बाबा साहब डॉ. आंबेडकर और संविधान निर्माण

 संविधान को मुकम्मल स्वरुप देने में बाबासाहब का कितना योगदान है, क्यों बाबासाहब को संविधान निर्माता कहा जाता है, इसका जवाब संविधान सभा में दिये गये उनके भाषण से स्पष्ट होता है। विभिन्न मुद्दों व सभी बिन्दुओं पर उनके चिंतन और लेखन से यह साबित होता है। बाबासाहब द्वारा संविधान सभा के तमाम भाषणों से संविधान के प्रति बाबासाहब की लगन, गहन अध्ययन, जानकारी, जागरुकता एवं देश, देशवासियों के प्रति ईमानदारी व निष्ठा के साथ समतामूलक भारत राष्ट्र निर्माण के लिए उनकी प्रतिबद्धता स्पष्ट होती है।

वैसे तो संविधान सभा में विमर्श का हर दिन महत्वपूर्ण है परन्तु फिर इन सभी महत्वपूर्ण दिनों में से कुछ विशेष का जिक्र करते हुए सुविख्यात प्रोफेसर विवेक कुमार ने संविधान सभा में बाबासाहब द्वारा दिये गए भाषणों की खुद गणना की है। प्रो विवेक कुमार द्वारा की गयी इस गणना व पड़ताल, जो कि निम्नांकित तीन बिन्दुओं में वर्णित हैं, के मुताबिक स्पष्ट हैं कि –

1. बंगाल की जनरल सीट से जीत कर आये बाबासाहब ने संविधान सभा में दिसम्बर 17, 1946 को 3310 शब्दों का अपना प्रथम भाषण दिया जो कि संविधान के ख़ाके के प्रति बाबा साहब की गहरी जानकारी व गंभीरता और भारत राष्ट्र निर्माण के लिए उनकी उत्सुकता व समस्याओं के प्रति उनकी चिंता को बताता है। आज से 74 साल पहले अपने इसी भाषण में, 17 दिसम्बर 1946 को बाबासहब ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के सदस्यों को समझाया था कि राष्ट्र की प्रतिष्ठा के आगे किसी पार्टी या लीडर की प्रतिष्ठा का कोई मूल्य नहीं होता।

2. संविधान सभा में नवंबर 04, 1948 को संविधान का मसौदा पेश करने के दौरान राष्ट्र निर्माता बाबा साहब का भाषण 8334 शब्दों का रहा जो कि देश की जनता, उनके लिए उनकी हुकूमत को कैसे स्थापित करना चाहिए, को स्पष्ट करता है।

3. नवंबर 25, 1949 को 3900 शब्दों में परम पूज्य बाबा साहब ने संविधान सभा में संविधान की फाइनल कॉपी संविधान सभा के अध्यक्ष को सौपने के दौरान संविधान सभा व देश की जनता को भारत के अतीत से सीखने की सलाह देते हुए वर्तमान स्थिति के साथ-साथ भविष्य की चुनौतियां क्या है, उनसे कैसे निपटना है, सरकारों को चलाने वाले लोग कैसे होने चाहिए, आदि को स्पष्ट किया।

4. संविधान सभा के माननीय सदस्यों द्वारा 7635 संशोधन लाया गया जिनका अध्ययन करते हुए बाबा साहब ने 5162 संसोधन को रिजेक्ट किया तथा 2473 संसोधन को संविधान सभा के पटल पर चर्चा करते हुए समायोजित किया, जो कि संविधान निर्माण के प्रति बाबा साहब की निष्ठा, लगन व प्रतिबद्धता जो स्थापित करता हैं।

5. संविधान को अंतिम रूप देने में डॉ. आंबेडकर की भूमिका को रेखांकित करते हुए भारतीय संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के एक सदस्य टी. टी. कृष्णमाचारी ने 25 नवम्बर 1948 में संविधान सभा में कहा था, ‘सम्भवत: सदन इस बात से अवगत है कि आपने (ड्राफ्टिंग कमेटी) में जिन सात सदस्यों को नामित किया है, उनमें एक ने सदन से इस्तीफा दे दिया है और उनकी जगह अन्य सदस्य आ चुके हैं। एक सदस्य की इसी बीच मृत्यु हो चुकी है और उनकी जगह कोई नए सदस्य नहीं आए हैं। एक सदस्य अमेरिका में थे और उनका स्थान भरा नहीं गया। एक अन्य व्यक्ति सरकारी मामलों में उलझे हुए थे और वह अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रहे थे। एक-दो व्यक्ति दिल्ली से बहुत दूर थे और सम्भवत: स्वास्थ्य की वजहों से कमेटी की कार्यवाहियों में हिस्सा नहीं ले पाए। सो कुल मिलाकर हुआ यह कि इस संविधान को लिखने का भार डॉ. आंबेडकर के ऊपर ही आ पड़ा है। मुझे इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि हम सब को उनका आभारी होना चाहिए कि उन्होंने इस जिम्मेदारी को इतने सराहनीय ढंग से अंजाम दिया है। [1]

25 नवम्बर 1949 को अपने भाषण में श्री महावीर त्यागी कहते हैं कि “मेरे सामने एक मूर्त तस्वीर है। डॉ. आंबेडकर, जिसके मुख्य कलाकार हैं, ने अपना ब्रश नीचे रख दिया और उस तस्वीर का अनावरण कर दिया ताकि लोग उसे देख सके और उस पर अपनी राय दे सकें।[2]”

साथ ही बाबा साहब के प्रति श्री जगत नारायण लाल, श्री सुरेश चंद्र मजूमदार, श्री राज बहादुर आदि सभी के आभार व्यक्त करने के बाद अन्त में संविधान सभा के अध्यक्ष श्री राजेंद्र प्रसाद ने भी बाबा साहब के त्याग और समर्पण की सराहना करते हुए हैं कि “सभापीठ के आसान पर बैठकर और प्रतिदिन की कार्यवाही का संचालन करते हुए मैंने यह महसूस किया हैं, जो कि किसी दुसरे ने महसूस नहीं किया होगा कि प्रारूप समिति के सदस्यों, विशेषकर इसके अध्यक्ष डॉ आंबेडकर ने अपने ख़राब स्वास्थ्य के बावजूद जिस उत्साह और समर्पण से कार्य किया हैं, वह दुर्लभ हैं। (सदस्यों ने ख़ुशी प्रकट की) हमने जब उन्हें प्रारूप समिति के लिए चुना और उसका अध्यक्ष बनाने का निर्णय किया, उससे और अधिक सही निर्णय और कोई नहीं हो सकता था। उन्होंने ना सिर्फ अपने चयन को सही ठहराया, बल्कि जिस कार्य को पूरा किया हैं, उसे सरल भी बना दिया हैं।[3]” संविधान सभा के सभी सदस्यों समेत संविधान सभा के अध्यक्ष द्वारा बाबा साहब के प्रति व्यक्त किया गया आभार जहाँ संविधान निंर्माण में बाबा साहब के अथक परिश्रम, उनके त्याग और समर्पण को व्यक्त करता वहीं बाबा साहब को संविधान कर शिल्पकार भी प्रमाणित करता हैं।

6. देश व देशवासियों को आगाह करते हुए अपने इसी भाषण में बाबा साहब ने 26 नवम्बर,1949 को संविधान सभा में कहा था ‘किसी भी देश का संविधान चाहे कितना ही अच्छा क्यों ना हो अगर उसके चलाने वाले खराब होंगे तो अच्छा से अच्छा संविधान भी खराब हो जाएगा’ और ‘किसी भी देश का संविधान चाहे कितना ही खराब क्यों ना हो अगर उसके चलाने वाले अच्छे होंगे तो खराब से खराब संविधान भी अच्छा हो जाएगा”।[4] बाबा साहब का देश के नाम ये सन्देश बाबा साहेब की देश, इसकी व्यवस्था व संविधान के प्रति गंभीरता व आने वाली चुनौतियों के प्रति चिंता को बयां करता हैं।

7. भारत के बाहर के विशेषज्ञों की तरफ रूख़ करे तो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के आत्मकथा लेखक माइकेल ब्रेचर ने भी बोधिसत्व बाबा साहब डॉ. आंबेडकर को ही भारतीय संविधान का वास्तुकार/शिल्पकार माना और उनकी भूमिका को संविधान के निर्माण में फील्ड मार्शल के रूप में रेखांकित किया।[5]

उपरोक्त उदाहरण बताते हैं कि संविधान निर्माण में बाबा साहब ने कितनी मेहनत की है, जो साबित करते हैं कि बोधिसत्व राष्ट्र निर्माता बाबा साहब डॉ. आंबेडकर ही संविधान निर्माता (Father on Constitution) हैं।


संदर्भ

[1] संविधान सभा की बहस, खंड- 7, पृष्ठ- 231
[2] डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर, राइटिंग्स एन्ड स्पीच, वॉयलूम – 13, पृष्ठ संख्या – 1205
[3] बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर, सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड – 30, पृष्ठ संख्या – 221
[4] बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर, सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड – 30, पृष्ठ संख्या – 211
[5] नेहरू : ए पॉलिटिकल बायोग्राफी द्वारा माइकल ब्रेचर, 1959

प्रस्तुति

रजनीकान्त इन्द्रा, इतिहास छात्र, इग्नू-नई दिल्ली

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