कांशीराम की बहुजन विचारधारा की जीत है गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव

मान्यवर कांशीराम की जयंती से एक दिन पहले गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के गठबंधन की जीत असल में बहुजन नायक को सच्ची श्रद्धांजली है. मान्यवर कांशीराम हमेशा यह चाहते थे कि बहुजन समाज एकजुट हो, क्योंकि उसकी एकजुटता ही उनकी ताकत है. उनका हमेशा से मानना था कि बहुजन समाज 100 में 85 है, इसलिए देश की सत्ता पर बहुजनों का शासन होना चाहिए.

जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी हिस्सेदारी जैसे नारे कांशीराम की इसी दूरदर्शिता को दिखाते हैं. असल में कांशीराम देश की राजनीति के गणित को समझ गए थे. वह यह जान गए थे कि देश का अगड़ा कहा जाने वाला समाज आखिर सालों तक सत्ता पर कैसे कब्जा कर के बैठा है. उन्हें यह अंदाजा हो गया था कि बहुजन समाज को जातियों में बांटकर ही देश का सवर्ण तबका इस देश की सत्ता पर कब्जा कर के बैठा है. उन्होंने उसी बिखरे हुए बहुजन समाज को जोड़ना शुरू किया और राजनीति के मुहावरे बदल दिए.

गोरखपुर और (गोरखपुर में शानदार प्रदर्शन) फूलपुर उपचुनाव की जीत इसलिए भी अहम है क्योंकि दोनों लोकसभा सीटें यह सीट पिछले काफी समय से भाजपा का गढ़ रही हैं. गोरखपुर की जीत बहुजन समाज की सबसे बड़ी जीत है. क्योंकि अघोषित तौर पर हिन्दुत्व का गढ़ बन गए गोरखपुर में यह जीत गोरनाथ मठ की सत्ता को सीधी चुनौती है. पिछले कई दशक से गोरखपुर पर इसी के महंथ का कब्जा रहा है. जाहिर है कि इस एक हार से भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व से लेकर राज्य नेतृत्व तक हिल गया है. इज्जत की अहम लड़ाई में अगर भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है तो इसके पीछे मान्यवर कांशीराम जी का बहुजनवाद का सिद्धांत है, जिसने अम्बेडकरवाद को हथियार बनाकर हिन्दुत्व को हरा दिया है.

गोरखपुर और फूलपुर की इस जीत ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को भी बड़ा संदेश दे दिया है. इस जीत से यह भी साफ हो गया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ बहुजन समाज ही हिन्दुत्व के रथ पर सवार भाजपा का रास्ता रोक सकती है. और जिस उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा सीटें जीतकर भाजपा केंद्र में सरकार बनाने में सफल रही है, उसे वहां सबसे ज्यादा खतरा है. बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी मिलकर आसानी से भाजपा का रास्ता रोक सकती हैं. उत्तर प्रदेश में दोनों ही पार्टियां फिलहाल हाशिए पर पड़ी हैं. उसे इससे बाहर निकलने का फार्मूला मिल गया है. उपचुनाव में बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मिलकर जो प्रयोग किया था, वह प्रयोग सफल रहा है.

इस जीत के बाद अब सबकी नजरें मायावती और अखिलेश यादव पर टिक गई हैं. अगर 2019 लोकसभा चुनाव में दोनों दल आपस में समझौता कर के चुनाव लड़ते हैं तो केंद्र से भाजपा की विदाई तय है. अपनी स्थापना से लेकर अब तक लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा के प्रदर्शन की बात करें तो 2009 में बसपा को 21 और सपा को 23 सीटें मिली थी. यह उनका सबसे बेहतर प्रदर्शन है. अगर 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां यूपी में 40-40 सीटों पर भी समझौता कर के चुनाव में उतरते हैं तो वो अपने इस बेहतर प्रदर्शन को दोहरा सकते हैं.

नहीं रहे एलियन की दुनिया में झांकने वाले दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक

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ब्रिटेन के मशहूर भौतिक विज्ञानी प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग का निधन हो गया है. वे 76 साल के थे. 1974 में ब्लैक हॉल्स पर असाधारण रिसर्च करके उसकी थ्योरी मोड़ देने वाले स्टीफन हॉकिन्स साइंस की दुनिया के बड़े नाम रहे हैं.

वे अपनी शारीरिक अक्षमता के बावजूद आज विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिक थे. उन्हें एमयोट्रॉफिक लैटरल सेलेरोसिस (amyotrophic lateral sclerosis) नाम की बीमारी थी. इस बीमारी में मनुष्य का नर्वस सिस्टम धीरे-धीरे खत्म हो जाता है और शरीर के मूवमेंट करने और कम्यूनिकेशन पावर समाप्त हो जाती है. स्टीफन हॉकिंग के दिमाग को छोड़कर उनके शरीर का कोई भी भाग काम नहीं करता था.

एलियन की दुनिया कैसी होती है, इसके बारे में उन्होंने काफी रिसर्च किया था. स्टीफन हॉकिंग ने अनुमान लगाया था कि ग्लोबल वार्मिंग और नए वायरसों के कारण संपूर्ण मानवता नष्ट हो सकती है. इनकी खोज की महत्वप का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी पीएचडी थीसिस को लाखों बार देखा गया है.

 शरीर से जुड़े तमाम मुश्किलों के बीच उन्होंने काफी हिम्मत नहीं हारी. अपनी सफलता का राज बताते हुए उन्होंने एक बार कहा था कि उनकी बीमारी ने उन्हें वैज्ञानिक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका अदा की है. बीमारी से पहले वे अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे लेकिन बीमारी के दौरान उन्हें लगने लगा कि वे लंबे समय तक जिंदा नहीं रहेंगे तो उन्होंने अपना सारा ध्याना रिसर्च पर लगा दिया.

उन्होंने एक बार कहा था- पिछले 49 सालों से मैं मरने का अनुमान लगा रहा हूं. मैं मौत से डरता नहीं हूं. मुझे मरने की कोई जल्दी नहीं है. उससे पहले मुझे बहुत सारे काम करने हैं.

स्टीफन किसी के भी हौंसले को उड़ान देने का जज्बा रखते थे. बच्चों को स्टीफन ने टिप्स देते हुए कहा था – पहली बात तो यह है कि हमेशा सितारों की ओर देखो न कि अपने पैरों की ओर. दूसरी बात कि कभी भी काम करना नहीं छोड़ो, कोई काम आपको जीने का एक मकसद देता है. बिना काम के जिंदगी खाली लगने लगती है. तीसरी बात यह कि अगर आप खुशकिस्मत हुए और जिंदगी में आपको आपका प्यार मिल गया तो कभी भी इसे अपनी जिंदगी से बाहर मत फेंकना.

मायावती ने नरेश अग्रवाल को लगाई लताड़

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नई दिल्ली। सपा से भाजपा में गए नरेश अग्रवाल का बड़बोलापन उनके लिए मुसीबत बन गया है. एक के बाद एक कई महिला नेताओं ने नरेश अग्रवाल द्वारा जया बच्चन को लेकर दिए बयान की निंदा की है. इसी क्रम में बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने नरेश अग्रवाल को जमकर लताड़ लगाई है. मायावती द्वारा जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि भाजपा ज्वाइन करने वाले नरेश अग्रवाल ने सांसद और अभिनेत्री जया बच्चन पर टिप्पणी कर के महिला जगत का अपमान किया है. अपने इस महिला विरोधी बयान पर गलती मानते हुए अग्रवाल को देश से माफी मांगनी चाहिए.

 भाजपा को निशाने पर लेते हुए बसपा प्रमुख ने कहा कि भाजपा के जिम्मेदार नेताओं के साथ पत्रकार वार्ता में महिला विरोधी टिप्पणी महिलाओं और देश को शर्मिंदा करने वाली है. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इसे गंभीरता से लेना चाहिए था. बसपा प्रमुख ने कहा है कि “जया बच्चन एक सम्मानित नाम है और फिल्म जगत में उनके परिवार का भारी योगदान है. नरेश अग्रवाल की टिप्पणी की बसपा कड़े शब्दों में भर्त्सना करती है और देखेगी कि देश की सत्ताधारी पार्टी नरेश के असंसदीय विचारों को किस रूप में लेगी.”

इससे पहले अग्रवाल की टिप्पणी पर भाजपा नेता औऱ विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी नाराजगी जताते हुए ट्विट किया था. तो हरसिमरत कौर बादल ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा था कि “एक महिला के खिलाफ जिस तरह का बयान दिया गया है, वह व्यक्ति के पालन-पोषण और सोच पर सवाल खड़ा करता है.”

मोहम्मद शमी के पक्ष में आए धोनी

कोलकात्ता। मोहम्मद शमी के क्रिकेट करियर पर लगे ग्रहण के बीच भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान एम.एस धोनी शमी के पक्ष में खड़े हो गए हैं. धोनी ने शमी का समर्थन करते हुए उन्हें एक बेहतरीन इंसान बताया. धोनी ने कहा है कि मोहम्मद शमी एक बेहतरीन इंसान हैं और वो ऐसे शख्स नहीं हैं जो अपनी पत्नी और अपने देश को धोखा दें. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक धोनी ने कहा कि ‘वह इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं बोलना चाहते, क्योंकि यह एक पारिवारिक मसला है और शमी की निजी जिंदगी से जुड़ा है. जहां तक मैं जानता हूं, शमी एक बेहतरीन इंसान हैं.

इधर दूसरी ओर कोलकाता में शमी की पत्नी हसीन जहां ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान मीडियाकर्मियों के साथ बदसलूकी की. कोलकाता में सेंट. स्टेफन स्कूल पहुंची हसीन जहां के पास जब मीडियाकर्मी पहुंचे तो वह उनपर चिल्ला उठीं. इसी दौरान उन्होंने एक वीडियो कैमरा तोड़ दिया. कैमरा तोड़ने के बाद हसीन जहां अपनी एसयूवी में बैठकर वहां से चली गई.

गौरतलब है कि हसीन जहां ने अपनी पति मोहम्मद शमी पर कई तरह के आरोप लगाए थे. हसीन जहां ने इस मामले में पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई थी. मंगलवार को ही हसीन जहां को अपना बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज करवाना है. दूसरी तरफ शमी लगातार अपने बचाव में बयान दे रहे हैं. मोहम्मद शमी ने बयान जारी कर कहा था कि वह अपनी पत्नी और उनके परिवार से इस मसले पर बात करना चाहते हैं.

हसीन जहां ने मो. शमी के खिलाफ कोलकाता के लाल बाजार पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी. पुलिस ने शमी और उनके परिवार के चार सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की धारा 498A, 323, 307, 376, 506, 328 और 34 के तहत केस दर्ज किया है. इसमें घरेलू हिंसा के आरोप में भी केस दर्ज है. जिन मामलों में शमी पर केस दर्ज किया गया है, वह सभी गैर जमानती धाराएं हैं.

सामंती नेताओं के बेहूदे बोल

Senior Samajwadi Party leader and Rajya Sabha MP Naresh Agarwal join BJP

नृत्यांगना शब्द सभ्य समाज का आज एक सम्मानित शब्द है. पर विकृत-सामंती दिमागों ने हिंदी क्षेत्र में इसके लिए एक स्थानीय शब्द गढ़ा: ‘नचनिया’! कई बार शब्द अपना अर्थ और बोध बदलते हैं पर इस शब्द के साथ आज भी अपमान, हिकारत और ओछेपन का बोध जुड़ा हुआ है.

यूपी के ज्यादातर हिस्सों में सपा, भाजपा, कांग्रेस या इसी तरह की ज्यादातर पार्टियों में सामंती ऐंठन से भरे लोगों की भरमार है. ऐसे असभ्य और असंस्कृत लोग किसी अभिनेत्री या महिला नाट्य कर्मी के लिए अक्सर ‘नचनिया-गवनिया’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं. सिर्फ सियासत में ही नहीं, हमारे आम समाज में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है!

मुझे अच्छी तरह याद है, मेरे एक वरिष्ठ साथी की बेहद प्रतिभाशाली पुत्री जब नाटयकर्म में सक्रिय हुई तो कई ‘पढ़े-लिखे’ और अपने को ‘सभ्य समाज का हिस्सा’ समझने वाले उनके कुछ पड़ोसी और कुछेक मित्र भी कहते थे कि अमुक जी, अपनी बेटी को ‘नचनिया-गवनिया’ बनवा रहे हैं! ऐसी स्थिति आमतौर पर बंगाल, केरल, कर्नाटक या महाराष्ट्र जैसे अपेक्षाकृत सांस्कृतिक रूप से समुन्नत समाजों, खासकर उनके शहरी क्षेत्र में नहीं मिलेगी. इसलिए आज अगर सपाई से भाजपाई बना कोई कथित बड़ा नेता एक जमाने की यशस्वी अभिनेत्री को ‘नचनिया’ कहकर उनका अपमान करने की धृष्टता करता है तो इसके लिए हिंदी क्षेत्र के बड़े हिस्से की सामाजिक- सांस्कृतिक बनावट और राजनीति में सामंती दबदबे का सिलसिला भी जिम्मेदार है!

यह संयोग या अपवाद नहीं कि संस्कृति और राष्ट्रवाद के स्वघोषित ठेकेदारों को अपसंस्कृति और असभ्यता के ये प्रतीक-चरित्र पसंद आते हैं! कुछ समय पहले एक बड़ी महिला राजनीतिज्ञ को अपशब्द कहने वाले एक पार्टी पदाधिकारी की पत्नी को मंत्री बनाकर पुरस्कृत किया गया था. ऐसे अनेक उदाहरण मिल जायेंगे. और यह किसी एक पार्टी या सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं हैं. जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी अपसंस्कृति का फैलाव कुछ कम नहीं है.

ऐसी मानसिकता, सोच, संस्कृति और राजनीति के खिलाफ यूपी जैसे प्रदेशों में बहुत कम संघर्ष हुआ है. मंदिर-मस्जिद, लव-जेहाद, गौ-गुंडई से फुर्सत ही कहां है! इसी का नतीजा है कि असभ्य आचरण और अपशब्दों के लिए विवादास्पद हो चुके चरित्रों को भी आज कोई बड़ी पार्टी बड़ी बेशर्मी से माला पहनाकर अपने साथ जोड़ लेती है!

  • उर्मिलेश लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. 

क्रिकेटर शमी के जिले के इस पत्रकार ने बताई मामले की पूरी हकीकत

अपने जिले के स्टेडियम में क्रिकेटर मोहम्मद शमी

क्रिकेटर शमी के जिले अमरोहा से हूँ और जहाँ तक मैं जानता हूँ उन्होंने परिवार की मर्जी के बिना हसीन जहां से शादी की थी. ये ठीक उस तरह से था कि बेटा इतने बड़े मुकाम पर पहुँच गया तो उसका लिया हर फैसला सही होगा.

शमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के सहसपुर अलीनगर जैसे छोटे गाँव से निकले, फिर मुरादाबाद पहुँचे वहाँ घण्टो बदरुद्दीन सर के अंडर में पसीना बहाते जी तोड़ मेहनत करते.. मुरादाबाद मंडल के आस पास के क्षेत्र का कोई कोई स्टेडियम, गांव, कस्बे का मैदान उनसे शायद ही अनछुआ रहा हो. किस्मत आगे ले गयी कोलकत्ता पहुँचे, वहाँ से रणजी फिर भारतीय क्रिकेट टीम का सफर.

फिर हमारे जिले के अखबार के लोकल संस्करण में शमी की गांव वाली पिच से लेकर खेत खलिहान और बचपन तक की तस्वीरेँ अखबार में छप गयीं थी. जिले के घर घर में शमी की चर्चाएं थी. पहले दिन टीवी पर आते ही आतिशबाजियां शुरू हुई.. मुझे याद है वो दिन जब वो इंडियन टीम के दौरे से वापस गांव आये तो मीडिया ने उनके ऐसे देसी अंदाज को कैप्चर किया जैसे उनके घर के साधारण से बाथरूम से तोलिया लपेटकर नहाकर निकलने वाली तस्वीर.. हम सब बड़े गौर से उस खबर को पढ़ रहे थे क्योंकि ये बन्दा जमीनी था मिट्टी से जुड़ा.. जो अपने जैसा लगा.

उसके 3 साल बाद हमारे कॉलेज तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद में यूपी vs मध्यप्रदेश का रणजी मैच हुआ तब मैच के आखिरी दिन शाम को अचानक से शमी को देखकर सब चौंक गए. उस वक़्त शमी भारतीय क्रिकेट टीम की ओर से खेल रहे पर ऑफ सेशन में अपने घरवालों से मिलने गांव आए थे जिसमें उन्होंने रणजी खिलाड़ियों से मिलने का भी सोचा तो इस तरह उनकी अचानक एंट्री ने क्राउड में भी गर्मी पैदा कर दी थी. पर शमी की सिम्पलिटी इतनी थी की शमी साधारण सी पेंट, टी-शर्ट और 100 रुपए वाले रिलेक्सो के चप्पल में आ गए थे. ये उस दौर में था जब ब्रांड शमी के आगे पीछे घूमते.. पर वे ऐसे आए जैसे घर से कुछ दूर के कॉलेज में कोई यूँही घूमने निकल आया हो.

फिर मुझे वो दौर भी याद है जब उनकी बीवी को ट्रोलर ने घेरा और भद्दे-भद्दे कमेंट किये तब शमी खुलकर सामने आए और अपनी पत्नी के पक्ष में ऐसी तस्वीर पोस्ट की जिसके बाद सब के मुंह बंद हो गए. शमी की बीवी को धोनी की बीवी, रोहित की बीवी व अन्य क्रिकेटरों की बीवी के साथ स्टेडियम में समान वरीयता के साथ टीवी पर अक्सर देखा जा चुका है. वे अपनी बीवी और बिटियां के साथ तस्वीरेँ पोस्ट करते रहते ही थे.

सुनने में यह भी आया कि हसीन की वजह से शमी ने कोलकत्ता में लिए घर में रहना शुरू कर दिया था. शमी के पारिवारिक गाँव के लोग, उनका कल्चर उनकी मॉडल बीवी को रास नहीं आता था. जिसके कारण वो गांव की जगह या तो मुरादाबाद रहते या फिर कोलकत्ता.. कुल मिलाकर महान बेटा परिवार से दूर होता गया.

1 वर्ष से ज्यादा वक्त बीत गया जब उनके पिताजी की तबियत बहुत बिगड़ी और वो 60 की उम्र के आस पास चल बसे. न जाने यह सदमा बेटे से दूर रहने का था या ऊपर वाले को उनको बुलाना था.. पर कहीं न कहीं हसीन का रोल हर जगह था.

शमी के छोटे भाई लोकल में हमारे दोस्तों के साथ क्रिकेट खेले हैं. हमारे कस्बें में कई बार उनका आना जाना रहता.. जब शमी भाई के बारे में पूछते तो सहम जाते और बस इतना बोलते की शमी भाई मेरे लिए खर्च भिजवा देते हैं.. बाकी वो बहुत व्यस्त रहते समय कम मिल पाता हमारे लिए! जो दबी हुई टीस थी उनके भाई ने कभी हमारे सामने नहीं खोली. क्या एक महान खिलाड़ी का टेलेंटेड भाई लोकल में क्रिकेट खेलने लायक था? बंगाल से लेकर मुम्बई, बैंगलोर, चंडीगढ़ कोई अकादमी शमी के लिए ज्यादा न थी. पर इन सब जगह इन सब दूरियों में हसीन जहां का रोल पूरा था.

…और आज शमी को क्या मिला, उस बीवी ने सरेआम इज्जत उतारने में एक बार ना सोचा कि वो क्या करने जा रही है और शमी के करियर उनके स्टारडम सबको धूल में मिलाने से पहले उसने एक बार नहीं सोचा की इस बात को शमी के परिवार और खुद के परिवार वालो को पहले बताना चाहिए. शमी से खुद हर बात, चैट, पिक्चर को लेकर खुलकर आमने-सामने क्लियर बात करनी चाहिए थी. कुछ तो सब्र रखती.. तब मीडिया में हल्ला मचातीं.

4 दिन पहले साथ मे होली खेली, इंडिया टीवी को इंटरव्यू देते हुए अपने पति की तारीफें करते हुए मुँह नहीं थक रहा था.. फिर ऐसा न जाने क्या हो गया उन चार दिनों में जो शमी को दुनिया के सामने विलेन बना दिया. शमी लाख बुरे सही, ये सारी गलतियां हो सकती हैं उनकी पर एक बार शमी से इस मामले में बात तो करती..पहले अपने घर वालों, रिश्तेदारों से तो बात करती इस बारे में. उसने शमी की इज्जत उतारने में कोई कमी नहीं छोड़ी, उससे जितना हो रहा है वो कर रही है.

शमी अपनी गलती पर पछतावा भी कर रहा होगा और रो भी रहा होगा.. पर हसीन की इतनी बेरुखी जो शमी के सुनहरे क्रिकेट करियर को बर्बाद कर गयी, ये नासूर सा दर्द है.

हसीन ने शमी के बड़े भाई पर बलात्कार का आरोप, घर वालों पर नींद की गोली देकर मार देने का आरोप और न जाने कितने खतरनाक आरोप शमी पर लगा दिए जिसमें शमी के घर के 4 सदस्यों जिनमें उनकी माँ तक हैं उनके नाम तक की रिपोर्ट दर्ज कराई गई है जिसके जवाब में बोली कि पिछले 3 साल से मैं यह सब सह रही थी. वो औरत यहाँ भी नहीं रुकी उसने शमी पर देश से गद्दारी करने, फिक्सिंग करने जैसे बेबुनियाद आरोप तक लगा दिए.. अपने गुस्से में नीचता की हद पार कर दी.

इस देश मे औरत जो बोले वही सच है बाकी सब बेबुनियाद. वैसे इस देश में रेप, उत्पीड़न, दहेज, मारपीट जैसे आरोपों का दुरुपयोग कोई नया नहीं है… हसीन जहाँ भी जमकर फायदा उठा रही है शायद उस भड़ास को निकाल रही जो शादी होने के बाद उसे मॉडलिंग की गलियों तक न ले जा पायी, जहाँ शमी ऊंचाइयों के आसमान छू रहे थे तो ये घर, बच्ची और शमी को सम्हाल रही थी जो इसे रास न आया. पहले पति और अपनी 2 लड़कियों को 2010 में छोड़ा. अब कुछ दिन बाद दूसरे पति शमी की इज्जत को भी नीलाम करके 50 करोड़ का तलाक फिक्स करके एक्टिंग, मॉडलिंग में चली जायेगी. कुल मिलाकर हसीन जहां जीत गयी. शमी हार गया.

मुझे पता था वो भटक कर सहसपुर गांव ही आएगा माँ के आँचल में रोने को… हुआ भी वही. घटना के दो दिन बाद शमी अपने गाँव वाले घर था जिसे भूलने लग गए थे उस हसीन के कारण… पर माँ तो माँ होती और बीवी बीवी. पर देखा उन बड़े-बड़े सुपर स्टार क्रिकेटरों का जलवा भी जो शमी के पक्ष में 2 लफ्ज बोलने के सिवाय सिर्फ अपने सलेक्शन को समेटते रहे और BCCI तो बहुत ही गजब.. आरोप सिद्ध होने से पहले टॉप के बॉलर के टीम से सम्बंध ही खत्म कर दिए. खैर शमी तुम हमारे देश भारत, हमारे जिले अमरोहा के सितारे थे, हो और रहोगे.

  • अंकुर सेट्टी

आदिवासी साहित्यकार फादर पीटर एक्का का निधन

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फादर पीटर एक्का (फाइल फोटो)

नई दिल्ली। फादर पीटर पॉल एक्का का इस तरह अचानक चले जाना आदिवासी साहित्य के लिए एक बड़ी क्षति है. 12 मार्च को सुबह करीब 10 बजे के आसपास गौहाटी से रांची आते हुए रास्ते में निधन हो गया. आप इंसानियत, साफगोई और सरलता की मिसाल थे. उन्होंने ‘जंगल के गीत’, ‘पलाश के फूल’, ‘सोन पहाड़ी’, और ‘मौन घाटी’ जैसे उपन्यास तथा ‘खुला आसमान बंद दिशाएं’, ‘राजकुमारों के देश में’, ‘परती जमीन’ और ‘क्षितिज की तलाश में’ जैसे कहानी संकलन लिखा. ये सारी रचनाएं हिन्दी आदिवासी साहित्य की समृद्ध धरोहर हैं.

फादर एक्का लंबे समय तक संत जेवियर कॉलेज, रांची के वाईस प्रिंसिपल रहे तथा वर्तमान में संत जेवियर कॉलेज, गुवाहाटी के वाइस प्रिंसिपल थे. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के एम.ए.-हिंदी (पत्राचार) की पाठ्यक्रम समिति में सदस्य होने के चलते मैंने फादर के उपन्यास ‘जंगल के गीत’ को कोर्स में शामिल करने का प्रस्ताव दिया, जिसे पाठ्यक्रम संयोजक डॉ पुरंदर दास जी ने तुरंत स्वीकार कर लिया. पाठ्यक्रम के सिलसिले में पुरंदर जी की जब भी पीटर साहब से बात हुई, उन्होंने काफी उत्साह और विनम्रता के साथ सहयोग किया. ऐसे शानदार लेखक और उम्दा इंसान के इस तरह चले जाने का सचमुच बहुत दुःख है. आपको भावभीनी जोहार…! जय भीम… !

  • सुनील कुमार ‘सुमन’ के फेसबुक वॉल से

एक मंच पर आए अम्बेडकरी साहित्य और पत्रकारिता के लोग

इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में ईश कुमार गंगानिया की पुस्तक ‘अम्बेडकर एक समसामयिक विमर्श’ का विमोचन हुआ

नई दिल्ली। जून 2012 से निकलने वाली मासिक पत्रिका दलित दस्तक ने अपनी स्थापना के बाद 10 मार्च को दिल्ली के इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में एक नई पहल की. दलित दस्तक ने पहली बार दलित साहित्यकारों को पत्रिका से जोड़ने की दिशा में कदम उठाते हुए एक पुस्तक पर परिचर्चा का कार्यक्रम आयोजित किया. इस दौरान ‘अम्बेडकरवाद एक समसामयिक विमर्श’ नाम की पुस्तक का लोकार्पण हुआ, जिसमें साहित्य और पत्रकारिता जगत के अलावा लेखक और बुद्धीजीवी मौजूद थे.

पुस्तक के लेखक जाने-माने साहित्यकार ईश कुमार गंगानिया हैं, जिनकी अब तक डेढ़ दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. लोकार्पण समारोह में प्रमुख लोगों में वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम, स्तंभ लेखक और जेएनयू के शिक्षक प्रो. विवेक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, आलोचक सूरज बड़त्या, तेजपाल सिंह ‘तेज’ और उर्मिला हरित मौजूद थे. इस दौरान ‘दलित दस्तक’ के संपादक अशोक दास ने इस पहल के बारे में के लिए प्रेरित करने के लिए पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य प्रो. विवेक कुमार का धन्यवाद किया.

पुस्तक में लेखक ईश कुमार गंगानिया ने वरिष्ठ साहित्यकार रहे डॉ. तेज सिंह के माध्यम से अम्बेडकर की विचारभूमि से मार्क्सवाद और ब्राह्मणवाद की आलोचना के विषयों का बखूबी विश्लेषण किया है. लोकार्पण समारोह में सभी मंचासीन अतिथियों ने इस पुस्तक के बारे में अपनी राय रखी और इसे एक बेहतर विमर्श का दस्तावेज कहा.

कार्यक्रम के बाद दलित दस्तक ने तय किया कि आने वाले दिनों में भी अम्बेडकरी साहित्य लिखने वाले साहित्यकारों से जुड़ाव के लिए इस तरह के कार्यक्रम भविष्य में भी आयोजित किए जाएंगे. कार्यक्रम को वरिष्ठ साहित्यकार जयप्रकाश कर्दम, स्तंभ लेखक और जेएनयू के शिक्षक प्रो. विवेक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, आलोचक सूरज बड़त्या, तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने संबोधित किया. डॉ. सिद्धार्थ ने कार्यक्रम का संचालन किया.

हरियाणा पुलिस की तानाशाही और दमन के खिलाफ उठती आवाजें

गांव बालू में दलित RTI कार्यकर्ता संजीव को हरियाणा पुलिस इनकाउंटर करना चाहती हैं या झूठे मुकद्दमों में जेल में डालना चाहती है. कल हुई बालू की घटना से ये साफ जाहिर होता दिख रहा है. इससे पहले भी बालू गांव के ही दलित RTI कार्यकर्ता शिव कुमार बाबड़ को हरियाणा पुलिस राम रहीम के कारण हुए दंगो में आरोपी बना कर देश द्रोह में जेल में डाल चुकी हैं, जबकि शिव कुमार बाबड़ राम रहीम के खिलाफ ही रहा है.नपुलिस की क्या दुश्मनी है जो बालू गांव के दलितों का दमन कर रही है.

संजीव और उसके साथी सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो लंबे समय से दलितों, मजदूरों, किसानों, महिलाओं के लिए आवाज बुलंद करते रहे हैं. इन्होंने समय-समय पर सरकार और प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाई है. अबकी बार जब पंचायत चुनाव हुए तो हरियाणा सरकार ने सरपंच पद के लिए 10 वीं पास होने की योग्यता अनिवार्य कर दी. गांव में जो सरपंच निर्वाचित हुआ, उसने जो 10वीं पास का सर्टिफिकेट चुनाव आयोग को सबमिट करवाया वो सर्टिफिकेट जिस शिक्षा बोर्ड से बनवाया गया था, वो शिक्षा बोर्ड चुनाव आयोग द्वारा वैध शिक्षा बोर्ड की लिस्ट में नही था; जो कानूनी जुर्म है. संजीव और उसके साथियों ने इस जुर्म के खिलाफ आवाज उठाई. सरपंच जिसने चुनाव आयोग को ग़ुमराह किया और झूठे कागजों के दम पर गांव का मुखिया बन बैठा. इस फर्जीवाड़े के खिलाफ आवाज उठाकर संजीव और उसके साथियों ने भारत सरकार की मदद की, संविधान कि मदद की. इस मदद के लिए होना तो ये चाहिए था कि हरियाणा सरकार संजीव और उसके साथियों को सम्मानित करती और पुरस्कार देती व सरपंच को बर्खास्त करके जेल में डाल देती. लेकिन हरियाणा सरकार ने इसके विपरीत कार्य किया. हरियाणा सरकार सरपंच के पक्ष में खड़ी है और संजीव की जान लेने पर तुली है.

गांव में जाट जाति बहुमत में है और सरपंच इसी  जाति से आता है. सरपंच ने सैंकड़ों लोगों के नेतृत्व में 1 मई 2018 को संजीव व उसके साथियों पर उनके घर में घुस कर जानलेवा हमला किया. पूरी दलित बस्ती में तोड़फोड़ की, महिलाओं, बुजर्गों से मारपीट की गई और जातिसूचक गालियां दी गयी. इस हमले में संजीव की जान तो बच गयी लेकिन संजीव का हाथ तोड़ दिया गया. जब इस मामले की पुलिस में शिकायत की गई तो पुलिस जिसका चरित्र दलित, मजदूर, महियाल विरोधी रहा है अपने चरित्र के अनुसार पुलिस सरपंच को गिरफ्तार करने की बजाए उसके पक्ष में खड़ी मिली. सरपंच और सरकार की इस मिली भगत के खिलाफ लड़ाई जारी रही. इसी दौरान गुरमीत राम रहीम को जेल के बाद पूरे हरियाणा में डेरा समर्थकों द्वारा विरोध की घटनाएं हुई. जिसमें हिंसा की भी घटनाएं हुई. हरियाणा पुलिस ने इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के आरोप में शिव कुमार बाबड़ जो संजीव का ही साथी और दलित RTI एक्टिविस्ट है को देशद्रोह का आरोप लगाते हुए जेल में डाल दिया. शिव कुमार बाबड़ का इन विरोध प्रदर्शनों से कोई लेना-देना नहीं था और वो गुरमीत राम रहीम के खिलाफ आवाज उठाने वालों में रहा था. लेकिन पुलिस जो “रस्सी को सांप बना दे और साबित कर दे” के लिए मशहूर रही है उसने इस मामले में भी यही किया.

शिव कुमार जिसने भारत के संविधान को तोड़ने वाले सरपंच के खिलाफ आवाज उठाई, आज जेल में है. इस दौरान कितनी ही बार पुलिस द्वारा इन साथियों को भैस चोरी के मुक़दमे लगाने के नाम पर परेशान किया गया. इतना दमन होने के बावजूद भी बालू गांव के साथी लड़ाई को जारी रखे हुए हैं.

 जो घटना बालू गांव में घटित हुई ये भी इसी सत्ता के दमन का हिस्सा है. संजीव की दलित बस्ती में एक गाड़ी आकर रुकती है, जो सीधा संजीव के घर पर जाकर संजीव से मारपीट करती है उसके बाद उसको घसीटते हुए गाड़ी में डाल देती है. ये नजारा देख कर बस्ती के आदमी और महिलाएं भाग कर गाड़ी के पास आते हैं. संजीव का अपरहण करने वालों से वो पूछते हैं कि आप कौन हो. इस प्रकार से संजीव को उठा कर कहां ले जा रहे हो, लेकिन अपरहण करने वाले जो जींद CIA-2 से 3 ASI ओर 1 कांस्टेबल थे और वर्दी भी नहीं पहने हुए थे, न उनके साथ गांव का चौकीदार था, न गांव की पंचायत का सदस्य था और न ही उनके पास संजीव के खिलाफ कोई गिरफ्तारी वारंट था. बस्ती के लोगों द्वारा उनसे सवाल पूछने पर वो भड़क गए और लोगों को गालियां देने लग गए. जब इस व्यवहार का गांव के लोगों ने विरोध किया तो इन्होंने मारपीट शुरू कर दी व हवाई फायर भी किया. गांव के लोगों को अब भी मालूम नहीं था कि ये पुलिस कर्मचारी हैं. इनकी इस गुंडागर्दी के खिलाफ गांव वालों ने भी जवाब में इनके साथ मारपीट की.

हमको पूरी आंशका है कि ये अवैध तरीके से संजीव को उठाकर मारने की साजिश थी, जो गांव वालों की जागरूकता के कारण फेल हो गयी. हरियाणा पुलिस अब निर्दोष गांव वालों पर झूठे मुकद्दमे दर्ज कर रही है. वैसे हरियाणा पुलिस का चरित्र रहा है रुपये लेकर या राजनीति के दबाव में काम करने का, रेहान international स्कूल, गुड़गांव का मामला तो सबके सामने है. किस प्रकार पुलिस ने एक परिचालक को मर्डर के झूठे केस में फंसाया था. सबूतों को मिटाया. ये ही पुलिस का चरित्र है.

हरियाणा जो दलित उत्पीड़न के लिए मशहूर रहा है. यहाँ हर दिन दलित उत्पीड़न और महिला उत्पीड़न की घटनाएं सामने आती रहती हैं. इन घटनाओं के खिलाफ जब हरियाणा के दलित और प्रगतिशील आवाम आवाज उठाता है तो हरियाणा सरकार उत्पीड़न करने वालों पर कार्यवाही करने की बजाए, उत्पीड़न करने वालों के पक्ष में और उत्पीड़ित हुए लोगों के खिलाफ खड़ी मिलती है. इससे पहले भी दलित एक्टिविस्ट और वकील रजत कल्सन पर भी पुलिस झूठे मुकद्दमे दर्ज कर चुकी है. भाटला दलित उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने वाले अजय भाटला को भी अपरहण के झूठे मुकद्दमे में फंसा चुकी है. देश व हरियाणा की सत्ता और पुलिस के इस दलित, महिला विरोधी रैवये के खिलाफ व रजत कल्सन व सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं की सुरक्षा पर सयुंक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेम्बली चिन्ता जाहिर कर चुकी है. हम भी प्रगतिशील आवाम होने के नाते हरियाणा व देश के आवाम से अपील करते है कि सत्ता और पुलिस के इस दलित विरोधी रुख का विरोध करो. बालू गांव के लोगों के पक्ष में आवाज बुलंद करो. UDay Che

मुंबई पहुंचे 50 हजार किसान, लाल हुआ आजाद मैदान

मुंबई। बिना किसी शर्त के ऋणमाफी की मांग करते हुए महाराष्ट्र के किसान सोमवार को सुबह ही दक्षिणी मुंबई के आजाद मैदान में जमा हो गए हैं. पिछले छह दिन से तपती धूप में 180किलोमीटर की यात्रा कर ये किसान मुंबई के आजाद मैदान पहुंचे. किसान विधानसभा परिसर को घेरने वाले हैं. ऋणमाफी के अलावा किसान, आदिवासी किसानों को वनभूमि हस्तांतरण करने की भी मांग कर रहे हैं. इनके हाथों में लाल झंडा होने से मुंबई के कई इलाके लाल नजर आए.

किसानों के इस प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे सीपीएम से संबद्ध ऑल इंडिया किसान सभा ने बताया कि वह उस पर विचार करेंगे कि सरकार को क्या पेशकश करना है. सीपीएम नेता अशोक धावले ने बताया कि 50,000 किसान इस प्रदर्शन में शामिल हुए हैं. किसान अपनी रैली सुबह 11 बजे शुरू करेंगे ताकि 10 वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्रों को कोई परेशानी न हो. इस दौरानठाणे जिले के आदिवासी किसान भी नासिक जिले से आए किसानों के इस विरोध प्रदर्शन में शिरकत की.

इस बीच किसानों के मुंबई पहुंचने पर मुंबई के डब्बावाले भी आंदोलनकारी किसानों का समर्थन कर रहे हैं. स्थानीय लोगों के साथ मिलकर ये डब्बावाले किसानों को खाना-पानी दे रहे हैं. दादर और कोलाबाड के बीच डब्बावाले खाना और पानी जुटाकर किसानों में बांट रहे हैं. दूसरी ओर किसान प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि किसानों की समस्याओं को हल करने की दिशा में सरकार काम कर रही है. मोर्चे के पहले दिन से सरकार किसानों से बात कर रही है. सरकार के एक मंत्री गिरीश महाजन उनसे इस मुद्दे पर लगातार बातचीत कर रहे हैं.

राहुल गांधी ने राज्यसभा के टिकट में सबको चौंकाया

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नई दिल्ली। राज्यसभा के चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने 9 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. इस सूची में कई नाम चौंकाने वाले हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिन लोगों को राज्यसभा का टिकट थमाया है, उनमें उनमें प्रोफेशनल, पत्रकार, वकील, पिछड़े वर्ग, दलित कवि, ब्राह्मण, मुसलमान और पार्टी के दो लॉयल कार्यकर्ताओं को टिकट दिया गया है. कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक से जिन 3 नेताओं को टिकट दिया है, उनमें जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष नासिर हुसैन, दलित कवि एल. हनुमंथिया और वोक्कालिगा लीडर जी.सी चंद्रशेखर के नाम फाइनल किए हैं.

गुजरात से कांग्रेस ने नारायण भाई राठवा और महिला उम्मीदवार आमि याग्निक पर दांव लगाया है. नारायण भाई राठवा यूपीए-1 की सरकार में रेल राज्य मंत्री थे, लेकिन 2014 का लोकसभा चुनाव वह हार गए थे. याग्निक मीडिया पैनलिस्ट हैं और पेशे से वकील हैं. झारखंड से पार्टी ने एक बार फिर धीरज साहू पर दांव लगाया है. धीरज साहू इससे पहले भी दो बार राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं. कांग्रेस और जेएमएम का झारखंड में गठबंधन हो गया है और धीरज साहू की जीत में कोई बाधा नहीं है. मध्य प्रदेश से कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग के नेता और पूर्व मंत्री रामजी पटेल को टिकट दिया है. रामजी पटेल काफी वक्त से राजनीति में हाशिए पर चल रहे थे और एक साधारण कार्यकर्ता के तौर पर पार्टी के अंदर काम कर रहे थे महाराष्ट्र से चौंकाने वाला नाम सामने आया है-

कांग्रेस ने महाराष्ट्र से पूर्व मंत्री राजीव शुक्ला का टिकट काटकर वरिष्ठ पत्रकार कुमार केतकर पर दांव लगाया है. कुमार केतकर का नाम इसलिए चौंकाने वाला है क्योंकि सीट के लिए सुशील कुमार शिंदे समेत पार्टी के तमाम सीनियर नेता लाइन में थे. वहीं तेलंगाना से कांग्रेस ने बलराम नायक को टिकट दिया है और इनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है.जबकि पश्चिम बंगाल से कांग्रेस ने मशहूर वकील अभिषेक मनु सिंघवी को टिकट दिया है.

बसपा उपाध्यक्ष आनंद कुमार और राज बब्बर के बीच मीटिंग की खबर!

नई दिल्ली। बसपा द्वारा सपा को यूपी के उपचुनाव में समर्थन देने को लेकर मची हलचल अभी शांत भी नहीं हुई थी कि एक और मुलाकात ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी है. बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और बसपा प्रमुख मायावती के भाई आनंद कुमार और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के बीच मुलाकात की खबर है. इस मुलाकात की खबर के सामने आने के बाद सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है.

यह मुलाकात नोएडा के एक जाने-माने उद्योगपति की पहल पर हुई है. इस मुलाकात को बेहद गोपनीय रखा गया था, लेकिन मामला मीडिया में आ गया. राजनीतिक विश्लेषक इस मुलाकात को काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं. माना जा रहा है कि इस मुलाकात के पीछे 2019 के लोकसभा चुनाव हैं. संभव है कि बसपा आने वाले दिनों में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है. शायद यही वजह है कि उसने सपा को अपना समर्थन उप चुनाव तक ही दिया है.

तो वहीं इस मुलाकात की एक दूसरी वजह उत्तर प्रदेश के राज्यसभा के चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है. इस चुनाव में बसपा को अपने उम्मीदवार भीमराव अम्बेडकर को जिताने के लिए सपा के अलावा कांग्रेस के वोटों की भी जरूरत होगी. माना जा रहा है कि उसी के लिए बसपा उपाध्यक्ष आनंद कुमार और राज बब्बर मिले हों. हालांकि इस मुलाकात का असली मकसद क्या था, यह आने वाला वक्त बताएगा.

 करण

गोरखपुर और फूलपुर में खतरे में भाजपा

उत्तर प्रदेश में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए 11 मार्च को चुनाव हो चुका है. दोनों सीटों पर बीजेपी और सपा के बीच कांटे का मुकाबला है. फूलपुर में 37.40 फीसदी और गोरखपुर में 43 फीसदी लोगों ने मतदान किया. मतदान का यही प्रतिशत भाजपा के लिए अब चिंता का विषय बन गया है. इसके बाद अब दोनों सीटों पर सबकी निगाहे गैर जाटव और गैर यादव वोटो पर हैं. यही वोटर दोनों चुनाव का भविष्य तय करेंगे.

चुनाव प्रचार के दौरान भी सीएम योगी अपनी चुनावी सभाओं में लगातार शहरी मतदाताओं से ज्यादा से ज्यादा वोटिंग करने की अपील करते थे. असल में शहरी मतदाताओं को परंपरागत तौर पर भाजपा का वोटर माना जाता है. लेकिन वोटिंग के बाद साफ है कि शहरी मतदाताओं में वोटिंग को लेकर उत्साह नहीं रहा. गोरखपुर में हुए कुल 43 प्रतिशत वोटिंग मे से गोरखपुर शहर में सबसे कम 37.76 प्रतिशत वोटिंग हुई. जबकि ग्रामीण इलाकों पिपराइच में 52.24 प्रतिशत और सहजनवां में 50 प्रतिशत वोटिंग हुई.

यही हाल फूलपुर का भी है. यहां हुई साढ़े 37 प्रतिशत वोटिंग में सबसे कम उत्साह शहरी वोटरों का ही रहा. इलाहाबाद पश्चिमी में 31 प्रतिशत और इलाहाबाद उत्तर में 21.65 प्रतिशत वोटिंग ही हुई. इस कम वोटिंग ने भाजपा की चिंता को बढ़ा दिया है. वैसे भारतीय जनता पार्टी दोनों सीटों पर अगड़ी जातियों के वोट को लेकर निश्चिंत है. लेकिन बसपा-सपा के साथ के बाद उसकी नजर भी गैर जाटव और गैर यादव वोटरों पर टिकी रही. भाजपा ने सबसे ज्यादा मेहनत इन्हीं दोनों वर्गों के बीच किया है. गोरखपुर में करीब 19 लाख वोटर हैं,जिसमें से आधे से ज्यादा ओबीसी समाज के हैं. दलित वोटों की बात करें तो गोरखपुर और फूलपुर दोनों जगहों पर उनकी उपस्थित प्रभावी है. देखना है ऊंट किस करवट बैठता है.

नारी सशक्तिकरण के दौर में बदलते हुए नारी पुरुष सम्बन्ध

8 मार्च 2018 को देश के सभी महत्वपूर्ण समाचार पत्रों में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर लेख पढ़ने को मिले। इन लेखों में पितृसत्ता, यौनिकता, कुंठा, चेतन-अचेतन, अन्याय, असमानता, हिंसा, असुरक्षा और पीड़ा के स्वर मुखर थे । लेकिन अगर देखा जाय तो नारी सशक्तिकरण के इस दौर में नारी पुरुष संबंधो मने तीजी से बदलाव आया है ?

ढोल ,गंवार, शूद्र, पशु, नारी ये सकल ताड़ना के अधिकारी से give us good women we we’ll have a great nation ” तक नारी ने एक लम्बी वैचारिक यात्रा तय की है .कभी देवी के रूप में वंदनीय तो दासी के रूप में तिरष्कृत ? क्या कभी भी नारी समानता की स्थिति पा सकती है ?

सभ्यता के प्रारंभ से ,तथाकथित ‘सोशल कामनसेंस ”के ज्ञान समाज तक ,सदैव से सभ्यता का यह आधा भाग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है .प्रश्न यह उठता है की क्यों स्त्री के नैसर्गिक व्यक्तित्व का हनन ,हर सभ्यता का नैतिक खेल रहा है .

इस प्रश्न का उत्तर क्या पुरुष के स्त्री की जैविक सीमाओं से मुक्त होने में है,अधिक बलशाली होने में है ,अथवा स्त्री को सम्पत्ति समझना ,एक निम्न प्रजाति का समझाने में है अथवा यह अहम् का प्रश्न है ?वास्तव में यह सदियों से विवाद चलता आ रहा है व् इसकी व्याख्या भिन्न भिन्न से प्रकार से की गयी है . उल्लेखनीय है की सभ्यताओं के स्वर्ण युग व अंध युग की भांति ,स्त्रियों की जीवन में भी इसी प्रकार का समय आता रहा

वैदिक काल में जब नारी- पुरुष समान थे, स्त्रियों के जनेऊ धारण करने से लेकर शिक्षा प्राप्त करने तथा वर चुनने का अधिकार था ,वह वीरंगना ,वह विदुषी,गार्गी ,अपाला ,घोषा ,लोपामुद्रा,स्त्री इतिहास के वे स्वर्णाक्षर है ,जिन्होंने आने वाले अंधयुग में उसकी योग्यता ,क्षमता ,पर प्रश्नचिन्ह नही लगने दिया .

मध्यकाल की परम्पराओं ने ,अनेक धार्मिक मान्यताओं की विकृत व्याख्याओं ने ,स्त्री के जीवन का वह अंधकार युग प्रारंभ किया ,जो 21वीं सदी तक आते आते पूर्णरूपेण समाप्त नही हुआ है .

इस काल में स्त्री जन्म लेने से लेकर पालन पोषण तक,विवाह से लेकर मृत्यु -संस्कार तक पुरुष के अधीन बन गयी है यहाँ वह दौर था जब वह अपनी आन्तरिक पहचान ,व्यक्तित्व निर्माण की शक्ति,एक निजता के भाव से पूर्णत :विहीन थी जिसमें ओज,तेज,बल भरने का प्रयास पुनर्जागरण काल से प्रारम्भ हुआ ,जिसमे स्त्री के अस्तित्व को व्यक्तित्व के रूप में पहचान मिली .

पाश्चात्य जगत की मेरीवुलस्टोन क्राफ्ट ,से साइमन दी बुआ ,दुर्गा बाई से मधुकिश्वर तक अनेक नारीवादी विचारो ने स्त्री दुर्दशा पर ध्यान खींचा व प्रारम्भ हुआ सुधार का युग .

वह सुधार का युग जो नारी सशक्तिकरण पर रुका जिसमें अनेक सामाजिक ,नैतिक ,सांस्कृतिक मूल्य पुनः परिभाषित होने लगे .जिमसे नारी पुरुष परम्परागत समानता पर मंथन प्रारंभ हुआ .एक को “आधार ” और एक को “ आधारित ” मानने पर प्रश्नचिन लगा और उस मंथन से निकली आत्मनिर्भर,शिक्षित,आत्मविश्वास से परिपूर्ण,विश्व विजय को तैयार ,अपनी क्षमताओं को जानने वाली व् उसके सार्थक करने को आतुर नारी.

वह नारी जो ग्लैमर व गरिमा को साथ लेकर चलने को लालायित थी ,वह जिसने पुरुष के साथ अपने सभी सम्बधो के निर्धारक आधारों को पुनर्परिभाषित करना चाहा व समाज को पूर्णत :नवीन समीकरण प्रदान करने की चेष्टा की .

वह बदले समीकरण जो न केवल पारिवारिक स्तर पर ,वरन सामाजिक सांस्कृतिक ,आर्थिक,राजनीतिक,नैतिक ,मनोवैज्ञानिक स्तर पर द्रष्टिगोचर हुए समाज की एक नयी दिशा तय की. और पारिवारिक स्तर पर चिंतन करे तो शसक्तीकरण के बाद ,पुरुष स्त्री सम्बन्ध चाहे वह पुरुष स्त्री सम्बन्ध चाहे वह पति –पत्नी के रूप में हो अथवा माता –पुत्र के रूप में ,एक नए रूप में व्याख्यायित होने लगे है .स्त्री ने न केवल शिक्षित होकर स्वयम को आत्मनिर्भर बनाया है ,बल्कि प्रतिस्पर्धात्मक समाज में पति को आर्थिक सहायता भी दी , इससे वह एक पक्ष में अपने पति के समतुल्य हो गयी ,उसका दासत्व भाव समाप्त हुआ व स्वतंत्र ,चिंतनशील प्राणी के रूप में आविर्भाव .

यह भाव , जिसने स्त्री को समानता की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भुमका निभाई,जिसमें स्त्री पुरुष सम्बन्ध उच्च निम्न के सतह पर मैत्रीपूर्ण होने की ओर अग्रसारित हुए यह वही पहला कदम था जिसमें वह अपने स्वयं को शोषण विमुक्ति की ओर ले गयी. यह वह कदम था जिसने स्त्री की पहचान सर्वप्रथम ‘भार ‘से ‘ भार लेने वाली ”के रूप में परिणति हुई.

विशेष रूप से निम्न वर्ग की स्त्रियाँ जिसने पहली बार स्वतंत्रता और समानता की स्वास ली थी .इसी अर्थ कमाने की योग्यता ने उसे निर्णय निर्माण में सहभागिता दिलाई जिसमें सशक्तीकरण वास्तविक रूप से साकारित हुआ,यही वह प्रथम कदम था जिसने नारी –पुरुष सम्बंधो का पुनार्विवेचन प्रारंभ किया .वह नारी जिस पर पुरुष का अधिपत्य था वर्चस्व था आज समाज में नित नए आयाम गढ़ रही है ,वह डाक्टर बनी ,इंजीनीयर बनी,राजनीतिज्ञ बनी,अध्यापिका बनी,वैज्ञानिक बनी,कला ,खेल,मनोरंजन,के क्षेत्र में उन ऊँचाइयों को छुआ जो केवल पुरुषों के कार्य क्षेत्र थे .

पुरुषो के सभी क्षेत्र में नारी के अतिक्रमण ने उसे परम्परत के साथ आधुनिकता ,के मूल्यों से युक्त किया जिसमें उसने अपने प्रति हो रहे प्रत्येक आवाज के खिलाफ आवाज बुलंद की चाहे वह निशा शर्मा हो ,जो दहेज़ के कारण बारात लौटा देती है,अथवा मुख्तारण माई जो अपने साथ हुए अत्याचार को विश्व के सामने रखने से नहीं हिचकिचाती है ,निःसंकोच यह महिला पुरुष के बदलते सम्बंधो का पहला आगाज था .

महिला सशक्तीकरण के इस रूप ने पुरुष को एक पारम्परिक पिता ,पति और पुत्र की भूमिकाओं में परिवर्तित किया .संविधान में ‘ कलम की नोक ’ने स्त्री को अनेक अधिकार दिए ,अनेक कानून बने जिससे महिला सशक्तिकरण संभव हुआ .पुरुष की शोषक की भूमिका में परिवर्तन हुआ व सहयोगी की भूमिका प्रारंभ हुई .यह मूल्य सर्वप्रथम विकसित हुआ की स्त्री की अपनी योग्यता और भूमिका होती है .पाश्चात्य जगत में ऐसे उदाहरण भी है ,जब स्त्री ने घर के बाहर के कार्य तत्परता से किये व पुरुष ने घर के कार्यों को पूरा किया .

एक पिता के रूप में वह और परिपक्व हुआ जब उसने पुत्री की शिक्षा सुनिश्चित की उसकी योग्यता को पहचान कर दिशा दी, एक पति के रूप में वह और अधिक सह्भागी हुआ जब उसने घर परिवार के पालन में अधिक योगदान दिया वही मित्र के रूप में सफल हुआ जिसने गुणों को पहचान कर उसे आगे बढने की प्रेरणा दी ,इस सफलता का परिणाम ही है समाज के वे स्त्री रत्न ‘जिन्होंने काल के गाल पर हस्ताक्षर किए कि एक महान विचारिका की पक्तियाँ सहज ही स्मरण हो आती है – अन्धकार की छाती पर पदचिन्ह जमायें . चले अमावास तक हम पूनम तक आये , हमने मुस्काते मुस्काते तिमिर पिया था. हमने तम की छाती पर चढ़ नाद किया था , नाग नाथने का इतिहास दोहराया हमने , हमने स्वर्णिम स्याही से उजला प्रष्ठ सजाया हमने .

अमेरिका की राष्ट्रपति की उम्मीदवार रही हिलेरी क्लिंटन हो या भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ,भारत की विदेश मंत्री निरुपमा राव,पहली दलित मुख्यमंत्री मायावती ,अथवा खेल जगत की प्रसिद्ध एथलीट अंजू बाबी जार्ज ,ऐश्वर्या राय या आरबीआई की उपगवर्नर उषा थोराट अथवा किरण मजूमदार शा ,संगीत की एम् एस शुब्बुलक्ष्मी या प्रसिद्ध न्रात्यांगना शोबिता नारायाण ,कल्पना चावला ,सुनीता विलियम्स,पुलिस कमिस्नर कंचन भट्टाचार्य ,यह सूची बहुत लम्बी है ,जिसमें सभी महिलाये अपने परिवार ,पिता ,पति के सहयोग से ,अपनी क्षमताओं को पहचान कर अपने -अपने क्षेत्र की परिचय बनी .

यह सूची जो सुखद एहसास दे रही है ,क्या वास्तव में सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करती है ,क्या वास्तव में महिला शसक्तीकरण के पश्चात महिला -पुरुषो के सम्बन्धो में परिवर्तन हुआ है ? क्या वास्तव यह पंक्ति की “हर सफल पुरुष के पीछे महिला का हाथ होता है ” बदलने का समय आ गया है कि “हर सफल महिला के पीछे भी एक पुरुष का हाथ है ” ? यह सभी प्रश्न ऐसे है जिन पर गहन चिंतन की आवश्यकता है ,सत्य तो यह की स्त्री की आत्मनिर्भरता ने समाज के मूल्यों में आमूलचूल परिवर्तन नहीं किया है .उसका सशक्तिकरण नही हुआ है कि वह परंपरा और आधुनिकता की अद्वितीय सांठ गाँठ ,भ्रूण निर्धारित यंत्र से रक्षा कर सके .पंचायत में वह सरपंच भी बनी परन्तु हस्ताक्षर की शक्ति ने उसे समानता की स्थिति नहीं दी .घर व आफिस के दोहरे दायित्तो का पालन करती रही , ‘रोल कनफ्लिक्ट ” से जूझती इसी सशक्तिकृत नारी की कानून भी रक्षा नही कर सका .

पुरुष की भोगवादी मानसिकता जिसमें एक पिता के अपनी पुत्री के शीलभंग करने के उदाहरण मिलते है .बढती उपभोक्तावादी मानसकिता जिसने उसे “ सेक्स आब्जेक्ट” के रूप में बदल दिया है ,वास्तव में महिला पुरुषो के संबंधो में सार्थक परिवर्तन नही करती .

आज भी स्त्री के भाग्य- विधाता उसके पिता और पति ही है ,जो जाति से बाहर विवाह करने में “आनर – किलिंग” कर देते है वही दहेज़ न लाने के आरोप में पति के द्वारा जलाकर की गयी हत्या ,पत्नी की कमाई किन्तु व्यव का निर्णय पति का, उच्च वर्गीय स्त्री से सौन्दर्य की वस्तु बनने की मांग व निम्नवर्गीय स्त्री से एक मशीन बनाने की मांग जो कभी नहीं थकती ,यह भी विश्व समाज का एक पक्ष है .

वास्तव में आवश्यकता एक सन्तुलन की है,समन्वय की है, एक निर्मल साहचर्य की है ,जो दमित है, शोषित है, पीडित है ,उनके कल्याण की , वहीँ जो सशक्तिकृत है ,समर्थ है, आत्मनिर्णय की स्वतंत्रता से युक्त है उन्हें सही दिशा लेने की .

इक्कीसवी सदी की भागती तीव्र दुनियां ,जिसमें सरकार ,गैर सरकारी संगठन ,सिविल सोसाइटी ,मीडिया सभी का साझा दायित्व है ,कि महिलाओं का आधा भाग जो मुख्यधारा से पीछे छूट गया है ,उसे गुणवत्ता परक शिक्षा दे ,आत्मनिर्भर बनाये जिसमें आरक्षण (पंचायत व् लोकसभा)में सार्थक कदम हो सकता है .वहीँ उन महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाय कि वह वास्तव में सशक्तिकृत होकर समाज को नवीन आयाम दे.

उल्लेखनीय है कि वह समर्थ पक्ष ,वह शिक्षित पक्ष ,वह सकल पक्ष जो विकास की दौड़ में साथ साथ दौड़ रहा है ,जो स्वतंत्रता और स्वछंदता के विवाद में फंसा है जिसने परिवार व विवाह की संस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है ,को-लिविंग, लेस्बियन-गे मैरिज का सूत्रपात किया है वह भी प्रगति की राह पर सतर्कता के साथ अग्रसारित रहे व दिशा विमुख न हो .

वास्तव में यह युद्ध कि श्रेस्ठतम कौन ? कौन विजयी हुआ ? से महत्वपूर्ण है ,हम विजयी हुये , सभ्यता को उन्नति व प्रगति के मार्ग पर ले जाए ,इसके लिए यह अति आवश्यक है की नारी व् पुरुष हठ धर्मिता का त्याग करे ,सहयोगी बने ,मित्रवत बने ,तभी वह सही अर्थों में मानवता को ईश्वर की सर्वश्रेस्ठ रचना कह सकेंगे व सभ्यता को सांस्कृतिक गुणों से परिपोषित ,संवाहित,कर सकेंगे ,इस राष्ट्र को इस विश्व को संयुक्त होकर सुजलाम,सुफलाम व मलयज शीतलम बना सकेंगे .

राजस्थान के दिग्गज आदिवासी नेता भाजपा में शामिल

जयपुर। राजस्थान में करीब 45 विधानसभा सीटों पर अपनी पकड़ रखने वाले आदिवासी नेता किरोड़ीलाल मीणा को पार्टी में शामिल कर लिया है. रविवार 11 मार्च को मीणा ने अपनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी का भाजपा में विलय कर दिया. बदले में भाजपा उन्हें राज्यसभा में भेजेगी. उन्हें मंत्री भी बनाया जा सकता है. उपचुनाव में हार के बाद भाजपा प्रदेश में जीत का फार्मूला तलाश रही थी.

मीणा के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें पार्टी में शामिल करवाने की पहल खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने की तो उन्हें पार्टी ज्वाइन कराने के लिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और बीजेपी के आला नेता जयपुर में पार्टी दफ्तर में मौजूद थे. एक दूसरी बात यह भी है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से छत्तीस का आंकड़ा रखने के बावजूद भाजपा ने उन्हें पार्टी में शामिल किया. वसुंधरा सरकार में ही मंत्री रहते हुए किरोड़ी लाल मीणा ने 10 साल पहले बीजेपी छोड़कर अपनी अलग पार्टी बना ली थी.

किरोड़ी लाल को पार्टी में लाकर मोदी और शाह की जोड़ी ने अपना पुराना फार्मूला कायम रखा है. तमाम प्रदेशों में चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने लगातार दूसरी पार्टी के जनाधार वाले नेताओं को पार्टी में शामिल किया है. राजस्थान उपचुनाव में मिली हार के बाद घबराई भाजपा ने आनन-फानन में मीणा को पार्टी में शामिल करवाने की कोशिश जारी कर दी. इसकी पहल राज्य नेतृत्व से नहीं बल्कि केंद्रीय नेतृत्व ने की थी. पिछले दिनों में मीणा अमित शाह के अलावा राजनाथ सिंह से भी मिल चुके थे.

असल में राजस्थान जीतने के लिए मीणा को भाजपा में लाना भाजपा की मजबूरी बन गई थी. तभी वसुंधरा राजे से घोर मतभेद के बावजूद उन्हें पार्टी में शामिल करवाया गया. राजस्थान में 45 सीटों पर मीणा वोटर किसी को भी चुनाव हराने और जीताने की ताकत रखते हैं. इसमें से करीब 29 विधानसभा क्षेत्रों में मीणा समाज नंबर वन है. पिछली बार मोदी लहर में भी किरोड़ी लाल मीणा की राजपा ने 134 सीटों पर चुनाव लड़कर 4 सीटें जीती थी. किरोड़ी लाल 5 बार विधायक रहे हैं और दो बार सांसद रहे. उन्हें आरएसएस का भी करीबी माना जाता है. राजस्थान में दिसंबर महीने में चुनाव होना है.

वो आदिवासी लड़का, वो आदिवासी लड़की

फ़ोटो में जिस लड़के को आप देख रहे हैं न, वो अनिल मुंडा है. 20-21 साल का. अनिल रांची के लोहरदग्गा का रहने वाला है. मेरे दोस्त का ईंट का भट्ठा है, गांव में, वहीं पर काम करता है. और साथ में जो लड़की है, वो करिश्मा है. अनिल के ही इलाके की है. दोनों आदिवासी हैं. दोनों अब ‘साथ’ रहते हैं.

दोनों के ‘साथ’ रहने को मेरे गॉव के लड़के मजाक में ‘लिव इन’ कहते हैं, कुछ पति पत्नी, तो कुछ कहते हैं कि हमसे अच्छे तो आदिवासी ही हैं, जो प्यार हो जाने पर ‘साथ’ रहना शुरू कर देते है, ज़िन्दगी जीते हैं, माँ-बाप भी बन जाते हैं, पहले शादी की कोई बाध्यता नहीं, जब मन हुआ, तब शादी कर लेते हैं…

इस होली में जब मैं गांव गया था, भट्ठे के कई लेबर दोस्त के घर आये थे होली मनाने, मालिक से त्योहारी लेने…उसी में अनिल-करिश्मा भी थे. सभी नांच-गा रहे थे. दोस्तों ने इशारा करके बताया कि कौन अनिल-करिश्मा के माँ-बाप हैं, कौन सास-ससुर? सभी ने दारू साथ-साथ पी रखी थी, साथ-साथ होली खेलना, एक साथ नाचना-गाना, कोई भेद नहीं.

अगले दिन भट्ठे पर जब अनिल से मिला. ढेर सारी बातें की उसके बारे में, करिश्मा से प्यार के बारे में, उसके गॉव, आदिवासी समाज-संस्कृति के बारे में…लेकिन जब मैंने उससे पूछा कि अगर प्रेमी जोड़ों में ऐसी खटपट हो कि साथ रहना मुश्किल हो जाये, तब क्या करते हैं?

“झगड़ा क्यों होगा?” उसने हंसते हुए मुझसे पूछ लिया. “अगर ऐसा होता है तो क्या करते हैं?” “झगड़ा क्यों होगा, मैंने पसंद किया है…” वो फिर हंसते हुए मेरी तरफ देखने लगा…

खैर, वो मेरी बात पर सोचने को ही तैयार नहीं था. उंसे अपने समाज के स्वाभाविक जीवन से प्यार है…अब आप महिला दिवस के ‘अंतरराष्ट्रीय’ अभिनय पर सोच कर देखिये कि आधुनिक कौन, हम या हमारा आदिवासी समाज? किसको किससे सीखने की ज़रूरत है?

Ajay Yadav

पालि भाषा के लिए दिल्ली की सड़कों पर उतरे बुद्धिस्ट

नई दिल्ली। पालि भाषा को संविधान की 8वीं सूची में शामिल करवाने के लिए बौद्ध भिक्खुओं और बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने आज 9 मार्च को एक शांति मार्च निकाला. इसमें दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों के बौद्ध भिक्खु और उपासकगण शामिल हुए. प्रदर्शनकारियों में इस बात को लेकर रोष था कि भारत की प्राचीन भाषा होने के बावजूद सरकार पालि भाषा की लगातार अनदेखी कर रही है. अम्बेडकर भवन से निकल कर इस मार्च को संसद मार्ग तक जाना था, लेकिन बौद्ध धर्म के दमन को तैयार सरकार ने इसे वहीं पर रोक दिया.

इस शांति मार्च में उपस्थित लोग पालि को 8वीं सूची में शामिल करने के अलावा बुद्ध पूर्णिमा पर राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने और देश भर में पालि संस्थान स्थापित करने की मांग कर रहे थे. ये तमाम लोग पालि भाषा को लेकर भारत सरकार के पक्षपाती रवैये से काफी आहत थे.

असल में सम्राट अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का काफी विस्तार हुआ था. भारत से होता हुआ यह विस्तार श्रीलंका सहित पूरे एशिया में फैल गया. बौद्ध धर्म का महान ग्रंथ त्रिपिटक पालि भाषा में ही है. भारत और विश्व भर में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के धार्मिक आयोजनों के दौरान बौद्ध भिक्खु पालि भाषा में ही सभी धार्मिक क्रियाओं को संपन्न कराते हैं. ऐसे में पालि भाषा का महत्व न सिर्फ भारत के लिए बल्कि विश्व में भारत की साख के लिए भी जरूरी है.

कार्यक्रम के संयोजक भंते चन्द्रकीर्त्ती और अर्चना गौतम ने मांगों के संबंध में शिष्ट मंडल के साथ राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया.

गोरखपुर-फूलपुर चुनाव से पहले मायावती का कार्यकर्ताओं के लिए फरमान

लखनऊ। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव में बहुजन समाज पार्टी सपा के उम्मीदवार को जीताने के लिए पूरा जोर लगा रही है. बसपा प्रमुख मायावती खुद बसपा द्वारा इन दोनों सीटों पर किए जा रहे प्रचार की खबर ले रही हैं. बसपा सुप्रीमो ने पार्टी पदाधिकारियों को दोनों लोकसभा क्षेत्रों में कम से कम 100 नुक्कड़ सभाएं करने कानिर्देश दिया था. गुरुवार को हुई मीटिंग में मायावती ने अपने करीबी राज्यसभा सांसद अशोक सिद्धार्थ और कुछ अन्य बड़े नेताओं को इस कैंपेन पर नजर रखने को कहा.

बीएसपी कार्यकर्ताओं को उतनी ही मेहनत से प्रचार करने के लिए कहा था, जितनी वो अपनी पार्टी के चुनाव लड़ने पर करते हैं. बसपा प्रमुख के इस निर्देश से साफ है कि वह भाजपा को किसी भी हाल में रोकने के लिए गंभीर हैं. फूलपुर चुनाव पर खुद राज्यसभा सांसद अशोक सिद्धार्थ नजर बनाए हुए हैं. सिद्धार्थ इसके लिए लगातार इलाहाबाद में जमें हुए हैं. तो गोरखपुर में घनश्याम सिंह खरवार लगातार बसपा नेताओं के साथ मिलकर पार्टी के वोटों को भाजपा के खिलाफ गोलबंद करने में जुटे रहें.

आखिरी वक्त में बूथ लेवल कार्यकर्ताओं को अपने क्षेत्रों में डोर-टु-डोर कैंपेन चलाने के लिए भी कहा गया है. मायावती ने पार्टी नेताओं से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि पार्टी का कैडर वोट सपा उम्मीदवार के पक्ष में जाए. गोरखपुर और फूलपूर सीटों पर 11 मार्च को वोटिंग होगी और 14 मार्च को नतीजे आएंगे. फूलपुर सीट केशव प्रसाद मौर्य और गोरखपुर सीट योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद खाली हुई थी.

गोरखपुर में सपा-बसपा से डरे योगी, देखिए क्या अपील कर रहे हैं

गोरखपुर।  गोरखपुर में चर्चा है कि सीएम योगी अपने ही गढ़ में डरे हुए हैं. योगी का यह डर उनके भाषणों में साफ दिख रहा है, जिसमें वह खास तौर पर शहर के वोटरों से मतदान प्रतिशत बढ़ाने की अपील कर रहे हैं. योगी कह रहे हैं कि शहर के मतदाता कम से कम साठ फ़ीसदी मतदान सुनिश्चित करें.

जाहिर है कि इस इलाके की राजनीतिक नब्ज को सबसे बेहतर ढंग से पहचानने वाले योगी आदित्यनाथ सपा-बसपा और निषाद पार्टी के काट को ढूंढ़ रहे हैं. इनको मिले पीस पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल जैसी पार्टियों के साथ के चलते गोरखपुर में एक-एक वोट की लड़ाई छिड़ गई है. योगी को इस बात का डर है कि जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में यह गठबंधन कुछ गुल खिला सकता है. इसी की काट के लिए योगी शहरी मतदाताओं से वोट प्रतिशत बढ़ाने की अपील करते फिर रहे हैं.

सपा-बसपा गठबंधन को काटने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ ने खुद कमान संभाल रखी है तो केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला के अलावा प्रदेश के आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों, सभी क्षेत्रीय विधायकों और सांसद एक के बाद एक दौरे कर रहे हैं. बसपा-सपा के वोटों को अपने पाले में खिंचने की कोशिश में भाजपा ने इस इलाके में 20 फरवरी से ही एक दर्जन से ज्यादा दलित और पिछड़े वर्ग के नेताओं को खासतौर पर उतार दिया है. इसमें अनिल राजभर, अनुपमा जायसवाल, दारा सिंह चौहान और जय प्रकाश निषाद जैसे नेता शामिल हैं. इन सबको ऐसे इलाकों में लगातार भेजा गया जहां उनके सजातीय वोटरों की तादाद ज्यादा थी. यहां तक कि सिद्धार्थ नाथ सिंह का भी एक कार्यक्रम चित्रगुप्त मंदिर में कायस्थ समुदाय के बीच करवाया गया है.

जहां तक योगी आदित्यनाथ की बात है तो उन्होंने खुद पिछले एक पखवाड़े में गोरखपुर में चार दौरे किए हैं. योगी ने खुद अपने चुनाव के लिए भी इतने दौरे नहीं किए थे. योगी की छटपटाहट साफ बता रही है कि गोरखपुर को फिर से फतह करना उनके लिए बहुत आसान काम नहीं है.

टीडीपी प्रकरण में शिवसेना का वार, बोली ओवर कॉन्फिडेंट है भाजपा

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के तमाम सहयोगी दल उससे नाखुश हैं. शिवसेना भी उनमें से एक है. शिवसेना समय समय पर अपने बयान के जरिए भाजपा को कठघरे में खड़ा करती रही है. एक बार फिर से टीडीपी के बहाने शिवसेना ने भाजपा पर निशाना साधा है. शिवसेना की नेता मनीषा कायान्दे ने कहा है कि अब भाजपा ओवर कॉन्फिडेंट है. भाजपा के लिए 2019 चुनौतीपूर्ण होगा.

शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत का इस मुद्दे पर कहना है, “शिवसेना को इसकी पहले से ही उम्मीद थी, दूसरी पार्टियां भी इसी तरह एनडीए से बाहर हो जाएंगी. सहयोगी पार्टियों के भाजपा के साथ अच्छे संबंध नहीं रह गए हैं. जैसे-जैसे उनकी शिकायतें बाहर आएंगी, वैसे ही वो एनडीए गठबंधन से बाहर होती जाएंगी.” साल 2019 के लोकसभा चुनावों और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में शिवसेना अकेले चुनाव मैदान में उतरने का एलान कर चुकी है. हालांकि, अभी तक आधिकारिक तौर पर शिवसेना और भाजपा का गठबंधन जारी है, लेकिन जिस तरह से दोनों पार्टियों के रिश्तों में पिछले कुछ दिनों से उतार-चढ़ाव चल रहा है, उससे दोनों पार्टियों का गठबंधन टूटने की आशंका व्यक्त की जा रही है.

करण कुमार