जानिये कर्पूरी ठाकुर को, जिनको 100वीं जयंती पर भारत रत्न देने का हुआ ऐलान

 बिहार के झोपड़ी के लाल, सामाजिक न्याय के महानायक, महान समाजवादी, गरीबों के रहनुमा, पूर्व मुख्यमंत्री, जननायक कर्पूरी ठाकुर जी की आज 100 वीं जयंती है। जयंती की पूर्व संध्या पर भारत सरकार की ओर से उन्हें सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की गई है। ऐसे में इस दिन की महता और बढ़ जाती है। कर्पूरी ठाकुर को जननायक कहा जाता है। 24 जनवरी, 1924 ई. में उनका जन्म बहुजन समाज के एक गरीब पिछड़े नाई परिवार में हुआ था। बहुत ही आर्थिक मुश्किलों के बीच उनकी पढ़ाई हुई और फिर पढ़ाई छोड़कर वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। उस समय बिहार स्वाधीनता आंदोलन के साथ अन्य कई तरह के आंदोलनों का केंद्र था। एक तरफ स्वामी सहजानंद सरस्वती के नेतृत्व में किसानों का मुक्ति संघर्ष चल रहा था, तो दूसरी तरफ सदियों पूर्व खो गई सत्ता और सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए पिछड़े वर्गों का त्रिवेणी संघ निर्माण का अभियान भी चल रहा था।
1934 ई. में पटना में ही जयप्रकाश नारायण के प्रयासों से कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की गई थी और 1939 में इस सूबे में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का भी जन्म हो गया था। मान्यवर कर्पूरी जी ने कांग्रेस के स्वाधीनता आंदोलन से न जुड़कर समाजवादी समझ वाली आज़ादी की लड़ाई से अपने को जोड़ लिया। उनके राजनैतिक संघर्ष का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना था।

आजादी के बाद सोशलिस्ट लोग कांग्रेस से अलग हो गए और कर्पूरी जी धीरे -धीरे समाजवादी पार्टी और आंदोलन के प्रमुख नेता बने। 1967 की संयुक्त विधायक दल की सरकार में वह उपमुख्यमंत्री थे। शिक्षा विभाग उनके पास था। उस वक़्त स्कूलों में छात्रों को हर महीने शुल्क देना होता था। इसके कारण गरीब छात्रों को अर्थाभाव में विवश होकर पढ़ाई छोड़ देना होता था। कर्पूरीजी ने फीस ख़त्म कर दी। मैट्रिक की परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण किसान व मजदूर परिवार के हजारों बच्चों और लड़कियों की बीच में ही पढ़ाई छूट जाती थी और मैट्रिक फेल होने का उपहास वे सारी जिंदगी झेलते रहते थे। कर्पूरीजी का मानना था अंग्रेजी के बिना भी कुछ क्षेत्रों में अच्छा किया जा सकता है। उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता ख़त्म कर दी। इसे बेईमान एवं धूर्त ब्राह्मणवादी लोगों ने इस तरह प्रचारित किया मानो उन्होंने अंग्रेजी की पढ़ाई ही बंद करवा दीं हो। अंग्रेजी की अनिवार्यता ख़त्म होने से शिक्षा का ज्यादा प्रसार हुआ और बहुजन समाज के बच्चे- बच्चियां भारी संख्या में मैट्रिक की परीक्षा पास करने लगे।
मान्यवर कर्पूरी जी 1971 ई में कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बने तो सीमांत किसानों की जमीन जोतों से मालगुजारी खत्म कर दीं। 1977 में भी जब दूसरी बार वे मुख्यमंत्री हुए तो 1978 ई में पिछड़े वर्गों को सरकारी सेवाओं में आरक्षण देने संंबंधी मुंगेरीलाल कमीशन की सिफारिशें लागू कर दीं। पूरे उत्तर भारत में इसी के साथ सामाजिक न्याय की राजनीति की शुरुआत हुई। इसके कारण उन्हें मुख्यमंत्री पद तक छोड़ना पड़ा, किन्तु उन्होंने मंडल कमीशन के गठन और शिफारिशों की पृष्ठभूमि तैयार कर दीं।

 

वे कभी भी सामाजिक न्याय की अपनी लड़ाई से पीछे नहीं हटे और न उन्होंने इसके लिए कोई पश्चाताप किया। उन्होंने कभी भी अपने या अपने परिवार या किसी जाति विशेष के लाभ के लिए काम नहीं किया। अपने कर्तव्य पर अडिग रह कर गरीबों, मजदूर-किसानों, महिलाओं और हाशिये के लोगों को मुख्यधारा में लाना ही उनकी राजनीति का मक़सद था। उनके आरक्षण के फैसले के खिलाफ सवर्ण जातियों के छात्र-युवाओं ने पूरे बिहार में आतंक फैलाना शुरू कर दिया और कालेज -विश्वविद्यालयों को जबरन बंद करने का ऐलान कर दिया। सवर्णों ने एक अपमानजनक नारा दिया –
“पिछड़ी जाति कहां से आई,कर्पूरिया की माय बियाई।”
“कर्पूरी कर पूरा, गद्दी छोड़कर धर उस्तुरा”।

सवर्णों द्वारा जगह जगह उन्हें अपमानित किया गया, किन्तु गुदड़ी के लाल कर्पूरी जी ने कभी भी प्रतिहिंसा में कोई असंसदीय जबाव नहीं दिया। लोकतांत्रिक व्यवस्था में उनकी पूर्ण आस्था थी, इसलिए वे पूरी जिंदगी वंचित एवं शोषित समाज के हितों के लिए संघर्ष करते रहे। उनका आकस्मिक निधन 17 फरवरी 1988 ई. में हुआ और बिहार ने अपने अद्वितीय लाल को खो दिया। लाखों लोगों ने उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित की।
बिहार में भूमि सुधार आयोग और कॉमन स्कूल सिस्टम के लिए कर्पूरी जी द्वारा गठित आयोग की सिफारिशें ठन्डे बस्ते में धरी-पड़ी हैं। बिहार में अबतक पिछड़े एवं दलित समाज से कई मुख्यमंत्री बने हैं और बने हुए हैं पर किसी ने भी उसे लागू नहीं किया। आजतक किसी भी सरकार द्वारा न उसे लागू करने का प्रयास कर रही है या न उसे लागू करने के लिए कोई पिछड़े वर्ग की पार्टी आंदोलन कर रही है।

50 बहुजन नायक

तो आइए,हम इन विषम परिस्थितियों में उनके सामाजिक न्याय के आन्दोलन को आगे बढ़ाए, उनके संकल्प को पूरा करें और समतामूलक लोकतांत्रिक-समाजवादी समाज बनाने के लिए संघर्ष करें। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जगदेव प्रसाद के इस पैगाम को हमें भूलना नहीं है –
“सौ में नब्बे शोषित है, शोषितों ने ललकारा है
धन धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है”
जय कर्पूरी! जय भीम!! जय संविधान!!!


लेखक प्रो. विलक्षण बौद्ध, सामाजिक न्याय आंदोलन बिहार, बिहार फुले अम्बेडकर युवा मंच एवं बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन, बिहार से जुड़े हैं।

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