
नई दिल्ली। बिहार के मधुबनी जिला के लौकही थाना के चौकीदार उमेश पासवान की कविता को गांव-घर में कोई नही सुनता है. लेकिन कविता को अपन जिंदगी मानने वाले उमेश पासवान पुलिसिया नौकरी से समय निकालकर गंवई जीवन को अपने शब्दों में पिरोते हैं और अपनी मां को जबरन सुनाते फिरते हैं. इनकी लग्न रंग लाई और उमेश को उनके कविता संग्रह ‘वर्णित रस’ के लिए मैथिली भाषा में साल 2018 का साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार मिला है.
उमेश पासवान नवटोली गांव के चौकीदार हैं. गांव के माहौल में जो देखते हैं, वो लिख देते हैं. 34 साल के उमेश पासवान मैथिली भाषा में साल 2018 का साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार पाकर खुश हैं. 22 भाषाओं में मिलने वाला साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 35 साल से कम उम्र के साहित्यकार को मिलता है. विद्यानाथ झा मैथिली भाषा की कैटेगरी में अवॉर्ड तय करने वाली तीन सदस्यीय ज्यूरी मेंबर में से एक हैं.
उमेश के जीवन के उतार-चढ़ाव ने उनकी कविता को जन्म दिया. इनके पिता खखन पासवान चौकीदार की नौकरी करते थे और मां अमेरीका देवी को खेतों में मज़दूरी करती हैं. बाद में पिता खखन पासवान को लौकही थाने में चौकीदार की नौकरी मिली जो उनकी मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर उमेश को मिल गई.
साहित्य अकादमी यहां कोई नहीं समझता…
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उमेश बताते भी हैं, “साहित्य अकादमी यहां कोई नहीं समझता. हम मधुबनी, दिल्ली, पटना सब जगह अपनी कविता सुनाते हैं, लेकिन हमारे गांव में कोई नहीं सुनता. जब किसी ने नहीं सुना तो हमने कांतिपुर एफएम और दूसरे रेडियो स्टेशनों पर कविता भेजनी शुरू की ताकि कम से कम रेडियो के श्रोता तो मेरी कविता सुनें.” कांतिपुर एफ़एम नेपाल से प्रसारित होने वाला रेडियो स्टेशन है. दो बच्चों के पिता उमेश के अब तक तीन कविता संग्रह ‘वर्णित रस’, ‘चंद्र मणि’, ‘उपराग’ आ चुके हैं. उमेश मैथिली साहित्य में बहुत कुछ लिखना चाहते हैं इसके लिए वे चौकीदारी के साथ-साथ कविता लेखन को भी जारी रखेंगे.
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