बुधमनी मिंज : आज विश्व आदिवासी दिवस है. इस दौरान आदिवासियों की मौजूदा हालात, समस्याएं और उनकी उपलब्धियों पर चर्चा हो रही है. प्रकृति के सबसे करीब रहनेवाले आदिवासी समुदाय ने कई क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाई है. संसाधनों के आभाव में भी इस समुदाय के लोगों ने अपनी एक खास पहचान बनाई है. गीत-संगीत-नृत्य से हमेशा ही आदिवासी समुदाय का एक गहरा लगाव होता है. उनके गीतो-नृत्यों में प्रकृति से लगाव का पुट दिखता है. लेकिन मौजूदा समय में आदिवासी समुदाय अपनी भाषा-संस्कृति से विमुख हो रही है.
अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के मौके पर हमने आदिवासी समुदाय के कुछ युवा वर्ग से बात की, जिन्होंने कला के क्षेत्र में नाम कमाया है. वे अपने गीतों और फिल्मों के माध्यम से अपनी संस्कृति को पुरी दुनिया के सामने पेश कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर भी इनके वीडियोज खूब पसंद किये जाते हैं.
अनिरूद्ध पूर्ति : खूंटी (चाडिद) के रहनेवाले अनिरुद्ध पूर्ति (27 वर्षीय) अपने दो छोटे भाई-बहन के साथ रांची में रहते हैं. वे सत्यभारती स्कूल ऑफ म्यूजिक आर्ट एंड ट्रेनिंग इंस्ट्यूट में डांस डिपार्टमेंट के एचओडी हैं. वे फिजिक्स ऑनर्स में ग्रेजुएशन करना चाहते थे, उन्होंने एडमिशन में भी ले लिया था लेकिन घर की आर्थिक स्थिति खराब होने की कारण वे ग्रेजुएशन पूरी नहीं कर पाये. उन्हें बचपन से डांस का शौक था और एनिमेशन में रूचि थी. उन्होंने इसी को अपना करियर चुनने का फैसला किया. शुरुआती दिनों में उन्हें घर से कोई सपोर्ट नहीं मिला. अनिरुद्ध बताते हैं कि रिश्तेदार कहते थे कि डांस में कोई स्कोप नहीं है, सरकारी जॉब की तैयारी करो. मैंने परिवारवालों से 2 साल का वक्त मांगा. वे बताते है कि, पैसे कमाने के लिए उन्होंने शादियो में बजने वाले डीजे में काम किया क्योंकि घर से पैसे लेना बंद कर दिया था. डांस की प्रैक्टिस जारी रखी. साल 2013 में डीआइडी के ऑडिशन में मेरा सेलेक्शन हो गया. हालांकि मुंबई में दो रांउड के बाद मैं बाहर हो गया. इसके बाद परिवारवालों का सपोर्ट मिलने लगा. अनिरुद्ध आदिवासी टच के साथ हीपहॉप डांस करते हैं. उन्होंने कई आदिवासी फैशन शो को कोरियोग्राफ किया है. उन्होंने एक नया ग्रुप बनाया है जिसका नाम ‘आदिवासी गैंग’ है. उन्होंने नागपुरी में रैप शुरू किया है. उनके कुछ वीडियोज यूटूयूब पर मौजूद है जिसे बेहद पसंद किया जा रहा है. उनका कहना है कि हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान है.
अंशु शिखा लकड़ा : नामकोम की रहनेवाली अंशु शिखा लकड़ा (29 वर्षीया) पेशे से एक मॉडल और न्यूज रीडर हैं. उन्हें साल 2018 में अमृत नीर हर्बल प्रोडक्ट का ब्रांड एंबेसेडर बनाया गया है. वे एविएशन फील्ड को अपना करियर चुनना चाहती थीं और दमदम एयरपोर्ट (कोलकाता) पर एयर एशिया में उन्हें नौकरी भी मिल गई थी. लेकिन पढ़ाई पूरी करने के लिए उन्हें वापस लौटना पड़ा. अंशु बताती है कि छोटे भाई के इस दुनिया से चले जाने के बाद माता-पिता उन्हें कभी खुद से दूर भेजने के लिए राजी नहीं थे. इसलिए यहीं अपने लोगों के बीच कुछ अलग करने का निर्णय लिया. ग्रेजुएशन के दौरान उन्हें एक एनजीओ से जुड़ने का मौका मिला. इसके साथ मिलकर आदिवासी संस्कृति पर काम किया. अंशु बताती है कि उनकी संस्कृति कहीं खोती जा रही हैं और इसे बचाने के लिए हमें आगे आना होगा. इसी एनजीओं के माध्यम से दिल्ली जाने का मौका मिला. वहां ट्रेड फेयर में झारखंड को रीप्रेजेंट किया. इसके बाद दूरदर्शन में न्यूज रीडर की नौकरी मिली. खेती-किसानी से जुड़े कई विज्ञापन भी किये. अंशु बताती है उन्हें हमेशा से माता-पिता का सपोर्ट मिला. अंशु पेटिंग करने का भी शौक रखती हैं.
निरंजन कुजूर : लोहरदगा जिले के रहनेवाले निरंजन कुजूर (32 वर्षीय) डायरेक्टर और पटकथा लेखक हैं. अब तक कुड़ुख, हिंदी, चीनी और संताली भाषाओं में काम कर चुके है़ं. उन्हें डॉक्टर बनने का शौक था और दो साल तैयारी भी की लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. इसके बाद उन्होंने मास कम्युनेशन किया. इस दौरान फिल्म मेकिंग में मन रमने लगा. उस समय जानकारी नहीं थी कि हॉलीवुड (अंग्रेजी) और बॉलीवुड (हिंदी) के अलावा भी दूसरी भाषाओं में फिल्में बनती है. इसके बाद कई क्षेत्रीय भाषा की फिल्म देखी. उन्हें अपनी मातृभाषा कुडूख में फिल्म बनाने का ख्याल आया. उनकी कुडूख शॉर्ट फिल्म ‘एड़पा काना’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. इस फिल्म ने कई दूसरे अवार्ड भी जीते हैं. उनकी फिल्में ‘पहाड़ा’ और ‘मदर’ (चाइनिज) फिल्म बनाई. संथाली में म्यूजिक वीडियो बनाये हैं. ‘दिबि दुर्गा’ उनकी चौथी फिल्म है. ‘दिबि दुर्गा’ संथाली दसई गीत पर आधारित एक गीतचित्र है. निरंजन कहते हैं,’ शहरों में रहनेवाले कुडूख समुदाय ने लगभग कुडूख बोलना छोड़ दिया है. गांवो में भी अब लोग अपनी मातृभाषा को भूलने लगे है. सिनेमा के माध्यम से मैं कोशिश कर रहा हूं कि अपनी मातृभाषा को संजो कर रख सकूं और लोगों को प्रेरित कर संकू क्योंकि यह हमारी पहचान है.
जोया एक्का : जोया अख्तर (28 वर्षीया) अंबिकापुर (छत्तीसगढ़) की रहनेवाली हैं. वे उरांव जनजाति से हैं. बचपन से ही वे झारखंड के गायक पवन, पंकज और मोनिका मुण्डू से प्रेरित रही हैं. उन्हें अभिनेत्री बनने का शौक था और उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. वे आज एक सफल प्रोडयूसर है. वे कर्मा, सरहुल और आदिवासी पर्व-त्योहारों से संबंधित गीतों और वीडियो एल्बमों को बढ़ावा देती है और साथ ही नये कलाकारों को मौका देती हैं. जोया बताती हैं,’ शुरूआत दिनों में काफी दिक्कतों का सामना करना पडा. यहां (अंबिकापुर) कुडूख और सादरी के सिंगर्स कम मिलते हैं. झारखंड के कलाकारों का खूब सहयोग मिला.’ वे आदिवासी समुदाय की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहती हैं और इसके बारे में लोगों को बताना चाहती हैं. उनका यूट्यूब पर एक चैनल भी है जिसका नाम ‘जोया सीरीज’ है.
डी विपुल लोमगा : यूट्यूब (YOUTUBE) पर नागपुरी वीडियो देखनेवाले दर्शकों के लिए ‘आशिक ब्वॉज़’ कोई नया नाम नहीं है. 5-6 लड़कों का यह ग्रुप ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले के राउरकेला शहर से है, जिसमें एक लड़की भी शामिल है. यह ग्रुप साल 2015 से ही नागपुरी डांस वीडियो बनाने में जुटा है. इन युवाओं की कोरियोग्राफी आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है. ग्रुप के सभी सदस्य आदिवासी हैं और सभी लोअर मिडिल क्लास से ताल्लुक रखते हैं. इस ग्रुप के लीडर डी विपुल लोमगा (25 वर्षीय) बताते हैं कि हम पढ़ाई के साथ-साथ डांस वीडियोज भी बनाते हैं और इससे जितना भी हम कमा पाते हैं उसे कॉस्ट्यूम और वीडियो के मेकिंग में खर्च करते हैं. इनके ग्रुप में पीके दीप, स्वीकर मुंडारी, एमडी मनु, दिनेश मुरमू , क्रिकेट टोप्पो, आयुष लेज़र, सुदीप, प्रिंस जस्टिन और एक लड़की जेसिका जेनी है. इन्हीं के ग्रुप के एक सदस्य स्वीकर मुंडा हैं जो फिलहाल अपनी आनेवाली नागपुरी फिल्म ‘साथिया’ की शूटिंग कर रहे हैं.
रोहित माइकल तिग्गा : रोहित (35 वर्षीय) ने बैंगलोर से बीबीएम में ग्रेजुएशन किया है. लेकिन इस क्षेत्र को छोड़कर उन्होंने म्यूजिक को अपना करियर चुना. उनके घर में संगीत का माहौल था. पिता सुधीर तिग्गा गाते थे तो इसी परंपरा को रोहित ने आगे बढ़ाने का फैसला किया. बैंगलोर में भी उनके सभी दोस्त मयूजिक और डांस से जुड़े थे. कुछ समय दिल्ली में रहने के बाद वे वापस रांची आये. उनका एक बैंड है और वे कई स्टेज परफॉरमेंस भी करते हैं. उनके वीडियोज को बेहद पसंद किया जाता है. उन्हें इंग्लिश गानों में ज्यादा रूचि है, लेकिन अपनी संस्कृति से पूरी तरह जुड़े हुए हैं.
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