआ जिसमें कहा कि मार्टिन मोरन और उनके साथी पीक पर इललीगल तरीके से चढ़ने की कोशिश कर रहे थे. मार्क ने कहा कि अनाम (अनआइटेंटिफाईड) पीक पर जाने का फैसला मार्टिन मोरन का था जो इंडियन माउंटियरिंग फाउंडेशन की गाइडलाइन के हिसाब से ही था. इसके मुताबिक पर्वातारोही बेस कैंप की वेसिनिटी की कोई भी पीक पर जा सकते हैं. किसी ने कोई इललीगल प्रयास नहीं किया. अगर वह पीक समिट की होती तो हम इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन को उसकी फीस देते और रिपोर्ट जमा करते. अगर हम समिट नहीं भी कर पाते तो रिपोर्ट देते ताकि भविष्य के माउंटेनियर्स के काम आए.

‘मार्टिन मोरन का अपमान हुआ’
उन्होंने कहा कि मार्टिन मोरन माउंटेनियरिंग की दुनिया के बड़े नाम हैं. उन्होंने इंडियन हिमालय को अच्छे से एक्सप्लोर किया है. नेपाल जाने की बजाए उन्होंने अपना एक्सपिडिशन भारत को और इंडियन हिमालय को डेडिकेट किया. ऐसी कोई भी बात कि वह इललीगल क्लाइंबिग कर रहे थे यह उनके लिए बेहद अपमान की बात है और उनका ऐसा अनादर नहीं करना चाहिए.

मार्क ने कहा कि जिस स्पीड में प्रशासन काम कर रहा है उससे मैं थोड़ा शॉक में हूं. वह भी तब जब हमने मेरी एंबेंसी, ऑस्ट्रेलियन एबंसी और यूएस एंबेसी से भी दबाव डलवाया. मुझे पता है कि ब्रिटेन सरकार का भी दबाव है. काश ज्यादा स्पीड और इफिसिएंसी होती और डीएम ने ओपन माइंड दिखाया होता, जब हम प्लान के साथ गए थे कि कैसे रेस्क्यू करें. काश वे माउंटेनियर्स और आईएमएफ की सर्विल ले लेते जो उस फील्ड के बेस्ट हैं. मैं निराश हूं कि उन्होंने ऐसे नहीं किया. अब बस यही चाहता हूं कि चीजें तेजी से हों और बॉडी जल्द से जल्द रिट्रीव कर उनके परिवार वालों तक पहुंचाई जाएं.

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