मुंबई। ‘टॉयलेटः एक प्रेम कथा’ को लेकर लंबे समय से चर्चे चल रहे थे, आज फिल्म रिलीज हो गई है. अक्षय कुमार और भूमि पेडणेकर ने फिल्म में जबरदस्त एक्टिंग की है. कहानी भी दिलचस्प है. फिल्म में उत्तर भारत की जो झलक दिखाई गई है, वह काफी रियल लगती है. अक्षय और भूमि का बोलने का अंदाज भी बढ़िया है.
फिल्म की कहानी
अपने घर में टॉयलेट ना होने पर पति से तलाक की कई खबरें पढ़ी होंगी. ये कहानी भी कुछ ऐसी है लेकिन थोड़ी बॉलीवुड टाइप की है. साइकिल की दुकान चलाने वाले केशव (अक्षय कुमार) को अमीर खानदार की लड़की जया (भूमि पेडणेकर) से पहली नज़र में ही प्यार हो जाता है. प्यार परवान चढ़ता है और दोनों शादी कर लेते हैं. शादी की पहली रात ही जब महिलाएं सुबह होने से पहले जया को शौच के लिए खेतों के जाने के लिए जगाती हैं तो उसे पता चलता है कि घर में शौचालय नहीं है.
जया का कहना है कि उसे घर में टॉयलेट चाहिए. केशव की मुश्किल उसके पिता हैं जो घर में पंडित हैं और वो मानते हैं कि जिस आंगन में तुलसी है वहां टॉयलेट नहीं बन सकता है. वैसे तो ये कोई बड़ी बात नहीं है कि जैसे सारी महिलाएं लोटा लेकर खेतों में चली जाती हैं वैसे जया भी चली जाए लेकिन वो ऐसा नहीं करती है. वो केशव को छोड़कर मायके चली जाती है और फिर शुरू होती है केशव की शौचालय बनवाने के लिए घर, परिवार और समाज से लड़ाई. बात जया और केशव के तलाक तक पहुंच जाती है लेकिन शौचालय नहीं बन पाता. यहां केशव डायलॉग भी मारता है, ‘आशिकों ने तो आशिकी के लिए ताजमहल बना दिया, हम एक संडास ना बना सके.’ इसके बाद केशव अपना प्यार बचाने और लोगों की सोच से लड़ने के लिए क्या-क्या करता है यही पूरी कहानी है.
फिल्म में भूमिका
स्टार कास्ट: अक्षय कुमार, भूमि पेडनेकर, अनुपम खेर, दिव्येंदु शर्मा, सुधीर पांडे,
डायरेक्टर: श्रीनारायण सिंह
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this review on Toilet ek prem katha is not sufficient so plz do the real critical analysis of that film. In this film there is conflict between Jaya & Keshav and Pandit & Indian social thoughts towards “swachhata”
so please don’t write such review. it is story which people knows. tell them behind films story and about the aesthetics of film and also hidden meaning of director