नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के बीस जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के बाद प्रताड़ित किए जा रहे कोलकाता हाईकोर्ट के दलित जज जस्टिस कर्णन अपना पक्ष रखने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ और जस्टिस कर्णन के बीच 49 मिनट तक बहस चली. सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह पहला अवसर था जब कोई जज कठघरे में खड़ा होकर सवालों के जवाब दे रहा था.
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने जस्टिस कर्णन को कहा कि चार हफ्तों में हलफनामे के जरिए जवाब दें कि क्या वे बीस जजों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सही मानने को तैयार हैं या वे शिकायत वापस लेने और कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगने को तैयार हैं. CJI ने जस्टिस करनन के जवाबों पर यहां तक कह दिया कि अगर वह मानसिक रूप से बीमार हैं तो कोर्ट में मेडिकल सर्टिफिकेट दाखिल करें. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों कर्णन के खिलाफ जारी जमानती वारंट की बात करते हुए कहा कि हमने आपको आपका पक्ष जानने के लिए जमानती वारंट जारी किया लेकिन आप कोर्ट नहीं आए.
इस दौरान जस्टिस करनन ने कोर्ट में कहा कि अगर मेरा काम फिर से नहीं दिया गया तो वे कोर्ट में हाजिर नहीं होंगे. चाहे कोई भी सजा दो भुगतने को तैयार हैं. वे जेल जाने को भी तैयार हैं. कोर्ट ने उनके खिलाफ अंसवैधानिक फैसला लिया है. वे कोई आतंकवादी या असामाजिक तत्व नहीं हैं. उन्होंने जजों के खिलाफ शिकायत की वे कानून के दायरे में हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनका काम छीन लिया जिससे मेरा मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया. अगर मेरा काम वापस दिया जाएगा तो मैं जवाब दूंगा. कोर्ट के इस कदम की वजह से मेरा सामाजिक बहिष्कार हो गया है. यहां तक कि मेरा प्रतिष्ठा भी चली गई है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस करनन के न्यायिक और प्रशासनिक कामों पर लगी रोक को हटाने से इनकार किया है.
उल्लेखनीय है कि जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. साथ ही CBI को जांच के आदेश भी दिए थे. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इसे अदालत की अवमानना बताया, जिसके बाद सात जजों की खंडपीठ ने जस्टिस करनन के ख़िलाफ़ कोर्ट के आदेश की अवमानना की कार्रवाई शुरू की. इस पर जस्टिस कर्णन ने कहा था कि आरोपों की जांच करने की बजाय मुझे परेशान किया जा रहा है. उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें दलित होने की वजह से परेशान किया जा रहा है.

दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।
