भीमा-कोरेगांव। भीमा-कोरेगांवलड़ाई की 200वीं सालगिरह पर हुई हिंसा से पूरे महाराष्ट्र में तनाव का माहौल है. पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद पूरे राज्य में हालात गंभीर बने हुए हैं. वहीं पुलिस ने शुरुआती जांच में इस पूरे मामले के लिए हिन्दुवादी संगठनों को जिम्मेदार माना है साथ ही दलित संगठनों को क्लिन चीट दी है. पुलिस के मुताबिक हिंसक झड़पों में भगवा झंडा लिए लोगों के शामिल होने की बात सामने आई है.
असल में विवाद 29 दिसंबर की रात से शुरू हो गया था जिसने एक जनवरी को उग्र रूप ले लिया. 29 दिसंबर को वाडेबुडरुक गांव में गणेश महार की समाधि को दक्षिणपंथी संगठनों ने तोड़ दिया. गणेश महार ने ही छत्रपति शिवाजी के बेटे सांभाजी का अंतिम संस्कार किया था. इससे आहत दलितों ने विरोध जताया और प्रदर्शन किया.
हालांकि इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस ने दलितों की भूमिका से इंकार किया है.पुलिस का कहना है कि भीमा कोरेगांव के जश्न में दलित अपने बच्चों और महिलाओं के साथ शरीक होने आए थे और उनके पास कोई हथियार नहीं थे. घटना में घायल लोगों के घाव भी इस बात के सबूत हैं कि उनकी तरफ से कोई भी घातक हथियार इस्तेमाल नहीं हुआ. वहीं शुरुआती जांच में यह पता लगा है कि भगवे झंडे के साथ भी मार्च उसी समय किया गया जब अम्बेडकरवादियों का जश्न चल रहा था. वहीं जब दोनों दल आमने सामने हुए तो पत्थरबाजी हुई और हिंसक झड़पों की शुरुआत हुई.

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