नई दिल्ली। अक्सर चौकाने वाले खुलासे करने वाली कैग यानि नियंत्रण एंव महालेखा परीक्षक ने एक और बड़ा खुलासा किया है जो बैंको की कर्जमाफी को लेकर है. बताया गया है की सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज की समस्या अनुमान से कहीं अधिक गंभीर है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक फंसे की वास्तविक राशि को कम करके दिखा रहे हैं. करीब दर्जन भर सरकारी बैंक ऐसे हैं जिन्होंने अपने फंसे कर्ज की राशि रिजर्व बैंक के अनुमान की तुलना में 15 प्रतिशत तक कम बतायी है. हकीकत यह है कि सरकारी बैंक फंसे कर्ज की राशि को वसूलने से ज्यादा माफ कर रहे हैं. यह चौंकाने वाला खुलासा नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की ऑडिट रिपोर्ट में सामने आया है जिसे वित्त राज्य मंत्री अजरुन राम मेघवाल ने शुक्रवार को लोकसभा में पेश किया.
कैग ने यह रिपोर्ट ‘सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पूंजीकरण’ का ऑडिट करने के बाद तैयार की है. इस रिपोर्ट में यह भी बताया किया गया है कि बैंक अपने बलबूते बाजार से पूंजी जुटाने में नाकाम रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वर्ष 2018-19 तक 1,10,000 करोड़ रुपये बाजार से जुटाने का लक्ष्य दिया था. हालांकि इस लक्ष्य के मुकाबले बैंक जनवरी 2015 से मार्च 2017 के दौरान मात्र 7,726 करोड़ रुपये ही बाजार से जुटा पाए. कैग ने 2019 तक बाकी एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की पूंजी बाजार से जुटाने की बैंकों की क्षमता पर आशंका भी जतायी है.
कैग रिपोर्ट में सबसे अहम बात जो सामने आयी है, वह यह है कि सरकारी बैंक फंसे कर्ज की वसूली करने की तुलना में इसे माफ अधिक कर रहे हैं. सरकारी बैंकों ने वर्ष 2011-15 के दौरान भारी भरकम 1,47,527 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज माफ किये जबकि सिर्फ 1,26,160 करोड़ रुपये की वसूली होनी थी.
रिपोर्ट से पता चलता है कि सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज की राशि तीन साल में बढ़कर तीन गुना हो गयी. मार्च 2014 में बैंकों का सकल एनपीए 2.27 लाख करोड़ रुपये था जो मार्च 2017 में बढ़कर 6.83 लाख करोड़ रुपये हो गया. हालांकि इससे चौंकाने वाली बात यह है कि कई सरकारी बैंक अपनी एनपीए की वास्तविक राशि नहीं दिखा रहे हैं. सरकारी बैंक एनपीए की राशि को कम करके दिखा रहे हैं. कैग रिपोर्ट के अनुसार दर्जन भर सरकारी बैंकों ने अपना जितना एनपीए बताया, वह आरबीआई के अनुमान से 15 प्रतिशत कम था.
कैग ने सरकार की ओर से बैंकों को दी गयी पूंजी की प्रक्रिया में भी कई तरह की खामियां उजागर की हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी बैंकों की पूंजी बहूमूल्य है, देश के पैसों को यूंही कर्जधारियों की जेंब में डालने का क्या औचित्य है सरकार को इस और गंभीर रूप से ध्यान देना होगा वर्ना परिणाम बहुत गंभीर हो सकते हैं.
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