इरा के सवाल

जिस जम्मू एवं कश्मीर को धरती का स्वर्ग के रूप में जाना जाता है, इसी जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में रहने वाली 8 वर्षीय बच्ची आसिफा बानो के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना घटित हुई. ये खबर सुनकर मेरा मन बहुत विचलित हुआ और मैंने सोचा कि मैं एक ऐसे देश में रह रहा हूँ, जहाँ भगवान के घर कहे जाने वाले मन्दिर में एक मासूम बच्ची जिसे अभी किसी धर्म व जाति के बारे में कुछ नहीं पता था . उस मासूम बच्ची को उठाकर लगातार 8 दिन तक मन्दिर के अन्दर बने प्रार्थना-स्थल में रखा गया, जहाँ उस बच्ची से सामुहिक बलात्कार किया गया. दरिन्दों के द्वारा बच्ची को भूखा रखा गया और उसे नींद की गोलियाँ व अपनी हवस को पूरा करने के लिए काम-वासना को उत्तेजित करने वाली दवाईयाँ खिलाई गई. लगातार उस मासूम बेटी के साथ बलात्कार किया गया और अन्त में उसका गला घोंट कर व पत्थरों से उसके चेहरे पर प्रहार करके उसे मौत की घाट उतार दिया गया और शव को जंगल में फेंक दिया गया.

ये सब हो रहा था एक मन्दिर प्रांगण में. आसिफा जो एक मुस्लिम बकरवाल परिवार में जन्मी थी. बकरवाल कश्मीर में एक घुमन्तु जनजाति के लोग हैं. ये लोग मौसम के अनुसार ऋतु प्रवास करते हैं, जिसमें ये लोग छः माह पहाड़ी और छः माह मैदान में अपने मवेशियों को चराकर अपना जीवन गुजर-बसर करते हैं. आसिफा उस दिन रस्साना के जंगलों में अपने घोड़े को चरा रही थी. वहीं से इन दरिन्दों ने आसिफा को उठाकर, मन्दिर में ले जाकर लगातार आठ दिन तक उस मासूम बच्ची के साथ बलात्कार किया. एक आठ वर्षीय मासूम बच्ची जिसे अभी किसी भी चीज के बारे में सही-सही जानकारी तक नहीं है . उसके साथ ये कुकृत्य किया इन दरिन्दों ने. इन दरिन्दों में देश के सुरक्षा के प्रहरी भी शामिल थे. कुछ प्रत्यक्ष रूप से और कुछ अप्रत्यक्ष रूप से.

आसिफा के साथ जब यह घटना घटित हो रही होगी तब उसके जहन में पुलिस से मदद की उम्मीद जगी होगी. जब मन्दिर में आसिफा ने पुलिस वाले को देखा होगा तो जरूर उसने नशे की हालात में लड़खड़ाती हुयी जुबान और तीन दिन से बिना पानी के सूखे-चिपके तालू से फुसफुसायी होगी, ‘‘अंकल मुझे बचा लो.‘‘ लेकिन पुलिस वाले के यह शब्द सुनकर वह मासूम बच्ची काँप उठी होगी, जब उसने पुलिस वाले को कहते हुए सुना होगा कि, ‘‘रूको मरने से पहले मुझे भी एक बार करने दो.‘‘ जहाँ उसे उम्मीद हुई थी कि पुलिस वाला मुझे इन दरिन्दों से बचायेगा, मगर उस मासूम को कहाँ पता था कि वो भी उस साढ़े तीन फूट के मरणासन्न शरीर से अपनी वासना शांत करने के जुगाड़ में था. वहीं दूसरी तरफ हिन्दुओं के तथाकथित संगठन उस बच्ची के बलात्कारियों को बचाने के लिए सड़कों पर उतरे हुए थे, सिर्फ इसलिए कि आसिफा मुस्लिम समुदाय में जन्मी थी. अरे मुर्खों, उसे तो अभी तक इस मानवीय मानसिक बीमारी के बारे में ज्ञान भी नहीं था. क्या मुस्लिम? क्या हिन्दू? उसका इससे कोई नाता नहीं था. वह तो थी बस एक मासूम सी कली.

यह घटना जब मन्दिर में घटित हो रही थी तो उस समय करोड़ों देवी-देवता कहाँ सो रहे थे? क्या आठ दिन तक मन्दिर में विराजमान भगवान सोते रहे? क्या आप भी उन जालिमों से मिले हुए थे या कोई रिश्वत खाई थी उनसे आपने? जवाब दो. अगर आपके पास कोई जवाब नहीं है तो फिर आपकी यह चुप्पी आप पर सवाल उठाती है. सवाल उठाती है आपके अस्तित्व पर, आपकी तथाकथित व्यवस्था पर. जिस दिन मुझे इस घटना की जानकारी मिली उस दिन मैं बहुत दुखी रहा. उस दिन शाम को मैं परेड ग्राउण्ड, देहरादून में चल रहे भीम महोत्सव में अपने मित्र सुमित कुमार के साथ कार्यक्रम देखने के लिए गया, तो वहाँ छोटी-छोटी बच्चियों को झूले में झूलते हुए देखा और सोचने लगा यदि आसिफा के साथ ये अमानवीय घटना न घटित होती तो वो भी ऐसे ही कहीं खेल रही होती और बहुत खुश होती. कार्यक्रम देखकर हम 10 बजे वापिस आ गये. सुमित मुझे मेरे कमरे पर ड्राप करके अपने घर के लिए निकल गया. कमरे पर पहुँचने के बाद मैं अपने बिस्तर पर लेट गया और कमरे की दीवार पर लगी अपनी बेटी इरा की फोटो देखने लगा जो अभी सात माह की है. इरा की फोटो देखते-देखते मैं एक अलग ही दुनिया में खो गया जहाँ मैं और इरा ही थे. मैं आसिफा की घटना को लेकर पूरे दिन बहुत दुखी था और सोच रहा था कि कल जब मेरी बेटी बड़ी होगी और मेरे इस लेख को पढ़ेगी तो वह मुझसे बहुत सवाल करेगी. मेरे लेख को पढ़कर इरा मुझसे आसिफा के बारे में पूछेगी.

आखिर क्यों हुआ यह आसिफा के साथ? इसलिए कि वह मुस्लिम थी. इरा मुझसे पूछेगी, ‘‘पापा जब वे दरिन्दे मन्दिर में आसिफा के साथ बलात्कार कर रहे थे तब भगवान कहाँ चले गये थे? क्या भगवान ने उनसे रिश्वत ले रखी थी? क्या भगवान ये सब होते हुए अपनी आँखों से देख रहे थे? क्या भगवान को आसिफा की मदद नहीं करनी चाहिए थी? पापा, क्या कर रहा था उस समय देश जब बच्ची के साथ यह कुकृत्य हो रहा था? पापा, जो लोग बलात्कारियों के समर्थन में सड़कों पर उतरे थे, वे कौन थे? पापा, जहाँ से आपने अपनी पढ़ाई की, जिसके बारे में आप तारीफ करते नहीं थकते उस शहर से भी एक दरिन्दा आसिफा के साथ बलात्कार करने जम्मू-कश्मीर गया था. क्या इसी मेरठ शहर से पढ़ाई की आपने? पापा, आप पूरे दिन मुझे संविधान की बाते बताते रहते हो. उस दिन संविधान की रक्षा करने वाले भी तो आसिफा के साथ मुँह काला कर रहे थे. पापा, क्या यह वही देश है, जहाँ महिलाओं को देवी का दर्जा दिया जाता है? पापा, आप कहते हो कि आप मेरी एक मुस्कान पाकर अपनी सारी समस्याओं को भूल जाते हो. पर पापा, क्या आसिफा के माँ-बाप अपनी बच्ची की मुस्कान को भूल पायेंगे? पापा, आप मेरे बिना एक पल नहीं रह सकते हो तो आसिफा के अब्बू-अम्मी कैसे रहेंगे अपनी आसिफा के बिना? क्या उन्हें आसिफा की याद नहीं आयेगी? पापा, क्या कश्मीर से पण्डितों को इसलिए ही भगाया गया था? पापा, आज मैं आपको एक बात बता रही हूँ. भगवान मूर्तियों में नहीं होता है और इस देश में आज भी नारी को सिर्फ भोग की वस्तु समझा जाता है.

इरा के सवाल सुनकर मैं सन्न रह गया था. अचानक से जैसे ही मुझे होश आया तो मैंने अपने आपको बहुत विचलित पाया. उस रात मैं इसी उधेड़बुन में सुबह तीन बजे तक सो नहीं पाया कि आखिर हम विश्व को शून्य की देन देने वाले भारतवासी अपनी संस्कृति को इस तरह के कुकृत्य को अंजाम देकर कैसे गर्त में ले जा रहे हैं? किस संस्कृति का उदाहरण पेश करेंगे हम विश्व के सामने कि हम उस देश के वासी हैं, जहाँ आठ वर्ष की मासूम बच्ची के साथ सामुहिक बलात्कार किया जाता है.

आज यह सवाल मुझसे इरा ने पूछे हैं. कल आपकी बेटी भी आपसे ऐसे सवाल करेगी और हमें शर्मशार होना पड़ेगा. आसिफा जैसी न जाने कितनी मासूम बच्चियों के साथ हो रही हवानियत के गुनहगार हम हैं. हम से मतलब – राजनीति, हिन्दू-मुस्लिम वाली भावना, ऊँच-नीच आदि में हम इस कदर घुस गये है कि सच का साथ देने सें डरते हैं. आज इन कुकृत्यों से हम अपनी संस्कृति की छवि को धूमिल कर रहे हैं.

नरेन्द्र वाल्मीकि

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