नई दिल्ली। राज्यसभा में इन दिनों हिन्दू देवी-देवताओं को शराब से जोड़ा जा रहा है. इस पर राज्यसभा में बहस भी हो रही है. इस बयान ने राज्यसभा में हंगामा कर दिया है. हमारे नेता प्राचीन विद्या से अच्छी तरह से वाकिफ़ न हो, लेकिन कम से कम उन्हें इनका मूल ज्ञान तो होना ही चाहिए जिनकी वो पूजा करते है. इस तरह की बातें राज्य सभा में हुई है तो हम आपको उन देवी-देवताओं के बारे में बताते हैं जोकि शराब का सेवन किया करते थे.
वेद में सोम, एक भगवान का नाम था, इसी नाम से प्रख्यात एक पौधा भी था जिससे एक मादक रस निकलता था. इसे सोमरस के नाम से भी जाना जाता है. यह रस देवताओं को पश्चाताप के लिए पिलाया जाता था. सोमरस आम तौर पर दूसरे ज़हरीले पदार्थ, जैसे सूरा से काफी अलग होता था. माना जाता था कि सूरा सामान्य लोगों के लिए होता है और सोमरस वैदिक देवताओं लिए. सोमरस देवी-देवताओं के बीच काफी प्रिय था. इसका प्रयोग इंद्र, अग्नि, वरुण और मारुतः जैसे भगवान को खुश करने के लिए किए गए रस्म रिवाज़ में किया जाता था. इनमें इंद्र के बारे में यह कहा जाता है की उन्होंने वृत्र राक्षस से युद्ध से पहले सोमरास से भरे तीन तालाब को पी कर खत्म कर दिया था.
शराब का प्रयोग सिर्फ इन्ही पौराणिक कथाओ में ही नहीं बल्कि महाभारत और रामायण में भी इसका उल्लेख किया गया है. महाभारत में कृष्णा और अर्जुन अपनी-अपनी पत्नियों सत्यभामा और द्रौपदी के साथ मिलकर ‘बस्सिया शराब’ का आनंद लेते थे. बलराम को अपनी पत्नी के साथ मदिरापान के पश्चात नृत्य करते बताया गया है. रामायण में सीता को यह कहते बताया गया की अगर राम इस युद्ध को विजय कर लेते हैं तो मै यमुना नदी की हज़ारो गायों और मदिरा के साथ पूजन करुंगी. गंगा नदी को पार करते समय सीता ने गंगा को वचन दिया कि नदी पार होने पर वह मांस के साथ चावल (बिरयानी) और हजारों लीटर शराब गंगा को भेंट चढ़ाएंगी.
तांत्रिक धर्म को पांच अहम मकर में बांटा गया है- मद्य यानि शराब, ममसा यानि मांस, मतस्य यानि मछ्ली, मुद्रा यानि भाव और मैथुन यानि शारिरिक संबंध. ये पांचों मकर उन देवताओं को प्राप्त होते थे जो वामचर का पालन करते थे. मदिरा को हमेशा से शक्ति और शिव का प्रतीक बताया गया है. ऐसा कहा जाता है कि मां काली कंकाल के सर का प्रयोग मदिरापान के लिए किया करती थी. इन तथ्यों से यह साफ तौर पर जाहिर होता है की कुछ देवी-देवताओं को मदिरा ख़ास तौर पर पसंद थी और आज भी उनके सेवन के बिना उनकी पूजा को अधूरी मानी जाती है. इसका एक मुख्य उदाहरण दिल्ली के भैरव मंदिर और उज्जैन के काल भैरव मंदिर की है. यहां आज भी मदिरा को पूजा की एक मुख्य सामग्री के तौर पर प्रयोग में लाया जाता है.
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