झारखंड राज्य चुनाव की दहलीज पर खड़ा है। यहां नवम्बर में विधानसभा के चुनाव है। ऐसे में भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए तमाम हथकंडे अपनाना शुरू कर दिया है। इसके लिए अपने बयानों से तमाम दिग्गज नेता जमकर प्रोपेगेंडा फैलाने में जुटे हैं। इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत निशिकांत दुबे, बाबूलाल मरांडी व अमित शाह शामिल हैं। कहीं न कहीं यह केंद्रीय सत्ता द्वारा धार्मिक उन्माद फैलाकर सत्ता हथियाने की रणनीति है। हालांकि प्रदेश में अब तक बीजेपी सरना धर्म-क्रिस्तान, आदिवासी पुरुष बनाम आदिवासी महिला व सरना को सनातन बताने में नाकाम रही। भाजपा आदिवासियों को हिन्दू बताने में जब फेल हो गई तो अब आदिवासी बनाम मुसलमान करने में लगी है ताकि चुनावों में इसका फायदा उठाया सके।
लेकिन सवाल है कि आदिवासियों को जनगणना में आदिवासी चिन्हित करने से घबराने वाली, फूट डालो-शासन करो वाली सरकार आदिवासियों का क्या भला सोच पाएगी। बांग्लादेश के मुसलमानों के संबंध में आदिवासियों के बीच ‘अफवाह’ फैला कर भाजपा इसका राजनैतिक लाभ लेने की मुहिम में जुट गई है।
भाजपा और उसके नेताओं का कहना है कि बांग्लादेशी संथाल परगना में घुसकर आदिवासी महिलाओं के साथ शादी कर प्रदेश में रच-बस रहे हैं। भाजपा वाले कह रहे हैं कि बांग्लादेशी आदिवासी आबादी को खतरा पहुंचा रहे है, जोकि सरासर झूठ है। भाजपा स्टेट बॉर्डर के पास की जगहों के एक दो मामलों को लेकर यह जो किस्से गढ़कर झूठ फैला रहे हैं। यह गलत और निराधार है। ये मूलवासी मुस्लिम आबादी है। उसे ही जबरन बांग्लादेशी बताया जा रहा है।
अगर झारखंड की भागौलिक सीमा को देखें तो साफ है कि भाजपा नेता गलतबयानी कर रहे हैं। क्योंकि झारखंड प्रदेश कहीं से भी वह बांग्लादेश के साथ बॉर्डर शेयर नहीं करती है। झारखंड पूरी तरह से बिहार, उत्तरप्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के साथ बॉर्डर शेयर करता है। ऐसे तो बीजेपी के लोग नेपाल की आबादी को भी घुसपैठिए कहकर हल्ला मचा सकते थे। लेकिन इससे उनको कोई चुनावी फायदा नहीं होता। इसलिए उन्होंने तर्क दिया कि पश्चिम बंगाल पार करके बांग्लादेशी मुसलमान संथाली महिलाओं से शादी करने आ रहे हैं। यह तर्क असत्य है। हम आदिवासी महिलाएं भाजपा व आरएसएस की आदिवासी विरोधी, मानवता विरोधी इन बातों का पुरजोर खंडन वा विरोध दर्ज करती हैं।
झारखंड की डेमोग्राफी का हल्ला
सवाल उठता है कि बीजेपी और दूसरी पार्टियों के लोग कहां थे जब देश के सबसे बड़े कल कारखाने और खदानें यहां खोल कर आदिवासी को उजाड़ा गया और उन्हें विकास की ‘बलि’ चढ़ाया गया। स्थानीय जनता को नॉन स्किल बता कर पूरे देश भर से स्किल जनता को यहां लाकर बसाया गया। उस समय सरकारों का डेमोग्राफी शब्द से परिचय था या नहीं। बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश, ओडिशा की जनता जब यहां बस रही थी। उस समय ‘डेमोग्राफी चेंज थ्योरी’ का ध्यान क्यों नहीं रखा गया।
सच तो यह है कि 5जी शेड्यूल एरिया के तहत यह आदिवासी बहुल प्रदेश, गैर आदिवासी बहुल प्रदेश में वर्षों पहले बदला जा चुका है। बृहत झारखंड की मांग वा उसके क्षेत्र विस्तार को भी देखें तो यह क्षेत्र 2000 में झारखंड निर्माण के समय से ही छला गया है। राष्ट्रीय जनता दल की राजनीति को कमतर करने के लिए झारखंड को बिहार से अलग कर दिया गया। इसमें बंगाल, मध्यप्रदेश, बिहार, ओडिशा, उत्तरप्रदेश के आदिवासी बहुल इलाके शामिल नहीं किए गए। सीएनटी-एसपीटी एक्ट को हर बार भाजपाइयों ने कमजोर करने की कोशिश की। विलकिंसन रूल की अनदेखी की गई।
पेसा एक्ट (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल एरिया) की अनदेखी की गई। आदिवासी जमीन पर मालिकाना हक आदिवासी समाज के पास सामूहिक तौर से रहा है। बाद में यह कमोबेश आदिवासी पुरुष के ही पास रहा है। फिर ऐसे में आदिवासी महिला के साथ शादी कर जमीन हड़पने का जो मनगढंत किस्सा भाजपाई गढ़ रहे हैं वो पूरी तरह बेबुनियाद है। आदिवासी पुरुषों के मन में भी आदिवासी महिला को अपनी संपत्ति समझने का चश्मा भी पुरुषवादी, पितृसतात्मक ब्रह्मणवादियों ने आदिवासी पुरुषों को दिया है। भाजपा अतार्किक बहस लाकर झारखंडी जनता के जायज सवाल गायब कर रही है। मानव तस्करी के सवाल, संसाधनों में बराबरी के बंटवारे का सवाल आदि गायब कर आदिवासी बनाम मुस्लिम की लड़ाई को तेज किया जा रहा।
आदिवासी महिलाओं के प्रति भी जो टिप्पणियां आ रही हैं। वह नकाबिले बर्दाश्त हैं। बांग्लादेशी मुस्लिम आदिवासी महिला से शादी कर, महिला और जमीन दोनों आदिवासियों से छीन रहे हैं। कुछ लोग अपनी इस बहसबाजी में महिलाओं के नामों की लिस्ट जारी कर बातें कर रहे हैं। यह बिल्कुल बेतुकी और नाजायज बात है। वहीं आदिवासी महिला की निजता और उसकी अस्मिता पर हमला है। आदिवासी महिला की कोई एजेंसी ही नहीं। ऐसी भी बात प्रस्तुत की जा रही है। हम विभिन्न आदिवासी संगठन इस बात पर कड़ा ऐतराज जाहिर करते हैं और इनपर कार्यवाही करने की मांग करते हैं। आदिवासी महिलाएं आपके लिए मोहरे नहीं बनेंगी। हम पूरे आदिवासी समाज की ओर से भाजपा और उनके नेताओं के बयानों के लिए सार्वजनिक लिखित माफी मांगने की अपील करते हैं।
लेखिका नीतिशा खलखो झारखंड के धनबाद में बी.एस.के कॉलेज, मैथन में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।
नीतिशा खलखो आदिवासी समाज से जुड़े विषयों पर स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ कई मीडिया संस्थानों के लिए लिखती हैं। वह आदि मैगजीन्स में निरंतर लिख रही हैं। इसके साथ ही इंटरनेशनल मैगज़ीन ‘द पर्सपेक्टिव जर्नल’ और युद्धरत आम आदमी के संपादन में सहयोग करती हैं। लेखक ने 60 से अधिक कई नेशनल और इंटरनेशनल सेमिनार में हिस्सेदारी की है। दिल्ली और झारखंड में रहते हुए उन्होंने कई आन्दोलनों को नजदीक से देखा है और उसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। साथ ही आप देश के कई संगठनों से बतौर फाउंडिंग मेंबर जुड़ी हुई हैं। झारखण्ड ट्राइबल स्टूडेंट एसोसिएशन जे एन यू से भी सक्रिय तौर पर जुड़ी रही हैं। उनसे संपर्क neetishakhalkho@gmail.com पर किया जा सकता है।