Tuesday, August 5, 2025

ओपीनियन

अभिजात वर्गीय है मी टू कैंपेन

पिछले दिनों से मी टू कैंपेन सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक काफी चर्चित हो रहा है. इस मूवमेंट में महिलाएं #MeToo के साथ कडुवे अनुभव कुछ स्क्रीन शॉट्स भी शेयर कर रही हैं. भारत में इसकी शुरूआत 2017 से हुई...

सरकार ही जातिवादी है तो जनता का क्या

ज्ञात हो कि दिनांक 13 अक्तूबर 2018 को दिल्ली में प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए  दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (DSSSB)  ने पोस्ट कोड – 16/17 & 01/18 की जो परीक्षा ली गई थी उसमे चमार जाति के संदर्भ में प्रश्न संक्या 61...

ऐसे बनाए जाते है देवी-देवता

(ऐसा नहीं है कि किसी व्यक्ति को भगवान बनाने का यह पहला मामला है. जैसी मेरी जानकारी है, फिल्मी कलाकार रजनीकांत, अमिताभ बच्चन, क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर आदि के मंदिर पहले से ही बने हुए हैं. भाजपा के वर्तमान शासनकाल में नाथूराम गोडसे का मन्दिर...

मनु या मैकाले

भारतीय इतिहास में दो तारीखें इस देश की मूलनिवासी दलितबहुजनों के लिये विशेष मायने रखती है, पहला 06 अक्टूबर 1860 और दूसरा 26 जनवरी 1950 . 06 अक्टूबर 1860 को इंडियन पेनल कोड (भारतीय दंड संहिता) लागू हुआ था और 26 जनवरी 1950 को...

“गंगा का कपूत, गंगा के सपूत को खा गया है,

"गंगा का कपूत, गंगा के सपूत को खा गया है, यह कोई सामान्य मौत नही, यह एक राजनैतिक हत्या है एक माँ की अस्मत के लिए एक बेटे ने अपनी जान दे दी है, लेकिन कभी उसका बेटा होने का दावा नहीं किया, और जो गला फाड़-फाड़ कर...

दलित-आदिवासी वोटों के बिखराव की यह पटकथा कौन लिख रहा है?

जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, उन राज्यों में अचानक कई दलित, आदिवासी, बहुजन, मूलनिवासी संज्ञाओं वाली राजनीतिक पार्टियों का प्रवेश, उद्भव हो गया है और उनके नवनियुक्त नेतागण सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा इस तरह कर रहे हैं, जैसे...

आरक्षण की प्रासंगिकता..

आरक्षण एक गंभीर विषय है. आरक्षण के संबंध में लोगों की गलत धारणा को दूर करने के लिए इसका पोस्टमार्टम करना जरूरी है. आरक्षण अवसर की समानता का मामला है. आरक्षण प्रतिनिधित्व का मामला है . आरक्षण भागीदारी का मामला है. आरक्षण कोई योग्यता का...

लोकसभा अध्यक्ष ही आरक्षण के प्रावधानों अवगत नहीं तो बाकी का क्या

विदित हो कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़े वर्ग को सरकारी नौकरियों व शिक्षा में प्रदत्त संवैधानिक आरक्षण का सवर्णों के अनेकानेक संगठनों द्वारा देश के हर कौने में हमेशा नाना प्रकार से विरोध किया जाता रहा है.  ऐसे में कुछ ही दिन...

लाल बहादुर शास्त्री : स्वस्थ्य राजनीति का अंतिम पड़ाव

अक्सर लोग अपने और अपने परिवार के बारे में सोचते हैं. परिवार के दु:ख-सुख की सीमा ही उनका कार्य-क्षेत्र होता है. कुछ जाति और वर्ग तक सोचते हैं. जहाँ हित सध जाए ठीक. और कुछ लोग राष्ट्र तक ही सोचते हैं – वह भी...

हिंदी दलित साहित्य का धारावी केन्द्र शाहदरा-दिल्ली

गए दिनों जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. हेमलता माहेश्वर अपने शोधकर्ता छात्र के साथ मेरे घर आई थीं. तब उनके साथ दलित साहित्य आंदोलन के इतिहास पर बातों-बातों में एक गंभीर चर्चा हुई। पहली पीढी के रचनाकारों के संघर्ष को...

दलितों का विरोध राष्ट्रव्यापी मुद्दा क्यों नहीं बन पाता?

भारत देश में पद्मावती विवाद जैसे फ़िज़ूल मुद्दे आंदोलन का रूख अख्तियार कर लेते हैं, परंतु दलितों का विरोध प्रदर्शन कभी राष्ट्रव्यापी आंदोलन नहीं बन पाता. जबकि भारत में दलितों की जनसंख्या, पद्मावती विवाद को लेकर तोड़-फोड़ करके राष्ट्र का नुकसान करने वाले जाति वर्ग की...

सीवर में मरने का अभिशाप

भारत में हर पांचवें दिन एक सफाई कर्मचारी काल का ग्रास बनता है, और राज्यों से लेकर केन्द्र में सरकार के आधीन नगरपालिकाएं, या प्रशासन या निर्वाचित प्रतिनिधि अपेक्षित कदम उठाने की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते है. हाथ से...

सड़क पर उतरी जातियां

जाति... जिसके बारे में कहा जाता है कि वो जाति नहीं... जाति समाज की सच्चाई है. आप चाहे इससे जितना बचना चाहें, यह घूम फिर कर आपके सामने आ ही जाती है. खास कर वंचित तबके के सामने तो जाति का सवाल जन्म से...

असहमति हमेशा नकारात्मक ही थोड़ी होती है

आज जब हम समाचार पत्रों अथवा इलेक्ट्रानिक मीडिया पर खबरें पढ़ते अथवा सुनते हैं तो विभिन्न प्रकार के संदर्भ पढ़ने और सुनने को मिलते हैं. कभी किसी खबर पर हम उछ्ल पड़ते हैं तो कभी किसी पर अपना माथा धुन लेते हैं. कारण केवल...

संघ प्रमुख मोहन भागवत से कुछ प्रश्न

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘ संघ के नजरिए से भारत का भविष्य’ तीन दिवसीय मंथन शिविर को संबोधित करते हुए मोहनभागवत ने कुछ आदर्श वाक्य बोले हैं, जिसका निहितार्थ यह निकाला जा रहा है कि सभी भारतीय बिना किसी भेदभाव के समान...

चातुर्वण्य व्यवस्था में बहुजन समाज का अस्तित्व?

भारत वर्ष में अनेक महापुरूष पैदा हुये जिनमें तथागत बुद्ध, संत रविदास, कबीर दास, साहुजी महाराज, बिरसा मुण्डा, ज्योतिबा फूले, सावित्री बाई फूले, रामास्वामी नायकर, संत गाडगे, डाॅ0 बी. आर. अम्बेडकर, जगदेव प्रसाद आदि अग्रगण्य हैं, जिन्होंने सदियों से मानवीय अधिकार से वंचित और...

भीम आर्मी के जांबाज साथी एडवोकेट चन्द्रशेखर रावण के जज्बे को भीम सलाम…..

बहुजनों के बीच अब चन्द्रशेखर रावण किसी पहचान के लिए मोहताज नही हैं.भीम आर्मी के जांबाज साथी एडवोकेट चन्द्रशेखर रावण जी अब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नही रह गए हैं लिहाजा उन्हें रिहा कर दिया गया है.एक सुकून मिला है यह जानकर कि...

क्यों न सभी जातियों को संख्या के आधार पर आरक्षण प्रदान कर दिया जाए?

आरक्षण के मुद्दे को लेकर, फेसबुक पर अशोक कुमार गोयल लिखते हैं, ‘जब तक वर्तमान सरकार है सब लोग आरक्षण मांगो...जिस दिन गठबन्धन की सरकार आयेगी तो बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को आरक्षण मिलेगा और बाक़ी लोग केवल संरक्षण माँगेंगे.’ इस टिप्पणी को कई लोगों...

मीडिया में दलित शब्द की मनाही के मायने

मुंबई उच्च न्यायालय और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के हवाले से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने मीडिया को निर्देशित किया है कि वह ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल न करें. दलित के स्थान पर अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग करें. अदालती उपयोग...

हकमार कौन !

गत 23 अगस्त, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह दलितों के आरक्षित तबकों के संपन्न लोगों के बच्चों को प्रमोशन में आरक्षण पर दिए जाने पर सवाल उठाया है, उससे भारत में एक नए वर्ग,‘हकमार वर्ग’ को लेकर एक नया विमर्श शुरू हो...
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प्रो. नन्दू राम: भारतीय समाजशास्त्र को समग्रता प्रदान करने वाले समाजशास्त्री

भारतीय समाजशास्त्र में प्रो. नन्दू राम अगर अपनी लेखनी से भारत की एक-चौथाई जनता का समाजशास्त्रीय सच प्रकाशित एवं स्थापित नहीं करते तो भारतीय...

राजनीति

झारखंड और हेमंत सोरेन का दुनिया भर में नाम

नई दिल्ली/रांची। झारखंड की महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने की दिशा में शुरू की गई मुख्यमंत्री मंइयां सम्मान योजना को अब अंतरराष्ट्रीय मंच...
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