नई दिल्ली। आयकर विभाग का रुख कर्ज में फंसी कंपनियों पर भारी पड़ सकता है. इन कंपनियों पर देश के बैंकों और वित्तीय कंपनियों के भारी कर्ज हैं और वे भुगतान न कर पाने के कारण इस समय राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट में फंसी हुई हैं. अब अगर बैंक इन संपत्तियों को कम कीमत पर बेचते हैं तो आयकर विभाग नए मालिक से इन संपत्तियों की वास्तविक कीमत के आधार पर कर वसूल सकता है.
बोलीदाताओं, निजी इक्विटी कंपनियों और वकीलों का कहना है कि पुराने बीमार औद्योगिक कंपनी कानून (एसआईसीए) में रुग्ण कंपनियों को आयकर से छूट मिली हुई थी लेकिन नए दिवालिया कानून के तहत इन कंपनियों को कर में कोई छूट नहीं है. इससे संभावित बोलीदाता कर्ज में फंसी इन संपत्तियों का मूल्यांकन कम कर सकते हैं. एक बोलीदाता ने बताया कि अगर किसी कंपनी पर 50,000 करोड़ रुपये का भारी भरकम कर्ज है और इस ऋण अधिग्रहण करने के लिए कोई 30,000 करोड़ रुपये की बोली लगाता है तो ऋण की बाकी राशि यानी 20,000 करोड़ रुपये कर्जदार कंपनी की आमदनी मानी जाएगी और इसे खरीदने वाले को आयकर या न्यूनतम वैकल्पिक कर देना होगा.
बोलीदाताओं ने कहा कि दिवालिया कानून में यह भी जरूरी है कि अगर कोई बोलीदाता पंचाट में पहुंची किसी कर्जदार कंपनी का अधिग्रहण करता है तो उसे प्रतिस्पस्पर्धा आयोग से भी इजाजत लेनी पड़ेगी. सूत्रों के अनुसार प्रतिस्पर्धा कानून से जेएसडब्ल्यू स्टील और टाटा स्टील को भी परेशानी हो सकती है. कंपनियां इस मसले को सरकार के समक्ष उठाएंगी.

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