सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से एक तस्वीर जमकर वायरल हो रही है। यह तस्वीर महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के यमगे नाम के गांव कि है। यमगे गांव, जहां के बिरदेव धोने ने यूपीएससी परीक्षा पास कर ली है। गड़रिया समाज से आने वाले युवा बिरदेव ने यूपीएससी में 551वीं रैंक हासिल की है। जब नतीजों की घोषणा हुई थी, बिरदेव अपने चाचा के साथ भेड़-बकरियां चरा रहे थे।
नतीजों के बाद उसको बधाई देने वालों का तांता लगा है। बिरदेव पारंपरिक गड़रिया समाज से आते हैं, जिसे धनगड़ भी कहा जाता है। बचपन में बिरदेव पत्थर और मिट्टी ढोने का काम भी कर चुके हैं। बिरदेव की मां खेतों में मजदूरी करती थी। वह गन्ने काट कर रोज के सिर्फ 25 रुपये कमा पाती थी। बिरदेव ने भी घरवालों के साथ लगातार मजदूरी की और साथ ही पढ़ाई भी जारी रखी।
तमाम मुश्किलों से जूझते हुए बिरदेव ने पढ़ाई जारी रखी। कहा जा रहा है कि इसके पीछे बचपन की एक घटना है। एक दिन बिरदेव का मोबाइल गुम हो गया। वह यह सोच कर पुलिस थाने गया कि मदद मिलेगी। लेकिन उसकी मदद तो दूर, उसकी बात तक नहीं सुनी गई। तभी बिरदेव ने यह ठाना कि वह भी बड़ा अधिकारी बनेगा। और आखिरकार तीसरे प्रयास में उन्हें सफलता मिल गई है।
बिरदेव के जहन में अब भी वो याद है। सफलता के बाद बिरदेव के बयान से तो यही लगता है। उनका कहना है- आम आदमी बस यह चाहता है कि उसकी बातों को, उनकी परेशानियों को कोई सुने। समस्या सुलझाना तो छोड़िए, पहले वह सुनवाई चाहता है। अब जब मैं नौकरशाही का हिस्सा बनने वाला हूं तो मैं यही चाहता हूं कि मुझे लोगों की सेवा के लिए ताकत और क्षमता मिले। मैं कान बनना चाहता हूं, जो लोगों की बातों को सुने।
बिरदेव ने क्या हासिल कर लिया है, उसके घर वाले यह नहीं समझते। लेकिन जिस तरह उनको बधाई देने वालों का तातां लगा है, वह इतना तो समझ रहे हैं कि उनका बेटा बड़ा आदमी बन गया है। जब बिरदेव को सफलता मिली तो उनके घरवालों और संबंधियों ने पीली पगड़ी बांध कर उनका सम्मान किया। सोशल मीडिया पर सबसे पहले यही तस्वीर वायरल हुई।
खास बात यह है कि बिरदेव ने यह सफलता बिना किसी महंगी कोचिंग और बिना किसी कलचरल कैपिटल के हासिल किया है। आज जब जाति जनगणना की बात हो रही है और दलितों और वंचितों को लगातार जाति की वजह से ताने मिलते हैं, ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि अगर बिरदेव के पास कल्चरल कैपिटल होता, तो क्या उनकी सफलता और बड़ी नहीं होती?
नीचे लिंक पर जाकर देखिए वीडियो स्टोरी

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।