नई दिल्ली। हमारे देश में क्रिकेट का जुनून लगभग हर किसी के सिर चढ़ कर बोलता है. किसी भी क्रिकेटर के लिए विश्वकप में देश का प्रतिनिधित्व करना एक सपने का साकार होने जैसा होता है. ऐसे ही एक क्रिकेटर हैं भालाजी डामोर. विश्वकप खेल कर भी ये आज भैंस चराने को मजबूर हैं.
इनका भी एक सपना था कि वह देश के लिए विश्वकप खेलें. 1998 के विश्वकप में उनका यह सपना सिर्फ पूरा हीं नहीं हुआ, बल्कि वह इस टुर्नामेंट के हीरो भी रहे. लेकिन, दुर्भाग्य से वह आज भैंस चराने के साथ-साथ कुछ छोटे-मोटे काम कर रहे हैं.
दरअसल, ब्लाइंड क्रिकेट वर्ल्ड कप-1998 में इस ऑलराउंडर खिलाड़ी की बदौलत भारत सेमीफाइनल तक का सफर तय करने में कामयाब हो सका था. गुजरात के एक साधारण से किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले नेत्रहीन भालाजी को उम्मीद थी कि विश्वकप के बाद उनकी जिंदगी में कुछ सुधार आयेगा, लेकिन दुर्भाग्य से विश्वकप 1998 के 18 वर्षो बाद आज यह होनहार एक-एक रुपये के लिये तरस रहा है.
अपनी पत्नी और बच्चों के साथ भालाजी डामोर
अरावली जिले के पिपराणा गांव में भालाजी और उनके भाई की एक एकड़ जमीन है, लेकिन इतनी सी जमीन पर हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी उनका परिवार महीने के केवल 3000 रुपए कमा पाता है. एक कमरे के घर में परिवार के साथ रह रहे इस स्टार क्रिकेटर के करियर में मिले पुरस्कार और सर्टिफिकेट घर में जगह-जगह बिखरे पड़े हैं.
भालाजी डामोर से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें…
– 38 वर्षीय इस ब्लाइंड क्रिकेटर का रिकॉर्ड बेहद शानदार है. भालाजी के नाम आज भी भारत की तरफ से सर्वाधिक विकेट लेने का रिकॉर्ड दर्ज है.
– 125 मैचो में इस ऑलराउंडर ने 3,125 रन और 150 विकेट लिए हैं.
– पूरी तरह से दृष्टिबाधित इस क्रिकेटर ने भारत की तरफ से 8 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं.
– भालाजी केवल एक कमरे वाले घर में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहते हैं. घर खर्च में उनका हाथ बंटाने के लिए उनकी पत्नी भी खेत में काम करती हैं.
एक अदद नौकरी की दरकार
भालाजी डामोर कहते हैं कि विश्वकप के बाद उम्मीद थी कि मुझे कहीं नौकरी मिल जाएगी. पर, कहीं नौकरी नहीं मिल सकी. स्पोर्ट्स कोटा और विकलांग कोटा मेरे किसी काम नहीं आ सके. भालाजी बेहद भारी मन से कहते हैं कि कई सालों बाद गुजरात सरकार ने उनका प्रशंसात्मक उल्लेख जरूर किया, लेकिन किया कुछ भी नहीं है.
टीम के तेंदुलकर थे भालाजी
नेशनल एशोसिएशन ऑफ ब्लाइंड के वाइस प्रेसिडेंट भास्कर मेहता कहते हैं कि ””इंडियन ब्लाइंड टीम को भालाजी जैसा प्रतिभावान खिलाड़ी फिर नहीं मिला. विश्वकप के दौरान उसके साथी खिलाड़ी उसे सचिन तेंदुलकर कहकर बुलाते थे.””
बहरहाल, जिस देश में जहां एक तरफ रेगुलर क्रिकेटर्स को खूब सारी दौलत और शोहरत मिलती है, वहीं भालाजी जैसे प्रतिभाशाली क्रिकेटर को अपनी तमाम प्रतिभाओं के बावजूद करियर समाप्त होने के बाद एक सम्मानजनक जिंदगी जीने के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है.
(साभारः ईनाडू इंडिया)

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