बर्मिंघम। तथागत बुद्ध की यह साढ़े सात फुट ऊंची मूर्ति पिछले डेढ़ सौ साल से इंग्लैंड के बर्मिंघम म्यूजियम में सैलानियों और विशेषज्ञों के आकर्षण का केंद्र रही है.
यदि 1861 में बिहार के सुल्तानगंज से इस मूर्ति को अंग्रेज अपने साथ न ले गए होते तो आज यह बिहार के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा होती.
इससे जुड़ी एक और विडंबना यह भी है कि अब इसे ‘बर्मिंघम बुद्धा’ के नाम से पुकारा जाना लगा है. यह मूर्ति गुप्त-पाल शासनकाल यानी 500 से 700 ईसवी के समय की है.
भागलपुर के पास रेलवे निर्माण कार्य की शुरुआत में खुदाई के दौरान यह मूर्ति मिली थी. आधे क्विंटल से ज्यादा वजनी यह मूर्ति अशुद्ध तांबे से बनी है.
इसमें तथागत बुद्ध खड़े हैं और उनका एक हाथ अभयमुद्रा में हैं. इसे बर्मिंघम के उद्योगपति सैम्यूएल थॉर्टन ने तब 200 पौंड में खरीदा था और फिर इसे बर्मिंघम म्यूजियम में रखवा दिया था.

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