“व्हाट इज इन ए नेम”, अर्थात नाम में क्या रखा है

महान विद्वान सेक्सपियर ने लिखा है, “व्हाट इज इन ए नेम”, अर्थात नाम में क्या रखा है. बच्चा जब पैदा होता तब उसका नामकरण संस्कार किया जाता है. उसको एक नाम दिया जाता वही नाम उसकी पहचान बन जाती है यहाँ तक कि मरने के उपरांत भी व्यक्ति का नाम जिंदा रहता है. इतिहास गवाह है कि नाम और इज्जत के खातिर बड़ी बड़ी जंग लड़ी गयी है और किसी को अपने नाम को चमकाने की और किसी को दूसरे के नाम को मिटाने की प्रवृति लंबे समय से चली आ रही है. भारत में नाम एकसमान, काम एक समान होते हुए भी व्यक्ति की पहचान का पैमाना जाति और धर्म भी अहम हो जाता है. कुछ लोग इतिहास में दर्ज इसलिए हो जाते हैं कि ओ लिखने लायक कुछ काम कर गए होते है. एक अंग्रेजी की सूक्ति है कि there is nothing good or bad, but thinking makes it so” इस दुनिया मे ऐसे शासक हुए हैं उन्होंने जो सोचा ओ जनता पर थोप डाला. लेकिन भारत का प्राचीन इतिहास गौरव और शौर्य से भरा पड़ा है. विश्व की महानतम प्राचीन सभ्यताओं में मेसापोटामिया की सभ्यता के बाद भारत की सिंधुघाटी सभ्यता का अपना विशेष नाम है. इसको हड़प्पा की सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है.

अब तार्किक प्रश्न ये खड़ा होता है कि जिस सिंधु नदी के नाम पर इस सभ्यता का नाम इंदुस वैली civilisation पड़ा ओ सिंधु नदी पाकिस्तान में है. और ओ पाकिस्तान कभी भारत का अभिन्न अंग हुवा करता था. लेकिन आज भारत पाकिस्तान एक दूसरे के विलोम शब्द बन चुके हैं जैसे कि दिन का रात. जिस तरह से आजकल भारत में संस्थाओं,ऐतिहासिक धरोहरों, के नाम परिवर्तन का दौर चला है उसे देखकर लगता हमने सब कुछ हासिल कर लिया, सब कुछ पैदा कर लिया, हमने बेरोजगारी पर जीत पा ली, हमने भरस्टाचार पर जीत पा ली, हमने कुपोषण, भुखमरी पर जीत पा ली, हमने शत प्रतिशत साक्षरता हांसिल कर ली, हमने महिलाओं पर हो रहे जुल्म और शोषण पर जीत पा ली और सबसे अहम हमने हजारो वर्षों के कलंक जातिवाद जो कि आरक्षण की जननी कही जाती है उस जाति के बंधन से मुक्त हो गए है और अब सिर्फ नए सिरे से नामकरण की ही रश्म जैसे अब शेष रह गयी हो. इस नव युग के दो अवतार मोदी और योगी सिर्फ नामकरण की ही रस्म पूरी करने में लगे हों? हम देखते है नामों में बड़ी रोचकता भी और हैरानी करने वाले तथ्य भी छुपे हैं. जैसे किसी व्यक्ति का नाम अमर हो और ओ क्या अमर रहता है? सुखी राम से ज्यादा सुखी सायद दुखी राम रहता हो. बदलने का ही शौक है तो समाज की सोच बदली जाए.

अंधविस्वास और पाखण्ड को बदल जाये, पुरानी रूढ़ियों, पुरानी सड़ी गली मानसिकता को बदला जाए, किन कारणों से देश गुलाम हुवा उन कारणों को बदला जाए. महिलाओ के प्रति पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता और धरणाओं को बदल कर आधुनिकता की ओर सबको समान अवसर प्रदान करने की सोच विकसित की जाए. हैरानी होती है एक तरफ हम मुस्लिम महिलाओं की समस्याओं और शोषण के लिए काफी चिंतित और उत्सुक प्रतीत हो रहे हैं तीन तलाक, की समस्या से उनको स्वतन्त्रता दिलाने में संसद से लेकर न्यायालय तक लड़ाई लड़ रहे है. लेकिन जिस न्यू इंडिया और सबका साथ सबका विकास की बात कर रहे है उस न्यू इंडिया, डिजिटल इंडिया, में आज भी हिन्दू महिलाओ और हिन्दू दलितों के लिए मन्दिरों में प्रवेश करना मंगल ग्रह में प्रवेश करने से भी कठिन हो रहा है. आज भारती समाज को पुनर्जागरण की जरूरत महसूस होने लगी है. जिस प्रकार 19वीं सदी में कई कुप्रथाओ का अंत हुआ उसी प्रकार पुनः नवजागरण की आवस्यकता है. इतिहास को बदलकर हम अपने भविष्य को नहीँ बदल सकते है बेसक ऐतिहासिक गलतियों से अवश्य ही सबक लिया जाना चाहिए.

भविष्य की मजबूत इमारत वर्तमान की ज्वलन्त समस्यों पर विजय प्राप्त कर ही खड़ी की जा सकती है. नाम तो बहुत बदले गए है शहरों के, संस्थानों के, योजनाओ के, मगर उनकी कार्यशैली और स्वरूप नहीं बदला, नरेगा को मनरेगा करने से रोजगार में कोई क्रांतिकारी बदलाव अभी तक देखने को नहीं मिले है. किसान नरेगा में भी आत्महत्या कर रहे थे मनरेगा में भी, किसान इंडिया में भी उसी हाल में था जिस हाल में नई इंडिया में जी रहा है, दलित के लिए अछूतपन, भेदभाव वैदिक भारत मे भी था, आर्यव्रत में भी था, हिंदुस्तान में भी था,भारत में भी था और अब जब से न्यू इंडिया बनी है तब भी दलित शोषित और उपेक्षित ही है. इतना ही नहि गांधी ने दलितों को एक नया नाम दिया हरिजन लेकिन उस नामकरण से दलितों को अपने लिए गन्दी गाली समान लगने लग गयी और उस शब्द को असंवैधानिक करार दिया गया. उत्तराखंड राज्य गठन जब हुवा तब उत्तरांचल राज्य के नाम से हुआ इसका बाद में नाम उत्तराखंड कर दिया मगर हालत जो उत्तरांचल राज्य के थे वही हालात उत्तराखंड राज्य का भी है. पलायन, बेरोजगारी, उत्तरांचल राज्य में भी प्रमुख समस्या थी, उत्तराखंड राज्य में भी प्रमुख समस्या है. राजनीति से सत्ता तो परिवर्तित होती है मगर समाज को जगाने के लिए समाजसुधारकों की जरूरत होती है जो इस बक्त दिखता नहीं. सत्ता की भूख के आगे करोड़ो भूखे पेट तड़प रहे है. देश को 21वीं सदी के लिए तैयार करना है तो ध्यान, ज्ञान और विज्ञान के रास्ते पर चलना होगा  ताकि हम तकनीक और यंत्रों के समुन्द्र पार के देशों पर निर्भर न रहे.

लेखक:- आई0 पी0 ह्यूमन, (हल्द्वानी) नैनीताल, स्वतन्त्र स्तम्भकार, PGD, JMC

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