बरनाला के प्रेम कुमार 26 अप्रैल 2014 को एडीजे बने। उनकी नियुक्ति अमृतसर जिला कोर्ट में हुई। वह अपने काम में व्यस्त हो गए और मामलों को सुनने लगे। मामलों को सुनने, फैसला देने और मामलों को का निपटारा करने में वह शानदार जज थे। इसी बीच दुष्कर्म के एक आरोपी ने हाई कोर्ट में शिकायत दी कि प्रेम कुमार ने वकालत करते वक्त दुष्कर्म पीड़िता की ओर से समझौते के लिए संपर्क किया और पीड़िता को 1.5 लाख रुपये दिलवाए। आरोप लगने के बाद हाई कोर्ट ने प्रेम कुमार के खिलाफ विजिलेंस जांच शुरू की। इसके आधार पर जज की एसीआर में ‘ईमानदारी संदिग्ध’ दर्ज कर दी गई। मामला चलता रहा और फिर साल 2022 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की फुल बेंच ने शिकायत के आधार पर प्रेम कुमार को बर्खास्त कर दिया।
प्रेम कुमार ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में फैसले को चुनौती दी। तारीखें बढ़ती गईं और आखिरकार जनवरी 2025 में सबूतों की कमी की बात कहते हुए प्रेम कुमार की बर्खास्तगी रद्द कर दी। फिर हाई कोर्ट ने ही इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। और सु्प्रीम कोर्ट ने इस मामले में जो कहा, वह न्यायपालिका के भीतर बैठे कुछ जजों के जातिवादी चेहरे को बेनकाब करने वाला था। साथ ही सच्चाई के पक्ष में एक नजीर बन गया।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने इस मामले में सुनवाई करते हुए ओपन कोर्ट में कहा कि- यह जज परिस्थितियों और जातिगत पक्षपात का शिकार हुआ। सब पहले से फिक्स था। ऊंचे समुदाय के लोग बर्दाश्त ही नहीं कर पा रहे थे कि उपेक्षित समुदाय के व्यक्ति का लड़का कम उम्र में जज बन गया और उनके बीच आ गया।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज की बर्खास्तगी गलत थी। उनको बहाल किया जाए। साथ ही सभी लाभ दिये जाएं।
यह उस प्रेम कुमार की कहानी है, जिन्होंने जज के पद पर होने के बावजूद व्यवस्था का अन्याय झेला। वह उस प्रेम कुमार की कहानी है, जिनके पिता मोची थे और माँ मजदूर। प्रेम मोची समाज से ताल्लुक रखते थे। समाज और आर्थिक, दोनों छोड़ पर हाशिये पर पड़े इस परिवार के बेटे प्रेम कुमार ने अपने माता-पिता और खुद को इस परिस्थिति से निकालने के लिए खुद को झोंक दिया। जमकर पढ़ाई की। और अपनी मेहनत से जज की सम्मानित कुर्सी हासिल की। लेकिन यही बात कुछ जातिवादियों को खटक गई। उन्हें यह बात खटक गई कि आखिर कल तक चौराहे पर जूते गांठने वाले का बेटा हमारे बीच कैसे पहुंच गया।
यहीं से शुरु हुई प्रेम कुमार को फंसाने की साजिश। और पूरी कहानी आपके सामने है। यहां हम आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं। खासकर सवर्ण समाज के लोगों से। हम यह पूछना चाहते हैं कि क्या दलित, वंचित समाज के व्यक्ति को अपनी मेहनत के बूते अपना मुस्तकबिल खुद लिखने का हक नहीं है? किसी भी दलित और वंचित ने आपका क्या बिगाड़ा है कि आप उसके बढ़ते हुए कदम को खींचना चाहते हो। जज प्रेम कुमार का मामला बस एक मामला भर नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज के भीतर फैले जाति व्यवस्था की एक और सच्चाई है। यह कथित ऊंची जाति के जातिवादियों के चेहरों को उजागर करने वाला मामला है।
