नागपुर। बाबासाहेब भीम राव अम्बेडकर की धम्मक्रांति भूमि नागपुर की पवित्र दीक्षाभूमि पर 60वें धम्मचक्र प्रवर्तन के दिन लाखों बौद्ध अनुयायियों ने तथागत बुद्ध और बाबासाहेब को श्रद्धा सुमन अर्पित किए. अशोक विजयदशमी 14 अक्तूबर को धम्मचक्र प्रवर्तन दिन समारोह मनाया गया. बाबासाहेब ने 14 अक्तूबर 1956 को बौद्ध धम्म अपनाया था. इस दिन लाखों अनुयायियों ने दीक्षा भूमि पर महामानव को नमन किया. भारत और विश्व के बौद्धों के लिए दीक्षाभूमि आधुनिक तीर्थ स्थल है. भारत में बौद्धगया, सारनाथ, कुशीनगर, लुंबिनी की तरह ही दीक्षाभूमि भी पूजनीय है.
हाथ में पंचशील और नीले झंडे लेकर देशभर से लाखों लोग इस वर्ष भी दीक्षाभूमि पहुंचे थे. धर्मांतरण की यह 60वीं वर्षगांठ होने के कारण पहले से भी अधिक संख्या में अम्बेडकरी अनुयायी इस वर्ष नागपुर आये थे. उनमें कुछ विदेशी मेहमान भी थे. बौद्ध देश के लोग तो दीक्षाभूमि पर आते ही है. अब पश्चिमी देशों के लोग भी इस समारोह को देखने के लिए आने लगे है. धम्मचक्र प्रवर्तन समारोह में उमड़े भीम सैलाब को देखकर उन्हें (विदेशियों को) बाबासाहेब अम्बेडकर के महान कार्य की महत्ता ज्ञात हुई.
डॉ. अम्बेडकर के साथ पांच लाख लोगों ने हिंदू धर्म त्यागकर समता, करुणा, शांति का संदेश देने वाले महान बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी. विश्व में शांतिपूर्वक हुए इस धम्म क्रांति ने इतिहास रच दिया है. 1956 के धर्मांतरण समारोह के बाद से हर वर्ष अशोक विजयदशमी को लाखों अम्बेडकरी अनुयायी दीक्षाभूमि पर पहुंचकर तथागत बुद्ध और बाबासाहेब को स्मरण कर उनके विचारों पर चलने का संकल्प लेते हैं. यह परंपरा 60 वर्षों से लगातार जारी है.
हर वर्ष इस भूमि पर बौद्ध धर्मांतरण कार्यक्रम भी होता है. आयोजकों ने दावा किया है कि इस वर्ष करीब 20 हजार लोगों ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली है. त्रिशरण-पंचशील ग्रहण कर तथा 22 प्रतिज्ञाओं का पालन करने की शपथ लेकर उन्होंने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली. धम्मचक्र प्रवर्तन दिन पर दीक्षाभूमि के साथ ही पूरा नागपुर नमो बुद्धाय-जय भीम के नारों से गुंज उठा था. नीले झंडे, पंचशील झंडे, बैनर, होर्डिंग से शहर भीममय हो गया था. शहर के हर रास्ते केवल और केवल दीक्षाभूमि की ओर जाते हुए प्रतित हो रहे थे. विभिन्न राज्यों के अम्बेडकरी अनुयायी अपनी परंपरागत वेषभूशा और वाद्यों के साथ भीम-बुद्ध का जयघोष करते और गीत गाते हुए दीक्षाभूमि पहुंच रहे थे. शहर के कोनो-कोनो से जुलूस निकालकर लोग जय भीम करते दीक्षाभूमि पर पहुंचे. समता सैनिक दल की विभिन्न प्रदेश शाखाओं ने दीक्षाभूमि तक मार्च निकाले.
दीक्षाभूमि पर चारों और से भीम सैलाब उमडा था. जगह-जगह भीम-बुद्ध गीतों के स्वर गुंज रहे थे. दीक्षाभूमि स्मारक पर तथागत बुद्ध की मूर्ति को नमन कर बाबासाहेब की अस्थियां और प्रतिमा को श्रद्धा सुमन अर्पित कर लाखों लोग धन्य महसूस कर रहे थे. लाखों लोग केवल तथागत बुद्ध और महामानव डा. अम्बेडकर को नमन करने के लिए ही इस ऐतिहासिक दिन दीक्षाभूमि पर आते हैं. इस भूमि पर पहुंचकर नमन करना और लौटते वक्त विचार, पुस्तकों के साथ ज्ञानामृत साथ ले जाना ही अनुयायियों का मुख्य लक्ष्य होता है.
दीक्षाभूमि पर डॉ.अम्बेडकर की किताबें, ग्रंथ, उनके विचारों के संग्रह, भाषण संग्रह, बुद्ध विचार, ग्रंथ, संविधान के साथ ही विभिन्न विषयों पर पुस्तकों के विविध प्रकाशकों के स्टॉल लगते है. इस वर्ष 300 से अधिक स्टॉल लगे थे. बुद्ध और अम्बेडकर की मूर्तियों की खूब बिक्री हुई. गीत- नाटकों की सीडी भी हर वर्ष की तरह बिके.
दीक्षाभूमिपर आनेवाले लोगों के निःशुल्क भोजन की व्यवस्था इस वर्ष भी सामाजिक संगठनों ने की थी. करिब 500 संस्थाओं ने भोजनदान किया था. हर वर्ष की तरह अत्यधिक शांतिपूर्ण तरीके से यह समारोह संपन्न हुआ.
