असल में यह पहला मौका नहीं था जब राकेश पटेल ने अपने गांव घर के लोगों का नाम ऊंचा किया था. सन् 1998 में राकेश जब 10वीं में 82 प्रतिशत अंक लाकर कॉलेज टॉपर बने थे, तब भी पूरे क्षेत्र में खुशी मनी थी. हालांकि राकेश की पृष्ठभूमि वाले बहुत कम लोग अफसर बनने का सपना देख पाते हैं. परिवार के हालात बहुत अच्छे नहीं थे लेकिन राकेश की जिद थी कि वह कुछ बनकर दिखाएंगे. गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.ए करने के बाद राकेश वहीं रहकर नौकरी की तैयारी करने लगे. 2005-06 में नेट क्वालीफाइ हो गए. उसी साल पहले ही प्रयास में उन्होंने सिविल सर्विस और पीसीएस के प्रारंभिक (प्री) की परीक्षा पास कर ली और जेएनयू का इंट्रेंस भी पास कर लिया. 2006 में जुलाई में राकेश प्रो. विवेक कुमार के अंडर में समाजशास्त्र में एम.फिल करने जेएनयू आ गए. राकेश का टॉपिक था, ‘प्रवासी भारतीयों का सिनेमाई प्रस्तुतिकरणः एक समाजशास्त्रीय अध्ययन’. एक्सपर्ट ने इस अध्ययन को सोशियोलॉजी के लिए योगदान कहा. एम.फिल के बाद राकेश अपनी पी.एच डी जमा कर चुके हैं. विषय है, ‘ग्रामीण सामाजिक संरचना में निरंतरता एवं परिवर्तन’. इसके लिए उन्होंने लक्ष्मीपुर गांव को चुना है. राकेश का कहना है कि मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से आता हूं, गांव के बारे में स्टडी करना चाहता था, इसलिए मैंने यह विषय चुना.
11 फऱवरी, 2016 को उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना पहला राजस्व दिवस मनाया. इस दौरान बेहतर काम करने के लिए पूरे प्रदेश से 18 डीएम, 18 एसडीएम और 18 तहसीलदार को सम्मानित किया गया. इस सूची में जौनपुर के एसडीएम सदर राकेश पटेल का भी नाम था. पटेल को जौनपुर में राजस्व से जुड़े मुकदमों के अधिकतम निस्तारण, राजस्व वसूली एवं उत्कृष्ट प्रशासकीय कार्यों के लिए सम्मानित किया गया. सरकार ने उन्हें प्रशस्ती पत्र देकर सम्मानित किया. महाराजगंज जनपद के लक्ष्मीपुर एकडंगा गांव के लोगों के लिए यह फख्र की बात थी. उन युवाओं में खुशी थी, जिन्हें उनके ‘राकेश भइया’ ने ‘अफसर’ बनने का सपना दिया है.
पीसीएस अधिकारी बनने के अपने सफर के बारे में राकेश कहते हैं, “हम जिस माहौल में पले पढ़े हैं, वहां अधिकारी बनने के बारे में बहुत कम सोच पाते हैं. हमें बस नौकरी चाहिए होती है, जिससे हमें आर्थिक सुरक्षा मिल सके. लेकिन जेएनयू पहुंचने से काफी फर्क पड़ा. यहां आकर ज्ञानार्जन की भूख और समाज हित में उसका इस्तेमाल करने की सीख मिली. इसी का नतीजा था कि मैं ऐसे फिल्ड में जाना चाहता था जिसमें समाज को मदद कर सकूं. 2007-08 और 2010 में सिविल सर्विस का मेन्स दिया. दो बार इंटरव्यू में भी पहुंचा. पीसीएस में पहली बार में ही सेलेक्शन हो गया. 2007 की वेकेंसी थी. 2010 में इसका रिजल्ट आया. 2010 में ही संविधान दिवस 26 नवंबर के दिन मैंने मेरठ में प्रोबेशन पर डिप्टी कलक्टर के रूप में ज्वाइन किया. ” इसके बाद राकेश फर्रुखाबाद और लखीमपुर में रहे. फर्रुखाबाद में रहने के दौरान उन्होंने 26 गांवों में ग्राम पंचायत पुस्तकालय की शुरुआत की ताकि ग्रामीण बच्चों को अच्छी और उपयोगी किताबें मिल सके.
अपने संघर्ष और समाजिक भेदभाव का जिक्र करते हुए राकेश कहते हैं, “मेरे पिताजी एक सामान्य किसान हैं. वह बी.ए पास हैं. वह हमेशा अपने बच्चों को बढ़ाना चाहते थे. आज मैं जो भी हूं उसमें मेरे माता-पिता का सहयोग और मेरे भाईयों के प्रोत्साहन की बड़ी भूमिका है.” रिजर्वेशन का लाभ कुछ खास जातियों को मिलने की बहस को पटेल अलग तरीके से देखते हैं. कहते हैं, “रिजर्वेशन और स्कॉलरशिप से हजारों बच्चों की जिंदगी संवरती है. अगर रिजर्वेशन नहीं रहता तो आज मैं जो हूं, वह कैसे होता. ओबीसी जातियों में भी बहुत गरीबी है. अगर एक आदमी संपन्न है तो 1000 लोग जरुरतमंद हैं.” राकेश आगे जोड़ते हैं. कहते हैं कि किसी कमजोर पृष्ठभूमि से जब कोई आगे निकलता है तो पूरा गांव यहां तक की आस-पास के गांवों में पढ़ने वाले बच्चों और उनके गार्जियन के बीच काफी साकारात्मक संदेश जाता है. जैसे मैं अपने गांव के और आस-पास के क्षेत्र में उदाहरण बना कि मेहनत से पढ़ाई करने और बिना पैसे दिए भी सरकारी नौकरी मिल सकती है. लोगों ने हमें काम करते देखा है. हमने खेतों में काम किया. साथ-साथ पढ़ाई भी करते रहे.
लेकिन राकेश सिर्फ नौकरी तक सीमित नहीं है. वह वंचित तबकों से जुड़े मुद्दों पर लेखन के जरिए भी लगातार सक्रिय हैं. ‘नदियां बहती रहेंगी’ नाम से उनका एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है, जो इसमें उठाए गए मुद्दों के कारण काफी चर्चा में रहा. संघर्ष से निकलकर पहुंचे राकेश पटेल ‘पे बैक टू सोसायटी’ में विश्वास करते हैं. कहते हैं, “पढ़ाई को लेकर जो भी मदद मांगता है, मैं जितनी मदद कर सकता हूं जरूर करता हूं. मैं अपने तीन-तीन रिश्तेदारों को पढ़ाता हूं. कमजोर पृष्ठभूमि का जो भी जरूरतमंद विद्यार्थी मेरे पास पहुंचता है उनकी मदद करता हूं.” राकेश कहते हैं कि मेरे आगे बढ़ने से मेरे गांव और आस-पास के गांव में लोगों ने अपने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया है. उत्साहित राकेश कहते हैं, ‘मैंने भी उनकी मदद के लिए गांव में बुद्धा लाइब्रेरी खोली है.’ जौनपुर शहर के एसडीएम सदर के रूप में भी राकेश पटेल जरूरतमंदों का ख्याल रखते हैं. कहते हैं, ‘अगर मेरे इस कुर्सी पर बैठने से अंतिम व्यक्ति का दर्द कम हो जाए तो यह बड़ी बात है.’ इस युवा अधिकारी की यह सोच सलाम करने लायक है.
अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
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Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.