Saturday, May 17, 2025
HomeTop Newsस्त्री अस्मितार्थ उत्तर भारत का प्रथम दलित आन्दोलन : दिल्ली का प्रेमलता...

स्त्री अस्मितार्थ उत्तर भारत का प्रथम दलित आन्दोलन : दिल्ली का प्रेमलता हत्या कांड !

बहुत कम लोगो को जानकारी होगी कि दिल्ली का प्रेमलता हत्याकांड सन् 1974 का दलित स्त्री अस्मितार्थ पहला दलित आन्दोलन था जिसका संयुक्त नेतृत्व रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया व भारतीय बौद्ध महासभा दिल्ली के कार्यकर्ताओ ने किया था!

प्रेमलता दिल्ली के कस्तूरबा गांधी हायर सेकंडरी स्कूल,ईश्वर नगर, ओखला नयी दिल्ली  छात्रावास  मे रहती व पढती थी ! जो 10 वी क्लास की अनुसूचित जाति की छात्रा व बापा नगर,  करोल बाग दिल्ली की रहने वाली थी  और उसकी सहेली उषा रानी भी जो बाद मे पढ लिखकर दिल्ली नगर निगम के प्राइमरी स्कूल मे नियुक्त हो प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हुयी है ! एक दिन प्रेम लता की हत्या कर उसकी लाश कुंऐ मे डाल दी ,जो छात्रावास कैम्पस मे ही था ! जब उसके घर वालो को पता चला तो आक्रोशित परिवार जनसमर्थन ले सडको पर उतर आन्दोलित हो गया और पुलिस प्रशासन की अकर्मण्यता देख बापा नगर की पुलिस चौकी फूंक दी! थाने पर विशाल प्रदर्शन हुआ जिसने आक्रामक रूप ले लिया  ! विदित हो कि देव नगर/ बापा नगर मे जूते चप्पल बनाने के कारखाने थे ! जूते चप्पल चिपकाने वाले सलोचन बम का खुलकर प्रयोग हुआ जंहा भी फैंका वही आग लगती चली गयी जो आन्दोलन मे काफी मारक हथियार  सिध्द हुआ, जिसमे दिल्ली के सभी दलित संगठन एकजूट हो उठ खडे हुऐ ! ज्ञात हो कि 1965 के चुनाव के बाद उत्तर भारत मे रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया प्रो बी.पी.मोर्य के नेतृत्व मे पूरे उफान के साथ उभर कर आ रही थी!  1967 मे  दिल्ली के कार्पोरेशन  चुनाव मे RPI  के कार्पोरेटर चुनाव जीत कर आऐ जिनमे डा.अब्बास मलिक एक धाकड़ नेता के रूप मे उभरे जो जामा मस्जिद एरिया से जीत कर दिल्ली नगर निगम मे पार्षद बन पहुचे इधर दादा साहेब गायकवाड व बैरिस्टर खोब्रागड़े  की पकड भी उत्तर भारत मे बन रही थी जबकि प्रो बी.पी.मोर्य व संघप्रिय गौतम की पहचान उत्तर भारत मे एक कुशल वक्ता व राजनेता के रूप मे पहले से ही स्थापित हो चुकी थी जिन्हे दलितो का बेताज बादशाह शोषित वंचित समाज के लोग कहने लगे थे! जंहा कंही पर भी दलित उत्पीड़न घटना होती तो यह दोनो एक स्वर से उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाते ! क्योकि 1957 के चुनाव मे जिन 25  लोगो को बाबा साहेब डा.अम्बेडकर ने विदेश पढने भेजा उनमे से 12 सासंद लोक सभा मे चुनकर आ गये थे ! जो बैरिस्टर के साथ साथ बुध्दजीवी भी थे ! बैरिस्टर खोब्रागड़े राज्यसभा के उपसभापति भी बने!

संयुक्त विधायक दल से भी यू.पी.पंजाब व एम.पी.से विधायक सासंद चुनकर आने लगे ! और दलितो के सामाजिक राजनीतिक मुद्दे तेजी से  राष्ट्रीय पटल पर उभर कर आने लगे ! परिणाम स्वरूप प्रेमलता हत्याकांड को राज नेताओ ने अपने हाथ मे लेकर आवाज उठाई! न्याय के लिये जेल भरो आंदोलन शुरू हुआ ! और हजारो लोग जेल गये,जिनमे युवा महिलाओ के साथ नौजवा व बडे बूढो ने उत्पीड़न के खिलाफ दिल्ली की तिहाड जेल भर दी ! जिन पर बाद मे सरकारी मुकदमे  भी कायम हुऐ ! परन्तु, किसी बडे अखबार ने इस आन्दोलन का नोटिस नही लिया व छोटी-मोटी खबर हाशिये पर देखने को मिलती ! तब भारतीय बौद्ध महासभा ने निर्णय लिया की अपने  पत्र-पत्रिकाये निकलनी चाहिए तो महासभा की और से ” धम्म दर्पण ” त्रैमासिक पत्रिका को निकाला गया जिसका सम्पादन दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कैन मुख्य संपादक व सम्पादन मंडल मे महासभा के अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारी होते, जो आज सुचारू रूप से अम्बेड़कर भवन से निकल रही है ! शान्ति स्वरूप शान्त इसकी कला सज्जा को देखते थे ! पीछे लिखे सूत्र वाक्य स्वय मैने ( डा.कुसुम वियोगी ) ने धम्म दर्पण के लिये लिखकर दिये ! कई नारे भी बौद्ध आन्दोलन को लिखकर दिये ,मसलन बाबा साहब की अंतिम इच्छा! बौध्द धम्म की ले लो दीक्षा!!

हमारा नारा ! समता मैत्री भाईचारा !!
बौध्द धम्म की क्या पहचान ! मानव मानव एक समान !! आदि !
स्त्री अस्मितार्थ उत्तर भारत का पहला ऐसा दलित आन्दोलन था !

जिसकी अगुवाई मे बैरिस्टर खोब्रागड़े, दादा साहेब गायकवाड, डा अब्बास मलिक व महाशय हरदेव सिह  प्रो बी.पी.मोर्य प्रमुख थे ! जिन्हें दिल्ली रिपब्लिकन पार्टी के पदाधिकारियो को अपने चलाये आन्दोलन जलसे जुलूस मे सिरकत करने को बुलाते थे ! साथ ही भारतीय बौद्ध महासभा दिल्ली से लील चंद बौद्ध, एस.पी.सिह,भगवान दास,रोहिताश सिह रवि ,गुडहाई मौहल्ले से कैन व पंडित टी.आर.आनंद आदि प्रमुख रहे थे ! जो समाज के लोगो को एकजूट करते और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार भी दलित बस्तियो मे करते ! उसी दौरान मै  (कुसुम वियोगी) भारतीय बौद्ध महासभा के संपर्क मे आया ! और जन जाग्रति के गीत कविता मंचो से पढने लगे दूसरी तरफ एस.पी.सिह की सुपुत्री प्रेमलता गौतम मंचो से महिलाओ को अपने लिखे गीतो से आन्दोलित करती! विदित हो की जब भी कंही दलित समाज के जलसा /जुलूस होते तो पहले कवियो का कविता पाठ होता व भजनी प्रचारक गीत संगीत वाद्य यंत्रो से प्रस्तुत करते और फिर दलित चेतना को तहरीरे चलती,जो एक स्वस्थ परम्परा बन गयी थी ! उधर अम्बेड़करवादी प्रचारक मोती लाल संत,बुध्द संघ प्रेमी,हापुड के मिशन सिह बौद्ध,सूरज भान आजाद आदि प्रमुख लोक गायक थे !उसी समय शाहदरा के प्रतिष्ठित जनकवि बिहारी लाल हरित की तूती बोलती थी ! जिनके संपर्क बाबा साहब डा अम्बेड़कर व बाबू जगजीवन राम से भी रहे ! आप उस समय के ख्याति प्राप्त जनकवि समाज सुधारक थे ! जो “गोवर्धन बिहारी कहे करारी” के नाम से भी दिल्ली और बाहर के सूबे मे प्रसिद्ध थे ! उसी सत्तर के दशक मे महिला जाग्रति संगठन भारतीय बौद्ध महासभा दिल्ली बनाती और सामाजिक,धार्मिक कार्यो के साथ अपने राजनीतिक संगठन RPI को बल प्रदान करती ! गीतो के माध्यम से घर घर अलख जगाने के कार्यक्रम चलते!

जब प्रेमलता हत्याकांड को महाशय हरदेव सिह जो भजनी समाज सुधारक प्रचारक भी थे व रिपब्लिकन पार्टी दिल्ली के अध्यक्ष भी ! इनके साथ नेताजी तेज सिह सगर भी रहे जो संघर्ष शील जुझारू नेता थे ! साउथ दिल्ली मे ब्रहमजीत नेताजी रिपब्लिकन पार्टी के जुझारू नेता थे जो आज 99 साल की अवस्था मे अभी जीवित है ! जिनके सिर से नीली टोपी कभी  नही उतरी ! जो यमुनापार शाहदरा मे रहते थे !वाल्मीकि समाज के पहले अम्बेड़करवादी बुध्दिस्ट थे ! जिनका परिवार आज भी शाहदरा मे रह रहा है ! लेखक का इन सभी से पारिवारिक नजदीकी संपर्क रहा ! भाई शेखर पंवार जो दलित साहित्य के प्रखर हस्ताक्षर है वो भी विश्वास नगर शाहदरा मे रहते थे जो अस्सी के दशक मे शाहदरा मे आकर किराये पर रहने लगे थे जो सरकारी सेवारत थे व नागपुर के प्रखर दलित साहित्यकार भी !उनका भी संपर्क  इन सब लोगो से रहा ! जब मेरा उनका परिचय हुआ तो मराठी व हिन्दी साहित्य व आन्दोलनो पर चर्चा होती रहती थी ! मराठी साहित्यकार जो भी दिल्ली आता तो साहित्य को लेकर आपसी विमर्श होता चाहे वो दया पंवार रहे हो या डा.यशवंत मनोहर व डा.विमल कीर्ति,प्रभाकर गजभिये व वासनिक रहे हो वा मराठी कवि केशव मेश्राम, मोरे तथा अन्य मराठी साहित्यकार सब आकर वयोवृद्ध जनकवि बिहारी लाल हरित से आकर अवश्य मिलते और समय समय पर परिचर्चा व काव्य-गोष्ठी व हिन्दी उर्दू कवि-सम्मेलन मुशायरा होते और एक नयी दलित साहित्य आन्दोलन की धारा सत्तर अस्सी के दशक मे फूटी दलित साहित्यकारो मे एल.एन.सुथाकर,  एन.आर.सागर,राजपाल सिंह राज, याद करन याद,आर.डी शास्त्री,हिमांशु राय,नत्थू सिह पथिक, मोती लाल संत,नत्थू राम ताम्रमेली,डा.राजपाल सिह राज,डा.सुखबीरसिह,डा.कुसुम वियोगी,मान सिह मान,भीमसैन संतोष,बुद्ध संघ प्रेमी,जालिम सिह निराला,आर.डी.निमेष,मंशा राम विद्रोही,कर्मशील अधूरा,के.पी.सिह आदित्य आदि प्रमुख थे! बाद मे अन्य कवि लेखक भी जुड़ते रहे तथा 1984 मे भारतीय दलित साहित्य मंच की स्थापना हुयी!

15 अगस्त सन् 1997 को डा.कुसुम वियोगी के प्रयास से लेखक के घर पर ” दलित लेखक संघ ” की स्थापना हुयी और 21 वी सदी का पहला अंतरराष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मेलन डा.अम्बेडकरस्टडी सर्कल चंडीगढ व दलित लेखक संघ के सहयोग से दो दिवसीय सम्मेलन हुआ जिसके मुख्य कोऑर्डिनेटर डा.कुसुम वियोगी रहे, जिसमे देश विदेश के लगभग 450 अकादमिक व नान अकादमिक कवि/लेखक/साहित्यकारो ने भाग लिया था ! जिसमे विशेष अतिथि बतौर पंजाब के  क्रांतिकारी कवि लाल सिह ” दिल ” रहे ! बाद मे दलित साहित्य विभिन्न भाषाओ मे आने लगा ! मराठी साहित्य का अनुवाद हिंदी मे और हिंदी का मराठी अनुवाद भाई शेखर पंवार ने किया ! यह दलित साहित्य आन्दोलन फूले/अम्बेड़कर /बुध्द की विचारधारा को समाहित कर आने लगा और आज साहित्य और समाज मे अपनी पकड बनायी ! आज देश विदेश के कालेज विद्यालयो के पाठ्यक्रमो मे पढाया जा रहा है ! जब भी उत्तर भारत मे अत्याचार होते कवि लेखक प्रतिरोध स्वरूप कविताऐ /गीत लिख सामाजिक /साहित्यक राजनीतिक आन्दोलन को गति प्रदान करते थे ! आज नये दलित साहित्यकार विभिन्न विधाओ मे लिख नये -नये प्रतिमान गढ रहे है!

उस समय के सामाजिक आन्दोलन की एक बडी भूमिका यह भी रही कि सभी नीली टोपी के नेता कहते तुम पढे लिखे बुध्दजीवी प्रत्याशी चुनो, समाज को जगाओ और रिपब्लिकन पार्टी  से चुनाव लडाओ !

आज राजनीतिक परिस्थितिया भिन्न है ! सब दलित नेता रिजर्व सीट से चुनकर आते है और समाज हित से अधिक अपने हित लाभ मे अधिक मस्त/व्यस्त रहते है दलित उत्पीड़न के नाम पर मौन साधे पडे रहते है ! आज के नेता बाबासाहेब डा.अम्बेडकर के विपरीत ही कार्य करते नजर आते है ! जिन्होने दलित समाज से अपना विश्वास भी खो दिया है ! फलस्वरूप बसपा का गठन हुआ और जुझारू रिपब्लिकन पार्टी टुकडो मे बंटकर रह गयी और राजनैतिक आन्दोलनो की धार कुंद होती चली गयी !

कहना अतिशयोक्ति न होगी की स्त्री अस्मितार्थ  प्रेमलता हत्याकांड उत्तर भारत का प्रथम दलित आन्दोलन था ! जिसका सामूहिक नेतृत्व  रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया व भारतीय बौद्ध महासभा के द्वारा हुआ और सफल भी हुआ और दोषी दंडित भी हुऐ ! दलित साहित्यकारो ने अपनी-अपनी रचनाओ से जन जागरण के आन्दोलन को आगे बढाया ! आज दलित साहित्य की विश्व स्तरीय मान्यता है और इसका एक बडा पाठक वर्ग भी है जो परम्परागत साहित्य को सीधे-सीधे चुनौती दे खारिज कर रहा है और हाशिये के लोगो की आवाज को बुलन्द कर रहा है!

 संपर्क :- डा.कुसुम वियोगी
( वरिष्ठ अम्बेड़करवादी लेखक, कवि/कथाकार /चिंतक साहित्यकार व सामाजिक कार्यकर्ता है ! )
1/4334-ए, प्रग्या  रामनगर विस्तार, मंड़ोली रोड, शाहदरा दिल्ली -110032
मोबाइल न: 09911409360

लोकप्रिय

अन्य खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Skip to content