लखनऊ। गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा और सपा-बसपा गठबंधन एक बार फिर से आमने-सामने है. कैराना लोकसभा उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग द्वारा तारीख तय कर दिए जाने के बाद हलचल तेज हो गई है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कैराना संसदीय सीट से बीजेपी के हुकुम सिंह ने जीत दर्ज की थी. इसी साल 3 फरवरी को उनका निधन हो जाने के चलते यहां उपचुनाव हो रहा है. इस सीट पर 28 मई को मतदान और 31 मई को मतगणना होगी.
चुनाव के तारीख की घोषणा होते ही भाजपा और सपा-बसपा सक्रिय हो गए हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य इस सीट को जीतकर अपनी-अपनी सीटों पर मिली हार का हिसाब चुकता करना चाहते हैं. वहीं अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती अपनी जीत के सिलसिले को कैराना में भी हर हाल में बरकरार रखना चाहेंगी.
खबर है कि भाजपा इस सीट से हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को चुनाव मैदान में उतार सकती है. मृगांका को पिता की मौत की वजह से सहानुभूति वोट मिल सकता है. हालांकि, मृगांका विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुकी हैं लेकिन वह सपा के नाहिद हसन से हार गई थीं.
कैराना लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से चार भाजपा के पास जबकि और कैराना विधानसभा सीट सपा के पास है. इस तरह देखा जाए तो यहां भाजपा के मुकाबले में कोई पार्टी नहीं है. लेकिन सपा-बसपा गठबंधन ने लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. और सपा और बसपा के कार्यकर्ताओं को लगता है कि जब वह गोरखपुर जैसे भाजपा के गढ़ को जीत सकते हैं तो फिर कैराना जितना भी मुश्किल नहीं होगा.
1962 में वजूद में आने के बाद से अब तक इस सीट पर 14 बार चुनाव हो चुके हैं. हालांकि यह सीट किसी एक दल का गढ़ कभी नहीं बन पाया. इस सीट पर 1996 में सपा तो 2009 में बसपा जीत दर्ज कर चुकी है. कैराना लोकसभा सीट पर 17 लाख मतदाता हैं जिनमें पांच लाख मुस्लिम, चार लाख बैकवर्ड (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) और डेढ़ लाख वोट जाटव दलित है और 1 लाख के करीब गैरजाटव दलित मतदाता हैं.
जहां तक 2014 लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन की बात है तो इसमें भाजपा को 5 लाख 65 हजार 909 वोट मिले थे, जबकि सपा को 3 लाख 29 हजार 81 वोट और बसपा को 1 लाख 60 हजार 414 वोट मिले थे. ऐसे में अगर सपा-बसपा के वोट जोड़ लिए जाएं तो भी बीजेपी आगे है. लेकिन 2014 और 2018 की कहानी अलग है.
तब मतदाताओं की मोदी और भाजपा के पक्ष में एकतरफा गोलबंदी थी. लेकिन चार सालों में मतदाताओं का भाजपा और मोदी को लेकर मोहभंग हुआ है तो यूपी में योगी भी कोई कमाल नहीं दिखा सके हैं. ऐसे में अगर सपा-बसपा गठबंधन ने गोरखपुर औऱ फूलपुर वाले परिणाम को दोहरा दिया तो यह यूपी में भाजपा के ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकती है.
