मान्यवर कांशीराम का जन्म पंद्रह मार्च1934 को हुआ. प्यार से लोग उन्हें साहब या आदरवश मान्यवर कहते हैं. वह अभी तक के एक ऐसे नायक रहे हैं, जिनका समग्रता से आंकलन होना बाकी है. अस्सी और नब्बे के दशक में उनका व्यक्तित्व अनबुझ पहेली की तरह रहा. परंतु नब्बे के दशक के बाद से उन्होंने भारतीय राजनीति को अकेले दम पर एक नई दिशा दी. उन्होंने गरीबों, मजलूमों, अशिक्षित, ग्रामीण अंचल के लोगों का एक ऐसा आंदोलन किया, जो पढ़े-लिखे शहरी तथा पूंजीपतियों द्वारा समर्थित दलों को मुंह चिढ़ाता है. मान्यवर कांशीराम का व्यक्तित्व साधारण मनुष्य का था. जो कि एक सामान्य समाजिक परिवेश से उठकर भारतीय राजनीति में सूर्य की तरह चमके. वह गांधी नेहरू, टैगोर, सर्वपल्ली राधाकृष्णन आदि नेताओं की तरह द्विज नहीं थे. और न ही उनको ब्राह्मणवाद की सामाजिक संरचना का सपोर्ट था.
इसके विपरीत वो मनुवाद एवं ब्राह्मणी सामाजिक व्यवस्था के घोर निंदक रहे. उन्होंने अपनी इसी सोच के तहत भारतीय समाज को मनुवादियों और बहुजनों के दो फाड़ में बांट दिया. मनुवादियों को उन्होंने मनु धर्मशास्त्र का पोषक बताया और उनकी जनसंख्या का प्रतिशत पंद्रह. इसके साथ ही बहुजन समाज का प्रतिशत 85 तथा मनु धर्मशास्त्र का विक्टीम बताया. इसीलिए उन्होंने यह नारा दिया, ‘ठाकुर-ब्राह्मण-बनिया छोड़ बाकी सब हैं, डीएस-4’ वह न ही विदेश में पढ़े थे, न ही बहुत बड़े बुद्धिजीवी थे और न ही एक कुशल वक्ता. परंतु एक अपार दूरदृष्टि वाले संगठनकर्ता थे. वह अपने श्रोताओं को जानते थे अतः अत्यंत सरल भाषा का प्रयोग कर, लाखों-लाखों की जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे. लोग उनकी रैली में पैसे या गिफ्ट के माध्यम से नहीं आते थे परंतु उनके व्यक्तित्व एवं कृतृत्व के प्रति समर्पण की भावना से रैलियों में उनके कार्यक्रमों को सुनकर उत्साह लेने के लिए आया करते थे. मान्यवर ने बहुजन समाज को जोड़ने के लिए पहली बार कुछ नवीन प्रयोग किए. सर्वप्रथम उन्होंने एक सशक्त एवं ईमानदार संगठन का निर्माण किया और कैडर के रूप में अनुशासित सिपाही तैयार किए. और इसके पश्चात अपना आंदोलन अपनी मदद से ही चलेगा, जैसी धारणा उनके मन में पैदा की. फिर क्या था, लोगों का विश्वास जीता और संगठन आगे निकल पड़ा.
मान्यवर का दूसरा प्रयोग बहुजन समाज के खोए हुए इतिहास का पुर्ननिर्माण था. उन्होंने चुन-चुन कर बहुजन समाज के एक वृहत इतिहास की चादर बुनी, जिसमें आंदोलन को बुद्ध से शुरू होते हुए पंद्रहवी शताब्दी के रैदास, कबीर, गुरु घासीदास आदि तक लाए. आधुनिक काल में 1848 में जोतिबा फुले द्वारा ब्राह्मणवादी संस्कृति के खिलाफ क्रांति के फूंके गए बिगुल का संज्ञान लिया और उसके पश्चात दक्षिण में नारायणा गुरु के आंदोलन को अपनी उर्जा के लिए प्रयोग किया. इसके पश्चात आरक्षण के जनक साहूजी महाराज, ब्राह्मणवाद के घोर निंदक ई.वी रामास्वामी नाइकर (पेरियार) तथा बाबासाहेब अंबेडकर को अपने पांच गुरुओं में शामिल किया. इन सभी महापुरुषों एवं बहुजन समाज के सुधारकों के आंदोलनों को उन्होंने अपनी विचारधारा का आधार बनाया और संगठन में उनके द्वारा किए गए आंदोलनों का बार-बार उदघोष कर मायूस, अत्याचार से निढ़ाल एवं हजारों वर्ष से सतायी हुई बहुजन जनता में भरपूर जोश भरा. जिससे कि देखते ही देखते 1971 में बना पहला संगठन, 1978 तक बामसेफ के रूप में अखिल भारतीय हो गया. यह पहला कर्मचारी संगठन था जो उन्होनें अखिल भारतीय स्तर पर बनाया.
अपने आंदोलन को गतिशील बनाने के लिए उन्होंने 1981 में बुद्धिस्ट रिसर्च सेंटर (बीआरसी) और 6 दिसंबर 1981 को डीएस-4 की स्थापना की. यद्यपि बामसेफ ‘पे बैक टू सोसायटी’ यानि समाज का कर्ज उतारने के लिए बना था. परंतु यह गैर राजनैतिक, नॉन एजीटेशनल एवं गैर धार्मिक संगठन था. लेकिन इस संगठन से मान्यवर संपूर्ण समाज के दुख एवं दर्द को दूर नहीं कर सकते थे. इसलिए उनको बहुजन समाज के सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक उत्थान के लिए एक संगठन बनाना पड़ा. और यह संगठन डीएस-4 के रूप में स्थापित किया गया. इस संगठन के माध्यम से मान्यवर ने लोगों को राजनीति के कुछ आरंभिक मंत्र सिखाए और इसकी सफलता को देखते हुए उन्होंने 14 अप्रैल 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन किया. और इसी से ‘राजनैतिक सत्ता दलितों के सभी दुखों की चाभी है’ के मूलमंत्र को जनता तक पहुंचाया. अपनी जनता को ‘वोट हमारा-राज तुम्हारा, नहीं चलेगा-नहीं चलेगा’ नारा देकर अपने वोट का अपने हक में इस्तेमाल करना सिखाया. फिर क्या था, सत्ता के दहलीज पर उन्होंने पहली बार 1993 में दस्तक दी. और फिर 1995 में एक दलित महिला को भारत के जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री बनाकर भारतीय राजनीति में ही नहीं बल्कि विश्व की राजनीति में अजूबा कर दिया. मान्यवर द्वारा एक दलित महिला को मुख्यमंत्री बनाया जाना अनायास नहीं था. मान्यवर ने यह सब अपने महापुरुषों के महिला सशक्तिकरण के आंदोलनों से शिक्षा लेकर किया. हमें महात्मा जोतिबा फुले, नरायणा गुरु, साहूजी महाराज एवं बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर द्वारा महिला सशक्तिकरण हेतु उठाए गए अनेक कदमों को यहां याद करना होगा. और इसीलिए शायद मान्यवर ने बहन मायावती को अपने आंदोलन का उत्तराधिकारी घोषित किया. थोड़े ही समय में बहुजन समाज पार्टी भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय दल का मुकाम पा गई. और फिर मान्यवर कांशीराम एक नया इतिहास लिखा. क्योंकि इससे पहले बहुजनों के किसी भी दल को राष्ट्रीय दल का दर्जा नहीं मिला था.
अपने आंदोलन को गतिशीलता देने में मान्यवर ने कभी भी प्रजातांत्रित मूल्यों का साथ नहीं छोड़ा. उन्होंने सदैव प्रजातांत्रिक मूल्यों पर ही अपनी राजनीति को कायम रखा. प्रजातंत्र के प्रति उनका यह समर्पण उनके द्वारा प्रतिपादित सभी नारों में दिखाई पड़ता है. यथा, ‘वोट से लेंगे पीएम-सीएम, आरक्षण से लेंगे एसपी-डीएम’ यहां वोट और आरक्षण दोनों ही दलितों के संवैधानिक अधिकार हैं, जिसके माध्यम से मान्यवर सत्ता अर्जित करना चाहते हैं. एक और नारा, ‘जिसकी जितनी संख्या भारी-उसकी उतनी भागेदारी’ के द्वारा प्रजातंत्र में सबसे बड़ा हथियार लोगों की जनसंख्या होती है, मान्यवर इसी बात को अपनी भोली-भाली जनता को बताना चाहते थे. उन्होंने कभी भी अपने राजनैतिक जीवन में अपनी सत्ता के लिए किसी दूसरे दल के एमएलए को नहीं तोड़ा, जैसा कि अमूमन राजनैतिक दल किया करते हैं. कभी भी उन्होंने बूथ कैप्चरिंग और दबंगई का सहारा नहीं लिया. बल्कि अपने संगठन की क्षमता एवं अपने लोगों के वोटों पर ही भरोसा किया. उन्होंने भावनावश अल्पसंख्यक समाज को कभी नहीं भड़काया, बल्कि वह उस समाज में नेतृत्व पैदा करना चाहते थे और कहा करते थे कि आपको अपनी मदद स्वयं करनी है. इसलिए मान्यवर की प्रजातंत्र एवं धर्मनिरपेक्षता के प्रति अपार प्रतिबद्धता थी.
मान्यवर को मीडिया हमेशा मनुवादी लगा. और इसलिए उनको बहुजन समाज का एक स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर मीडिया या प्रचार माध्यम विकसित करने की हमेशा लालसा रही. इसी प्रयोग में उन्होंने पहले द अनटचेबल (मासिक पत्रिका) निकाला, फिर अप्रैस्ड इंडियन (मासिक पत्रिका) निकाली. इसके पश्चात उन्होंने बहुजन टाइम्स को हिंदी, अंग्रेजी और मराठी में दैनिक समाचार पत्र निकाले. परंतु धनाभाव में इन सभी समाचार पत्रों की अकाल मृत्यु हो गई. परंतु मान्यवर इससे भयभीत नहीं हुए. इसके पश्चात उन्होंने बहुजन संगठक (हिंदी साप्ताहिक) का अनवरत 22 वर्षों तक प्रकाशन किया. और इसके साथ ही साथ पंजाबी, मराठी, गुजराती, तेलुगू आदि भाषाओं में भी साप्ताहिक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करते और करवाते रहे. परंतु अफसोस यह सब बहुत आगे नहीं बढ़ सका और इसलिए स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर बहुजन प्रचार-तंत्र का उनका सपना अभी भी अधूरा है. जैसा कि प्रबुद्ध भारत, जो बुद्ध धर्म पर चल रहा हो, उसका सपना भी अधूरा है.
मान्यवर कांशीराम के कृतृत्व एवं व्यक्तित्व के आंकलन के पश्चात ये कहा जा सकता है कि मान्यवर ने बाबासाहेब के सैद्धांतिक पक्ष को व्यवहारिक स्वरूप दिया. उन्होंने उनके मूलमंत्र, ‘सामाजिक क्रांति के माध्यम से राजनैतिक सत्ता प्राप्त की जा सकती है’, को आगे बढ़ाया. बाबासाहेब ने जिस तरह अपने आंदोलन को गतिशीलता प्रदान करने के लिए सामाजिक संगठनों, समाचार पत्रों, राजनैतिक संगठनों एवं संवैधानिक अधिकारों के प्रयोग का सहारा लिया, मान्यवर कांशीराम ने भी अपने आंदोलन में समायोजित कर उसे गतिशीलता दी. शायद इसीलिए बहुजन समाज के लोग एवं बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता बाबासाहेब के अधूरे आंदोलन को पूरा करने के लिए उनसे आस लगाए बैठी थी. ‘बाबा तेरा मिशन अधूरा- कांशाराम करेंगे पूरा’ सरीखे कुछ नारे उस तथ्य को प्रमाणित करते हैं. बहुजन समाज मान्यवर कांशीराम के प्रति अपनी कृतज्ञता को कुछ इस तरह प्रकट करता है, ‘कांशी तेरी नेक कमाई- तूने सोती कौम जगाई’ पर अफसोस, जगाने वाला ही सो गया. लेकिन महापरिनिर्वाण से पहले मान्यवर ने सामाजिक परिवर्तन एवं आर्थिक उत्थान की जो प्रजातांत्रिक क्रांति भारतीय समाज में पैदा की है, वह आने वाले हजारों वर्षों में तो पुनः नहीं होने वाली. उन्होंने अपने पूरे सामाजिक एवं राजनैतिक आंदोलन के माध्यम से केवल दलित, पिछड़े एवं अल्पसंख्यक समाज को ही नहीं जगाया, परंतु सर्वसमाज को जागृत किया है. और उन्होंने अपने आंदोलन के माध्यम से समाज में सबसे आखिरी पायदान पर खड़े हुए व्यक्तियों का सशक्तिकरण किया. उन्होंने उन शब्दहीन, शक्तिहीन एवं सत्ताविहिन समाज को संगठित कर भारतीय प्रजातंत्र को और भी सबल बना दिया है. आने वाला युग कल्पना भी नहीं कर सकता कि एक सामान्य सामाजिक पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति भारतीय समाज में इतना बड़ा योगदान कर सकता है. मान्यवर को शत्-शत् नमन.

अशोक दास ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर हैं। वह पिछले 15 सालों से पत्रकारिता में हैं। लोकमत, अमर उजाला, भड़ास4मीडिया और देशोन्नति (नागपुर) जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से जुड़े रहे हैं। पांच साल (2010-2015) तक राजनीतिक संवाददाता रहने के दौरान उन्होंने विभिन्न मंत्रालयों और भारतीय संसद को कवर किया।
अशोक दास ने बहुजन बुद्धिजीवियों के सहयोग से साल 2012 में ‘दलित दस्तक’ की शुरूआत की। ‘दलित दस्तक’ मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यु-ट्यूब चैनल है। इसके अलावा अशोक दास दास पब्लिकेशन के संस्थापक एवं प्रकाशक भी हैं। अमेरिका स्थित विश्वविख्यात हार्वर्ड युनिवर्सिटी में आयोजित हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस में Caste and Media (15 फरवरी, 2020) विषय पर वक्ता के रूप में शामिल हो चुके हैं। भारत की प्रतिष्ठित आउटलुक मैगजीन ने अशोक दास को अंबेडकर जयंती पर प्रकाशित 50 Dalit, Remaking India की सूची में शामिल किया था। अशोक दास 50 बहुजन नायक, करिश्माई कांशीराम, बहुजन कैलेंडर पुस्तकों के लेखक हैं।
देश के सर्वोच्च मीडिया संस्थान ‘भारतीय जनसंचार संस्थान,, (IIMC) जेएनयू कैंपस दिल्ली’ से पत्रकारिता (2005-06 सत्र) में डिप्लोमा। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एम.ए हैं।
——————————————————————————————————————————
Ashok Das is the founder of ‘Dalit Dastak’. He is in journalism for last 15 years. He has been associated with reputed media organizations like Lokmat, Amar Ujala, Bhadas4media and Deshonnati As a political correspondent for five years (2010-2015). He covered various ministries and the Indian Parliament.
Ashok Das started ‘Dalit Dastak’ with a group of bahujan intellectual in the year 2012. ‘Dalit Dastak’ is a monthly magazine, website and YouTube channel. Apart from this, Ashok Das is also the founder and publisher of ‘Das Publication’. He has attended the Harvard India Conference held at the world-renowned Harvard University in America as a speaker on the topic of ‘Caste and Media’ (February 15, 2020). India’s prestigious Outlook magazine included Ashok Das in the list of ‘50 Dalit, Remaking India’ published on Ambedkar Jayanti. Ashok Das is the author of 50 Bahujan Nayak, Karishmai Kanshi Ram, Ek mulakat diggajon ke sath and Bahujan Calendar Books.
