दलित समाज से ताल्लुक रखने वाले 1985 बैच के IAS अधिकारी हीरालाल सामरिया भारत के नए सूचना आयुक्त बनाए गए हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार 6 नवंबर को हीरालाल सामरिया को केंद्रीय सूचना आयोग के प्रमुख के रूप में शपथ दिलाई। पूर्व मुख्य आयुक्त वाई.के. सिन्हा का कार्यकाल तीन अक्टूबर को खत्म होने के बाद से यह पद खाली था। सामरिया राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले हैं। शपथ ग्रहण के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राज्यसभा के सभापति भी मौजूद रहें।
हीरालाल सामरिया बनें मुख्य सूचना आयुक्त, दलित समाज से है संबंध
फिर गरमाया जाति जनगणना का मुद्दा, अमित शाह पर भड़के लालू के लाल तेजस्वी
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बिहार में हुए जाति जनगणना में मुस्लिम और यादवों की संख्या जानबूझ कर ज्यादा बताने का आरोप लगाया है। वहीं दूसरी ओर अमित शाह ने अति पिछड़ों की संख्या को कम कर के गिनने का आरोप लगाया। रविवार 5 नवंबर को बिहार के मुजफ्फरपुर पहुंचे शाह ने कहा कि ऐसा लालू यादव के दबाव में किया गया है। साथ ही उन्होंने यह भी याद दिलाया कि बिहार की जाति जनगणना का श्रेय भाजपा को भी जाता है क्योंकि इसका निर्णय तब हुआ था जब सरकार में नीतीश कुमार के साथ भाजपा थी।
वहीं दूसरी ओर अमित शाह के इस आरोप पर बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने पलटवार किया है। तेजस्वी यादव ने कहा कि अमित शाह झूठ व भ्रम फैला रहे हैं। तेजस्वी ने पांच बिन्दुओं को सामने रखकर अमित शाह को करारा जवाब दिया है। तेजस्वी ने गृहमंत्री अमित शाह को चुनौती देते हुए कहा-
1. अगर बिहार के जातीय सर्वे के आँकड़े गलत है तो केंद्र सरकार पूरे देश और सभी राज्यों में जातीय गणना करा अपने आँकड़े जारी क्यों नहीं करती?
2. BJP शासित राज्यों में BJP जातिगत गणना क्यों नहीं कराती?
3. केंद्र सरकार में कितने 𝐎𝐁𝐂/𝐒𝐂/𝐒𝐓 कैबिनेट मंत्री है और कितने गैर 𝐎𝐁𝐂/𝐒𝐂/𝐒𝐓? इसकी सूची जारी करें। खानापूर्ति के लिए इक्का-दुक्का मंत्री है भी तो उन्हें गैर-महत्त्वपूर्ण विभाग क्यों दिया हुआ है?
4. BJP के कितने मुख्यमंत्री 𝐎𝐁𝐂/𝐒𝐂/𝐒𝐓 है? पिछड़ा और गैर-पिछड़ा मुख्यमंत्री का तुलनात्मक प्रतिशत बताएँ?
5. BJP के बिहार से केंद्र में कितने पिछड़ा और अतिपिछड़ा 𝐂𝐀𝐁𝐈𝐍𝐄𝐓 मंत्री है? 𝐙𝐄𝐑𝐎 है 𝟎?
जवाब देंगे, तो आपके साथ-साथ हिंदुओं की 𝟖𝟓% पिछड़ा और दलित आबादी की भी आँखें खुल जायेंगी।
मा॰ गृहमंत्री अमित शाह जी झूठ व भ्रम फैलाने की बजाय बताएँ कि:-
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) November 5, 2023
1. अगर बिहार के जातीय सर्वे के आँकड़े गलत है तो केंद्र सरकार पूरे देश और सभी राज्यों में जातीय गणना करा अपने आँकड़े जारी क्यों नहीं करती?
2. BJP शासित राज्यों में BJP जातिगत गणना क्यों नहीं कराती?
3. केंद्र सरकार… pic.twitter.com/QNxibHbdtf
भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ से दलित दस्तक के संपादक अशोक दास की Exclusive बातचीत

छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना एवं मिजोरम विधानसभा चुनाव की घोषणा
छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश और तेलंगाना एवं मिजोरम सहित पांच राज्यों में चुनाव के तारीखों की घोषणा हो गई है। चुनाव आयोग ने इन पांचों राज्यों में तारीखों का ऐलान कर दिया है। सबसे पहले मिजोरम में सात नवंबर, मध्यप्रदेश में 17 नवंबर, छत्तीसगढ़ में दो चरणों में 7 और 17 नवंबर, राजस्थान में 23 नवंबर और तेलंगाना में 30 नवंबर को चुनाव होंगे। नतीजे तीन दिसंबर को सामने आएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने इसकी घोषणा की।
पांचों राज्यों में कुल 679 सीटों पर वोटिंग होगी। इसमें 16 करोड़ मतदाता हिस्सा लेंगे। इसमें 8 करोड़ पुरुष जबकि 7.8 करोड़ महिलाएं हैं। 60 लाख से ज्यादा वोटर नए होंगे, जो पहली बार वोटिंग करेंगे। इस घोषणा के साथ ही राजनीतिक सरगर्मी भी बढ़ गई है। टिकटों को लेकर घमासान बढ़ गया है तो अब मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशियों का नाम भी निकल कर सामने आने लगा है। फिलहाल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। जबकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस की चुनी हुई सरकार थी। इसको ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने पाले में मिलाकर और सरकार गिराकर भाजपा ने अपनी सरकार बना ली। और सिंधिया केंद्र में मंत्री बने। तेलंगाना में केसीआर की सरकार है, जबकि मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है।
मुख्य चुनाव आयुक्त ने बताया कि 17 अक्टूबर को वोटर लिस्ट का प्रकाशन किया जाएगा। इसमें 23 तारीख तक संशोधन हो सकेगा। यानी मतदाताओं को ध्यान देना होगा कि 17 अक्टूबर को मतदाताओं की जो लिस्ट सामने आएगी, उसमें उनका नाम है या नहीं। अगर नहीं है तो वो 23 अक्टूबर तक उसे ठीक करवा सकते हैं। चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इसके मुताबिक अब आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को कम से कम तीन बार न्यूजपेपर में अपने बारे में बताना होगा। साथ ही, उनकी पार्टी को भी बताना होगा कि उन्होंने उम्मीदवार को टिकट क्यों दिया।
विधानसभा सीटों की बात करें तो, मिजोरम में- 40 सीटें, मध्यप्रदेश में- 230 सीटें, छत्तीसगढ़ में 90 सीटें, राजस्थान में 200 सीटें और तेलंगाना में 119 सीटें हैं। अब तीन दिसंबर को तय होगा कि सत्ता में किसकी वापसी होगी, कौन आउट होगा। यह चुनावी नतीजे 2024 में लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक दलों के लिए एक सेमीफाइनल है।
स्वीडन में हुए ग्लोबल इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कांफ्रेंस से इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म को मिली नई धार
कांफ्रेंस दरअसल होता क्या है; इसकी शाब्दिक समझ तो थी, लेकिन कांफ्रेंस के दौरान दरअसल क्या होता है, और उसका मकसद क्या होता है, यह पहले कनाडा तो अब स्वीडन आकर पता चला। स्वीडन में इसको लेकर समझ ज्यादा बढ़ी। यह कांफ्रेंस एतिहासिकता लिए था। यह उस स्वीडन देश में था जहां से दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार शुरू हुआ। तो जिस गोथनबर्ग शहर को इसके लिए चुना गया वहां से शानदार गाड़ियां बनाने वाली दुनिया की प्रतिष्ठित कंपनी Volvo की शुरूआत हुई। ग्लोबल इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क (GIJN) द्वारा आयोजित ग्लोबल इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कांफ्रेंस 2023 (GIJC23) मेरे लिए इस मायने में खास रहा क्योंकि इसने मेरी पत्रकारिता की समझ के भी कई दरवाजे खोले।
विदेशी पत्रकारों से मिलना और बातचीत करना कुछ मौकों पर हुआ है, लेकिन अपने 17 साल की पत्रकारिता में यह मेरा पहला मौका था, जब मैं दुनिया भर के पत्रकारों के बीच था। उनसे बात कर पा रहा था, उनके यहां की पत्रकारिता समझ रहा था। इस कांफ्रेंस में सिर्फ पत्रकार नहीं, बल्कि अमेरिका से लेकर यूके सहित दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से तमाम बड़े अखबारों के संपादकों के साथ-साथ पत्रकारिता पढ़ाने वाले प्रोफेसर्स भी मौजूद थे, तो पत्रकारों को कानूनी सपोर्ट करने वाले संगठन मीडिया डिफेंस के Carlos Gaio से भी मुलाकात हुई।
अमेरिका और यूरोप जैसे शहरों के पत्रकार तो कई मौकों पर टकराते रहे हैं, लेकिन पहली बार नाइजीरिया, फिजी, सिंगापुर, पड़ोसी नेपाल और बांग्लादेश के पत्रकारों से मिला। वहीं पर अमन अभिषेक भी मिल गए। अमन पत्रकारिता में तो नहीं हैं, लेकिन वह युनाईटेड स्टेट के University of Wisconsin Madison से पीएच.डी कर रहे हैं। मैं फिजी से प्रकाशित होने वाले फिजी टाइम्स अखबार के एडिटर Fred Wesley, ताईवान के Yian Lee से और बांग्लादेश के पत्रकार Jewel Gomes से मिला। मैं उन देशों का जिक्र कर रहा हूं, जो लगातार विकसित हो रहे हैं, वहां पत्रकारिता की चुनौतियां भी बहुत हैं। इन तमाम देशों के पत्रकारों को ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क जिस तरह एक मंच पर लेकर आया था, वह बेहद महत्वपूर्ण था।
इन सबसे बात करना, उनके देश में पत्रकारिता की स्थिति के बारे में सुनना और समझना शानदार था। और बातचीत से एक बात तो समझ में आ गई कि किसी भी देश की मीडिया फ्री नहीं है। हां, भारत के कई मीडिया संस्थानों जैसे सत्ता के पैरों में लोटने का काम भी वो नहीं करते। उन्होंने बीच का एक रास्ता निकाल रखा है, और पत्रकारिता की मर्यादा को बचाए हुए हैं।
इस कांफ्रेंस में 125 देशों के करीब 2000 से ज्यादा मीडिया के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोग शामिल हुए। इसके लिए दुनिया भर से 300 पत्रकारों को फेलोशिप दी गई थी। यह कांफ्रेंस खासतौर पर इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म यानी खोजी पत्रकारिता को प्रोत्साहित करने के लिए, उन्हें ग्लोबल वर्ल्ड से जोड़ने और खोजी पत्रकारिता करने वाले लोगों को संरक्षण देने के लिए और उन्हें तमाम अन्य जानकारियां उपलब्ध कराने के लिए था, ताकि वो अपना काम बेहतर कर सकें। 19 से लेकर 22 सितंबर, 2023 तक चार दिनों तक लगातार कई सेशन हुए। सुबह नौ बजे से शाम को 7.30 तक सेशन चले। एक समय में कई अलग-अलग विषयों पर अलग-अलग एक्सपर्ट अपनी बात रख रहे थे। पत्रकारिता की नई तकनीक AI पर बात हुई तो वॉच डॉग जर्नलिज्म पर भी बात हुई। इलेक्शन, क्लाइमेट चेंज, अनकवर्ड इंवेस्टिगेशन, हेल्थ केयर इंवेस्टिगेशन, डिजिटल सिक्योरिटी जैसे विषयों पर इसके एक्सपर्ट ने बेहतर काम करने का रास्ता दिखाया। दक्षिण एशिया में पत्रकारिता की चुनौतियों पर बात हुई। ऑन लाइन हरासमेंट से कैसे डिल किया जाए।

खास बात यह रही कि सिर्फ पत्रकारिता के विषयों को ही नहीं समझाया गया, बल्कि एक संस्थान कैसे मजबूत किया जा सकता है, किसी छोटे संस्थान को बढ़ाने की बिजनेस स्ट्रेटजी क्या होती है, फंड रेजिंग कैसे होती है और मोबाइल जर्नलिज्म को बेहतर तरीके से कैसे किया जा सकता है, यह भी बताया गया।
विदेशी संस्थानों की एक खासियत है। वो सीखाने के साथ-साथ संपर्क बनाने और फिर दिन का सेशन खत्म होने के बाद

शाम को म्यूजिक और मस्ती के जरिये दुनिया भर के लोगों को पास आने का मौका मुहैया करवाते हैं। वहां यह भी हुआ। अवार्ड नाइट जो ऐतिहासिक था। दुनिया भर में बेहतरीन इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म करने वाले पत्रकारों को यहां सम्मानित किया गया।
गाला रिसेप्शन के दौरान एक ही हाल में दुनिया भर के हजारों पत्रकारों की मौजूदगी एक अलग नजारा पेश कर रही थी। सभी बेहतर पत्रकारिता के लिए इकट्ठा हुए थे। सभी बेहतर पत्रकारिता करना चाहते थे। जो सबसे शानदार रहा वह डायरेक्टर डेविड कपल्न की बात रही, जिन्होंने साफ कर दिया कि दुनिया के किसी भी हिस्से में इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म करने वाला पत्रकार अकेला नहीं है, बल्कि GIJN उसके साथ है।इस दौरान जीआईजेएन को अपना नया एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर भी मिल गया। पिछले दस सालों से एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर रहने वाले डेविड कपल्न (Devid Kaplan) ने अपना पद छोड़ दिया, जिसके बाद अवार्ड विनिंग जर्नलिस्ट Emilia Diaz Struck ने नई एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर का पद संभाला। कहा जा सकता है कि दुनिया भर में खोजी पत्रकारिता (इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म) को बढ़ाने के लिए ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क शानदार काम कर रहा है। स्वीडन के गोथनबर्ग शहर में हुए इस कांफ्रेंस से इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म को और धार ही मिलेगी।
#GIJC23 स्वीडन डायरी, एपिसोड-01

टर्किश एयरलाइंस में मेरे बग़ल में Yian Lee और Jewel Gomes बैठे हैं। Yian ताइवान में पत्रकार हैं और Jewel बांग्लादेश में पत्रकारिता कर रहे हैं। हम तीनों GIJN कांफ्रेंस के लिए स्वीडन जा रहे हैं। इस फ्लाइट में अलग- अलग देशों के तक़रीबन दो दर्जन से ज़्यादा जर्नलिस्ट हैं जो कांफ्रेंस के लिए जा रहे हैं। हर रंग, रूप और भाषा के लोग। We can say this is like a small world of journalist. हमारी बातचीत शुरू है। हम एक-दूसरे के बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी पत्रकारिता के बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं।
Yian और Jewel इस बात को जानकर हैरान थे की भारत के विपक्षी दलों ने लिस्ट जारी कर कुछ पत्रकारों को इसलिए बैन किया है क्योंकि वो सत्ता के पिछलग्गू बने हुए हैं। लेकिन दोनों ये भी कह रहे हैं कि मीडिया कहीं भी फ्री नहीं है। बावजूद इसके दुनिया भर के जर्नलिस्ट ईमानदारी से अपने हिस्से का काम कर रहे हैं। खोजी पत्रकारिता सहित अन्य विधा की पत्रकारिता को और बेहतर तरीक़े से कैसे किया जा सकता है, इस पर बात करने के लिए इकट्ठा हो रहे हैं।
19-22 सितंबर, 2023 तक स्वीडन के Gothenburg में Global Investigative Journalism Conference में 50 से ज़्यादा विषयों पर बात होनी है। 200 देशों के दो हज़ार से ज़्यादा पत्रकार इसमें शामिल हो रहे हैं। इसमें दुनिया भर के अपने विषयों के दिग्गज पत्रकार अपनी बात रखेंगे। सिखाएँगे। गोथेनबर्ग शहर दिखने लगा। मेरी फ्लाइट यूरोप के स्वीडन के धरती पर लैंड होने जा रही है। तापमान 18 डिग्री है।
(18 सितंबर, 2023 को भारत से स्वीडन जाते हुए टर्किश एयरलाइंस के विमान में)
राजस्थान में फिर इंद्र मेघवाल जैसा मामला
उम्मीद है कि राजस्थान में इंद्र मेघवाल का मुद्दा दलित समाज के लोग भूले नहीं होंगे, जहां एक सवर्ण शिक्षक का मटका छूने के कारण इंद्र मेघवाल को शिक्षक ने ऐसा पीटा कि कुछ दिनों बाद इस बच्चे की मौत हो गई थी।
ऐसा ही एक और शर्मनाक मामला फिर से राजस्थान के ही भरतपुर से सामने आया है। जिले के भीमनगर स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक ने 7वीं कक्षा के दलित छात्र को बेरहमी से महज इसलिए पीट दिया कि छात्र ने टंकी में पानी नहीं होने पर स्कूल में स्टॉफ के लिए रखे वॉटर कैंपर से पानी पी लिया। पीड़ित छात्र के भाई रनसिंह ने शिक्षक के खिलाफ मामला दर्ज कराया है।
भीमनगर पहरिया अंबेडकर कॉलोनी निवासी पीड़ित छात्र रविंद्र जाटव ने बताया कि वह भीमनगर के सरकारी स्कूल में 7वीं कक्षा का छात्र है। शुक्रवार 8 सितंबर को रोजाना की तरह उसने और अन्य बच्चों ने कक्षा कक्ष की सफाई की थी। प्रार्थना के बाद पानी पीने के कैंपर आ गए थे। प्यास लगने पर वह टंकी पर गया, लेकिन उसमें पानी नहीं था।
इस पर उसने दो अन्य छात्रों को देखकर स्कूल स्टॉफ के लिए रखे कैंपर से बोतल में पानी भरकर पी लिया। स्कूल के सर गंगाराम गुर्जर नाराज हो गए। उन्होंने कक्षा में तीनों बच्चों को खड़ा कर दिया। लेकिन सर ने अपने सजातीय दोनों बच्चों को तो बिठा दिया और उसकी डंडे और घूंसों से पिटाई कर दी।
इस घटना के बाद दलित समाज के स्थानीय लोगों ने हाईवे रोक दिया और इंसाफ कि मांग की। हालांकि स्कूल प्रशासन अब अपने बचाव में मामले की लीपापोती में जुटा है। आए दिन दलित समाज के छात्रों के साथ स्कूल में हो रहे इस तरह के जातिवाद समाज की जातिवादी सोच की कलई खोलने के लिए काफी है।
राम मंदिर की आरती में दलितों का आरक्षण
दलितों और आदिवासियों को छोड़कर देश के तमाम मंदिरों के दरवाजे आम तौर पर हिन्दू समाज के सभी लोगों के लिए हर दिन खुले रहते हैं। लेकिन अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में प्रवेश और आरती के लिए हर दिन अलग-अलग जातियों के लोगों के लिए आरक्षित करने की एक दिलचस्प मांग सामने आई है। इसमें दो दिन दलितों के लिए भी आरक्षित करने की मांग की गई है। यह मांग है जगतगुरु परमहंस आचार्य की।
नए साल 2024 में मकर संक्रांति के बाद अयोध्या के राम मंदिर के गर्भ गृह में राम लला कि प्राण प्रतिष्ठा होनी है। इसके बाद से राम मंदिर के दरवाजे आम जनता के लिए खुलने हैं। इसको देखते हुए जगतगुरु परमहंस आचार्य ने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को एक पत्र भेजा है। इसमें उन्होंने अलग-अलग दिन अलग-अलग जाति और वर्ग के लोगों द्वारा राम लला की आरती कराए जाने की मांग की है।
परमहंस आचार्य ने राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को एक पत्र भेजा है। इसमें एक साप्ताहिक कैलेंडर चार्ट दिया गया है और बताया गया है कि राम लला मंदिर में हर दिन किस जाति और क्षेत्र के लोगों के लिए आरक्षित हो।
चार्ट के मुताबिक जगतगुरु परमहंस आचार्य का कहना है कि राम मंदिर में रविवार के दिन क्षत्रिय समाज के लोग पूजा और आरती करें। सोमवार का दिन पिछड़े समाज के लिए आरक्षित हो, मंगलवार के दिन राममंदिर में ऐसे लोगों को पूजा और आरती करने दिया जाए जो पराक्रमी हैं और जिन्होंने गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया है। बुधवार के दिन अंतरिक्ष वैज्ञानिक, और बड़े लेखक, साहित्यकार, कवि आदि साहित्यिक दुनिया के लोग आरती करें। बृहस्पतिवार का दिन जगतगुरु, शंकराचार्य समेत धर्माचार्य और साधु-संतों एवं ब्राह्मणों के लिए आरक्षित हो। जबकि शुक्रवार और शनिवार को दलित समाज द्वारा आरती कराई जाए।
जगतगुरु का तर्क है कि ऐसा करने से छुआछूत का भाव खत्म होगा। उनका कहना है कि उनकी मांग नहीं मानी गई तो वह अन्न-जल त्याग देंगे और बड़ा आंदोलन करेंगे।
हालांकि राम मंदिर ट्रस्ट ने फिलहाल ऐसे किसी पत्र के मिलने से इंकार किया है। लेकिन जगतगुरु परमहंस आचार्य की अजीबो गरीब मांग से बहस शुरू हो गई है कि आखिर ऐसी मांग से समाज में छूआछूत का भाव कैसे खत्म हो जाएगा? अगर कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति जैसे लेखक, साहित्यकार, गोल्ड मेडेलिस्ट खिलाड़ी दलित या पिछड़े समाज का होगा, तो उसे दलितों और पिछड़ों के लिए आरक्षित दिन पर जाना होगा या फिर प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए आरक्षित दिन पर? बाबा रामदेव को ये लोग शूद्र मानेंगे या फिर संत? राष्ट्रपति को प्रतिष्ठित व्यक्ति माना जाएगा या आदिवासी समाज का व्यक्ति?
दरअसल इस तरह के तमाम धर्माचार्य असल में हिन्दू धर्म की बुराईयों को दूर करने के चाहे जो दावे करें, जमीन पर वह हिन्दू धर्म में फैली कुरितियों और छूआछूत पर वो कुछ भी कहने से परहेज करते हैं। आए दिन दलितों पर जाति के कारण होने वाले तमाम अत्याचार पर ये कभी भी खुल कर नहीं बोलते। दलितों को मंदिरों में जाने पर मारने-पीटने जैसी घटना पर भी ऐसे संतों ने कभी भी आंदोलन करने या फिर अनशन करने की धमकी नहीं दी। इसी तरह दलित समाज से संबंध रखने वाले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ ओडिशा के जगन्नाथपुरी मंदिर में जब धक्का-मुक्की की गई थी, तब हिन्दू धर्म के धर्माचार्यों ने इसकी कड़ी निंदा नहीं की, न ही इसे गलत बताते हुए इसके खिलाफ आंदोलन करने को कहा।
ऐसे में राम मंदिर मामले में इस तरह का शिगूफा छोड़ना समझ से परे है। बेहतर यह होता कि जगतगुरु परमहंस आचार्य और उन जैसे अन्य धर्माचार्य जाति के कारण हर दिन दलितों पर हो रहे अत्याचार को लेकर ऊंची जाति और अन्य मजबूत जातियों के खिलाफ आवाज उठाते और अनशन और आंदोलन की घोषणा करते, तब शायद बेहतर संदेश जाता।
घोसी उप चुनाव नतीजे के मायने
सात सीटों पर हुए उपचुनाव में तीन पर भाजपा जीती जबकि चार पर इंडिया गठबंधन के दल। इस उप चुनाव में जिस सीट की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, वह है उत्तर प्रदेश की घोसी सीट। जहां समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह ने भाजपा के दारा सिंह चौहान को 42,759 वोटों से हराया।
यहां भाजपा की ओर से दारा सिंह चौहान मैदान में थे, जबकि समाजवादी पार्टी की ओर से सुधाकर सिंह। दारा सिंह चौहान इसी सीट से सपा के विधायक थे और 22 हजार वोटों से जीते थे, लेकिन मंत्री पद की लालच में वह भाजपा में चले गए। फिर घोसी के विधायक पद से इस्तीफा देकर उप चुनाव की स्थिति पैदा की। भाजपा के टिकट पर घोसी से चुनाव लड़े।
भाजपा के लिए यह प्रतिष्ठा की सीट थी। भाजपा इसे किसी भी कीमत पर जीत कर 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष पर मनो वैज्ञानिक बढ़त बनाना चाहती थी। दारा सिंह चौहान के लिए प्रचार करने के लिए दर्जन भर से ज्यादा मंत्रियों ने घोसी में चुनाव प्रचार किया। इसके अलावा यूपी के दोनों उप मुख्यमंत्री और खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी दारा सिंह चौहान के पक्ष में प्रचार करने गए। बावजूद इसके भाजपा यह सीट हार गई।
यह तब हुआ जबकि ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद ने भाजपा की ओर से यहां प्रचार किया था, जिनके वोट इस सीट पर निर्णायक थे। घोसी में 55 हजार राजभर, 19 हजार निषाद, 8 हजार ब्राह्मण और 15 हजार ठाकुर मतदाता थे, जो भाजपा के वोट बैंक माने जाते है। बावजूद इसके दारा सिंह चौहान की करारी हार ने उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरण से लेकर भाजपा के वर्चस्व को तोड़ दिया है।
समाजवादी पार्टी की बड़ी जीत ने भाजपा को चारो खाने चित्त कर दिया है। इसे लोकसभा चुनाव के पहले जनता का मूड कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन यह साफ है कि जनता किसी पार्टी को आंख मूंद कर सपोर्ट करने की बजाए उम्मीदवारों को भी तरजीह दे रही है। यह आने वाले राजनीति के लिए अच्छा संकेत है।
दलितों पर फूटा मुस्लिमों का कहर
बीते कुछ दिनों में दलितों के ऊपर मुस्लिम समाज के द्वारा अत्याचार की खबरें सुर्खियों में आनी शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले और महाराज गंज से आने वाली खबर चौंकाने वाली है। यूपी के देवरिया में बीते शनिवार दो सितंबर को दलित समाज के शिक्षक परशुराम भारती को महज इसलिए पीट कर मार डाला गया क्योंकि उन्होंने रास्ता रोके जाने का विरोध किया था।
घटना देवरिया जिले के थाना गौरी बाजार के नगरौली गांव की है। परशुराम भारती रात को बाजार से अपने घर लौट रहे थे। इम्तियाज और उसका परिवार घर के सामने रास्ते में चारपाई और कुर्सी लगाकर बैठा था। इस बात पर परशुराम भारती ने विरोध किया। जिस पर इम्तियाज के घरवालों ने हमला कर दिया। परशुराम को इतना पीटा गया कि उसकी मौत हो गई।
दूसरी घटना में दलित समाज की एक युवती ने भाजपा नेता पर रेप और पिता की हत्या का आरोप लगाया है। प्रदेश के महाराजगंज जिले में भाजपा नेता पर दलित किशोरी के साथ दुष्कर्म के बाद उसके पिता की हत्या करने का आरोप लगा है। पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर कर आरोपी नेता को हिरासत में ले लिया है। आरोपी का नाम राही मासूम रजा है और वह भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का जिलाध्यक्ष है।
मोदी सरकार का ‘इंडिया’ के खिलाफ अभियान
9 और 10 सितंबर को राजधानी दिल्ली में जी-20 समिट के आयोजन के लिए छपे निमंत्रण पत्र के सामने आने के बाद बवाल मच गया है। दरअसल राष्ट्रपति की ओर से डिनर के लिए भेजे गए निमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा है, जिस पर नाराजगी जताते हुए कांग्रेस पार्टी ने इसे देश के संघीय ढांचे पर हमला बोला है। साथ ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
डिनर इंविटेशन के लिए छपे इस कार्ड के बाद कई तरह की चर्चा शुरू हो गई है। एक कयास यह लगाया जा रहा है कि क्या केंद्र सरकार देश का नाम जिसे अंग्रेजी में इंडिया और हिन्दी में भारत लिखा जाता है, में से इंडिया हटाने जा रही है।
चर्चा यह भी शुरू हो गई है कि 18-22 सितंबर तक संसद के विशेष सत्र के दौरान सरकार भारतीय संविधान से इंडिया शब्द हटाने से जुड़े बिल को पेश कर सकती है। ऐसे में देश का नाम सिर्फ भारत बुलाये जाने को लेकर बहस तेज हो गई है।
विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि जब से विपक्ष ने अपने गठबंधन का नाम इंडिया रखा है, तभी से भाजपा में खलबली है। भाजपा वाले किसी भी हाल में इंडिया कहने से बचने लगे हैं। कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस मुद्दे को उठाते हुए पीएम मोदी पर चुटकी ली है और अपने अंदाज में घेरा है।
दरअसल भारतीय संविधान के अनुच्छेद-1 में भारत को लेकर दी गई परिभाषा में साफ तौर पर ‘इंडिया दैट इज भारत’ लिखा हुआ है। लंबे समय से देश का नाम सिर्फ भारत रखने को लेकर चर्चा होती रहती है। इंडिया हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई थी लेकिन सर्वोच्च न्यायलय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि पहले से ही संविधान में भारत नाम कहा गया है। ऐसे में यह चर्चा बेमानी हो जाती है। एक सवाल वक्त को लेकर भी उठ रहा है, कहा जा रहा है कि भाजपा वाले ऐसा सिर्फ इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि विपक्षी गठबंधन ने अपना नाम इंडिया रख लिया है। फिहलाल इस मुद्दे पर बहस तेज हो गई है। देखना होगा कि सरकार की मंशा आखिर है क्या?
“भारत में सबसे प्राचीन या सनातन धर्म तो श्रमण धम्म और संस्कृति है”
उदय निधि स्टालिन ने बयान (2 सितंबर, 2023) दिया है कि “सनातन धर्म का केवल विरोध नहीं, बल्कि उसका उन्मूलन करना है, खत्म करना है।” इस पर भाजपा,आर एस एस, बजरंग दल, हिन्दू महासभा आदि सहित सभी ब्राह्मणवादी संगठनों से जुड़े संत और नेता बौखला गए हैं और तरह तरह से बिलबिला रहे हैं। भारत में सबसे प्राचीन या सनातन धर्म तो श्रमण धम्म और संस्कृति है। ब्राह्मणवादियों का आर्य- ब्राह्मण धर्म तो केवल 1750 ईसापूर्व में भारत पर आर्य ब्राह्मणों के आक्रमण के बाद आया है और अभी तक केवल लगभग 3500 वर्ष पुराना है, जबकि श्रमण धम्म और संस्कृति लगभग 5500 वर्ष पुराना है।
ब्राह्मणवादी सनातन धर्म (तथाकथित हिन्दू धर्म) का सामाजिक एवं सांस्कृतिक आधार ही हैं- ऊंच-नीच पर आधारित वर्ण-व्यवस्था एवं जाति व्यवस्था, लिंग- विभेद पर आधारित परिवार एवं समाज व्यवस्था और ब्राह्मण पुरुषों की पवित्रता -श्रेष्ठता एवं अन्य लोगों की अपवित्रता-हीनता, छुआछूत, अन्धविश्वास और अवैज्ञानिक विचारों पर आधारित देवी- देवताओं के लिए जीवन भर चलने वाले कर्मकांड एवं पूजा- पाठ, हिंसा और नफरत आदि।
लेकिन सनातन श्रमण धम्म एवं संस्कृति का आधार ही है- मानवता, बराबरी, स्वतंत्रता, भाईचारा और न्याय। श्रमण धम्म एवं संस्कृति के शील, नैतिकता और विचार ही भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित हैं।
उदय निधि स्टालिन एवं अन्य लोगों ने ब्राह्मणवादी, अमानवीय और असंवैधानिक ब्राह्मणवादी सनातन धर्म को उन्मूलन करने की बातें कही हैं, क्योंकि यह धर्म मानवता, संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध हैं। ये बातें तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13(1) में भी अन्तर्निहित हैं कि संविधान लागू होने के पहले भारत में प्रवृत्त (चल रही) विधियां उस मात्रा तक शून्य होंगी जो संविधान के भाग- 3 में नागरिकों के मौलिक अधिकारों से असंगत होगी यानी जो धार्मिक नियम, परंपरा, प्रथाएं और रुढ़ियां समानता स्वतंत्रता, भाईचारा और न्याय के विरुद्ध हैं वे शून्य (खत्म) किए जाते हैं।
वास्तव में अगर हम संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करते हैं और भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाने के लिए संकल्प लिए हैं तो हमें ब्राह्मणवादी सनातन धर्म, संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था को खत्म कर समानता, भाईचारा और न्याय को स्थापित करना ही होगा।
अडानी ग्रुप की फ्रॉडगिरी पर बड़ी रिपोर्ट, मचा हंगामा
ब्रिटेन के मीडिया संस्थान Financial Times और The Guardian ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मित्र कारोबारी गौतम अडानी को लेकर एक बड़ा धमाका किया है। इस मीडिया संस्थान में अडानी समूह के फ्रॉडगिरी पर दो बड़ी रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अडानी ग्रुप ने गुपचुप तरीके से खुद अपने शेयर खरीदकर स्टॉक एक्सचेंज में लाखों डॉलर का निवेश किया। यह रिपोर्ट ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) की रिपोर्ट के आधार पर किया गया है।
रिपोर्ट मे अडानी ग्रुप के मॉरीशस में किये गए ट्रांजैक्शंस की डीटेल का पहली बार खुलासा करने का दावा किया गया है। कहा गया है कि ग्रुप की कंपनियों ने 2013 से 2018 तक गुपचुप तरीके से अपने शेयरों को खरीदा। जांच में सामने आया है कि कम से कम दो मामले ऐसे हैं जहां निवेशकों ने विदेशी कंपनियों के जरिये अडानी ग्रुप के शेयर खरीदे और बेचे हैं।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद अडानी ग्रुप के शेयर तेजी से नीचे गिरे हैं। हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी 2.0 कि यह फाइल चीख-चीख कर बता रही है कि मॉरीशस में फर्जी शेल कंपनियां चला रहे Chang Ching Ling और दुबई के Nasser Ali Shaban Ahil साल 2013 से अपना ब्लैक मनी और हवाला का पैसा अपनी कंपनियों में लगा रहे हैं। अडानी बंधुओं यानी गौतम अडानी और विनोद अडानी के जरिये मॉरीशस, the British Virgin Islands, UAE देशों में शेल कंपनियाँ बनाईं गईं। ये शेल कंपनियाँ Adani की कंपनियों से लिंक थीं। क्योंकि ये दोनों ही चीनी (ताइवानी) और UAE के एजेंट Adani से जुड़ी कंपनियों में डायरेक्टर रहे हैं।
इसे लिखते समय पत्रकारों ने अदानी समूह के काले कारनामों की तमाम फाइलें खोज निकाली। यहां तक कि अदानी समूह की आंतरिक ईमेल तक। सारे दस्तावेजी सबूत भारत के बिके हुए दलाल गोदी मीडिया को नहीं, बल्कि ब्रिटेन के द गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स को दिए गए। OCCRP की रिपोर्ट कहती है कि अदानी के 75% शेयर्स मॉरीशस में बैठे इन दो लोगों के हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक दूसरे शब्दों में कहें तो गौतम अदानी की दौलत का 75% काला धन है।
हालांकि अडानी समूह ने एक बयान जारी कर इन तमाम आरोपों से इंकार किया है।मायावती के अकेले चुनाव लड़ने से किसको होगा फ़ायदा
बसपा प्रमुख मायावती ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि वह न तो एनडीए में जाएंगी और न ही इंडिया गठबंधन में। इसके बाद अब दो सवाल सामने है। पहला, बहनजी के इस फैसले से दोनों गठबंधनों में से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान। दूसरा, बसपा का यह फैसला कितना सही है।
दरअसल बसपा प्रमुख मायावती ने कभी नहीं कहा कि वो किसी गठबंधन के साथ जाएंगी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से मीडिया का एक तबका यह खबर चला रहा था कि मायावती इंडिया गठबंधन में जा सकती हैं और उनकी बातचीत हो रही है। और उन्होंने 40 सीटों की अपनी शर्त रख दी है। जिसके बाद बहनजी को एक बार फिर सामने आकर साफ शब्दों में इससे इंकार करना पड़ा। और साफ करना पड़ा कि बसपा चार राज्यों के विधानसभा और फिर 2024 में लोकसभा चुनाव मैदान में अकेले ही जाएंगी।
लेकिन यहां एक सवाल यह भी है कि क्या इंडिया गठबंधन यह चाहता था कि मायावती गठबंधन में शामिल हों? क्योंकि जब गठबंधन को लेकर पहली बैठक आयोजित की गई तो उसमें बहुजन समाज पार्टी को न्यौता तक नहीं दिया गया। यानी साफ है कि इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियां और नेता भी बसपा को गठबंधन में नहीं रखना चाहते थे। ऐसे में यह कहना कि मायावती और बसपा गठबंधन में शामिल नहीं हो रहे हैं, अपने आप में बेतुका सवाल है।
अब सवाल है कि बहनजी के अकेले चुनाव मैदान में जाने से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान? यह साफ है कि बसपा और बहनजी के समर्थक किसी भी हालत में भाजपा को वोट नहीं देते हैं। यानी अगर बहनजी को शुरुआत से ही इंडिया गठबंधन में शामिल करने की कोशिश की जाती और बसपा प्रमुख इसके लिए हामी भरती, तो निश्चित तौर पर इंडिया गठबंधन को बसपा के वोट मिलते। यूपी के अलावा यह वोट कमोबेश पूरे देश में मिलते।
यानी बसपा का कोर वोटर बहनजी के साथ रहेगा। वह इंडिया गठबंधन में नहीं जाएगा तो राजनैतिक रुप से भारतीय जनता पार्टी को बसपा की वहज से होने वाला नुकसान नहीं होगा और इंडिया गठबंधन को फायदा नहीं मिलेगा। इसी को आधार बनाकर तमाम विरोधी बसपा को भाजपा की बी-टीम होने का आरोप लगाते रहते हैं।
अपने आज के ट्विट में बहनजी ने इसका भी जवाब दिया है। बसपा प्रमुख मायावती का कहना है कि, वैसे तो बीएसपी से गठबंधन के लिए यहाँ सभी आतुर हैं, किन्तु ऐसा न करने पर विपक्षी द्वारा खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे की तरह भाजपा से मिलीभगत का आरोप लगाते हैं। इनसे मिल जाएं तो सेक्युलर न मिलें तो भाजपाई। यह घोर अनुचित तथा अंगूर मिल जाए तो ठीक वरना अंगूर खट्टे हैं, की कहावत जैसी है।
यह तो रही दोनों पक्षों की स्थिति। लेकिन यहां एक बड़ा सवाल यह है कि बसपा का फायदा किसमें है, गठबंधन में, या फिर अकेले रहने में।
निश्चित तौर पर बसपा देश की एक कद्दावर राजनीतिक दल है और देश के कई राज्यों में पार्टी ने अपना दम भी दिखाया है। लोकतंत्र में 20-25 प्रतिशत का वोट बैंक रखने वाली पार्टी को कम कर के नहीं आंका जा सकता है। लेकिन बीते एक दशक में बसपा का ग्राफ लगातार नीचे गया है। इस बीच में सिर्फ बीते लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी तब थोड़ा बेहतर प्रदर्शन कर पाई थी, जब यूपी में सपा और बसपा ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था। इस एक मौके को छोड़ दें तो बसपा का ग्राफ लगातार गिरा है।
बसपा की राजनीति की बात करें तो वह चुनाव के बाद गठबंधन में यकीन करने वाली पार्टी है। लेकिन 2017 के यूपी चुनाव में 19 सीट जीतने और 22 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली बसपा 2022 में एक सीट और 13 प्रतिशत वोट तक नीचे गिर चुकी है।
यानी बसपा का कोर वोटर कहीं न कहीं उससे छिटक रहा है। खास कर गैर जाटव दलित वोटर। चिंता की बात यह है कि आकाश आनंद को युवा चेहरे के रुप में सामने लाने और तेलंगाना बसपा की कमान पूर्व आईपीएस अधिकारी आर.एस. प्रवीण को देने के अलावा मायावती ने बीते सालों में पार्टी को मजबूत करने के लिए कोई खास कदम उठाया हो, ऐसा नहीं दिखता। पार्टी के तमाम पुराने साथी भी बसपा छोड़ चुके हैं या फिर निकाले जा चुके हैं।
ऐसे में बसपा के गठबंधन में शामिल होने या न होने से भले जिसे भी फायदा या नुकसान हो, खुद बसपा के लिए 2024 का चुनाव अस्तित्व की लड़ाई वाला होगा। अगर मायावती इस चुनाव में अपनी घोषणा के मुताबिक अकेले चुनाव लड़ती हैं तो उनके पास संभवतः यह आखिरी मौका होगा; जब वो बसपा को एक बार फिर राजनीतिक के मैदान में खड़ा कर सकें। यह सालों तक बसपा और मायावती के लिए तमाम विपरीत परिस्थियों में लड़ने वाले बसपा समर्थकों के लिए भी जरूरी है।
तोहफा या 200 रुपये का चुनावी लॉलीपॉप
राजनीति में जब नेता को सत्ता से बाहर जाने का डर सताने लगे तो वह सबसे पहले देश की जनता को लालच देना शुरू कर देता है। और जब चुनाव पास हो तो वह समय सत्ता रुपी ऊंट का जनता रुपी पहाड़ के नीचे आने का होता है। भाजपा की सरकार ने यही किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एलपीजी की कीमत को 200 रुपये कम करने की घोषणा की है। देश के तमाम समाचार पत्रों में करोड़ो रुपये खर्च कर इसे रक्षाबंधन से पहले बहनों को दिया जाने वाला गिफ्ट बताया गया है। लेकिन सवाल यह है कि बीते साढ़े नौ सालों में मोदी सरकार ने उन्हीं बहनों से जो वसूल किया है उसका क्या? क्या तब पीएम मोदी को अपनी बहनें याद नहीं आई?
कांग्रेस पार्टी इसे इंडिया गठबंधन का डर बता रही है। कांग्रेस नेता और प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला का कहना है कि जहां कांग्रेस पार्टी की सरकार है, वहां वह 500 रुपये में गैस सिलेंडर दे रही है, जिसकी वजह से भाजपा डर गई है। सुरजेवाला ने एलपीजी को परिभाषित करते हुए L-लूटों, P- प्रॉफिट कमाओ और G-गिफ़्ट देने का नाटक करो! कहा है।
पक्ष और विपक्ष के आरोपों के बीच इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता कि गैस सिलेंडर और पेट्रोल की बढ़ती कीमतों ने देश की 90 फीसदी आबादी को प्रभावित किया है। मोदी सरकार में गैस की कीमते साल दर साल बेतहाशा बढ़ी है। पिछले तीन सालों में तो इसने सभी रिकार्ड को तोड़ दिया।
जो गैस सिलेंडर 01 मार्च 2014 को कांग्रेस-यूपीए की सरकार में सिर्फ 410 रुपये था, भाजपा-एनडीए की सरकार में वह साल दर साल बढ़ता गया। मोदी सरकार के आते ही 01 मई 2014 को यह कीमत 616 रुपये हो गई थी, जो 01 मई 2021 को 809 रुपये, 01 मई 2022 को 949 रुपये और 01 मई 2023 को 1103 रुपये हो गया है।
अब सवाल यह है कि बीते साढ़े नौ सालों के भीतर तमाम राज्यों के साथ-साथ एक बार लोकसभा का चुनाव भी हो चुका है, तब भाजपा ने कभी पेट्रोल से लेकर गैस सिलेंडर की कीमतों में कोई भारी कटौती नहीं की, बल्कि मूल्य लगातार बढ़ता ही गया। ऐसे में अब राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले गैस सिलेंडर के दामों में 200 रुपये की कटौती बहुत कुछ कहती है। 2024 में सरकार चाहे जिसकी आए, यह साफ है कि मोदी सरकार डरी हुई है।
मध्यप्रदेश में दलित परिवार से हैवानियत, युवक की हत्या, मां को किया निवस्त्र
एक बहन को इस तरह भाई के शव पर चीखते सुनकर किसी का भी कलेजा फट जाएगा। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों की चमड़ी इतनी मोटी होती है कि उन पर जू तक नहीं रेंगती।
घटना मध्यप्रदेश के सागर जिले की है। सागर जिले में खुरई देहात थाना क्षेत्र के बरौदिया-नौनागिर से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। यहां दलित युवती से छेड़छाड़ के पुराने मामले में समझौता न करने पर युवती के 18 साल के भाई को मार डाला गया। मृतक की बहन के मुताबिक BJP मंत्री के गुंडों ने पीड़िता के 18 साल के उसके भाई की हत्या कर दी। यही नहीं, बेटे को बचाने आई मां को निर्वस्त्र कर मारपीट की गई। उनका मकान तोड़ दिया।
घटना बीते गुरुवार 24 अगस्त की है। घटना के बाद पुलिस ने शिकायत पर 9 नामजद और चार अन्य आरोपियों के खिलाफ हत्या समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज कर लिया है। हालांकि कुछ आरोपी अब भी फरार है। उसमें एक आरोपी सरपंच पति भी फरार है।
मृतक की बहन ने बताया कि गांव के विक्रम सिंह, कोमल सिंह और आजाद सिंह घर पर आए थे। माँ से कहने लगे कि राजीनामा कर लो। माँ ने कहा कि जब पेशी होगी तो उसी दिन राजीनामा कर लेंगे। इस पर माँ से बोला कि बच्चों की जान प्यारी नहीं है क्या? ऐसी धमकी देकर वो चले गए। छोटा भाई बस स्टैंड के पास सब्जी लेने गया था। वहां से वापस घर आ रहा था, तभी रास्ते में आरोपी उसके साथ मारपीट करने लगे। मम्मी जब बचाने पहुंची तो मम्मी को भी पीटा और उनको 70 लोगों के सामने बेपर्दा कर दिया। मैंने हाथ-पांव जोड़े लेकिन मेरे भाई को नहीं छोड़ा। मेरा रेप करने की धमकी दी। मैंने जंगल में भाग कर अपनी जान बचाई।
पीड़ित परिवार का कहना है कि तमाम आरोपी भाजपा के एक मंत्री के गुंडे हैं।
इस घटना ने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से लेकर दिल्ली तक को हिला कर रख दिया है। बसपा सुप्रीमो मायावती सहित कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने भी इस मामले में मध्य प्रदेश की सरकार को जमकर घेरा है।
बता दें कि हाल ही में मध्यप्रदेश के सागर जिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 100 करोड़ रुपये की लागत से रविदास मंदिर की नींव रखी। उसी जिले में दलित युवक को भाजपा के एक मंत्री के गुंडों ने ही मार डाला। साफ है कि दलितों के वोट के लिए तमाम दल और नेता बाबासाहेब आंबेडकर और सतगुरु रविदास सहित तमाम बहुजन महापुरुषों की प्रतिमाएं तो बनाने का ढोंग करती है, लेकिन दलितों पर अत्याचार रोकने के मामले में हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है। मध्यप्रदेश और राजस्थान में आए दिन दलितों पर होने वाले अत्याचार की रिपोर्ट इसकी कहानी आप कहते हैं।
अमेरिका के कैलिफोर्निया विधानसभा में जातिवाद के खिलाफ SB 403 कानून पास
अमेरिका के अंबेडकरवादियों ने आखिरकार जाति की वह जंग जीत ली है, जिसको लेकर वह बीते कई महीनों से लड़ाई लड़ रहे थे। केलिफोर्निया में कॉस्ट डिस्क्रिमिनेशन के खिलाफ कानून SB 403 को कैलिफोर्निया एसेंबली ने पास कर दिया। आधी रात को जब भारत सो रहा था, यह खबर सामने आई। इसके बाद दुनिया भर के अंबेडकरवादियों में खासा उत्साह है। खास बात यह रही कि जातिवाद के खिलाफ इस लड़ाई को रिपब्लिक और डेमोक्रेट दोनों दलों का भारी समर्थन मिला। इसके पक्ष में 50 वोट जबकि विरोध में तीन वोट पड़े। यानी अब कैलिफोर्निया में कोई किसी को जाति के आधार पर प्रताड़ित करेगा या जातिगट टिप्पणी करेगा तो अब उसकी खैर नहीं है।
The stunning vote count! A mark in history as no matter where folks stood the California legislature acknowledged caste discrimination and helped us turn pain into power!! pic.twitter.com/lLv5BNCFGT
— Dalit Diva (@dalitdiva) August 28, 2023
इस खबर के सामने आने के बाद अमेरिका के तमाम हिस्सों से अंबेडकरवादियों के जश्न की खबरें आ रही है। इस पूरी लड़ाई में कैलिफोर्निया में सीनेटर आयशा बहाव का बड़ा योगदान है। आयशा बहाव सदन में हेवर्ड और फ्रीमोंट इलाके का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस इलाके में दक्षिण एशिया के लोगों की खासी संख्या है। तो दूसरी ओर इस पूरी लड़ाई में भारतीय-अमेरिकी तेनमोई सुंदरराजन की भी भूमिका काफी अहम रही है। तेनमोई जाति के प्रश्न पर चले कई आंदोलनों और मुकदमों से जुड़ी रही हैं और मानवाधिकार के लिए काम करती हैं।
Immediate Press Release
— AANA – Ambedkar Association of North America (@aanausa) August 29, 2023
Ambedkar Association of North America welcomes the passed bill SB403 with a 50-3 vote in favor in the California Assembly, which has added caste as a protected category. Congratulations. pic.twitter.com/zUF474aLhU
उनके नेतृत्व में इक्वैलिटी लैब ने अमेरिका में 1500 लोगों पर एक सर्वे किया था, जिसमें अमेरिका में 67 प्रतिशत दलितों को भेदभाव का सामना करने की बात सामने आई थी। इससे भी अमेरिका में जाति विरोधी आंदोलन को मजबूती मिली थी। फिलहाल SB-403 के कैलिफोर्निया में पास होने के बाद अब अमेरिका में राष्ट्रीय स्तर पर जातिवाद के खिलाफ कानून की बहस तेज हो गई है।
तेलंगाना में बसपा के अध्यक्ष औऱ पूर्व आईपीएस अधिकारी डॉ. आर.एस. प्रवीण भी अमेरिका में ही मौजूद हैं। जब यह खबर सामने आई तो उन्होंने भी इस पर खुशी जाहिर की। उन्होंने इसे ऐतिहासिक वोट बताया, जिसे पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा। आर.एस. प्रवीण ने ट्विट कर कहा कि, यह ऐतिहासिक क्षण पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा। कैलिफोर्निया राज्य की विधानसभा, यूएसए ने बिल एसबी 403 को 50-3 बहुमत के साथ मंजूरी दे दी है, यह एक अभूतपूर्व कानून है जो जाति-आधारित भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है, जो न्यायसंगत और न्यायपूर्ण की दिशा में एक महत्वपूर्ण छलांग है। सभी मनुष्य समान पैदा होते हैं। शाबाश, अमेरिका के अम्बेडकरवादियों! एकता हमारी ताकत है।
In a historic vote that will be remembered for generations, the California State Assembly, #USA has approved Bill SB 403 with a 50-3 majority, in a groundbreaking legislation that bans caste-based discrimination, marking a significant leap towards an equitable and just society.…
— Dr.RS Praveen Kumar (@RSPraveenSwaero) August 29, 2023
आर.एस प्रवीण जिस एकता की बात कह रहे हैं, इस पूरी मुहिम में वह साफ तौर पर दिखी है। इस लड़ाई में अमेरिका के तमाम अम्बेडकरवादी संगठनों और रविदासिया समाज के संगठनों ने अहम भूमिका निभाई है। निश्चित तौर पर इसकी गूंज दुनिया के बाकी देशों में जल्दी सुनने को मिलेगी।
एथलेटिक्स वर्ल्ड चैंपियनशिप में नीरज चोपड़ा ने जीता गोल्ड, रचा इतिहास
भारतीय जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने दुनिया के सामने भारत का सीना चौड़ा कर दिया है। नीरज ने 88.17 मीटर थ्रो के साथ विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत कर इतिसाह रच दिया है। नीरज एथलेटिक्स वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बन गए हैं।
तोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतकर भारत की छाती चौड़ी करने वाले नीरज का प्रदर्शन उतार-चढ़ाव भरा रहा। उनका पहला थ्रो फाउल रहा, जबकि उनके प्रतिद्वंदी जर्मनी के जूलियन वेबर 85.79 मीटर थ्रो के साथ टॉप पर पहुंच गए। लेकिन नीरज ने दूसरे अटेम्पट में जैसे सबको चौंका दिया। भारतीय स्टार ने दूसरी बार 88.17 मीटर का थ्रो किया, जिसके बाद साफ हो गया कि गोल्ड नीरज की झोली में आ गया है। दूसरा कोई भी खिलाड़ी नीरज के इस थ्रो के आस-पास भी नहीं पहुंच सका।
नीरज के इस शानदार प्रदर्शन से देश भर में उल्लास है और सोशल मीडिया नीरज को बधाइयों से पटा हुआ है। हर कोई नीरज को बधाई दे रहा है।
I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल होगी बसपा!
बहुजन समाज पार्टी इंडिया गठबंधन में शामिल हो सकती है। इसको लेकर इंडिया गठबंधन के गुटों द्वारा बहनजी से संपर्क साधा गया है। खबर है कि बहनजी ने भी इसको लेकर साकारात्मक संकेत दिया है, लेकिन साथ ही गठबंधन में शामिल होने को लेकर अपनी एक शर्त रख दी है। अब 31 अगस्त और एक सितंबर को मुंबई में होने वाली इंडिया गठबंधन की बैठक में इस पर चर्चा होने की खबर आ रही है। अगर इंडिया गठबंधन के लोग बसपा की इस मांग को पूरा करने को तैयार हो जाएंगे, तो बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती गठबंधन में शामिल होने को लेकर अपनी मुहर लगा देंगी।
दरअसल तमाम दल और मीडिया बसपा को चाहे जितना भी कमजोर बताए, विपक्षी दलों से लेकर भाजपा तक को पता है कि उत्तर प्रदेश में बसपा अब भी एक बड़ी ताकत है। विपक्ष को पता है कि अगर इंडिया गठबंधन में बसपा के 20-22 प्रतिशत परंपरागत वोट शामिल हो जाते हैं तो उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को कमजोर किया जा सकता है। और विपक्षी दल उलट फेर करने में कामयाब हो सकते हैं। वहीं दूसरी ओर बसपा के समर्थक देश के हर जिले में है। यूपी के अलावा मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार आदि करीब दर्जन भर राज्य ऐसे हैं जहां बसपा ने अपनी ताकत दिखाई है। इंडिया गठबंधन को इसका फायदा भी मिलेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो इंडिया गठबंधन की ओर से जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने मायावती से बात की है, इसी दौरान मायावती ने पार्टी का रुख उनके सामने रखा और अपनी डिमांड भी बता दी है। दरअसल बहनजी उत्तर प्रदेश में बसपा के लिए 40 सीटें चाहती हैं। अगर इंडिया गठबंधन बसपा को 40 सीटें देने के लिए तैयार हो जाता है, तो बसपा गठबंधन में आ सकती है।
हालांकि बहनजी कई मौकों पर किसी भी पार्टी से गठबंधन की संभवना से इंकार कर चुकी है, लेकिन देश में 2024 लोकसभा चुनाव के पहले जिस इंडिया और एनडीए के बीच की लड़ाई तेज हो गई है, उससे खासकर उत्तर भारत के राजनीतिक दलों का बचना मुश्किल लग रहा है। बहुजन समाज पार्टी के भीतर से भी तमाम नेता गठबंधन के पक्ष में है। ऐसे में पार्टी को एकजुट रखने और नेताओं को साथ रखने के लिए बसपा प्रमुख मायावती पर भी अंदरुनी दबाव बढ़ता जा रहा है। लेकिन बसपा अपनी ताकत जानती है, बहनजी ने इशारा कर दिया है कि वह गठबंधन में आ तो सकती हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर। अब देखना होगा कि मुंबई में 31 अगस्त और एक सितंबर को होने वाली बैठक में क्या फैसला होता है। अगर बहुजन समाज पार्टी इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाती है तो निश्चित तौर पर गठबंधन को इसका फायदा देश भर में होगा।
चांद पर भारतीय चंद्रयान और सीवर में मरते दलित
बीते कुछ दिनों से जिस खबर की धूम है, वह खबर है चंद्रयान-3 का चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना। देश भर में इसको लेकर खुशी की लहर है। इस पर चर्चा करते टीवी वाले पत्रकार लोग स्क्रीन से बाहर आने को बेताब हैं। मैंने भी फेसबुक और ट्विटर पर अपना प्रोफाइल फोटो बदल दिया है। लेकिन इसी बीच मुझे मेरे मित्र और गुरु भाई गौरव पठानिया, जो कि अभी अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में रहते हैं और वहीं इस्टर्न मेनोनाइट युनिवर्सिटी में सोसियोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं, उनकी एक कविता ‘चांद मेनहोल सा लगता है’ याद आ गई और इस हर्ष की बेला में मेरा मन थोड़ा उदास हो गया।
पहले उस कविता की कुछ लाइनों का जिक्र, फिर खबर पर, क्योंकि दोनों जुड़े हुए हैं। अपनी कविता में हमारे कवि मित्र एक गंभीर सवाल उठाते हैं। कहते हैं-
ब्लैक होल… एक ऐसी जगह जहां गुरुत्वाकर्षण इतना खौफनाक कि वो विशालकाय सितारों और ग्रहों को भी निगल जाए।
हर सुबह, हजारों लोग, कांधे पर एक रस्सी लटकाए और हाथ में एक डंडी लिए, निकल पड़ते हैं अंतरिक्ष यात्री की तरह उतर जाते हैं, इस ब्लैक होल से भी ज्यादा खतरनाक उस मैन होल में…
और बाहर निकलते ही, या तो एक खबर बन कर या एक रिपोर्ट बनकर कि मैन होल में सफाई करते हुए हर साल दो हजार से भी ज्यादा लोग दम तोड़ देते हैं
सदियों से जाति के इस गुरुत्वाकर्षण ने ज्ञान रूपी प्रकाश की गति इतनी धीमी कर दी है कि हम अपने ही घर और मुहल्लों के नीचे का खगोल शास्त्र नहीं पढ़ पा रहे हैं
ब्लैक होल में अपना भविष्य खुरच रहे एक चचा से मैंने पूछा, कि चचा सुने हो दुनिया चंद्रयान से चांद पर जा चुकी है पर आप अभी तक यहां हो चचा बोले, बेटा- इस नर्क में रहते-रहते जीवन एक अमावस सा लगता है मैं यहां से ऊपर देखता हूं, तो चांद मैन होल सा लगता है
मेनहोल के भीतर से आसमान की ओर देखते ये लोग वर्षों से इंतजार कर रहे हैं कि कोई मसीहा आएगा उन्हें खिंच निकालेगा, इस नर्क से बाहर… लेकिन… लेकिन… (कविता समाप्त)
कविता की लाइने समाप्त, लेकिन चंद्रयान के बाद ब्लैक होल और मैन होल की बात सुनकर, उस खूबसूरत चांद पर चहल कदमी करते चंद्रयान के बाद बदबूदार गटर में गले तक डूबे लोगों की तस्वीरें याद कर के अगर आपका मन बजबजा गया होगा, तो उसके लिए माफी। लेकिन सवाल तो बनता है न। भारत चांद पर चला गया, लेकिन अपने लोगों को गटर से नहीं निकाल पाया।
मित्र गौरव पठानिया ने इस कविता को अपने मेंटर और गुरु जेएनयू में प्रोफेसर विवेक कुमार और सफाई कर्मचारी आंदोलन के अगुवा और मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित बेजवाड़ा विल्सन को समर्पित किया है।
जब चंद्रयान चांद पर उतरा और देश का संभ्रांत तबका अपनी छाती ठोक रहा था, बेजवाड़ा विल्सन अपनी छाती पीट रहे थे। जब सारा देश वैज्ञानिकों को और इसरो को बधाईयां दे रहा था, तब सीवर में हो रही मौतों के खिलाफ स्टॉप किलिंग अस के बैनर तले देश भर की यात्रा पर निकले बेजवाड़ा विल्सन तेलंगाना के वरंगल से सवाल उठा रहे थे। उनका कहना था कि, आज हम चाँद तक तो अपनी पहुँच बना चुके हैं, लेकिन धरती पर हमें अब भी उस तकनीक के अमल का इंतज़ार है जिससे गटर की ज़हरीली गैस से जाती जानों को बचाया जा सके।
आज हम चाँद तक तो अपनी पहुँच बना चुके हैं, लेकिन धरती पर हमें अब भी उस तकनीक के अमल का इंतज़ार है जिससे गटर की ज़हरीली गैस से जाती जानों को बचाया जा सके | सीवर-सेप्टिक टैंकों में हमारी हत्याओं के ख़िलाफ़ #Action2023 अभियान तेलंगाना के #वरंगल में |#StopKillingUs #DalitLivesMatter pic.twitter.com/zplR3ZU7C2
— Bezwada Wilson (@BezwadaWilson) August 24, 2023
आप फिर कह सकते हैं कि चांद की बाते करो, क्या गंदगी लेकर बैठ गए। लेकिन जरा ठहरिये, सोचिए कि क्या बेजवाड़ा विल्सन के सवाल पर बात नहीं होनी चाहिए। वो भी तब जब हर साल हजारों लोग सिर्फ इसलिए मौत का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि सरकारें उन्हें सुविधाएं नहीं दे रही है।
सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण राज्यमंत्री रामदास अठावले ने 5 अप्रैल 2023 को भारत की संसद में बताया था कि पांच सालों में सीवर साफ करते हुए 308 सफाई कर्मचारियों की मौत हुई है। यानी हर सप्ताह एक सफाई कर्मचारी की मौत। लेकिन सरकार झूठ बोल रही है।
सफाई कर्मचारी आंदोलन पिछले एक साल से ज्यादा समय से सीवर में मौतों के खिलाफ एक अभियान चला रहा है। अभियान का नाम है Stop Killing Us. इसके अगुवा बेजवाड़ा विल्सन का कहना है कि मई 2022 में इस अभियान के शुरू होने से लेकर मई 2023 तक, एक साल में सीवर में 100 से ज्यादा मौतें हुई हैं। यानी सरकार पांच साल में 308 मौत बता रही है जबकि विल्सन का दावा है कि उन्होंने पिछले एक ही साल में 100 से ज्यादा मौत दर्ज की हैं। उनका कहना है कि 1993 से लेकर अब तक सीवर में 2000 से ज्यादा मौते हो चुकी है। सवाल यह है कि उसका जिम्मेदार कौन है?
ब्लैक होल में अपना भविष्य खुरच चुके चचा के बच्चों का भविष्य कब सुरक्षित होगा? क्योंकि जिस दिन चचा और उन जैसों के बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा और बेजवाड़ा विल्सन को Stop Killing Us की यात्रा निकालने की जरूरत नहीं होगी, उसी दिन चंद्रयान जैसे मिशन सार्थक होंगे।
हमेशा आसमान की ओर देखना जरूरी नहीं होता, कभी-कभी जमीन पर भी देख लेना चाहिए। सच्चाई का अहसास होता है।