05 पैसे नहीं होने से मान्यवर कांशीराम को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा था

सन् 1972 में हमने पूना में अपना छोटा सा कार्यालय खोला. शायद बहुजन समाज मूवमेंट (सभी धर्मों के OBC SC ST) का वो पहला कार्यालय था. मैं उस समय रेलवे में नौकरी करता था. नौकरी के लिए मुझे रोज पूना से मुंबई जाना पड़ता था. साहब जी मेरे साथ मुबंई आना-जाना करते थे. उस वक्त रेल के डिब्बे में ही हम योजनाएं बनाते थे कि किस तरह से हमें मनुवादियों/ ब्राह्मणवादियों द्वारा 6,743 जातियों में बांटे गए मूलनिवासी बहुजन समाज (85% OBC SC ST) को एक सूत्र में पिरोना है और उन्हें उनके हक़ दिलाने हैं.

साहब जी के पास पूना से मुंबई का रेलवे पास था. हम अपनी साइकिलों पर पूना स्टेशन जाते थे और फिर मुंबई से आकर साइकिलों से कार्यालय पहुंचते थे. हम स्टेशन के पास छोटे से ढाबे पर थोड़ा बहुत पेट भरने लायक खा लेते थे. आज भी मैं उस दिन को याद करता हूं जब मैं और साहब मुंबई से पूना आये और साइकिल उठाकर चल पड़े. हमारा सस्ता ढाबा आ गया. उस दिन मेरे पास तो पैसे नहीं थे इसीलिए मैंने सोचा साहब जी खाना खिला देंगे मगर साहब भी नहीं बोले. मैंने सोचा कि आज शायद साहब का दूसरे ढाबे में खाना खाने का मूड है. दूसरा ढाबा भी आ गया. हम दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा और आगे चल पड़े क्योंकि पैसे किसी के भी पास नहीं थे.

कुछ न मिल पाने की स्थिति में हम दोनों रात को पानी पीकर सो गये. अगले दिन मेरी छुट्टी थी मगर साहब को मीटिंग के लिए जाना था. साहब सुबह उठे और नहा धोकर अटैची उठाकर निकलने लगे. थोड़ी देर बाद वापिस आये और बोले…

””यार मनोहर कुछ पैसे हैं क्या तुम्हारे पास?”” मैंने कहा नहीं है साहब. तो साहब ने कहा देख कुछ तो होंगे? मैंने कहा कुछ भी नहीं है साहब. होते तो रात खांना जरूर खिलाता आपको.

””मनोहर, यार 05 पैसे तो होंगे?””

अब मैं भी अपने बैग को खंगालने लगा मगर एकदम खाली. मैंने पूछा क्या काम था साहब? यार साइकिल पंक्चर हो गयी है और ट्रेन का भी समय हो गया है. अगर समय से स्टेशन न पहुंच पाया तो ट्रेन छूट जायेगी और हजारों लोग जो मुझे सुनने आएंगे, मेरे न पहुंच पाने की स्थिति में निराश होकर वापस चले जायेंगे. बड़ी मेहनत के बाद मैं इस मिशन को यहां तक लेकर आया हूं. मैंने कहा तो क्या हुआ साहब, आप मेरी साइकिल ले जाओ? साहब ने कहा अरे भाई देख ली; तेरे वाली भी खराब है.

फिर अचानक ये क्या ????
05 पैसे ना होने के कारण साहब पैदल ही कई किलोमीटर दूर स्टेशन के लिए दौड़ पड़े… और पहली बार जब मैंने कांशीराम साहब को हेलीकॉप्टर से उतरते देखा तो आँखों से आसूं निकल गये जो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे और मेरे मुंह से निकला ””वाह साब जी वाह, कमाल कर दिया..”” पुरानी टूटी सी साइकिल द्वारा बामसेफ, DS4, बहुजन समाज पार्टी से होते हुए सीधे हेलीकॉप्टर…

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