1983 में दसवीं पास करने के बाद राजेन्द्र पाल गौतम आंबेडकरी आंदोलन से जुड़ गए। शुरुआत गरीब बच्चों को पढ़ाने से हुई। 1987 में समता सैनिक दल से जुड़ें, जहां राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय प्रवक्ता और फिर राष्ट्रीय प्रधान महासचिव बनाए गए। दिल्ली में बाबासाहब के परिनिर्वाण स्थल 26 अलीपुर रोड की कोठी को मुक्त कराने और उसे स्मारक घोषित करवानेके संघर्ष में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामाजिक जीवन में उन्होंने हजारों आंदोलनों में हिस्सा लिया।अन्ना आंदोलन के बाद वह आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए और राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 19 मई 2017 को वह केजरीवाल सरकार में मंत्री बनें और तब से वह लगातार राजनीतिक तौर पर सक्रिय हैं।
राजेन्द्र पाल गौतम इन दिनों चर्चा में हैं। एक वजह राजनीतिक है, दूसरी सामाजिक। राजनीतिक वजह यह है कि वह उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत चुनाव के पर्यवेक्षक बनाए गए। जबकि सामाजिक वजह यह है कि उन्होंने“मिशन जय भीम” नाम से एक सामाजिक संगठन बनाया है, जिसके तहत उन्होंने साल 2025 के अशोक विजय दशमी तक 10 करोड़ लोगों को बौद्ध धम्म से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। ‘दलित दस्तक’ के संपादक अशोक दास ने राजेन्द्र पाल गौतम से बात की।
आप अपनी पार्टी (आम आदमी पार्टी) की ओर से उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत चुनाव के पर्यवेक्षक बनाए गए हैं, क्या वहां दलित वोटों को आम आदमी पार्टी की ओर लाने की जिम्मेदारी आपको दी गई है?
– पहले हमलोग भी भावनात्मक रूप से बसपा के साथ जुड़े रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी को मजबूत करने में हमने भी अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय लगाया। बहनजी ने उत्तर प्रदेश में जो काम किया, बहुजन समाज के हर व्यक्ति की तरह मैं भी उसकी प्रशंसा करता हूं। उन्होंने जो स्मारक बनाएं वो हमें भावुक कर देते हैं। वह ऐतिहासिक हैं। लेकिन मैं नहीं जानता कि अब बहनजी की क्या मजबूरी है कि वो सामाजिक मुद्दों पर पहले की तरह प्रखर नहीं हैं। मैं उनका सम्मान करता हूं इसलिए मैं उनके खिलाफ कुछ नहीं बोलूंगा। समाज उनको अब भी प्यार करता है लेकिन सच्चाई यह भी है कि समाज को उनके हक के लिए लड़ने वाला नेता भी चाहिए। हमें अपनी लड़ाई तो लड़नी है। मैं अपनी पार्टी का जिम्मेदार सिपाही हूं और पार्टी को बढ़ाने के लिए देश भर में जाना है। केवल दलित चेहरे की बात नहीं है और बात वोट बैंक की भी नहीं है। जनता किसी का भी वोट बैंक नहीं होती, जो उनके लिए काम करता है, जनता उससे जुड़ती है।
राजेन्द्र पाल गौतम, एक परिचय
विधायक, सीमापुरी विधानसभा / दिल्ली में जन्में, पले-बढ़े / पेशे से वकील
साल 2014 में आम आदमी पार्टी में शामिल हुए, 2015 में विधायक बने और19 मई 2017 कोमंत्री बनें
वर्तमान में 5 मंत्रालयों का प्रभार- महिला एवं बाल विकास, समाज कल्याण, एससी-एसटी ओबीसी वेलफेयर, गुरुद्वारा चुनाव प्रबंधन, सहकारिता विभाग
आम आदमी पार्टी में नेशनल एक्जिक्युटिव काउंसिल के मेंबर
यूपी का दलित समाज बसपा की बजाय आम आदमी पार्टी का समर्थन क्यों करे?
– देश के अंदर अभी दो तरह के मॉडल हैं। एक मॉडल गुजरात का मॉडल है, जिसमें विपक्ष को खत्म किया जाता है, बोलने वालों के खिलाफ रासुका लगाकर जेल में डाला जाता है और सरकारी एजेंसियों के छापे डलवाए जाते हैं और विपक्ष की आवाज को खत्म किया जाता है। इस गुजरात मॉडल में पूंजीवादियों के हवाले देश की जमीने की जा रही है। यह गुजरात मॉडल देश को बर्बाद कर रहा है।
वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी का दिल्ली का मॉडल है, जिसमें गरीब लोगों को ध्यान में रखते हुए योजना बनती है। जैसे “जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना” बनी जिसका फायदा सभी वर्ग के 15 हजार छात्रों को मिला। जो भय का वातावरण पूरे देश में है, और जिस तरह जाति और धर्म की राजनीति है, उसको खत्म कर के काम की राजनीति में आना होगा।
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर आरोप है कि वो अगस्त 2008 में जेएनयू में यूथ फॉर इक्वैलिटी फोरम के कार्यक्रम में शामिल हुए थे, जो आरक्षण के खिलाफ रही है।
– आरक्षण के बिना कुछ भी होना संभव नहीं है। आरक्षण न होता तो न मैं एमएलए बनता और न मंत्री। आज हम यहां हैं तो बाबासाहब का समाज के लिए किया गए बलिदान और आरक्षण की वजह से हैं। रही बात अरविंद केजरीवाल जी की तो रोहित वेमुला की शहादत के बाद जंतर-मंतर पर हुए आंदोलन के दौरान भी उनसे यह सवाल पूछा गया था, उस वक्त उन्होंने साफ कहा था कि हम आरक्षण के समर्थक हैं और जो भी ऐसा कहता है दुष्प्रचार करता है। उन्होंने साफ कहा था कि आरक्षण के बिना इस समाज का विकास संभव नहीं है। हां, उन्होंने एक बात यह जरूर जोड़ी थी कि आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाए। जो लोग अब तक गांव के बाहर नहीं निकले हैं, जिन्हें अब तक आरक्षण का हक नहीं मिला है, उन्हें भी इसका लाभ मिलना चाहिए।
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खबर है कि आपने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से बीते दिनों मुलाकात की थी, क्या यूपी के आगामी विधानसभा चुनावों में आपलोग सपा से गठबंधन करने जा रहे हैं?
– हम लोग उत्तर प्रदेश में अपने संगठन का मजबूती से निर्माण कर रहे हैं। इस जिला पंचायत चुनाव को हम अवसर की तरह देख रहे हैं। इस चुनाव के माध्यम से हम बूथ लेवल पर अपने कार्यकर्ताओं को तैयार कर रहे हैं और अपनी पॉलिसी को गांव-गांव तक पहुंचा रहे हैं। हमारा लक्ष्य 2022 में उत्तर प्रदेश में सरकार बनाना है। इस दमनकारी सरकार के खिलाफ अगर हमें किसी से बात भी करनी पड़ी तो संभवतः हमारा केंद्रीय नेतृत्व उस पर जरूर फैसला लेगा।
आपके पास दिल्ली सरकार में सोशल वेलफेयर से जुड़े तमाम विभाग हैं, आपकी सरकार के वो पांच काम कौन हैं, जिससे हाशिये के समाज का भला हुआ है?
– पहला, जय भीम मुख्यमंत्री प्रतिभा विकास योजना है। इसमें गरीब से गरीब बच्चों को जो सिविल सर्विस, डॉक्टर, इंजीनियर जैसे क्षेत्र में जाना चाहते हैं, उन्हें कोचिंग के माध्यम से इसमें मदद की जा रही है।दूसरा,सीवर की सफाई में लगे लोगों के लिए हमने सीवर सफाई के मशीन मुहैया कराएं और इसका मालिक उन्हीं लोगों को बनाया, जो यह काम करते थे। तीसरा, विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए जाने वाले हमारे विद्यार्थियों को आर्थिक मदद करने के लिए एक योजना बनाई गई है। चौथा, बाबासाहब डॉ. आंबेडकर के बहुआयामी चरित्र पर तीन चैप्टर लिखवा कर छठवीं, सातवीं और आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में शामिल किया। पांचवां, विकलांगों, विधवा महिलाओं और आंगनबाड़ी महिलाओं को मिलने वाली राशि को दोगुना किया गया।
ये तो पांच मुख्य काम हैं, इसके अलावे भी हम तमाम अन्य योजनाओं के माध्यम से एससी-एसटी समाज और गरीबों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मुहैया कराने की दिशा में काम कर रहे हैं।
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आप दिल्ली सरकार में मंत्री हैं, सोशल वेलफेयर के तमाम विभाग आपके पास हैं, वहां से आप वंचित समाज की अधिकार पूर्वक मदद भी कर सकते हैं, ऐसे में आपको “मिशन जय भीम” नाम से सामाजिक संगठन बनाने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
– दरअसल मेरे दिमाग में एक योजना यह थी कि हमारे समाज के जो रिटायर्ड अधिकारी हैं, जो नौकरी में रहते हुए सरकार के लिए योजनाएं बनाते हैं लेकिन रिटायर होने के बाद समाज को उनका फायदा नहीं मिल पाता। पहले से जोसंगठन हैं और वहां जो पदाधिकारी जमे हैं, उसमें से ज्यादातर किसी का सुझाव नहीं लेना चाहते हैं। ऐसे में मैंने सोचा कि क्यों न सरकारी पदाधिकारियों को एक साथ लेते हुए हमारे समाज के महापुरुषों के विचार को आगे बढ़ाया जाए। जो अधिकारी सरकार के लिए योजनाएं बना सकते हैंवो समाज की भलाई के लिए भी योजनाएं बना सकते हैं। इस संगठन से देश भर से लोग जुड़ रहे हैं और कंट्रीब्यूशन भी दे रहे हैं। मैं इस संगठन में एक मेंटर, एक सलाहकार की हैसियत से जुड़ा हूं। हमने दिल्ली के अंदर एक जमीन ले ली है। यहां हम स्थायी कैडर सेंटर स्थापित करेंगे, जहां हम अपने समाज के महापुरुषों के जीवन-संघर्ष के बारे में पढ़ाएंगे। हम एक महीने, दो महीने का कोर्स डिजाइन करेंगे। डाक्यूमेंट्री फिल्म और किताबों के माध्यम से हमारे बहुजन समाज के युवाओं को उनका इतिहास बताएंगे। साथ ही साथ युवाओं को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने का काम करेंगे। जब अन्य समाज के लोग अपने कॉलेज बना सकते हैं, आर्थिक नीतियां बना सकते हैं तो हम क्यों नहीं बना सकते।हमारा एक लक्ष्य यह भी है कि हम 2025 तक दस करोड़ लोगों को बौद्ध धम्म से जोड़ेंगे।
आपका आदर्श पुरुष कौन हैं?
– सबसे पहले बाबासाहब हैं और फिर मान्यवर कांशीराम जी हैं। हमारे जो भी विचार बने हैं, वो उन्हीं को देख-सुनकर समझा है। एक बात मैंने हमारी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल जी से भी सीखा कि अगर किसी लक्ष्य को लेकर चला जाए तो उसे हासिल किया जा सकता है। बाबासाहब और मान्यवर कांशीराम जी का जो आंदोलन था, जो कारवां था, वो आगे बढ़ना चाहिए, रुकना नहीं चाहिए। उसे चाहे जो चलाए। राजनीति में तो कुर्सियां टेंपरेरी (अस्थाई) है, यह आती-जाती रहती हैं। कोई आज मंत्री और सांसद है, कल नहीं रहेगा। लेकिन जो बाबासाहब और मान्यवर कांशीराम जी का मिशन-मूवमेंट है, वो समाज के लिए बहुत जरूरी है। अगर मूवमेंट छोड़ कर केवल कुर्सी के पीछे लग जाएं, केवल मंत्री बनकर खुश हो जाएं और समाज को कुछ न दें तो हमारे होने और एक मरे हुए व्यक्ति में कोई ज्यादा फर्क नहीं है। अगर अनुसूचित जाति-जनजाति का हर नेता यह सोच ले कि वो समाज के लिए है, न कि किसी पार्टी के लिए है तो फिर समाज का भला होने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि आरक्षित सीटों पर टिकट तो इसी समाज को मिलेगा।
अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-अंबेडकरवादी पत्रकारिता के प्रमुख चेहरा हैं। जब हिन्दी पट्टी में अंबेडकरवादी मूल्यों की पत्रकारिता दम तोड़ने लगी थी, अशोक ने 2012 में मासिक पत्रिका ‘दलित दस्तक’ शुरू कर सामाजिक न्याय की पत्रकारिता को नई धार दी। उनके काम को देखते हुए हार्वर्ड युनिवर्सिटी ने साल 2020 में उन्हें हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया। जहां उन्होंने Caste and Media विषय पर अपनी बात रखी। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास की पत्रकारिता को लेकर DW (Germany) सहित The Asahi Shimbun (Japan), The Mainichi Newspapers (Japan), The Week और Hindustan Times आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
IIMC दिल्ली से 2006 में पत्रकारिता करने के बाद अशोक दास ने अपनी पत्रकारिता शुरू की। वह लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में रहे। 2010-2015 तक उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
‘दलित दस्तक’ एक मासिक पत्रिका के साथ वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल एवं प्रकाशन (दास पब्लिकेशन) है। उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
Ashok Das (Ashok Kumar) is a prominent face of Dalit-Ambedkarite journalism. When journalism based on Ambedkarite values was beginning to die down in the Hindi belt, Ashok gave a new edge to social justice journalism by starting ‘Dalit Dastak’ in 2012. Harvard University invited him as a speaker at the Harvard India Conference in the year 2020.Where he spoke on the topic of Caste and Media. India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of 50 Dalits, Remaking India in april 2021 issue. Features regarding Ashok Das’s journalism have been published in media organizations like DW (Germany), The Asahi Shimbun (Japan), The Mainichi Newspapers (Japan), The Week and Hindustan Times etc.
Ashok Das started his journalism career after doing journalism from IIMC Delhi in 2006. He worked in prestigious media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4Media and Deshonnati. From 2010-2015 he covered various ministries and the Indian Parliament. He has been awarded the Prabhash Joshi Journalism Award. On January 31, 2020, on the completion of 100 years of the first paper ‘Mooknayak’ published by Dr. Ambedkar, Ashok Das and Dalit Dastak organized a grand event in Delhi where Dr. Ambedkar was remembered as a journalist. This gave a new edge to Ambedkarite journalism in India.