मान्यवर कांशीराम जी के सहयोगी रहे श्री आर के चौधरी अस्वस्थ्य थे तो मैं भी उन्हें डॉ राम मनोहर लोहिया हास्पिटल लखनऊ में देखने गया था। चौधरी साहब अपने पुराने दिनों को याद करते हुए अपना एक संस्मरण बता रहे थे जो कुछ इस प्रकार था।
कांशीराम साहब VVIP गेस्ट हाउस में रुके हुए थे, सपा बसपा की गठबंधन की सरकार थी और साहब को दिल्ली जाना था और दोनों लोग गेस्ट हाउस से बाहर लखनऊ एयरपोर्ट के लिए निकलते हैं।
मान्यवर, चौधरी जी से कहते हैं कि एयर पोर्ट चलने के लिए गाड़ी कहाँ है?
चौधरी जी- साहब ये पोटिको में खड़ी लालबत्ती लगी एम्बेसडर आपके लिये ही है।
मान्यवर- लेकिन मैं तो मंत्री नही हूं, तो यह लाल बत्ती एम्बेसडर मेरे लिए कैसे हो सकती है?
चौधरी- नहीं साहब यह सब आपका ही है, यह भले ही मुझको एलाट की गई है, साहब यह सब तो आपकी ही देंन है।
मान्यवर- नहीं नहीं, वो पीछे दूर खड़ी पुरानी सफ़ेद कार किसकी है।
चौधरी- साहब वो मेरी गाड़ी है, जब मै मंत्री नहीं था तो उसी पुरानी गाड़ी से ही चलता था।
मान्यवर- तो ठीक है, ड्राइवर को बोलो हम तुम्हारी गाड़ी ही लेकर एयर पोर्ट चले, हम तो तुम्हारी इसी गाड़ी से एयरपोर्ट चलेंगे।
चौधरी- साहब की जैसी इच्छा। (साहब और चौधरी जी उसी पुरानी गाड़ी से एयर पोर्ट के लिए रवाना होते हैं, और लखनऊ कैंट एरिया मे प्रवेश करते हैं और चौधरी जी से पूछते हैं)
मान्यवर- चौधरी ये बताओ वो चौहान और निषाद दोनों मंत्री कहाँ है? (मुझे उस निषाद और चौहान मंत्री का नाम याद नहीं है)
चौधरी- साहब वो दोनों ही पीछे वाली गाड़ी मे बैठे हैं और पीछे पीछे आ रहे हैं।
मान्यवर- तो वो दोनों लाल बत्ती वाली गाड़ी से ही तो आ रहे है न?
चौधरी- हाँ साहब ,वो दोनों लाल बत्ती वाली गाड़ी से ही आ रहे हैं। (इतना सुनकर, मान्यवर साहब ने चौधरी की तरफ देखते हुए कहा)
मान्यवर- चौधरी, आज मेरा सपना पूरा हो गया, मैं यही चाहता था जो समाज मजदूरी कर रहा है, जो उत्पीड़ित हो रहा है, वह समाज शासक बने, लाल बत्ती वाली गाड़ी से चले। इतना कहते कहते मान्यवर साहब का गला रुध गया और वो फफक-फफक कर रोने लगे। चौधरी जी भी रोने लगे।
मित्रो मैं तो यह कहानी सुनकर हतप्रभ और निःशब्द हो गया, मेरा भी गला भर आया और आँखों में आंसू तैरने लगे। धन्य हो ऐसे महामानव तुम्हें कोटिशः प्रणाम। मित्रों यह बातें मैंने वही लिखी हैं, जो मैंने चौधरी साहब से सुनी थी।

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