
स्वच्छ भारत अभियान की शौचालय योजना, उज्जवला योजना, राशन को आधार कार्ड से जोड़ने की योजना जैसी कई योजनाओं की कलई खुल चुकी है और इसका प्रतिकूल प्रभाव समाज में अन्तिम पायदान पर स्थित व्यक्तियों पर पड़ा है. इसीलिए प्रधानमंत्री सैनिकों की शहादत की मार्केटिंग करते-करते स्वयं अपनी शहादत की मार्केटिंग करने लगे हैं और उसका आरोप दलित आन्दोलन पर लगाना चाह रहे हैं. दलित आदिवासियों के अधिकारों के लिए वैधानिक और वैचारिक संघर्ष करने वाले लेखकों, पत्रकारों, वकीलों को एक तथाकथित पत्र, जो पुलिस न्यायालय में भी प्रस्तुत नहीं कर रही हैं, के आधार पर छापेमारी के द्वारा गिरफ्तार करना न केवल लोकतंत्र की हत्या है, बल्कि ‘कानून के राज’ की भी हत्या है. इसके साथ ही साथ संघ परिवार की पाठशाला में प्रशिक्षित तथाकथित बुद्धिजीवियों, टी.वी. ऐंकरों, पत्रकारों की आक्रामक बहस भी दलितों को डराने, धमकाने की रणनीति का ही हिस्सा है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की घोषित परियोजना भारत को ‘लोकतांत्रिक समाजवादी राज्य’ जिसकी घोषणा संविधान की उद्देशिका में की गयी है, से बदलकर ‘ब्राह्मणवादी राष्ट्र-राज्य’ के रूप में स्थापित करने की है. संघ के इस उद्देश्य में बाधा वैज्ञानिक ढंग से सोचने-समझने वाले बुद्धिजीवी, दलितों-आदिवासियों के दमन उत्पीड़न के विरुद्ध वैधानिक व वैचारिक लड़ाई लड़ने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. इन कार्यकर्ताओं पर पुलिसिया दमन की कार्यवाही के माध्यम से संघ परिवार दलितों और आदिवासियों में खौफ पैदा करना चाहता है क्योंकि दलित आन्दोलन न केवल वैचारिक, सांस्कृतिक स्तर पर इनको चुनौती दे रहा है बल्कि चुनावी राजनीति के स्तर पर भी चुनौती दे रहा है. इसलिए संघ के हिन्दू राष्ट्र-राज्य की परियोजना में सबसे बड़ी बाधा यदि कोई है तो वह दलित आन्दोलन है. अन्य बड़ी बाधाओं जैसे अल्पसंख्यकों को संघ परिवार आतंकवादी तथा आदिवासियों को नक्सली घोषित कर चुका है.
वास्तव में दलितों से निपटने के लिए इनके पास कोई रास्ता नहीं है. इसलिए कई तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. केन्द्र में सत्तारूढ़ होते ही इन्होंने सबसे पहले सामाजिक तथा सांस्थानिक दमन का रास्ता अपनाया. उच्च शिक्षा में छात्रवृत्ति रोकना दलितों के दमन के लिए उठाया गया कदम था. परिणामस्वरूप दलित समाज ने रोहित वेमुला जैसे प्रतिभाशाली नौजवान को खो दिया. उच्च शिक्षा में बहुत सारे दलित नौजवानों का दमन आज भी जारी है. गुजरात में दलितों को नंगा कर पीटना तथा वीडियो वायरल करने की घटना सामाजिक दमन है. इन घटनाओं के विरोध में जब चन्द्रशेखर ‘रावण’ जैसे नौजवान आवाज उठाते हैं तो उन्हें रासुका जैसे धाराओं में जेल में बन्द कर दिया जाता है, जो राजनीतिक दमन है. और अब इन आवाज उठाने वाले नौजवानों के अधिकारों के लिए वैधानिक और वैचारिक संघर्ष करने वाले बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, वकीलों, कवियों को छापा मार कर पकड़ना राजसत्ता का अन्तिम हथियार पुलिसिया दमन है. स्पष्ट है कि संघ परिवार द्वारा संचालित केन्द्र सरकार दलित दमन का हर हथकंडा अपना रही है और स्वयं मोदी जी अपनी हत्या की साजिश का तार दलित आन्दोलन से जोड़ रहे हैं. बाबासाहब के दिखाये गये रास्ते पर चलने वाला दलित आन्दोलन संघ की साजिश को सफल नहीं होने देगा.
डा. अलख निरंजन
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