प्रसिद्ध दलित चिंतक व लेखक कंवल भारती ने भाजपा के एससी, एसटी और ओबीसी विधायकों, सांसदों और मंत्रियों से सवाल पूछा है। उनका सवाल है कि उनके रहते जब सरकारी नौकरियों में भागीदारी खत्म की जा रही है तो वे किस काम के हैं।
दरअसल, यह सवाल कंवल भारती ने अकारण नहीं पूछा है। जिस तरीके से केंद्र और राज्य सरकारों के स्तर पर संविधा के आधार पर बहालियां की जा रही हैं तथा निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, उसके कारण आरक्षित वर्गों का हित प्रभावित हो रहा है।
इसी के मद्देनजर कंवल भारती ने अपना आक्रोश व्यक्त किया है। अपने फेसबुक पर उन्होंने टिप्पणी की है कि “क्या भाजपा के एससी, एसटी और ओबीसी विधायकों, सांसदों और मंत्रियों की अपने समुदाय के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है? क्या वे बस अपने ही उत्थान और भोग-विलास के लिए सत्ता में आए हैं? अगर उनके रहते नौकरियों में उनकी भागीदारी खत्म की जा रही है, उन पर अत्याचार किए जा रहे हैं, उनके विकास को रोका जा रहा है, तो मतलब साफ़ है, कि उन्हें उनके समाज की बर्बादी की क़ीमत पर सत्ता-सुख दिया गया है।”
कंवल भारती ने अपनी चिंता दलितों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार की घटनाआं को लेकर भी व्यक्त की है। बीते 15 मार्च को राजस्थान के पाली जिले में जितेंद्र मेघवाल की हत्या का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा है कि “मूंछें रखने पर किसी दलित की हत्या का क्या मतलब है? वही जो डा. आंबेडकर ने कहा था कि भारत के गाँव गणतांत्रिक नहीं हैं, वे दलितों के लिए घेटो हैं. घेटो यहूदियों को यातनाएं देने के लिए ईसाईयों ने बनाए थे. जिनमें लाखों यहूदियों को यातनाएं देकर इसलिए मार दिया गया था, क्योंकि वे ईसाईयों के साथ मिश्रित होकर रहना नहीं चाहते थे. लेकिन भारत में सवर्णों ने लाखों दलितों को इसलिए मौत के घाट उतार दिया, क्योंकि वे सवर्णों के साथ समान स्तर पर मिश्रित होकर रहना चाहते हैं. इसका क्या अर्थ है? क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि दलित हिंदू नहीं हैं? राष्ट्रवादी हरामखोरों क्यों कहते हो कि हम राष्ट्रवादी बनें? क्या यही तुम्हारा राष्ट्रवाद है? क्या ऐसा ही होगा हिंदू राष्ट्र?”

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