“भारत में सबसे प्राचीन या सनातन धर्म तो श्रमण धम्म और संस्कृति है”

उदय निधि स्टालिन ने बयान (2 सितंबर, 2023) दिया है कि “सनातन धर्म का केवल विरोध नहीं, बल्कि उसका उन्मूलन करना है, खत्म करना है।” इस पर भाजपा,आर एस एस, बजरंग दल, हिन्दू महासभा आदि सहित सभी ब्राह्मणवादी संगठनों से जुड़े संत और नेता बौखला गए हैं और तरह तरह से बिलबिला रहे हैं। भारत में सबसे प्राचीन या सनातन धर्म तो श्रमण धम्म और संस्कृति है। ब्राह्मणवादियों का आर्य- ब्राह्मण धर्म तो केवल 1750 ईसापूर्व में भारत पर आर्य ब्राह्मणों के आक्रमण के बाद आया है और अभी तक केवल लगभग 3500 वर्ष पुराना है, जबकि श्रमण धम्म और संस्कृति लगभग 5500 वर्ष पुराना है।
ब्राह्मणवादी सनातन धर्म (तथाकथित हिन्दू धर्म) का सामाजिक एवं सांस्कृतिक आधार ही हैं- ऊंच-नीच पर आधारित वर्ण-व्यवस्था एवं जाति व्यवस्था, लिंग- विभेद पर आधारित परिवार एवं समाज व्यवस्था और ब्राह्मण पुरुषों की पवित्रता -श्रेष्ठता एवं अन्य लोगों की अपवित्रता-हीनता, छुआछूत, अन्धविश्वास और अवैज्ञानिक विचारों पर आधारित देवी- देवताओं के लिए जीवन भर चलने वाले कर्मकांड एवं पूजा- पाठ, हिंसा और नफरत आदि।

लेकिन सनातन श्रमण धम्म एवं संस्कृति का आधार ही है- मानवता, बराबरी, स्वतंत्रता, भाईचारा और न्याय। श्रमण धम्म एवं संस्कृति के शील, नैतिकता और विचार ही भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित हैं।

उदय निधि स्टालिन एवं अन्य लोगों ने ब्राह्मणवादी, अमानवीय और असंवैधानिक ब्राह्मणवादी सनातन धर्म को उन्मूलन करने की बातें कही हैं, क्योंकि यह धर्म मानवता, संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध हैं। ये बातें तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13(1) में भी अन्तर्निहित हैं कि संविधान लागू होने के पहले भारत में प्रवृत्त (चल रही) विधियां उस मात्रा तक शून्य होंगी जो संविधान के भाग- 3 में नागरिकों के मौलिक अधिकारों से असंगत होगी यानी जो धार्मिक नियम, परंपरा, प्रथाएं और रुढ़ियां समानता स्वतंत्रता, भाईचारा और न्याय के विरुद्ध हैं वे शून्य (खत्म) किए जाते हैं।

वास्तव में अगर हम संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करते हैं और भारत को एक मजबूत राष्ट्र बनाने के लिए संकल्प लिए हैं तो हमें ब्राह्मणवादी सनातन धर्म, संस्कृति और सामाजिक व्यवस्था को खत्म कर समानता, भाईचारा और न्याय को स्थापित करना ही होगा।

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