लेखक स्वतंत्र पत्रकार और बहुजन विचारक हैं। हिन्दी साहित्य में पीएचडी हैं। तात्कालिक मुद्दों पर धारदार और तथ्यपरक लेखनी करते हैं। दास पब्लिकेशन से प्रकाशित महत्वपूर्ण पुस्तक सामाजिक क्रांति की योद्धाः सावित्री बाई फुले के लेखक हैं।
केंद्र में भाजपा की सत्ता का आधार हिंदी पट्टी के 10 राज्य हैं। इन 10 राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।
इन 10 प्रदेशों में लोकसभा की कुल 353 सीटों में 214 सीटें हैं यानि लोकसभा की करीब 61 प्रतिशत सीटें इन्हीं 10 राज्यों में हैं। शेष 143 सीटें यानि 39 प्रतिशत सीटें शेष 18 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में वितरित हैं।
2019 के लोकसभा चुनावों भाजपा को कुल 303 सीटों पर विजय मिली थी। जिसमें 178 सीटें हिंदी पट्टी के इन 10 राज्यों में मिली हैं। हिंदी पट्टी की 214 सीटों में से 178 सीटों पर भाजपा विजयी हुई थी। इन राज्यों में उसकी सफलता की दर 83 प्रतिशत से अधिक हैं।
दिल्ली की सभी सात सीटों, हरियाणा की सभी 10 सीटों और उत्तराखंड की सभी पांच सीटों पर भाजपा विजयी हुई। इन तीनों राज्यों में उसकी सफलता की दर 100 प्रतिशत रही। राजस्थान में उसे कुल 25 सीटों में से 24 सीटों पर जीत मिली।
यहां उसकी सफलता की दर 96 प्रतिशत रही। मध्यप्रदेश में उसे 29 सीटों में 27 सीटें मिलीं। यहां उसकी सफलता की दर 93 प्रतिशत रही। झारखंड में उसे 14 में से 12 सीटों पर विजय हासिल हुई। यहां उसकी सफलता की दर 86 प्रतिशत रही। छत्तीसगढ़ में उसे 11 सीटों में से 9 सीटों पर जीत हासिल हुई। यहां उसकी सफलता की दर 82 प्रतिशत रही।
उत्तर प्रदेश में उसे 80 सीटों में 62 सीटें मिलीं। यहां उसकी सफलता की दर 78 प्रतिशत रही। बिहार में उसे 40 सीटों में से 17 सीटें मिली। यहां उसकी सफलता की दर 42 प्रतिशत रही। 2014 में भाजपा को बिहार में 40 सीटों में से 22 सीटें मिली थीं। उस समय उसकी सफलता की दर 55 प्रतिशत थीं।
जहां हिंदी पट्टी के अन्य सभी शेष राज्यों में भाजपा की सफलता की दर 75 प्रतिशत से लेकर 100 प्रतिशत तक है, वहीं बिहार में उसकी सफलता की दर 42 प्रतिशत है। हिंदी पट्टी में बिहार एकमात्र राज्य है, जहां भाजपा आज तक विधान सभा चुनावों में अपने दम पर न तो बहुमत हासिल कर पाई है, न अभी तक अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री बना पाई है।
प्रश्न यह आखिर भाजपा के सामने बिहार में कौन सी राजनीतिक और वैचारिक चुनौतियां हैं और कौन से सामाजिक समीकरण हैं, जिसके चलते बिहार हिंदी पट्टी में एकमात्र ऐसा किला बना हुआ है, जिसको पूरी तरह भाजपा फतह नहीं कर पाई है। यह मात्र संयोग है या इसके पीछे कुछ ठोस बुनियादी वजहें हैं या कुछ समय की बात है?