अहमदाबाद। गुजरात चुनाव पर देश भर की नजरें हैं. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल अपनी-अपनी चुनावी रैलियां और साभाएं कर रहे हैं. इस बीच बहुजन समाज पार्टी भी गुजरात की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. जिसके बाद से भाजपा और कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर सकता है.
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि गुजरात में अगर मायावती सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगी तो वो जिग्नेश के चलते दलित वोटों पर हक जता रही कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी होगी क्योंकि माया की एंट्री से दलित वोट बंटेंगे. हालांकि गुजरात में बसपा का जनाधार नहीं है, फिर भी जीत-हार में उसकी बड़ी भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है.
गुजरात में 7 फीसदी दलित और 11 फीसदी आदिवासी मतदाता हैं. गुजरात में 40 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो दलित और आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. इनमें से 27 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए और 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं. सारा दारोमदार इन्हीं चालीस सीटों पर है.
बसपा ने गुजरात की 182 सीटों पर पूरी ताकत के साथ उतरने का मन बनाया है. बसपा ने 2002 के विधानसभा चुनावों में अपने 34 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें से कोई भी जीत नहीं सका था. 2002 में बसपा को 0.32 फीसदी वोट मिले थे. 2007 के विधानसभा चुनावों में बसपा ने 166 उम्मीदवार उतारे और सभी को हार का मुंह देखना पड़ा. हालांकि पार्टी को अपना वोट शेयर बढ़ाने में जरूर कामयाबी मिली, उसे 2.62 फीसदी वोट मिला. 2012 में बसपा 163 विधानसभा सीटों पर लड़ी उसे 1.25 फीसदी वोट मिला. यानी 2007 की तुलना में बसपा को नुकसान का सामना करना पड़ा.
दलित चिंतक अशोक भारतीय ने कहा कि कांग्रेस ने जरूर जिग्नेश मेवाणी को गले लगाया है लेकिन वो बहुत ज्यादा प्रभाव डालने में सफल नहीं हो पाएंगे, क्योंकि जिग्नेश का आधार गुजरात के शहरी दलित मतदाताओं में है. इसके अलावा गुजरात के जमीन से जुड़े दलित नेता बसपा के साथ खड़े हैं. ऐसे में कांग्रेस जिग्नेश का समर्थन लेकर भी बहुत ज्यादा करिश्मा नहीं करने वाली है.
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