कर्नाटक। भाजपा की मुश्किलों को बढाने वाली एक और खबर सामने आई है. कांग्रेस नेता एमबी पाटिल ने कहा कि उनके विधायक के अलावा भाजपा के छह विधायक हमारे संपर्क में हैं. एमबी पाटिल का यह बयान कर्नाटक राजनीति में खलबली मचा दिया है. इतना ही नहीं कांग्रेस विधायकों के गायब होने की बात कही जा रही है. इन तमाम बातों को देखते हुए कांग्रेस ने भाजपा पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया है. कर्नाटक की राजनीति में कई प्रकार के मोड़ सामने आ रहे हैं. ऐसे में देखा जाए तो बीजेपी की मुश्किल बढ़ती दिख रही है.
बीजेपी के शरण में कांग्रेस विधायक
जबकि सूत्रों द्वारा यह भी जानकारी मिली है कि कांग्रेस ने बेंगलुरू में विधायकों की एक बैठक की जिसमें कि कांग्रेस के 78 में से 66 विधायक ही शामिल हुए. इस बात को लेकर कहा जा रहा है कि गायब विधायक कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी के शरण में चले गए हैं. जबकि कांग्रेस नेता ने इस खबर को फर्जी करार दिया है. उनका कहना है कि हमारी टीम एक साथ है. कांग्रेस के सारे विधायक एकजुट होकर जनादेश का साथ देंगे. मंगलवार को कुमारस्वामी को प्रकाश जावड़ेकर के होटल कमरा से निकलते देखा गया था जिसको लेकर कुमारस्वामी ने साफ तौर पर कह दिया कि वह कांग्रेस-जेडीएस को छोड़कर कहीं नहीं जानें वाले.
बहराइच। दलितों को ना केवल समाज में बल्कि लोकसभा जैसे जगहों पर भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. बीजेपी की दलित महिला सांसद ने कहा कि संसद भवन में दलित सांसद को पूरा समय नहीं मिलता ताकि वह दलित-बहुजन समाज की समस्या का जिक्र कर सकें. अपने ही मोदी सरकार के खिलाफ बीजेपी सांसद एक के बाद एक बयान देकर बीजेपी का पर्दाफाश कर रही हैं.
मंगलवार को बीजेपी की सांसद सावित्री बाई फुले ने बहराइच में कलेक्ट्रेट में धरनास्थल पर कहा कि लोकसभा में अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, जनजाति, आदिवासी समाज पर चर्चा करने के लिए हम लोगों को बहुत कम समय दिया जाता है. इसलिए बहुजन समाज के सांसद अपनी पूरी बात कह नहीं पाते हैं. नमो बुद्धाय जन सेवा समिति द्वारा आयोजित धरने में आंदोलनकारियों को संबोधित करने के बाद उन्होंने राष्ट्रपति को पंद्रह सूत्री ज्ञापन सिटी मजिस्ट्रेट प्रदीप यादव को सौंपा.
सांसद ने धरनास्थल पर अपनी ही बीजेपी सरकार को सवालों के घेरे में लेने लगीं. उन्होंने कहा कि बाबा साहेब की प्रतिमा तोड़ने, भगवा से रंगने वालों की गिरफ्तारी प्रशासनिक अफसरों ने जानबूझकर नहीं की है. इसके लिए सरकार जिम्मेदारी है. सरकार को ऐसे असमाजिक तत्वों पर फौरन कार्रवाई करानी चाहिए ना कि उनको शरण देना चाहिए. इसके अलावा आरक्षण खत्म करने के मनसूबों पर कहा कि वह बहुजन समाज के हितों के लिए खुद को कुर्बान कर देंगी लेकिन हार नहीं मानेंगी.
नई दिल्ली। अगर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने सोनिया गांधी को फोन नहीं किया होता तो अभी तक भाजपा आराम से कर्नाटक में अपनी सरकार बना चुकी होती. लेकिन बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के एक फोन ने भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. इतनी मुश्किल की भाजपा को 7 विधायकों का समर्थन जुटाने में 24 घंटे से भी ज्यादा का वक्त लग गया है. आखिर क्या हुआ था, हम आपको बताते हैं, वो पूरा वाकया.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा जेडीएस और उसके सुप्रीमो देवगौड़ा को लेकर जहां नरम थी, तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हमलावर थे. लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस और जेडीएस साथ आ गए हैं. हालांकि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में इस समीकरण की संभावना पहले ही जताई जा रही थी, लेकिन कांग्रेस ने जितनी जल्दी जेडीएस को समर्थन देने की घोषणा की, उसकी कल्पना जेडीएस ने भी नहीं की थी.
दरअसल कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के बीच समझौता कराने में बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
मायावती ने जब देखा कि किसी भी पार्टी को उस तरह का बहुमत नहीं मिल रहा है कि वह खुद के दम पर सरकार बना सके, तब उन्होंने कांग्रेस और जेडीएस को मिलाने की पहल की.
मायावती ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को और फिर जेडीएस सुप्रीमो एच.डी. देवगौड़ा से फोन पर बात की.
मायावती ने सोनिया गांधी को सुझाव दिया कि भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस को जेडीएस को समर्थन दे देना चाहिए. बसपा के एक नेता के मुताबिक यह भी बात हुई की समर्थन की घोषणा जल्द की जाए ताकि भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी हो सके. सोनिया गांधी और देवगौड़ा दोनों इस पर राजी दिखे.
दूसरी ओर मायावती ने राज्यसभा सांसद और कर्नाटक के बसपा प्रभारी अशोक सिद्धार्थ को भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से मुलाकात करने को कहा था. फिर क्या था, कांग्रेस ने तुरंत जेडीएस को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर दी और इस तरह मायावती का एक दांव जहां कांग्रेस और जेडीएस को साथ ले आया है तो वहीं इस दांव ने भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. भाजपा भले ही अपने धन बल और सत्ता की ताकत का इस्तेमाल कर कर्नाटक में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो जाए, इस घटना से साफ हो गया है कि विपक्षी एकता की स्थिति में भाजपा का जीतना आसान नहीं है.
लखनऊ। निर्माणाधीन फ्लाईओवर ब्रिज दुर्घटना में मृतकों पर शोक प्रकट करते हुए बसपा सुप्रीमो व यूपी की पूर्व सीएम मायावती ने बीजेपी को जमकर खरी-खोटी सुनाई है. मायावती ने कहा कि बीजेपी में शीर्ष पदों पर लापरवाह व अपराधिक मानसिकता वाले नेता बैठे हैं जिसकी वजह से बड़ी घटना घटी. बीजेपी केवल मुआवजा का सहारा लेकर पीड़ितों से पीछा छुड़ाने जैसा काम कर रही है.
साथ ही मायावती ने कहा कि प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ट्रैफिक के भीड़ के दौरान निर्माणाधीन पुल का एक बड़ा हिस्सा गिर जाने से 15 मई की शाम 18 लोगों की मौत तथा अन्य 30 से अधिक लोग घायल हुए. उन्होंने बीजेपी सरकार से लापरवाही व जिम्मेदारी तय करने के लिये घटना की तुरन्त उच्च-स्तरीय जाँच की माँग की है.
योगी सरकार को कोसते हुए यूपी की पूर्व सीएम ने कहा कि वास्तव में यही बुरा व गै़रजिम्मेदारी का हाल अपराध नियन्त्रण व कानून-व्यवस्था के मामले में भी उत्तर प्रदेश बीजेपी सरकार का बना हुआ है जिस कारण प्रदेश में जमीनी स्तर पर हर तरफ हिंसा, अराजकता व जंगलराज जैसे माहौल व्याप्त है. इस दौरान मायावती ने बीजेपी शासन काल में हुई अन्य घटनाओं पर भी प्रकाश डाला और कहा कि इन सारे कर्मों की सजा एक दिन जनता जरूर देगी. बता दें कि घटना के बाद प्रधानमंत्री व यूपी सीएम ने मामले की जांच के लिए कमेटी का गठन किया जो कि 48 घंटों के बाद रिपोर्ट सौंपेगी. फिलहाल चार ऑफिसर को भी सस्पेंड कर दिया गया है.
नई दिल्ली। कर्नाटक का राजनीतिक तापमान रिजल्ट आने के बाद और भी ज्यादा बढ गया है. कांग्रेस व जेडीएस के विधायकों को खरीदने के लिए करोड़ो रुपए ऑफर किए जा रहे हैं तो किसी को मंत्री बनाने का लालच तक मिला है. यह बातें मीडिया सूत्रों के जरिए बाहर आई हैं. विधायकों की खरीद-बिक्री व लालच को लेकर कांग्रेस-जेडीएस थोड़ी चितिंत हो गई है लेकिन इनका कहना है कि राज्यपाल जनादेश का पालन करते हुए फैसला करेंगे.
कांग्रेस नेताओं को मंत्री बनाने का लालच
प्राप्त जानकारी के अनुसार कांग्रेस नेता एएल पाटिल बय्यापुर का कहना है कि ‘मुझे बीजेपी नेताओं ने फोन कर मंत्रालय देने और मंत्री बनाने की बात कही है.’ इस तरह की कई बातें सामने आ रही है जिसमें अन्य पार्टियों के विजयी विधायकों को लालच दिया जा रहा है.
200 करोड़ रुपए में विधायक सीट
केवल मंत्री पद नहीं बल्कि कर्नाटक में विधायक सीटों की बोली भी लग रही है. सूत्रों का कहना है कि विधायक सीट खरीदने के लिए 100-200 करोड़ रुपए तक की बात सामने आई है. हालांकि बातों में कितनी सच्चाई है इसकी कोई पुष्टि नहीं हो पाई है. लेकिन सरकार बनाने की लालच कांग्रेस व बीजेपी को कोई भी कदम उठाने को प्रेरित कर सकती है.
बीजेपी ने किया खारिज
बीजेपी आरोपों को लगता देख चुप कहां बैठती. इन तमाम आरोपों को सुनने के बाद बीजेपी के केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कुमारस्वामी के आरोपों को ‘ख्याली पुलाव’ बताया और कहा कि ‘बीजेपी विधायकों के बिक्री में विश्वास नहीं करती. बीजेपी को लोकतंत्र व जनादेश पर भरोसा है.’ साथ ही जावड़ेकर ने कांग्रेस और जेडीएस पर वार करते हुए कहा कि यह चुनावी बौखलाहट है जो कि कांग्रेस व जेडीएस पर साफ झलक रहा है.
आठ सीटों से दूर बीजेपी
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 104 सीट जीतने वाली बीजेपी को कांग्रेस व जेडीएस ने मिलकर सरकार बनने से रोक रखा है. भाजपा केवल 8 सीट पीछे रह गई है इसलिए सत्ता में आने के लिए तमाम हथकंडों को अपना रही है. लेकिन कांग्रेस भी जमकर डटी है और बीजेपी के नाक में दम कर दिया है. स्थिति ऐसी है कि बीजेपी जीतकर भी लाचार हो गई है.
नई दिल्ली। पेंशनधारियों के लिए राहत भरी खबर आई है. बुधवार को मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार के कर्मचारियों को पेंशन राशि निकालने के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है. इस फैसले से पेंशनधारियों के परेशानी का हल होगा.
केंद्रीय कार्मिक राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह के अनुसार पेंशन के मामले में आधार एक अतिरिक्त सुविधा है जिसके जरिए बैंक गए बिना टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से लाइफ सर्टिफिकेट जमा कराए जा सकते हैं.
स्वैच्छिक एजेंसियों की स्थायी समिति की 30वीं बैठक में केंद्रीय कार्मिक राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह का पेंशन को लेकर कही गई बात उन लाखों पेंशनधारियों के लिए राहत की सांस दिया है. इससे पेंशनधारियों को खुशी मिली है. पेंशनधारियों को आधार कार्ड को लेकर होने वाली असुविधा से निजात मिल पाएगी.
पहले से ज्यादा राशि-
इस अवसर पर उन्होंने केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के लिए शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा कि न्यूनतम पेंशन नौ हजार, ग्रेच्युटी की सीमा बढ़ाकर बीस लाख और प्रति माह मेडिकल भत्ता 1,000 रुपये कर दिया गया है. बता दें कि आंकड़ों के मुताबिक केंद्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या 48.41 लाख है जबकि पेंशनभोगियों की संख्या 61.17 लाख है. संभावना है कि इस फैसले के बाद लाखों कर्मचारी सरकार के फैसले से खुश होंगे.
इन दिनों प्रकाश राज एक जाना-पहचाना नाम है। उनकी सोशल मीडिया टिप्पणियों पर होने वाले ट्रोल विद्वेष से भरे होते हैं। प्रदर्शनकारी यकायक सामने आकर यों ही उन्हें तंग करने लगते हैं। कन्नड़ अभिनेता से राजनीतिक आंदोलनकारी बने ये सत्तारूढ़ राजनीति के लोकाचार की अपनी तीखी आलोचनाओं के लिए हर दूसरे दिन सुर्खियों में रहते हैं। उनका कहना है कि अपनी युवावस्था के दिनों से ही वे प्रतिरोधी रंगमंच करते रहे हैं। अपनी स्मृतियों की गुदगुदाहट के बीच वे कहते हैं कि मैं और मेरे दोस्त एक जर्जर-सी छोटी बस से कर्नाटक के दौरा किया करते थे और राजनीतिक नाटक खेलते थे। उन नाटकों ने हमें खूब गाली-गलौज और धमकियाँ दिलवाईं।
अगले ही क्षण उनके स्वर में सख़्ती आ जाती है। वे कहते हैं कि ‘‘मुझे धमकाने का कोई फायदा नहीं है। यह मुझे और भी मजबूत बनायेगा और मेंरी आवाज़ को और भी तेज।’’ कुछ दिनों पहले लोगों के एक झुंड ने उनकी कार को उत्तरी कर्नाटक के गुलबर्ग में एक रेस्टराँ के बाहर रोककर नारेबाजी करना तथा धमकाने वाले इशारे करना शुरु कर दिया। उन्होंने उनसे पाकिस्तान चले जाने को कहा। प्रकाश राज उत्तेजित होकर कहते हैं कि ‘‘इन संघियों पर पाकिस्तान का भूत छाया हुआ है। ये मूर्ख मुझसे छुट्टियाँ बिताने और फिर कभी वापिस न लौटने के लिए किसी बेहतर सैरगाह या किसी खूबसूरत और खुशहाल देश के बारे में क्यों नहीं पूछते ॽ वे पाकिस्तान से इतर किसी दूसरे देश के बारे में क्यों नहीं सोच सकते ॽ’’
ऐसे समय जब सिर पर आ चुके विधानसभा चुनाव के कारण कर्नाटक का राजनीतिक पारा ऊपर चढ़ रहा था, तो राज राज्य में इधर से उधर घूमते हुए धुँआधार भाषण दे रहे थे। इस दौरान अक्सर उनके गुस्से के निशाने पर भाजपा रही और उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के इसे स्वीकार भी किया। वे मुझसे कहते हैं कि ‘‘लोगों के लिए मेरा संदेश साफ है। संघ परिवार सांप्रदायिकता नामक ज़हर से हमारे समाज को नष्ट कर देन की कोशिश कर रहा है। लेकिन इसके साथ-साथ यह भी स्पष्ट कर देता हूँ कि मैं किसी राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में नहीं बल्कि इस देश के एक नागरिक के रूप में भाजपा का विरोध कर रहा हूँ।’’
उन्हें आग बबूला कर देने वाला सबसे हालिया मामला है – जम्मू के निकट कठुआ की उस छोटी सी बच्ची के साथ हुआ बलात्कार और उसकी हत्या। वे पूछते हैं कि ‘‘एक समुदाय को आतंकित करने के उद्देश्य से इस भयावह कृत्य को अंजाम दिया गया गया था। जब लोगों ने इसका विरोध किया तो सत्तारूढ़ दल और उसके कार्यकर्ता आरोपी के बचाव में विरोध प्रदर्शन आयोजित करते हैं। लोगों द्वारा आपको दी गई ताकत का इस्तेमाल करने का क्या यही रास्ता है ॽ’’
एक अभिनेता के रूप में राज वाणिज्यिक फिल्मों में निभाई गई अपनी नकारात्मक भूमिकाओं के लिए ज्यादा चर्चित रहे हैं – सलमान खान की ‘वांटेड’ में गनी भाई और अजय देवगन की ‘सिंघम’ में जयकांत शिकरे की भूमिकायें उन्होंने ही की थी। और वे तीन बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं। किंतु परदे से बाहर का उनका वर्तमान व्यक्तित्व एक संदेश प्रचारक का है।
बहुत से लोग राज के इस जोशीले और आवेश भरे पक्ष से अनजान थे। कम से कम एक साल पहले तक तो लोग इसके बारे में नहीं ही जानते थे। वे खुद स्वीकारते हैं कि वे सदैव बेचैन रहते थे किंतु वे किसी भी राजनीतिक दल को विशेषत: निशाना न बनाते हुए अपने राजनीतिक और सामाजिक विचारों पर मित्रों के साथ चर्चा करके या जस्ट आस्किंग के हैश टैग के साथ ट्वीट करके ही खुश थे।
गत वर्ष पत्रकार और कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हुई हत्या ने इसे बदल दिया। राज और लंकेश बहुत ही पुराने मित्र थे। राज कहते हैं कि ‘‘एक समय आता है जब कुछ दरक जाता है। गौरी की हत्या ऐसे ही थे जैसे यह मेरे परिवार के किसी सदस्य के साथ और मेरी ही दहलीज पर घटी हो। सिर्फ बेचैन रहना और खुलकर न बोलना अब कोई विकल्प न था।’’
वे आगे कहते हैं ‘‘जब मैंने लोगों को उनकी हत्या का जश्न मनाते देखा और जब मैंने इस पर सवाल किया तो माफी की बात तो दूर रही, उन्होंने मुझे ट्रोल करना शुरु कर दिया। तभी मुझे अहसास हुआ कि इन लोगों में कुछ गंभीर किस्म की समस्या है और उन्हें ठीक से जबाव देना पड़ेगा। मैंने अपने आप से कहा कि मैं अपनी गौरी को वापिस नहीं पा सकता किंतु मैं और गौरियों के साथ ऐसा होने से रोकने की कोशिश कर सकता हूँ और रोक भी सकता हूँ।
वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ लोगों को बताते हैं कि लोगों के मन में डर बैठाने और एक विशेष वृत्तांत थोपने के लिए गौरी को मारा गया था। एक हिंदू पिता और धर्म परायण कैथोलिक ईसाई माँ के यहाँ जन्मे राज कहते हैं कि ‘‘हिंदुत्व का यह वृत्तांत इस देश और इसकी संस्कृति के आधारभूत लोकाचार के खिलाफ है। हम सहिष्णु लोग हैं और वे हमें नफरत से भर देना चाहते हैं। किंतु हम ऐसा नहीं होने दे सकते। मेरे लिए भ्रष्टाचार की अपेक्षा सांप्रदायिकता ज्यादा बड़ा खतरा है।’’
विभिन्न कस्बों और शहरों में उनके भाषणों ने भाजपा को इतना ज्यादा उत्तेजित कर दिया कि इस दल ने राज के खिलाफ राज्यभर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किये। आपने खिलाफ होने वाले ट्रोल और विरोध प्रदर्शन के बाद भी राज कहते हैं कि इन चीजों के सकारात्मक पक्ष भी नगण्य नहीं हैं। ‘‘कभी-कभी लोग ट्वीटर पर बहुत ही अपमानजनक हो जाते हैं। कभी-कभी आपको गाली-गलौज भी सुनने को मिल सकता है और आपको यह प्रतिक्रियावादी बना सकता है। लेकिन याद रखिए कि गाली-गलौज वाले हर ट्रोल के साथ ही आप सैकड़ो समर्थक भी पा लेते हैं। इन विरोध प्रदर्शनों के मामले में भी यही चीज है। मुखर होकर बोलने के लिए हजारों ने मुझे धन्यवाद दिया और इस यात्रा में बहुत से लोग मेरे साथ आ रहे हैं। जो चीज गलत है, उस पर सवाल पूछने के लिए और हर सही चीज के साथ खड़े होने के लिए अगर मैं लोगों को प्रेरित करता हूँ तो इससे ज्यादा और क्या मैं संभवत: अनुरोध कर सकता हूँ ॽ’’
वे ऐसा कह सकते हैं किंतु उनके खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शन उनके परिवार को चिंता में डाल देते हैं। ‘‘मेरी माँ दिन में दो बार प्रार्थना करती है और यहाँ तक कि मेरी पत्नी और तीनों बेटियाँ भी मुझे लेकर चिंतित हैं। पर मैं उन्हें आश्वस्त करता हूँ कि जो भी मैं कर रहा हूँ, वह देश के लिए कर रहा हूँ। मैं उन्हें यह भी बोलता हूँ कि मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा कि जिसके लिए उन्हें शर्मिंदा होना पड़े।
उनके वार्तालाप जिन्हें उन्होंने ‘# जस्ट टाकिंग’ नाम दिया है, वे पूरे कर्नाटक में विभिन्न कस्बों और शहरों में सभी आयु वर्ग के सैकड़ों लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। राज दावा करते हैं कि लोग सांप्रदायिक राजनीति से पक चुके हैं – ‘‘मानव जाति के इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जब लोग ठगे गये हैं। 2014 में विकास के वायदे किये गये थे और जो हमें मिला, वह है – सांप्रदायिक राजनीति। लोगों को हमेंशा मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। मैं जो धरातल पर देख रहा हूँ, वह अगर मतों में रूपांतरित हो जाये तो भाजपा को कर्नाटक में ऐसा पाठ सीखने को मिलेगा कि जिसे वह कभी नहीं भूल पायेगी।’’
क्या वे राजनीति में आने वाले हैं या किसी राजनीतिक दल के समर्थन में सामने आने वाले हैं ॽ हाल ही में वे जनता दल (सेकुलर) के एच.डी. कुमारस्वामी के साथ देखे गये थे, तो इसके क्या मायने हैं ॽ किंतु राज अपने इनकार पर कायम हैं – ‘‘पिछले तीस सालों से राजनीति पर बारीक निगाह रखने के बाद मैं किसी पर भी भरोसा करने की स्थिति में नहीं हूँ। लोग मुझ पर और मेरे इरादों पर संदेह कर सकते हैं और उनके पास ऐसा करने का हर एक कारण भी है। और हर बार यह सवाल उठाये जाने पर मैं भी यही जबाव देने को तैयार हूँ। नहीं, मैं किसी भी राजनीतिक दल के साथ जुड़ने का इच्छुक नहीं हूँ।’’
क्या वे इससे नहीं डरते कि उनकी राजनीतिक सक्रियता फिल्मों में उनके काम पर प्रभाव डाल सकती है ॽ वे कहते हैं कि ‘‘वास्तव में नहीं। दक्षिण में सृजनात्मक लोग हमेंशा आम जन को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर खड़े होते रहे हैं और तब भी खड़े होते रहे हैं जब वे राजनीतिक माहौल को दमघोंटू पाते हैं। हमारे पास इसका सुदीर्घ इतिहास है।’’
वे उल्लेख करते हैं कि नरेंद्र मोदी के चेन्नई आगमन के खिलाफ हाल में कैसे तमिल सिनेमा उद्योग तमिल लोगों के साथ खड़ा हो गया था। राज कहते हैं कि ‘‘उनका स्वर एक था। और मोदी को संदेश भी मिल गया। मुझे तमिल सिनेमा उद्योग पर गर्व है।’’
और बॉलीवुड के बारे में वे क्या कहेंगे ॽ उनका स्वर सहानुभूति का है – ‘‘शाहरुख खान जैसे कुछ लोगों ने कुछ मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाई है। लेकिन हिंदी सिनेमा उद्योग में बहुत कुछ दाव पर लगा हुआ है और यही कारण है कि वह ज्यादा रक्षात्मक है। मैं उन्हें बहुत ज्यादा दोष नहीं देना चाहता।’’ लेकिन वे यह भी मानते हैं कि भाजपा के खिलाफ पक्ष लेना आरंभ करने के बाद बॉलीवुड की तरफ से उनके लिए काम की पेशकश खत्म हो गई है।
राज जिनका वास्तविक नाम प्रकाश राय हैं, वे अब भी कर्नाटक में अपने मूल नाम से जाने जाते हैं। वास्तव में ये तमिल निर्देशक बालचंदर थे, जिन्होंने उनका नाम राय से राज किया था। यह नब्बे का बिल्कुल शुरुआती वक्त था। तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच जब कावेरी जल विवाद जोर पकड़ रहा था तभी फिल्म ‘डुएट’ प्रदर्शित हुई थी। और बालचंदर नहीं चाहते थे कि कोई फिल्म पर इस बहाने निशाना न साधे कि उन्होंने फिल्म में एक कन्नड़ अभिनेता रखा था।
फिल्मों में सितारा बनने के लिए अपना उपनाम छोड़ देने वाले इस मुद्दे को लेकर भी कुछ भाजपाई नेताओं ने उन पर ताने कसे हैं। उन्हें आप यह बतायेंगे तो राज दिलीप कुमार, रजनीकांत, राजकुमार और मामूट्टी के नाम गिनाना शुरु कर देंगे। वे कहते हैं कि लोग इन्हें उनके परदे के नामों से ही जानते हैं, न कि वास्तविक नामों से। वे (भाजपाई) बेवजह विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
रंगमंच में रुचि रखने वाले महाविद्यालयी छात्र के रूप राज पत्रकार और लेखक पी. लंकेश के लेखन के प्रति आकर्षित थे जो में गौरी लंकेश के पिता थे – ‘‘मैं उनके कार्यालय जाता और सूरज की धूप में उनसे हर चीज पर चर्चा करता और ये विचार-विमर्श बहुत ही प्रेरणादायक थे। वहाँ ऐसे बहुत से लेखक, रंगमंच से जुड़े आंदोलकारी और दूसरे लोग होते थे जो इन जमावड़ों का हिस्सा होते थे। वे मेरी पीढ़ी के प्रेरणास्रोत थे। वे मुझ जैसे युवकों से कहा करते थे कि ‘सिर्फ अपने सपनों के पीछे चलो। अपनी स्वयं की एक पहचान बनाओ।’ ’’
उनका कहा अनसुना नहीं गया। एक दिन राज ने महाविद्यालय न जाने और उसकी जगह रंगमंच पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला कर लिया। उन्होंने लंबे समय तक इसे अपने परिवार से छिपाये रखा – ‘‘नौकरियाँ तो थी नहीं और वाणिज्य पढ़कर मैं एक लिपिक नहीं बनना चाहता था। रंगमंच मुझे एक पहचान दे रहा था। यह वह माध्यम था जिसे मैं समझता था। अन्य किसी चीज की मुझे जरूरत न थी।’’
उनका कहना है कि वे आज भी प्रेरणा की तलाश में रहते हैं, और पुरानी पीढ़ी की बजाय जिग्नेश मेवानी, कन्हैया कुमार और उमर खालिद जैसे लोग उन्हें प्रेरित करते हैं – ‘‘ वे इस देश के लिए उतना कर रहे हैं, जितने कि मैं कल्पना भी नहीं कर सकता। अपने पेशे के कारण मैं सुरक्षित क्षेत्र में हूँ। आर्थिक रूप से मैं सुरक्षित और स्वतंत्र हूँ। मेरा अपना नाम है। लेकिन इन युवाओं को देखो। वे इस देश और इसके भविष्य के लिए लड़ रहे हैं। हो सकता है कि मुझे प्रबोधन देर से मिला हो किंतु अब मैं भी यहाँ हूँ। और जब तक संभव हो पायेगा तब तक मैं लड़ूंगा।’’
*13 मई 2018 के दि टेलेग्राफ में छपा कन्नड़ अभिनेता प्रकाश राज का साक्षात्कार
(अनुवादक: डॉ. प्रमोद मीणा, सहआचार्य, हिंदी विभाग, मानविकी और भाषा संकाय, महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, जिला स्कूल परिसर, मोतिहारी, जिला–पूर्वी चंपारण, बिहार-845401, ईमेल – pramod.pu.raj@gmail.com, pramodmeena@mgcub.ac.in; दूरभाष – 7320920958 )
नई दिल्ली। कर्नाटक चुनाव रिजल्ट आने के बाद कांग्रेस व भाजपा सरकार बनाने को लेकर दावा कर रही हैं. हर कोई लोकतंत्र व जनादेश की दुहाई देकर सरकार बनाने की बात कर रहा है. ऐसे में लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे तेजप्रताप व तेजस्वी ने बीजेपी पर कसकर तंज कसा है. लोकतंत्र व जनादेश की दुहाई देकर कर्नाटक में सरकार बनाने का दावा कर रही बीजेपी पार्टी को बिहार, गोवा व मणिपुर का उदाहरण दिया है.
तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया कि क्या बिहार में बीजेपी को बहुमत मिला था? क्या बिहारियों ने बीजेपी को बहुत बुरी तरह नहीं हराया था?
नीतीश जी की मदद से बिहार में बहुमत का चीरहरण और लोकतंत्र का जनाजा निकाल चोर दरवाज़े से सरकार में बैठ मलाई चाट रहे भाजपाई कर्नाटक के मामले में उच्चकोटि का प्रवचन किसे बाँट रहे है?
साथ ही तेजप्रताप ने भी तंज कसते हुए लिखा कि कर्नाटक के मामले में लोकतांत्रिक नैतिकता का ज्ञान वांचने वालों..! बिहार, गोवा और मणिपुर में लोकतंत्र का अपहरण नहीं हुआ था क्या?
कर्नाटक में नया रोमांच-
इससे साफ तौर पर कहा जा सकता है कि कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर किस तरह से विपक्षी बेसब्र हो गए हैं. कर्नाटक में कांग्रेस 78 सीट लाकर भी 104 सीट जीतने वाली बीजेपी को सरकार बनाने से रोक कर नया रोमांच पैदा कर दी है. कर्नाटक में कम सीट लाता देख कांग्रेस ने फटाक से जेडीएस को समर्थन देने आई. इतना ही नहीं कांग्रेस ने जेडीएस की हर शर्त मानने के लिए भी हामी भर दी. कांग्रेस-जेडीएस समर्थन वाली सरकार की चाहत ना केवल राजद बल्कि मायावती, ममता बनर्जी को भी है.
नई दिल्ली। कर्नाटक विधान सभा चुनाव में सबसे करारा झटका आम आदमी पार्टी को लगा है. कर्नाटक में 29 सीटों पर आम आदमी पार्टी चुनवा लड़ रही थी. पार्टी उम्मीदवारों का प्रदर्शन इतना बुरा रहा कि सारे उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. इससे ‘आप’ को करारा झटका लगा है. साथ ही देश भर में पार्टी को फैलाने का सपना टूटता दिख रहा है. इससे पहले भी अन्य राज्यों में हुए चुनावों में ‘आप’ ने कोई खास कमाल नहीं दिखाया.
सूत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार आम आदमी पार्टी ने कर्नाटक चुनाव में 29 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. इनमें सबसे ज्यादा 18 उम्मीदवारों ने बेंगलुरु से चुनाव लड़ा था. कर्नाटक में ‘आप’ के संजोजक पृथ्वी रेड्डी को भी केवल 1,861 वोट मिले और वह चौथे स्थान पर रहे.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ‘आप’ को देश भर में पैर फैलाने के बजाय पार्टी को जमीनी स्तर मजबूत करना चाहिए. साथ ही कार्यकर्ताओं को एक्टीव करने पर ध्यान देना चाहिए. इस तरह से जमानत जब्त होना ‘आप’ के भविष्य के लिए सही नहीं है. इससे लोगों के मन में ‘आप’ के प्रति नकारात्मक भाव प्रकट होंगे. इस हार को लेकर ‘आप’ के मुखिया अरविंद केजरीवाल की ओर से कोई पुख्ता बयान नहीं मिला है. जबकि इससे ‘आप’ में उदासी का माहोल साफ दिख रहा है. कई लोग इसे अरविंद केजरीवाल की हार कह रहे हैं.
नई दिल्ली। सरकार स्कूलों को हाइटेक बनाने के लिए केंद्र सरकान कदम बढा रही है. सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए डीटीएच चैनल के द्वारा साइंस, टेक्नोलॉजी व डिजिटल स्टडी कराई जाएगी. बच्चों के साइंस सब्जेक्ट्स को मजबूत करने के लिए सरकार इस पहल को आरंभ करेगी.
बुधवार को प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकारी स्कूलों में अब रिसर्च और इनोवेशन पर फोकस किया जाएगा. डीटीएच चैनलों पर भी पढ़ाई कराई जाएगी. शिक्षा विभाग की अधिकारिक जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय आविष्कार अभियान के तहत मिडिल, हाई और हायर सेकंडरी स्कूलों में बच्चों को साइंस व मैथ्स के लर्निंग किट दिए जाएंगे. हालांकि अभी विज्ञान और साइंस में फोकस किया जा रहा है, लेकिन अब इसके साथ आइसीटी और डिजिटल एजुकेशन जोड़ा जाएगा.
मिलेंगे छह लाख रुपए-
छठवीं क्लास के बच्चे की भी डिजिटल पढ़ाई की नीति के तहत टैबलेट, लैपटॉप, नोटबुक, टीचिंग लर्निंग डिवाइज, डिजिटल बोर्ड, डिजिटल क्लासरूम, डीटीएच चैनल पर पढ़ाई होगी. डिजिटल मोड पर पढ़ाई करवाने के लिए स्कूलों को 02 लाख 40 हजार रुपए से लेकर 06 लाख 40 हजार रुपए तक दिए जाएंगे. सरकार इससे बच्चों को दक्ष बनाने के लिए काम करेगी. इससे बच्चों की टेक्नीकल एजुकेशन के साथ-साथ साइंस की लेटेस्ट जानकारी भी बढेगी.
केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही शिक्षा कार्यक्रम से जुड़ने के लिए राज्य सरकारों को कहा गया है. राज्य सरकार शिक्षा कार्यक्रम को जल्द से जल्द सरकारी स्कूलों में जोड़ने का काम कराएंगी. कई राज्यों के शिक्षा विभागों ने इस पर काम करना आरंभ किया है.
वाराणसी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय इलाके में निर्माणाधीन फ्लाईओवर गिरने से मरने वालों की संख्या 18 तक पहुंच गई. पुल गिरने के बाद उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी ने मृतकों को पांच लाख व घायलों को दो लाख रुपए मुआवजा देने की तुरंत घोषणा कर दी.
मंगलावर की शाम वाराणसी में निर्माणाधीन फ़्लाईओवर का हिस्सा गिरने से कई गाड़ियां फ़्लाईओवर के पिलर के नीचे दब गईं. सूत्रों के अनुसार पिलर के नीचे से 18 लोगों के शव निकाले जा चुके हैं. आशंका जताई जा रही है कि इस हादसे में मरनेवालों का आंकड़ा बढ़ सकता है. इसके साथ ही 7 घायलों में से 2 की हालत गंभीर बताई जा रही है. तीन लोगों को मलबे के नीचे से ज़िंदा निकाला गया. एनडीआरएफ और स्थानीय प्रशासन ने तेजी से राहत और बचाव ऑपरेशन ख़त्म किया. यह दुर्घटना वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन के पास जीटी रोड पर कमलापति त्रिपाठी इंटर कॉलेज के सामने घटित हुई है.
घटनास्थल का दर्दनाक नजारा-
घटनास्थल का नजारा बड़ा ही दुखदायी है. निर्माणाधीन पिलर के नीचे चार कारें, पांच ऑटो, एक सिटी बस और कई मोटरसाइकिल दबी मिली. दबी गाड़ियों की तस्वीरें मरने वालों की दास्तां बयां कर रही थी. लोगों ने सोशल मीडिया पर इसे शेयर कर सरकार के खिलाफ रोष प्रकट किया. साथ ही कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली सरकार के पीएम के संसदीय क्षेत्र में ऐसा हाल है.
चार ऑफिसर सस्पेंड-
वाराणसी से सांसद पीएम मोदी और सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ ने इस हादसे पर दुख जताते हुए एक टीम गठन करने की बात कही जो कि 48 घंटों में जांच कर रिपोर्ट सौंपेगी. बुधवार को टीम ने जांच प्रक्रिया आरंभ कर दी. पीएम व सीएम ने दोषियों कड़ी कार्रवाई की बात कही है. वहीं फ़्लाईओवर बना रही एजेंसी सेतु निगम के 4 अफ़सरों को सस्पेंड कर दिया गया है.
कर्नाटक विधानसभा की 224 सीटों में से 222 सीटों पर हुई वोटिंग के नतीजे तकरीबन आ गए हैं. नतीजों के मुताबिक भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई है. भाजपा को 104 सीटें मिली है, और उसे 65 सीटों का फायदा हुआ है. जबकि कांग्रेस के पाले में 78, जेडीएस के खाते में 38, बसपा के खाते में एक जबकि अन्य के खाते में एक सीट गई है.
हर चुनाव में तमाम फैक्टर महत्वपूर्ण होते हैं. हम आपको बताने जा रहे हैं वो तमाम फैक्टर जो कर्नाटक चुनाव में अहम रहे हैं. इसमें हम लिंगायत फैक्टर से लेकर दलित, पिछड़ा और मुस्लिम फैक्टर की भी बात करेंगे.
सबसे पहले हम वोट परसेंटेज की बात करते हैं. जो कांग्रेस के लिए बड़े राहत की बात हो सकती है. इस चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 38 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि भाजपा को 36.2 फीसदी. जेडीएस के खाते में 18.3 फीसदी वोट आए हैं.
भाजपा को 38 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस को उससे सिर्फ एक फीसदी कम यानि की 37 फीसदी वोट मिले हैं. वोट शेयर में सिर्फ एक फीसदी की कमी के बावजूद दोनों के बीच सीटों पर जीत का अंतर काफी ज्यादा है. इसके अलावे जेडीएस को 17 फीसदी वोट हासिल हुए हैं जबकि अन्य के हिस्से में 8 फीसदी वोट आए हैं.
इस चुनाव परिणाम के बीच हम सबसे पहले बात करेंगे लिंगायत फैक्टर की. कर्नाटक में लिंगायत समाज का काफी अहम रोल है. वो किसी को भी हराने और जीताने का माद्दा रखते हैं. चुनाव से पहले कांग्रेस ने लिंगायतों की एक बड़ी मांग मान कर उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया. तो वहीं राहुल गांधी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से पहले ही लिंगायत समाज के सबसे प्रमुख संत से मिलने में सफल रहे थे. इसके बात माना जा रहा था कि लिंगायत समाज का एकमुश्त समर्थन कांग्रेस को मिलेगा. लेकिन चुनाव के नतीजे बताते हैं कि राहुल गांधी लिंगायत संत से मिलने में तो सफल रहें लेकिन आशीर्वाद हासिल करने से चूक गए हैं.
लिंगायत फैक्टर
कर्नाटक चुनाव में लिंगायत समाज 67 सीटों पर हार जीत का फैसला करता है. इसमें भाजपा को 40 सीटें मिली हैं. उसे 27 सीटों का फायदा हुआ है. जबकि कांग्रेस 20 सीटें ही जीत पाई है. उसे 20 सीटों का नुकसान हुआ है. जेडीएस के खाते में 7 सीटें आई है और उसे 2 सीटों का नुकसान हुआ है.
मुस्लिम फैक्टरः की बात करें तो यह समाज प्रदेश की 17 सीटों को प्रभावित करता है. मुस्लिम समाज पिछली बार की तरह इस बार भी कांग्रेस के पक्ष में खड़ा रहा. मुस्लिम प्रभावित इलाकों में कांग्रेस 10 सीटें जीती है, उसे सिर्फ एक सीट का नुकसान हुआ है. हालांकि भाजपा पिछली बार के 3 सीटों की जगह इस बार 6 सीटें जीतने में कामयाब रही है. जेडीएस को एक सीट मिली है, उसे एक सीट का नुकसान हुआ है.
ओबीसी फैक्टरः कर्नाटक की 24 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है. इसने भाजपा का साथ दिया है. भाजपा ने ओबीसी प्रभावित 24 में से 18 सीटें जीती है, उसे 16 सीटों का फायदा हुआ है. कांग्रेस को 5 सीटें मिली है, उसे 11 सीटों का नुकसान हुआ है. जेडीएस के हिस्से में पिछली बार की तरह एक सीट आई है.
अब बात करते हैं आदिवासी फैक्टर की. आदिवासी समाज प्रदेश की 10 सीटों को प्रभावित करता है और उसने कांग्रेस का साथ दिया है. कांग्रेस 7 सीटें जीती है, उसे दो सीटों का फायदा हुआ है. पिछली बार भाजपा इस क्षेत्र की कोई सीट नहीं जीत पाई थी, इस बार उसे भी दो सीटें मिली है. जबकि जेडीएस के हिस्से में पिछली बार की तरह 1 सीट आई है.
अब बात करते हैं उस फैक्टर की जिसका समर्थन देश भर में तमाम दलों की जीत-हार तय करता है. कर्नाटक चुनाव में दलित फैक्टर की बात करें तो यह समाज 38 सीटों पर किसी को हराने या जीताने में सक्षम है. दलित वोटर हालांकि किसी एक दल के पीछे गोलबंद नहीं हुए और उन्होंने सबको वोट दिया है. लेकिन दलित प्रभावित क्षेत्रों में भजापा 12 सीटें जीतने में कामयाब रही है, उसे 7 सीटों का फायदा हुआ है. कांग्रेस के हिस्से में सबसे ज्यादा 17 सीटें तो आई है, लेकिन उसे 4 सीटों का नुकसान हुआ है. जहां तक जेडीएस की बात है तो उसे 8 सीटें मिली है, और उसे पिछले चुनाव के मुताबले 3 सीटों का नुकसान हुआ है. बसपा ने अपना खाता खोला है और एक सीट जीतने में कामयाब रही है.
जाहिर सी बात है कि इन तमाम फैक्टरों ने जीत-हार में काफी अहम भूमिका निभाई है. किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद प्रदेश में सत्ता हासिल करने की जोर आजमाइश शुरू हो चुकी है. देखना है कि सत्ता किसके हाथ में जाती है।
पटना। बिहार में लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे ने शादी समापन के बाद माफी मांगी. माफी मांगने के बाद तेजस्वी यादव की लोकप्रियता और बढ़ गई. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आखिर क्यों तेजस्वी यादव बिहार की राजनीति में लोकप्रिय हो रहे हैं. तेजस्वी ने जिस बात के लिए माफी मांगी है उसको लेकर पता चलता है कि इनको बिहार की जनता का कद्र करना आता है.
बता दें कि हालही में 12 मई को लालू प्रसाद का यादव के बड़े बेटे की शादी का आयोजन पटना में किया गया था. शादी के आयोजन में बड़ी तदाद में लोग शामिल हुए. इसमें बिहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी व अन्य दिग्गज नेता शामिल हुए. जिसको लेकर काफी चर्चा हुई. इस शादी के दौरान भगदड़ मच गई थी. इस दौरान खाना-पानी, कोल्ड्रींक्स बोलत लेकर भागते नजर आए. हालांकि बिहार पुलिस द्वारा सुरक्षा की व्यवस्था की गई थी फिर भी लालू के चाहने वालों को दिक्कत का सामना करना पड़ा.
शादी में मची भगदड़ को लेकर सोमवार यानी 14 मई को तेजस्वी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा कि-
“अगर हमें अंदाजा होता कि अपने महबूब नेता @laluprasadrjd जी की उपस्थिति में वर-वधु को अधिकार समझ आशीर्वाद देने लाखों-लाख की संख्या में लोग आयेंगे तो यह आयोजन गांधी मैदान जैसी बड़ी जगह में रखते. आप सभी को जो असुविधा हुई उसके लिए क्षमा कर दीजिएगा. पुन: धन्यवाद.”
बता दें कि जेल में बंद लालू प्रसाद यादव के तीन दिन पैरोल पर शादी में शामिल होने आए थे. इस खुशी में भी राजद समर्थक भारी संख्या में शामिल हुए थे.
कर्नाटक। कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद राज्यपाल की परीक्षा की घड़ी आ चुकी है. राज्यपाल की हरी झंडी मिलते ही कर्नाटक में नई सरकार बन जाएगी. कांग्रेस ने जेडीएस को अपना समर्थन दिया है. दोनों पार्टी की सीटें मिलाकर पूर्ण बहुमत आसानी से हासिल हो रही है. कांग्रेस ने जेडीएस को मौका देने की बात कही है. साथ ही यह भी कहा कि राज्यपाल अगर ऐसा नहीं करते हैं तो कांग्रेस कोर्ट जाएगी.
कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव में बड़ी चालाकी से जेडीएस को समर्थन देकर बीजेपी को कर्नाटक में सरकार बनाने से रोक दिया है. बीजेपी सबसे ज्यादा सीट लाकर भी लाचार अवस्था में खड़ी है. ऐसे में बीजेपी का बेड़ा केवल राज्यपाल ही पार लगा सकते हैं. लेकिन कांग्रेस भी खामोश बैठने वाली नहीं है.
कांग्रेस ने तो साफ तौर पर कह दिया है कि यदि राज्यपाल जेडीएस को सरकार बनाने का मौका नहीं देते हैं तो बात कोर्ट तो पहुंच जाएगी जिससे की मसला और भी पेचिदा हो सकता है.
मिशन-2019 को देखते हुए कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर बीजेपी व कांग्रेस एड़ी-चोटी का दम लगा रही है. इसी बात को लेकर कांग्रेस ने जेडीएस की हर बात को मानते हुए समर्थन दे दिया. जबकि बीजेपी जीत के बाद भी कर्नाटक में सरकार बनाने से चूकना नहीं चाहेगी. ऐसे में देखना है कि राज्यपाल का निर्णय किसकी झोली में जाता है.
नई दिल्ली। एक्टर इंदर कुमार मौत का चैप्टर एक बार फिर खुल गया है. सोशल मीडिया पर करीब एक साल बाद इंदर कुमार की लाइफ का लास्ट वीडियो सामने आया है जिसमें वह रोते-बिलखते और खुद की जिंदगी पर तरस खाते दिख रहे हैं. वीडियो ने इंदर कुमार के फैन्स के जख्म को हरा-भरा कर दिया है. सोशल मीडिया पर इंदर कुमार का वीडियो देखने के बाद कई लोगों ने आंसू भी बहाया. वायरल हो रहे इंदर कुमार के वीडियो ने बेचैनी बढा दी है.
वीडियो में इंदर कुमार कह रहे हैं कि, ”सुसाइड करना चाहता हूं. जा रहा हूं बहुत दूर. इसका दोष मैं किसे दूं? या ना दूं. एक्टर बनने आया था. सिक्स पैक बनाए. मेरी अय्याशियों ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा… मुझसे कुछ सीख सकते हो तो सीखो. अगर तुम नहीं सीखे तो कल…” और अंत में इंदर कुमार ने कीस करते हुए वीडियो क्लोज कर दिया है.
बता दें कि पिछले साल जुलाई में अभिनेता इंदर कुमार की मौत की खबर से फिल्म इंडस्ट्री को झकझोर दिया था. दरअसल, पिछले साल 28 जुलाई को जब इंदर कुमार की मौत की खबर सामने आने पर बताया गया था कि वह काफी दिनों से बीमार हैं और अचानक उन्हें दिल का दौरान पड़ने से उनकी मौत हो गई. लेकिन अब जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है कि वो तो कुछ और बता रहा है.
वीडियो की सच्चाई-
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. इसके साथ ही पुलिस के सामने नया मोड़ आ गया है. हालांकि पुलिस की तरफ से कोई अधिकारिक बयान नहीं मिला है लेकिन वीडियो की जांच होनी तय बताई जा रही है. लेकिन सूत्रों का कहना है कि वैरिफाइड एकाउंट से पोस्ट की गईं थीं या नहीं इसकी जांच होनी बाकि है. यदि जांच होती है तो यह बात साफ हो जाएगी कि वीडियो उनको कैसे मिली और कब मिली? वीडियो से इंदर कुमार के मौत की गुत्थी हद तक सुलझ सकती है. बता दें कि कई रिपोर्ट्स का दावा किया है कि इंदर का यह वीडियो उनकी आने वाली फिल्म का एक हिस्सा था जिसको आत्महत्या से जोड़कर दिखाया जा रहा है. हालांकि वीडियो देखने में रियल लग रहा है लेकिन उस वक्त वीडियो इंदर द्वारा पोस्ट ना करना और एक साल बाद वीडियो किसी अन्य के द्वारा पोस्ट कराना कई सवाल खड़ा कर रहा है.
अच्छे दिन लाने और प्रत्येक के खाते में सौ दिन के अन्दर 15 लाख जमा कराने तथा हर साल युवाओं को दो करोड़ नौकरियां देने के वादे के साथ सत्ता में आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के चार वर्ष पूरे हो गए हैं. अवश्य ही मोदी इस दरम्यान जहाँ अपने चुनावी वादे पूरा करने में पूरी तरह व्यर्थ रहे हैं, वहीं मानव विकास व खुशहाली के मामले भारत को निम्न से निमन्तर पायदान पर पहुचाने के करण उन्होंने 2019 में अपनी रुखसती की जमीन भी तैयार कर ली है. इस आधार पर उनका आंकलन करते हुए अधिकांश लोग उन्हें विफल करार दे सकते हैं. किन्तु मोदी का असल लक्ष्य यह था भी नहीं: असल लक्ष्य था संघ का गुप्त अजेंडा पूरा करना, जिसमें वह उम्मीद से कहीं अधिक सफल रहे: यहां तक कि स्वयंसेवी को भी इस मामले में काफी पीछे छोड़ दिए हैं . इसे समझने के लिए पहले संघ का गुप्त अजेंडा जान लेना होगा.
अक्सर संघ विरोधी शोर मचाते रहरे हैं कि संघ अपना गुप्त अजेंडा पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. लेकिन वे मात्र संकेत करते रहे हैं, कभी खुलकर यह नहीं बताते कि उसका गुप्त अजेंडा है क्या? पर, उनके संकेतों के आधार पर लोगों में जो धारणा विकसित हुई है वह यह कि बाबरी मस्जिद के ध्वंसावशेष पर राम मंदिर निर्माण ; भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करना एवं कश्मीर में धारा 370 का उन्मूलन ही उसका गुप्त अजेंडा है. पर, अगर यही उसका गुप्त अजेंडा है तो संघ समयानुसार खुद ही इसका इजहार करते रहता है. ऐसे में कैसे मान लिया जाय कि यही उसका गुप्त अजेंडा है. लेकिन संघ का तो सचमुच गुप्त अजेंडा है और इसे तभी जाना जा सकता है
जब हम यह समझने की कोशिश करें कि उसका सरोकार विविधतामय भारतीय समुदाय के किन लोगों से है. और जहां तक सरोकार का प्रश्न है यह जगजाहिर है उसका लक्ष्य ब्राह्मणों के नेतृत्व में ब्राहमण, क्षत्रिय और वैश्यों से युक्त उस सवर्ण समाज के हितों की रक्षा करना है, जिसका हिन्दू धर्म के प्राणाधार वर्ण-व्यवस्था के अर्थशास्त्र के सौजन्य से सदियों से शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक, धार्मिक-सांस्कृतिक इत्यादि) पर प्रायः 90 प्रतिशत कब्ज़ा रहा है. बहरहाल भारतीय समाज के जिन जन्मजात विशेषाधिकारयुक्त तबकों का शक्ति के स्रोतों पर प्रायः एकाधिकार रहा, उनके समक्ष 7 अगस्त , 1990 को प्रकाशित मंडल की रिपोर्ट ने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया था . और इस संकट के उद्भव होते ही विशेषाधिकारयुक्त तबके के बुद्धिजीवी, मीडिया, साधु -संत , छात्र और उनके अभिभावक अपना-अपना कर्तव्य स्थिर कर लिए. अपना कर्तव्य स्थिर करने में 1925 में स्थापित संघ ने भी देर नहीं लगाया और सितम्बर, 1990 से स्वयंसेवी आडवाणी के नेतृत्व में वह सर्वशक्ति से क्रियाशील हो उठा.
मंडल की सिफारिशों ने ऐसा नहीं कि विशेषाधिकारयुक्त तबकों को सिर्फ सेवा क्षेत्र के 27 प्रतिशत अवसरों से वंचित कर दिया था . नौकरियों के क्षेत्र में तो नुकसान हुआ ही, वैदिक मनीषियों द्वारा घृणा और वैमनस्य की जो प्राचीर खड़ी की गयी थी, उसे अतिक्रम कर दलित-आदिवासी-पिछड़े और इनसे धर्मान्तरित तबके भ्रातृ-भाव के साथ बहुजन समाज में तब्दील होने लगे. यही नहीं नाटकीय रूप से बहुजनों के जाति चेतना के राजनीतिकरण की प्रक्रिया इतनी तेज हुई कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों का जाति के नाम पर चुनाव जीतना दुष्कर हो गया.
ऐसे में वर्षों से चुपचाप काम कर रहे संघ को प्रधानतः दो लक्ष्यों को ध्यान में रखकर संघ को मुस्तैद होना पड़ा. ये लक्ष्य थे सत्ता और नौकरियों में सवर्ण समाज की हुई क्षति की भरपाई करना . कहना न होगा इन्ही लक्ष्यों के लिए संघ मंडल के खिलाफ धर्म को हथियार बनाकर एकाधिक बार केंद्र की सत्ता पर कब्ज़ा किया और हर बार उसके प्रशिक्षित लोग इन लक्ष्यों के पूर्ति में अपना-अपना योगदान दिए. इस मामले में सबसे कठिन चुनौती का सामना पहले स्वयंसेवी पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को करना पड़ा था.
मंडल से त्रस्त सवर्ण समाज भाग्यवान था जो उसे जल्द ही ‘नव उदारीकरण’ का हथियार मिल गया जिसे 24जुलाई,1991 को नरसिंह राव ने सोत्साह वरण कर लिया. इसके खिलाफ दत्तोपंत ठेंगड़ी के नेतृत्व में अटल-आडवाणी-मोदी इत्यादि ने यह कहकर शोर मचाना शुरू किया था कि- अब जो आर्थिक स्थितियां और परिस्थितियां बन या बनाई जा रही हैं, उसके फलस्वरूप देश आर्थिक रूप से विदेशियों का गुलाम बन जाएगा. फिर हमें स्वाधीनता संग्राम की भाँति विदेशियों से आर्थिक गुलामी के खिलाफ एक नयी लड़ाई लड़नी पड़ेगी’. किन्तु यह जानते हुए भी कि राव की नव उदारवादी नीतियों के फलस्वरूप देश आर्थिक रूप से विदेशियों का गुलाम बन जायेगा, देश की बागडोर हाथ में लेते ही वाजपेयी जी महज संघ के गुप्त अजेंडे को पूरा करने के लिए नरसिंह राव को बौना बनाने की दिशा में आगे बढे.
आरक्षण के खात्मे के मोर्चे पर संघ के गुप्त अजेंडे को पूरा करने की उनमें इतनी तीव्र ललक थी कि प्रधानमंत्रित्व की अपनी 13 दिवसीय पहली पाली में आनन्-फानन में एनरॉन को काउंटर गारंटी दे दिया. इसी ललक में दो वर्ष का समय रहते हुए भी उन्होंने 1429 वस्तुओं पर से मात्रात्मक प्रतिबंध हटा लिया. लेकिन संघ के गुप्त अजेंडे को पूरा करने के लिए उन्होंने जो सबसे बड़ा कदम उठाया, वह था विनिवेशीकरण. जिन सार्वजनिक उपक्रमों में आरक्षित वर्गों को आरक्षण मिलता है, उन्हें बेचने के लिए उन्होंने बाकायदा एक स्वंतंत्र मंत्रालय ही बना दिया , जिसका प्रभार अरुण शौरी जैसे शातिर आंबेडकर विरोधी को सौपा . शौरी ने बड़ी बेरहमी से लाभजनक और सुरक्षा तक से जुड़े सरकारी उपक्रमों को तेजी से ठिकाने लगाने का काम अंजाम दिया.
यह काम उन्हें दो दर्जन दलों की घेराबंदी तोड़कर अंजाम देना पड़ा था. इसके लिए उन्हें ममता बनर्जी, शरद यादव, जार्ज फर्नांडीज , नीतीश कुमार इत्यदि की अनाम-सनाप शर्तों को मानना पड़ा था. हालांकि ऐसा करने के क्रम में उन्होंने उनकी सामाजिक न्यायवादी छवि का तेज भी ख़त्म कर दिया था. लेकिन 2014 में भारी विजय के साथ देश की बागडोर सँभालनेवाले नरेंद्र मोदी के समक्ष वाजपेयी जैसी कोई विवशता नहीं रही. इसलिए आरक्षण के खात्मे तथा विशेषधिकारयुक्त को और ताकतवर बनाने, जो की संघ का मुख्य लक्ष्य है, की दिशा में कांग्रेसी नरसिंह राव और डॉ. मनमोहन सिंह तथा सघी वाजपेयी ने जितना काम बीस सालों में किया , उतना मोदी चार सालों में कर दिखाया है .
विगत चार सालों में मोदी का सारा ध्यान-ज्ञान सिर्फ और सिर्फ आरक्षण के खात्मे और विशेषाधिकारयुक्त और शक्ति संपन्न बनाने पर रहा. इसकी बड़ी कीमत राष्ट्र को चुकानी पड़ी है. सिर्फ संघ के गुप्त अजेंडे पर सारा ध्यान लगाने के फलस्वरूप उनके कार्यकाल प्रधानमंत्री में देश निरंतर मानव विकास के मामले में हर वर्ष नीचले पायदान पर जाने का रिकॉर्ड कायम करते गया. वर्ल्ड हैपिनेस की रिपोर्ट चीख –चीख कर बताती है कि मोदी राज में खुशहाली के मामले में साल दर साल गिरावट हुई है. 2017 में 11 पायदान नीचे फिसलते हुए भारत 133 वें नंबर पर आ गया है और इस मामले में देश कमजोर समझे जाने वाले प्रतिवेशी मुल्कों- पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल – से बहुत पीछे हो गया है.
ऐसा इसलिए हुआ है कि मोदी की नीतियाँ सिर्फ विशेशाधिकारयुक्त अल्पजनों को खुशहाल बनाने पर केन्द्रित रहीं. बहुसंख्य लोगों की खुशिया छीनने की रणनीति के तहत ही मोदी राज में श्रम कानूनों को निरंतर कमजोर करने के साथ ही नियमित मजदूरों की जगह ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा देकर शक्तिहीन बहुजनों को शोषण-वंचना के दलदल में फंसानें का काम जोर शोर से हुआ. बहुसंख्य समाज को आरक्षण से महरूम करने के लिए ही एयर इंडिया, रेलवे स्टेशनों और हास्पिटलों को निजी क्षेत्र में देने की शुरुआत हुई. आरक्षण के खात्मे के योजना के तहत ही सुरक्षा से जुड़े उपक्रमों में 100प्रतिशत एफडीआई की मजूरी दी गयी. आरक्षित वर्ग के लोगों को बदहाल बनाने के लिए 62 यूनिवर्सिटियों को स्वायतता प्रदान करने के साथ –साथ ऐसी व्यवस्था कर दी गयी है कि आरक्षित वर्ग, खासकर एससी/एसटी के लोगों का विश्वविद्यालयों में शिक्षक के रूप में नियुक्ति पाना एक सपना बन गया है. कुल मिलाकर मोदी राज में आरक्षण को कागजों की शोभा बनाने का काम लगभग पूरा कर लिया है.
अब जहाँ तक विशेषाधिकारयुक्त तबकों को और शक्तिशाली बनाने का सवाल , मोदी ने संघ के इस गुप्त एजेंडे को पूरा करने में कितनी कामयाबी हासिल कर लिए, इसका साक्ष्य 22 जनवरी , 2018 को प्रकाशित ऑक्सफाम की रिपोर्ट है. ऑक्सफाम की रिपोर्ट से पता चलता है कि टॉप की 1% आबादी अर्थात 1 करोड़ 35 लाख लोगों की धन-दौलत पर 73 प्रतिशत कब्ज़ा हो गया है. इसमें मोदी सरकार के योगदान का पता इसी बात से चलता है कि सन 2000 में 1% वालों की दौलत 37 प्रतिशत थी ,जो बढ़कर 2016 में 58.5 प्रतिशत तक पहुच गयी. अर्थात 16 सालों में इनकी दौलत में 21 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. किन्तु उनकी 2016 की 58.5 प्रतिशत दौलत सिर्फ एक साल के अन्तराल में 73% हो गयी अर्थात सिर्फ एक साल में 15% का इजाफा हो गया.
शायद ही दुनिया में किसी परम्परागत तबके की दौलत में एक साल में इतना इजाफा हुआ हो. किन्तु मोदी की सवर्णपरस्त नीतियों से भारत में ऐसा चमत्कार हो गया. 1% टॉप वालों से आगे बढ़कर यदि टॉप की 10% आबादी की दौलत का आंकलन किया जाय तो नजर आएगा की देश की टॉप 10% आबादी, जिसमें 99.9% सवर्ण होंगे, का देश की धन-दौलत पर 90% से ज्यादा कब्ज़ा हो गया है. दुनिया के किसी भी देश में परपरागत विशेषाधिकारयुक्त व सुविधाभोगी वर्ग का देश की धन-दौलत पर इतना ज्यादा कब्ज़ा नहीं है . लेकिन मोदी ने यह कमाल कर दिखाया है. ऐसे कहाँ जा सकता नरेंद्र मोदी ने संघ के गुप्त अजेंडों को पूरा करने प्रत्याशा से बहुत अधिक सफलता अर्जित कर लिया है. मोदीराज में सवर्णों का धन-दौलत के साथ राजसत्ता पर उम्मीद से कहीं अधिक दबदबा कायम हुआ है. आज की तारीख में जितने राज्यों में भाजपा की सत्ता है, वह आजाद भारत का एक रिकॉर्ड है. इन राज्यों में अल्पजन सुविधाभोगी तबके के लोग सीएम,राज्यपाल, मंत्री इत्यादि बनकर सत्ता का भरपूर मजा ले रहे हैं. ऐसे में क्या यह दावा करना ज्यादती होगी कि देश भले ही पिछड़ गया हो, किन्तु मोदी संघ का अजेंडा पूरा करने में उम्मीद से आगे निकल गए हैं.
हैदराबाद। आदिवासी धर्म कोड को लेकर जोरदार चर्चा चली. इस दौरान देशभर के 12 करोड़ से अधिक आदिवासियों के बारे में जिक्र किया गया. दो दिन तक चलने वाले राष्ट्रीय अधिवेशन में आदिवासियों के अन्य मुद्दों पर भी जानकारों ने बात की. इस दौरान देशभर के अलग-अलग हिस्सों से आदिवासी नेताओं व जानकारों ने हिस्सा लेकर आदिवासी समुदाय को सशक्त व जागरूक करने को लेकर पहल करने की बात भी कही.
मंगलवार को प्राप्त जानकारी के अनुसार आदिवासी धर्म कोड को लेकर राष्ट्रीय इंडीजिनीयस-आदिवासी धर्म समन्वय समिति द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन हैदराबाद में किया गया. एक जानकार ने बताया कि हम लोग इस अधिवेशन में देश में निवास करने वाले 12 करोड़ से अधिक प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए जनगणना फार्म 2021 में अलग धर्म कोड को लेकर चर्चा किए. संभावना है कि जल्द ही इस पर कागजी काम आरंभ किया जाएगा. इस अधिवेशन में झारखंड से पूर्व मंत्री देवकुमार धान के अलावा दिग्गज आदिवासी नेताओं ने भाग लिया. बता दें कि फिलहाल देश में आदिवासियों के मसलों को लेकर आंदोलन चल रहा है. पत्थलगड़ी आंदोलन के गिरफ्तार समर्थकों की रिहाई के लिए जेल भरो आंदोलन आरंभ होने को है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सौर व पवन ऊर्जा क्षेत्रों में तीन लाख से ज्यादा श्रमिकों की जरूरत होगी. भारत ने 2022 तक नवीकरणीय स्रोतों से 175 गीगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने वैश्विक रोजगार बाजार की स्थिति पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में कदम बढ़ाने से लाखों नई नौकरियां पैदा होंगी.
संयुक्तराष्ट्र की श्रम एजेंसी ने कहा कि 2030 तक दुनियाभर में 2.4 करोड़ नई नौकरियां पैदा होंगी लेकिन पर्यावरण अनुकूल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सही नीतियों के साथ-साथ श्रमिकों के लिए बेहतर सामाजिक सुरक्षा की जरुरत होगी.
एजेंसी ने वैश्विक रोजगार व सामाजिक परिदृश्य 2018 रिपोर्ट में कहा कि भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा है जो कि उसके कुल उत्पादन का करीब आधा है.
रिपोर्ट में ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) और नेशनल रिसोर्सज डिफेंस काउंसिल (एनआरडीसी) के अनुमानों का हवाला देते हुए कहा गया है कि सौर व पवन ऊर्जा कंपनियों, डेवलपरों और विनिर्माताओं के सर्वेक्षण के आधार पर भारत में सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्र में तीन लाख से ज्यादा श्रमिकों की नियुक्ति होगी.
नई दिल्ली। कर्नाटक में भाजपा सभी दलों को पछाड़ कर आगे निकल चुकी है. तो वहीं चुनाव में कांग्रेस की करारी हार भी चर्चा का विषय है. कर्नाटक में कांग्रेस के हार की बड़ी वजह जेडीएस और बसपा के साथ गठबंधन न करना रहा. इन दोनों को नजरअंदाज करना कांग्रेस को भारी पर गया है. कर्नाटक में19 फीसदी दलित मतदाता हैं. जबकि जेडीएस का मूल वोटबैंक वोक्कालिगा समुदाय कुल मतदाताओं का करीब 13 फीसदी है. जेडीएस नेता देवगौड़ा इसी समुदाय से आते हैं. कांग्रेस का जेडीएस के साथ गठबंधन न करने के चलते इन दोनों वोट बैंकों में बिखराव हुआ, जबकि वहीं बीजेपी का मूल वोटबैंक एकमुश्त रहा, और उसमें किसी तरह की कोई सेंधमारी नहीं हो सकी.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस, जेडीएसऔर बसपा मिलकर एक साथ कर्नाटक में चुनावी रण में उतरते तो नतीजे कुछ और होते. जैसे कि बसपा से गठबंधन का फायदा कुमारस्वामी की पार्टी जेडीएस को मिला. जेडीएस को उम्मीदों से ज्यादा सीटों की बढ़त इस बात का संकेत हैं कि दलित वोट कांग्रेस को नहीं मिले हैं, बल्कि बसपा से गठबंधन के कारण वो जेडीएस के साथ गया है. वहीं दूसरी ओर कर्नाटक में कांग्रेस उम्मीदवार कई सीटों पर बहुत कम वोटों से पीछे रहे.
कांग्रेस का जेडीएस और बसपा से गठबंधन नहीं करने के पीछे कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की जिद थी. तो वहीं अकेले लड़ने के नुकसान के अलावा कांग्रेस बेहतर ढंग से चुनावी प्रबंधन भी नहीं कर पाई. कांग्रेस ने ऐसी ही गलती त्रिपुरा में दोहराई थी. कांग्रेस वहां लेफ्ट के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतर सकती थी, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी.
जबकि भाजपा तमाम प्रदेशों में पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को जोड़ने के साथ-साथ नए उत्साह को भी संभालने में सफल रही है. भाजपा ने ताकतवर होने के बावजूद अपनी जीत को पक्का करने के लिए जहां भी जरूरत हुई गठबंधन का सहारा लिया. तो वहीं कमजोर होने के बावजूद कांग्रेस एकला चलो की राह पर चलती रही. जिसने कांग्रेस के साथ से अब कर्नाटक को भी छीन लिया है.
नई दिल्ली। कर्नाटक में सरकार बनाने से पहले मोदी के मंत्रालय में एक बार फिर फेरबदल की गई. इसमें स्मृति ईरानी को झटका लगा है जबकि रेलमंत्री पीयूष गोयल की जिम्मेदारी बढा दी गई है. सोमवार को हुए फेरबदल में स्मृति ईरान से सूचना व प्रसारण मंत्री का प्रभार छिने जाने से राजनीतिक चर्चा जोरो पर दिखा. तो वहीं रेलमंत्री को अतिरिक्त प्रभार सौंपे जानें पर भी आलोचना हुई.
प्राप्त जानकारी के अनुसार केंद्रीय मंत्रिपरिषद में फेरबदल करते हुए स्मृति ईरानी का सूचना एवं प्रसारण मंत्री पद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को सौंप दिया गया. बता दें कि राठौड़ इससे पहले सूचना प्रसारण राज्य मंत्री थे. उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है. इसके साथ ही रेल मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है.
सूचना व प्रसारण मंत्रालय की मंत्री बनने के बाद स्मृति ईरानी का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार कार्यक्रम के बाद उनकी कड़ी आलोचना की गई और कलाकारों ने भी विरोध जताया. इसी प्रकार मानव संसाधन मंत्री के कार्यकाल के दौरान भी स्मृति ईरानी का जमकर विरोध किया गया था. उसके बाद उन्हें कपड़ा मंत्रालय की जिम्मेदारी दे गई थी. वित्त मंत्री अरूण जेटली की तबियत खराब होने के कारण वित्त मंत्रालय का प्रभार पीयूष गोयल को सौंपा गया है. श्री जेटली का एम्स में ईलाज चल रहा है.