बौद्ध धर्म पर पुनर्जन्म का आरोप मढ़ने वाले अक्सर तिब्बत के दलाई लामा का उदाहरण देते हैं। आधुनिक भारत के ‘शंकराचार्य’ अर्थात ओशो रजनीश जैसे वेदांती पोंगा पंडित ने भी बौद्ध धर्म में पुनर्जन्म को प्रक्षेपति करके बुद्ध का ब्राह्मणीकरण करने का सबसे बड़ा प्रयोग किया है। ओशो ने बारदो नामक अन्धविश्वास की व्याख्या करते हुए दलाई लामा के और खुद के तिब्बती अवतार की चर्चा की है। उनके भक्त इसे सर माथे पर लिए घूमते हैं।
आइए आपको बताता हूँ दलाई लामा और ओशो रजनीश के तर्कों को कैसे उधेड़ा जाये, ये सभी तार्किकों और मुक्तिकामियों सहित दलितों बहुजनों के काम की बात है। ध्यान से समझियेगा।
दलाई लामा अपने को पूर्व दलाई लामा का अवतार बताते हैं। उसी व्यक्ति की आत्मा का अक्षरशः पुनर्जन्म जो पहले राजा या राष्ट्र प्रमुख था। इसे समझिये। ये धर्म और राजनीति के षड्यंत्र का सबसे लंबा और जहरीला प्रयोग है। जब आप पुराने राजा के अवतार हैं तो आपको एक वैधता और निरंकुश अधिकार अपने आप मिल जाता है। और चूँकि सारा समाज ध्यान, समाधि, निर्वाण और पुनर्जन्म की चर्चा में डूबा है तो कोई सवाल भी नहीं उठा सकता। न विरोध होगा न विद्रोह न परिवर्तन, क्रांति या लोकतंत्र की मांग उठेगी।
राजसत्ता मस्ती से अपना काम करती रहेगी। गरीब मजदूर अपने अवतार के लिए रात दिन खटते रहेंगे। न कोई शिक्षा मांगेगा, न चिकित्सा, न रोजगार मांगेगा। और न सभ्यता या विज्ञान का विकास ही हो सकेगा। इसीलिये तिब्बत पर जब आक्रमण हुआ तो वो आत्मरक्षा न कर सका और ढह गया। कोई संघर्ष भी न कर सका चीन के खिलाफ। और सबसे मजेदार बात ये कि जादू टोने रिद्धि सिद्धि और चमत्कार के नाम पर पूरे मुल्क पर शासन करने वाले लामा को खुद भी दल बल सहित पलायन करना पड़ा। कोई शक्ति या सिद्धि काम न आई।
ये तो हुई राजा द्वारा अपना पद सुरक्षित करने की बात, अब आइये पुनर्जन्म की टेक्नोलॉजी पर। तिब्बती दलाई लामा अगर पिछले राजा की ही आत्मा का पुनर्जन्म है, उसी के संस्कार, विचार, शिक्षण, अनुभव और ज्ञान लेकर आ रहा है तो उन्हें इस जन्म में देश के सबसे कुशल और महंगे शिक्षकों की जरूरत क्यों होती है? उन्हें अंग्रेजी, गणित, राजनीति, इतिहास ही नहीं बल्कि उनका अपना पेटेंट विषय “अध्यात्म” सीखने के लिए भी दूसरे टीचर चाहिए।
टीचर क्यों चाहिए? अपने पिछले जन्मों में जाकर वहीं से डाऊनलोड क्यों नहीं कर लेते भाई ? क्या दिक्कत है? दूसरों को जो सिखा रहे हो वो खुद क्यों नहीं आजमाते? शिक्षकों की फ़ौज पर पच्चीस साल तक करोड़ों अरबों का खर्चा क्यों करते हैं?
आप समझे कुछ?
ये पुनर्जन्म की जहरीली खिचड़ी सिर्फ दूसरों को खिलाने के लिए है ताकि गरीब जनता नये लामा अर्थात नये राष्ट्राध्यक्ष की वैधता और निर्णयों पर प्रश्न न उठाये। लेकिन यहां ध्यान रखिएगा कि इसका ये मतलब नहीं है कि दलाई लामा बुरे व्यक्ति हैं। वे सज्जन पुरुष हैं, उनका पूरा सम्मान है। वे जगत के शुभ हेतु शक्तिभर प्रयास कर रहे हैं लेकिन अपनी संस्था और संस्कृति के अतीत में जो अन्धविश्वास फैलाकर एक पूरे मुल्क का सत्यानाश किया है उसको वे इंकार नहीं कर सकते। इससे हमें सबक लेना चाहिए।

संजय श्रमण गंभीर लेखक, विचारक और स्कॉलर हैं। वह IDS, University of Sussex U.K. से डेवलपमेंट स्टडी में एम.ए कर चुके हैं। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) मुंबई से पीएच.डी हैं।
