जादूगोडा। देश को आजाद हुए 70 साल हो गए है. आजादी से लेकर अब तक केंद्र और राज्य में भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकार रह चुकीं है. दोनों पार्टियों के अलावा विभिन्न राज्यों में स्थापित अन्य पार्टियों ने सिर्फ दस्तावेजी काम किए है. व्यवहारिकता और धरातल पर नहीं. जिसका परिणाम यह है कि आज भी भारत में आदिवासियों की परिस्थितियों में कुछ भी सुधार नहीं हुआ है. उनके लिए न तो केंद्र सरकार कुछ कर रही है और न ही राज्य सरकार. आलम यह है कि आदिवासियों को अपने हर काम के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है.
हम आपको आज ऐसे आदिवासी गांव की परिस्थितियों से अवगत कराएंगे. इस गांव में आने-जाने का कोई साधन नहीं है. यहां के लोगों को हर दिन जान हथेली पर रख कर नदी पार करनी पड़ती है. अगर वो ऐसा नहीं करें तो उन्हें आने-जाने के लिए कम से कम 20 किलोमीटर का चक्कर काटना पड़ता है. नदी के एक किनारे पर जादूगोड़ा कस्बा है जो अपनी यूरेनियम की खानों के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है. वहीं नदी के दूसरी ओर स्वाशपुर गांव स्थित है. हैरानी की बात है कि इस गांव के लोगों की परेशानी को दूर करने के लिए अधिकारियों ने कभी कच्चा पुल बनाने तक की भी बात नहीं सोची.
झारखंड में जमशेदपुर से महज 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गांव स्वाशपुर. कर्रा नदी के किनारे बसे इस गांव की करीब एक हजार की आबादी को आजादी के सात दशक बाद भी विकास की रोशनी पहुंचने का इंतजार है. गांव से मात्र 500 फीट दूर नदी के उस पार जादूगोड़ा बाजार और बच्चों का स्कूल है. यहां बच्चों के लिए स्कूल जाना हो या किसी बीमार बुजुर्ग को अस्पताल पहुंचाना, हर काम के लिए नदी को पार करने के अलावा कोई चारा नहीं है. नदी पार करने के लिए ट्रक की ट्यूब, बर्तन, लकड़ी के फट्टों आदि का सहारा लिया जाता है. बीमार व्यक्ति को नदी पार कराने के लिए चारपाई को बड़ी ट्यूबों के साथ बांधा जाता है. छोटे बच्चों को पतीलों या बाल्टी में बिठा कर नदी पार कराई जाती है.
ताज्जुब की बात है कि इस गांव की सुध लेने के लिए कभी कोई नेता या प्रशासन के अधिकारी क्यों सामने नहीं आए. वो भी ऐसी स्थिति में जब प्रधानमंत्री ने सांसदों से हर साल एक गांव को गोद लेकर उसे आदर्श गांव बनाने की अपील कर रखी है.
गांव के लोगों का कहना है कि कर्रा नदी का पानी प्रदूषित होने की वजह से लोगों को चर्म रोग समेत कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है. स्वाशपुर के निवासी राजू महतो का कहना है कि गांव के लोग 60 साल से ऐसे ही हालात देख रहे हैं. वहीं शिवनंदन महतो का कहना है कि जादूगोड़ा से स्वाशपुर सिर्फ जीरो किलोमीटर की दूरी पर है लेकिन बीच में कर्रा नदी की वजह से दोनों तरफ दो अलग-अलग दुनिया बसी दिखती हैं.
ग्रामीणों की नदी पर पुल की मांग वर्षो पुरानी है. गांव के ग्रामीण सुनंदन महतो बताते है कि यूसीआइएल कंपनी भी सीएसआर के तहत पहले नाव दी थी पर नाव में छेद हो जाने के कारण बीते दो वर्षो से वे इसी तरह बरसात में नदी को पार करते हैं. अब इंतज़ार इस बात का कि क्या सूबे के मुखिया रघुवर दास इन के लिए कुछ करेंगे या यह सिलसिला जारी रहेगा. क्योंकि भारत को आज़ाद हुये केवल 70 साल ही तो गुज़रे हैं?
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