उच्चतम न्यायलय के न्यायाधीश बी.आर. गवई यानी भूषण रामकृष्ण गवई भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश होंगे। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को उनके नाम का प्रस्ताव भेज दिया है। सीजीआई खन्ना 13 मई को रिटायर हो रहे हैं। इसके बाद बी.आर. गवई देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे। जस्टिस गवई अंबेडकरवादी समाज से आते हैं। साल 2007 में जस्टिस के.जी बालाकृष्णन के बाद जस्टिस गवई दलित समाज से आने वाले देश के दूसरे चीफ जस्टिस होंगे। ऐसे में सवाल है कि क्या अंबेडकरवादी समाज के एक व्यक्ति के देश का चीफ न्यायाधीश बनने से इस समाज को लेकर कुछ बदलेगा?
सबसे पहले बात करते हैं जस्टिस गवई के शुरुआती जीवन के बारे में। 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्में जस्टिस बी.आर. गवई करीब 25 साल की उम्र में 16 मार्च 1985 को बार में शामिल हुए और कानूनी प्रैक्टिस शुरू की। सन् 1987 से 1990 तक उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत की। अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और एडिशनल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के रूप में नियुक्त हुए।
साल 2000 में वह बॉम्बे हाई कोर्ट के जज नियुक्त हुए। इसके बाद 14 नवंबर 2003 को वह बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में प्रमोट हुए और 12 नवंबर 2005 को बॉम्बे हाईकोर्ट के परमानेंट जज बने। 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बने।
जस्टिस गवई द्वारा दिये गए महत्वपूर्ण फैसलों में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद और 2019 का राफेल डील मामला प्रमुख है। जस्टिस गवई की बेंच द्वारा लिये गए अन्य बड़े फैसलों में-
साल 2023 में नोटबंदी को वैद्य ठहराना
साल 2023 में ही ईडी निदेशक के कार्यकाल के विस्तार को अवैध घोषित ठहराना
साल 2024 में बुलडोजर कार्रवाई को अवैध घोषित करते हुए इस पर रोक लगाने का फरमान सुनाया
साल 2022 में तामिलनाडु सरकार के वणियार समुदाय को विशेष आरक्षण देने को असंवैधानिक घोषित कर दिया
साल 2023 में जस्टिस गवई की पीठ ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को 2002 के गोधरा दंगों से संबंधित मामले में नियमित जमानत दी
जस्टिस गवई उस संवैधानिक बेंच का भी हिस्सा थे, जिसने यह निर्णय दिया कि मंत्रियों और सार्वजनिक अधिकारियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते।
लेकिन यहां एक सवाल यह है कि वंचित समाज के एक व्यक्ति के सु्प्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनने से क्या इस समाज के बीच कोई फर्क पड़ेगा। मसलन, देश की जेलों को लेकर आए नए आंकड़ें बताते हैं कि भारतीय जेलों में बंद दो तिहाई कैदी दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग वर्ग से हैं। जबकि 19% मुसलमान हैं। राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में मुस्लिम और दलित कैदियों की संख्या सबसे अधिक है, जबकि मध्य प्रदेश में आदिवासी कैदियों का अनुपात सबसे अधिक है। ये आंकड़े जेल सांख्यिकी 2018 में दिए गए हैं।
इसमें तमाम कैदी ऐसे हैं, जो मामूली अपराध में जेलों में बंद हैं। देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू न सिर्फ इसका जिक्र कर चुकी हैं, बल्कि कानून मंत्री और पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़ के सामने इसका हल निकालने को लेकर भी चिंता जाहिर कर चुकी हैं। जस्टिस गवई 14 मई को कार्यभार संभालेंगे और अगले सात महीनों तक देश के चीफ जस्टिस के पद पर रहेंगे। वह 23 नवंबर 2025 को रिटायर होंगे। सवाल है कि इन सात महीनों में क्या जस्टिस बी.आर. गवई इस मामले में कोई ठोस उपाय निकाल पाएंगे।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।